जिजीविषा – बालेश्वर गुप्ता   : Moral Stories in Hindi

  भाईसाहब,आप ही मेरी सहायता कर सकते हैं।प्लीज करेंगे ना मेरी मदद?

       भाई बताओ तो बात क्या है?तभी तो पता चलेगा कि मैं क्या कर सकता हूँ?अगर कर सकता हूँ तो क्यों नही करूँगा तुम्हारी सहायता।

       मैं कई दिनों से आपसे कहने की हिम्मत जुटा रहा था,पर अब जब पानी सर से गुजरने वाला है तो हिम्मत जुटा आपके पास बड़े विश्वास के साथ आया हूँ।

          घटना 1982 के लगभग की है। मैं रोटरी क्लब का अध्यक्ष था।क्लब की यूथ विंग रोट्रेक्ट क्लब में अरुण नाम का एक अविवाहित सदस्य भी था।उसके यहां फलों का होलसेल का व्यापार था।अरुण अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी कर चुका था।आगे क्या करना है

यह उसके लिये विचारणीय था,सो फिलहाल वह बड़े भाई के साथ फलों के व्यापार में सहयोगी की भूमिका में था।एक अन्य कारोबारी रामकिशन जिनका घर  अरुण के प्रतिष्ठान के समीप ही था,की एक मात्र पुत्री सरिता से उसका नजरो नजरो में प्रेम हो गया।दोनो मिल तो नही पाते थे,पर अरुण का प्रतिष्ठान और सरिता का घर बिल्कुल नजदीक होने के कारण दोनो में इशारों इशारों में बात होते होते प्रेम पत्रों तक पहुंच गयी।

अरुण और सरिता बाते केवल प्रेम पत्रों और इशारों तक सीमित थी।पर दोनो अपने प्रेम के प्रति प्रतिबद्धता जरूर दर्शाते थे।अपने अपने घर मे कोई किसी को कुछ नही बता रहा था,दोनो ही ससंकित थे कि उनके घरवाले उनकी शादी को मानेंगे नही।

        प्रेम पत्रों में डूबे प्रेमियों की तंत्रा तब भंग हुई जब सरिता को पता चला कि आगामी रविवार को उसे देखने वाले आ रहे हैं।एक बज्रपात दोनो पर हुआ।अगर यह शादी पक्की हो गयी तो उनके प्रेम का क्या होगा?इस अहसास के डर से अरुण को मैं ऐसा उपयुक्त व्यक्ति लगा जो सरिता के पिता से बात भी कर सकता है और उनका सपना पूरा करा सकता है,शायद यही कारण  था कि अरुण मुझसे सहायता की गुहार कर रहा था।

         मैंने धैर्यपूर्वक अरुण की सब बातें सुनी,मैंने महसूस किया कि अरुण अपने सच्चे मन से सरिता को न मात्र प्रेम करता है वरन वह उससे शादी भी करना चाहता है।मैंने उसकी सहायता का मन बना लिया।मैंने अरुण से कहा कि मैं रामकिशन जी से अवश्य ही कल शाम बात कर लूंगा।अरुण ने मेरे हाथ अपने हाथ मे लेकर भावुकता में दबा दिये।

अगले दिन सुबह ही मुझे इत्तफाक से एक नजदीकी रिश्तेदार की मौत हो जाने के कारण जाना पड़ गया।इस कारण  मैं रामकिशन जी से उस दिन मिल ही नही सकता था।पर रविवार आने में तीन दिन बाकी थे,सो मैंने सोच लिया कि मैं शुक्रवार या शनिवार को रामकिशन जी से मिल लूंगा।

मैं वापस शुक्रवार की शाम को आ पाया।मेरे वापस आने का समाचार पाकर अरुण रात्रि में ही 8 बजे मुझसे मिलने आ गया।अरुण आते ही मुझसे लिपट कर फफक पड़ा।मुश्किल से उसे शांत  किया।तब उसने बताया कि वह मेरे अचानक चले जाने के कारण स्वयं ही रामकिशन जी से मिलने चला गया था।

        असल मे रामकिशन जी को अपनी बेटी के प्रेमप्रसंग के विषय मे अरुण से ही पता चला,इससे वे हक्के बक्के रह गये, उन्हें सपने में भी सरिता से ऐसी आशा नही थी।उन्होंने क्रोध में सरिता पर तो हाथ उठाया ही,साथ ही अरुण को भी बेहद अपमानित किया।रामकिशन जी ने अरुण से कह दिया कि तेरी अपनी औकात क्या है,

भाई पर आश्रित है,एक पैसा कमाता धमाता नही और बात करने आया है शादी की,निकल यहां से।बेइज्जत हो अरुण वहां से चला तो आया पर उसे आभास हो गया कि अब सरिता उसकी नही हो पायेगी।यही कारण था  वह मुझसे चिपट कर बुरी तरह सिसक रहा था।मैं अरुण को मुश्किल से चुप करा पाया,और पुनः उसे रामकिशन जी से मिलने को आश्वस्त किया। 

       अरुण के जाने के बाद मैंने पूरे प्रकरण पर विचार किया।मैंने विष्लेषण किया कि यह तो सही है कि अरुण और सरिता एक दूसरे से निश्छल प्रेम करते है,उनकी जोड़ी भी अच्छी है,पर रामकिशन जी की बात भी सही थी,भले ही उन्होंने क्रोध में कहा हो कि उसका क्या भविष्य है,वह करता ही क्या है?भला एक बाप अपनी बेटी का हाथ ऐसे बेरोजगार के हाथ मे कैसे दे दे?

