जिगर का टुकड़ा था जो–निकला दगाबाज वो – कुमुद मोहन

कैसा लग रहा है,बहू पर खूब जंचेगा ना?एक बड़ा  सा रितेश का हार गले में लगाते हुए विभा ने अपने पति राजबीर से पूछा? पूरे पलंग पर वह हल्के भारी गहनों की नुमाईश लगाये बैठी थी।जिन्हें बरसों से अपनी बहू के लिए जमा कर रही थीं। सुबह से बेटे बहू के स्वागत की तैयारी में जुटी थी।

पाँच साल पहले उन्होंने दिल पर पत्थर रखकर अपने  इकलौते बेटे राहुल को एक बड़ा डोनेशन देकर लंडन पढ़ने भेज दिया था क्योंकि उनके लाड़ प्यार ने उसे एक हद तक उदंड,घमंडी और बदतमीज़ बना दिया था। सिगरेट फ़िर शराब, लडकियों को छेड़ना राहुल की आदत में शुमार होने के लगा था।

संस्कार और जीवन मूल्यों की जगह  उन्होंने राहुल को पैसों की घुट्टी पिलाई।पैसे के आगे राहुल के लिए सारे रिश्ते नाते बेमानी थे।

जैसे तैसे राहुल ने लंडन में पढ़ाई पूरी की,और छ महीने पहले वहीं पर एक अमीर अंग्रेज़ की लड़की रोमा से शादी कर घर जंवाई बन गया।

अब उसकी गोरी मेम इंडिया घूमना चाहती थी इस लिए वो दोनों आ रहे हैं।

राजबीर और विभा की खुशियों का ठिकाना नहीं था, बेटे की बारात तो नहीं ले जा पाऐ थे इसलिए उन्होंने एक रिसेप्शन रखा।

कार से उतार कर विभा ने रोमा को पैर से चावल का कलश लुढ़काने व रोली वाले पैर बनाने की रस्म करवाई ,रोमा बहुत एन्जॉय कर रही थी।लाल रंग की गोटेदार चुन्नी  उसके गोरे रंग पर खूब जंच रही थी।

मुंह दिखाई में विभा ने उसके हाथों में मोटे मोटे जड़ाऊ कंगन पहनाऐ,पैरों में रितेश की पायजेब ,सारे ज़ेवर पहन कर रोमा की खुशी का ठिकाना नहीं था।

शाम के रिसेप्शन में विभा ने उसके लिए लाल रंग का लहंगा बनवाया था, आज विभा बहू के सारे चाव पूरे कर लेना चाहती थी।




रिसेप्शन खत्म करके विभा अपने गहने उतार ही रही थी कि रोमा और राहुल आए, रोमा लपक कर विभा के गले लग कर बोली”ओ मदर इन ला,यू आर सो स्वीट “विभा उसका लाड़ देख कर गद् गद् हो गई, फिर विभा के गले का हार और मोटे मोटे कुंदन के कंगन हाथ में लेकर बोली”आय एम लविंग इट “तभी राहुल बोला”दे दो ना मम्मी इसे!और फिर अब आपकी उमर भी कहाँ रह गई ये सब पहनने की?

विभा के पास बस यही बचा था बाकी तो उसने पहले ही रोमा को दे ही दिए थे।उस वक्त विभा बहू के चाव में ऐसी पागल हो रही थी कि अपना आगा पीछा सोचना भी भूल गईं थीं।सब गहने बहू को दे दिए यह सोच कर कि घर के घर में ही रहेंगे।

रात भर में राहुल और रोमा ने खिचड़ी पकाई कि विभा और राजबीर को लंदन ले चलते हैं, मम्मी घर का काम कर लेंगी और पापा बाजार और सफाई वगैरह

अगले दिन सुबह राहुल और रोमा ने बड़ा लाड़ दिखा कर उन्हें  मकान बेचने और लंदन चलने को राजी कर लिया।

राहुल ने चटपट ब्रोकरों से बात कर मकान बिकवा कर कैश अपने कब्जे में कर लिया,बाकी चेक बैंक में जमा करा दिए, राजबीर को समझाया कि आपके हाथ दस्तखत करते हुए कांपते हैं इसलिए मेरा नाम भी अकाउंट में डाल दें।उन्होंने पुत्र मोह में आ के वैसा ही कर दिया।

मिले हुए कैश से राहुल और रोमा ने मजे से पूरा भारत दर्शन किया।

हफ्ते भर बाद राहुल ने बताया कि वो तीन बेडरूम घर लेकर उन दोनों को जल्दी ही आकर लंदन ले जाएगा।थोड़े दिनों के लिए आप दोनों का इंतज़ाम वृद्धाश्रम में कर दिया है,

विभा और राजबीर को बुरा तो बहुत लगा पर उन्होंने सोचा बस कुछ दिनों की तो बात है फिर हम सब साथ ही रहेंगे।

लंदन जाकर रोमा ने राहुल को पट्टी पढ़ाई  कि मम्मी- पापा बीमार से रहते हैं यहाँ मेडिकल एड बहुत मंहगी वो हमारे किसी काम भी नहीं आ सकते।

कई महीने बीत गए अब राहुल ने  उनकी सुध  लेना तो दूर उनका फोन उठाना भी बंद कर दिया, उनकी परेशानी देखकर वृद्धाश्रम के मैनेजर ने बताया कि आपका बेटा थोड़ी सी रकम जमा कर गया था,कह गया है आपके हाथ में पैसा न दिया जाए क्योंकि आप दोनों की दिमागी हालत ठीक नहीं है।

विभा और राजबीर सब कुछ होते हुए भी अपने ही बेटे के हाथो  ठगकर हक्के- बक्के रह गए, पुत्र मोह ने उन्हें आकाश से उठा कर कुछ पलों में ही धरती पर पटक दिया। उन्होंने कभी सपने में भी सोचा न होगा कि उनकी अपनी इकलौती औलाद उन्हें ज़िंदगी का सबसे बड़ा धोखा देगी!

मां-बाप थे न उसे बद्दुआ भी नहीं दे सकते थे!

#धोखा

      कुमुद मोहन

1 thought on “जिगर का टुकड़ा था जो–निकला दगाबाज वो – कुमुद मोहन”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!