Moral stories in hindi : सोहन बाबू जो एक बहुत बड़ी कम्पनी के मालिक थे।आज कानपुर के सबसे बड़े अस्पताल में भर्ती थे। उनका पूरा परिवार आज बहुत परेशान था, क्योंकि सोहन बाबु की तबियत बहुत खराब थी, उनके सारे टेस्ट हो चुके थे डॉक्टर के अनुसार उनका लिवर ख़राब हो गया हो गया था।
औऱ डॉ ने लिवर प्रत्यारोपण ही उसका इलाज बताया था।
उनके दोनों बेटों ने और घर के लोगो ने अपनी जाँच करवाई पर किसी का भी उनके ब्लड ग्रुप व लिवर मैच नही हुआ।
अब उनके बेटो ने पेपर में बहुत बड़ा एड दिया जो भी व्यक्ति अपना लिवर उनको देगा वह उसको बहुत रुपये और एक मकान देगे और उनके इलाज की जिम्मेदारी भी वो ही उठाएंगे।
कई लोगो ने आकर अपने टेस्ट करवाये पर कुछ न हुआ।
सोहन बाबू की हालत खराब होती जा रही थी, की अचानक एक दिन एक बहुत ही बुजुर्ग सी महिला और बुजुर्ग बाबा जिनकी उम्र यही कोई सत्तर साल की होगी वह अस्पताल आये । वह दोनों बेहद गरीब थे और किसी गाँव से आये थे ।
वह सीधे डॉ से मिले और बोले साहब आप हमारा जिगर ले लो पर हमार बब्बू को बचा लो।
डॉ अचानक चौक गए बोले आप कौन है सोहन बाबु के कोई परिचित हैं क्या ?
डॉ साब आप कुछ पूछो मत बस हमारा जिगर का टुकड़ा उसको लगा दो वह ठीक हो जाये और हमको कुछ नहीं चाहिए! यह कहकर वह दोनों रोने लगे!
यह तो ठीक है पर पहले आपको टेस्ट करवाना पड़ेगा।
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साहब वह तो हमारे ही जिगर का टुकड़ा है । हमारा खून तो क्या सबकुछ उससे मिल जाएगा । बस आप जल्दी से उसको ठीक कर दो, पर आप उसके परिवार को न बताना की उसको जिगर किसने दिया।
हमको तो कल ही पता चला तो हम दौड़ कर आये है।
अब डॉ कुछ तो समझ ही गये ।वह बोले क्या आप उनके माता पिता हो। हाँ डॉ साब,वो हमार ही बिटवा है।
वह खड़े सारे लोग और अन्य डॉ यह सुन कर सकते में रह गए की इतने बड़े आदमी ले माता पिता ओर इस हाल में पर वह क्या कर सकते थे ।
साब अम्माजी बोली पहले आप ये खत रख ले जब हम चले जाएं तब ये खत उसको दे देना। फिर उन लोगो ने कुछ रुपये जो शायद उनकी जमा पूंजी थी वह डॉ को दी और बोले बाद में इस रकम से ही हमारा इलाज करना उनसे कुछ ना लेना।
ऑपरेशन सफलता पूर्वक हो गया था सोहन बाबू ठीक होने लगे थे । इधर जब सोहन बाबू के परिवार वालो ने पूछा कि किसने लिवर दिया है इस पर डॉ उनको टालते रहे।
आज जब सोहनबाबू को छुट्टी मिल रही थी तो डॉक्टर जो कि उनके परिचित दोस्त भी थे ।उन्होंने वो खत सोहन बाबू को दे दिया।
उसमे लिखा था हमारे जिगर के टुकड़े बब्बू जब तुम छोटे थे तब हम तुमको यही कहते थे ।और आज तुमको उसी जिगर की जरूरत थी ।हमारा ये जिगर तुम्हारी जान से ज्यादा कीमती नही है बेटा।
बेटा हर बच्चा अपने माता पिता की बुढ़ापे की लाठी होता है। तुम को हमने भी पढ़ने के लिए शहर भेजा। पर वहाँ जाकर बड़े शहर की आवो हवा इतनी अच्छी लगी कि तुमको अपना गाँव और गाँव के रहने वाले माता पिता को किसी से मिलाना भी अच्छा न लगा । फिर तुमने अपनी ही पसंद की लड़की जो बहुत अमीर थी उससे शादी की। हमको पता लगा हम गाँव से आये भी तुम लोगो को आशीर्वाद देने ।पर वहाँ जाकर पता लगा कि तुमने वहाँ सबको बताया था कि तुम्हारे माता पिता एक एक्सिडेंट में मर चुके है।
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और हम यह बात सुनकर वापस गाँव आ गए पर बाद में इतने साल हो गए तुमने हमारी कोई सुध नही ली । लेकिन हम तो माता पिता है।तुमको जन्म दिया था इस कारण तुमसे जुदा भी नही हो पाए, और तुम्हारी हर खबर शिव जो तुम्हारा दोस्त है बचपन का अपने गाँव का उससे लेते रहते थे।उसने ही हमको बताया तुम बहुत बीमार हो।
जैसे ही हमको पता चला तुम बहुत बीमार हो और तुम्हें जिगर की जरूरत है हम दौड़ कर यहाँ चले आये। तुमको हम ऐसी हालत के नही देख सकते थे। क्योंकि तुम हमको कुछ मानो या न मानों और चाहे तुम्हारी नजर में हम मर गए हो ,पर हम कैसे भूल जाते की हमने तुमको जन्म दिया है।अब तुम सदा ही खुश रहना भगवान तुमको सदा स्वस्थ रखे।अब हम तुम्हारी इस सुनहरी दुनिया से तुमसे बहुत दूर जा रहे हैं सदा के लिए कहाँ यह तो हमको भी नहीं पता इतना पढ़ते ही सोहन बाबू के हाथों से खत गिर गया वह फुट फुट कर रोने लगे।आज उनको समझ आ रहा था उनके माता पिता ने कितना त्याग किया था उनके लिए इतने दिनों तक वह उनसे दूर रहकर कैसे रहें होगे दिल पर पत्थर रखकर आज वह अपने माता पिता से माफी भी नहीं मांग सकते थे न ही उनसे नजरें ही मिला सकते थे अगर वह सामने आ भी जाते तो! क्योंकि वह उनसे बहुत दूर जा चुके थे!
#त्याग
मंगला श्रीवास्तव
इंदौर
स्वरचित मौलिक कहानी