         फिर भी मैं अगले दिन रामकिशन जी से मिलने पहुंच गया।वे बहुत ही परेशान थे,मैंने उनसे परेशानी का कारण पूछा तो वे मुझे चूंकि मित्र मानते थे,सो बोले भाई क्या बताऊँ मेरी बेटी ने ही मेरी इज्जत तार तार कर दी।कल उसको देखने वाले आने थे,पर मुहल्ले में से किसी ने उनसे सरिता और अरुण के बारे में कह दिया तो उन्होंने कल आने से मना कर दिया।

हम तो कही के ना रहे।मैंने उन्हें शान्त कराया और उनसे कहा कि अरुण एक अच्छा भला लड़का है,उससे सरिता की शादी का मतलब दोनो का सुखी जीवन जीना होगा।पर ये भी सही है कि वह बेरोजगार है।ऐसा करते है कि हम अरुण को एक डेढ़ वर्ष का समय देते हैं,

यदि वह अपने को साबित कर देता है तो हमे सरिता की उससे शादी करने में कोई हिचक या परेशानी नही होनी चाहिये।हां एक बात का वायदा इन दोनों से लेना होगा कि  इस बीच वे न तो मिलेंगे और न ही एक दूसरे को खत लिखेंगे।यदि अरुण अपने को सिद्ध नही कर पाता है तो स्वाभाविक रूप से ये रिश्ता समाप्त वह खुद समझ लेगा।तब हम सरिता की शादी कही भी करने को स्वतंत्र होंगे।इस सुझाव से रामकिशन जी को तस्सली मिली और उन्होंने अपनी स्वीकृति इस सुझाव को दे दी।

         मैंने अरुण को समझा दिया कि वह अपने को सरिता योग्य एक वर्ष में बना लेगा तो तुम्हारा विवाह उससे हो पायेगा,अन्यथा तुम्हे उसे भूलना होगा।मेरा ये वायदा है एक वर्ष तक सरिता का विवाह नही होगा।अरुण ने मेरे चरण स्पर्श किये और बिना कुछ भी बोले चुपचाप चला गया।इधर कई दिनों से अरुण दिखायी नही पड़ रहा था,

मैंने उसके भाई से पूछा तो बताया कि शहर गया है किसी कोचिंग आदि के बारे में बता रहा था।मैंने समझ लिया कि कम्पीटीशन की तैयारी कर रहा होगा।अब अरुण चूंकि मिलता नही था तो उससे सम्बंधित सब बातें मेरे नेपथ्य में चली गयी।

    एक डेढ़ वर्ष बाद अचानक अरुण मेरे पास आया उसने मेरे हाथ मे मिठाई का डिब्बा देकर और मेरे चरण स्पर्श कर मुझसे बोला भाईसाहब आपके आशीर्वाद और सहयोग से मैंने राजस्थान की पीसीएस परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है,साक्षात्कार बाकी है,मुझे पूरा विश्वास है कि मैं उसमें भी सफल रहूंगा।आज उसकी आवाज में आत्मविश्वास से भरी थी।एक बार मे ही पीसीएस कम्पीटीशन में सफल होना भी कोई कम बड़ी बात नही थी।मैंने अपनी ओर से उसे सफलता का आशीर्वाद दिया।

           कुछ माह बाद उसका सेलेक्शन हो ही गया और ट्रेनिंग के बाद उसे एसडीएम की पोस्ट भी मिल गयी।अब अरुण के लिये रिश्तों की लाइन लगी थी।बड़े बड़े धनवान परिवार अरुण से अपनी पुत्री की शादी को लालायित थे।रामकिशन जी को अब सूझ ही नही रहा था कि जिसे उन्होंने अपने घर से अपमानित करके निकाला हो उससे अब उसी घर का दामाद बनने का प्रस्ताव भी किस मुँह से रखे?

रामकिशन जी के आमंत्रण पर मैं उनके यहां चाय पीने गया।मैं समझ रहा था वो अरुण के बारे में बात करना चाह रहे है,मै स्वयं हिच महसूस कर रहा था,पता नही अब अरुण सरिता से शादी करना चाहेगा भी कि नहीं, परिस्थितिया बदल चुकी थी।रामकिशन जी और मैं चुपचाप चाय पी रहे थे,पर बोल नही पा रहे थे।

दरवाजे पर घंटी बजने पर रामकिशन जी ने दरवाजा खोला तो सामने अरुण को खड़ा पाया।उसने आगे बढ़कर रामकिशन जी के चरण स्पर्श करके कहा बाबूजी आज मैं अपने पावँ पर भी खड़ा हूँ और ठीक पोजीशन में भी हूँ,अब तो आप सरिता और मुझे आशीर्वाद दे देंगे ना?अरुण की सरलता को देख रामकिशन जी की आँखे नम हो गयी।

वे कुछ बोल नही पाये,बस अरुण का हाथ पकड़ कर अंदर ले आये।मैं अवाक खड़ा अरुण को देख रहा था,जिसका जीवन रामकिशन जी के अपमान ने ही शिखर पर पंहुचा दिया था। रामकिशन जी भावातिरेक में कुछ बोल नही पा रहे थे,मैं ही बोला देखो अरुण अब तुम्हे अपने बड़े भाई या पिता के पास रामकिशन जी को ले जाना पड़ेगा।भई आखिर लड़की वाले ही तो रिश्ता मांगने जायेंगे।अरुण खुशी के मारे मुझसे चिपट गया।अचानक मेरी नजर दरवाजे की ओट में खड़ी सरिता पर पड़ी,जो शरमाकर अंदर की ओर दौड़ पड़ी।

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवम अप्रकाशित।

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