“ अरे रामसिंह हटवाओ इन रेहड़ीवालों को कैम्पस के अंदर से… तुम्हें कितनी बार समझाया है इन लोगों को अंदर मत आने दिया करो।” इंटरकॉम पर अपार्टमेंट के सिक्योरिटी गार्ड को फ़ोन कर के मनोहर जी ग़ुस्सा जता रहे थे
“ साहब हमने तो मना ही किया पर वो जो 204 में नए लोग शिफ़्ट हुए है उन्होंने इन्हें बुलाया है… आप कहते है तो मैं फिर से उसे जाने के लिए कह देता हूँ ।”रामसिंह ने कहा और फोन रख कर दौड़ता हुआ उस रेहड़ीवाले के पास गया
“ देख भाई मना किया था ना इधर मत आना लो साहब का फ़ोन आ गया तुम निकलो।” रामसिंह ने कहा तबतक 204 में रहने वाली सुमिता जी नीचे आकर रेहडी़ के पास खड़ी हो अपने लिए सब्ज़ी देखने लगी
“ मैडम आप बाहर जो सुपरमार्केट है वहाँ जा कर जो लेना है ले लीजिए… इस कैम्पस में इन रेहड़ीवालों का आना मना है ।” रामसिंह ने सुमिता जी से कहा
“ क्यों भई क्यों मना है..और ये कौन सी बात हो गई जो मैं इनसे नहीं ले सकती मुझे तो इनसे ही लेना है ये कहाँ का नियम है जो इन बेचारों के पेट पर लात मार रहे हो।”कहते हुए सुमिता जी सामान ले पैसे देने लगी तो रेहड़ीवाले ने कहा,” मैडम यहाँ कुछ साहब लोग हमें गाजर मूली समझते हैं
उन्हें लगता है हमसे सब्ज़ी फल लेने से उनकी तौहीन होती इसलिए वो रुआब से मॉल या सुपरमार्केट जाते हैं हमसे तो पैसे भी कम करवाते पर उधर दुगुना दाम देकर ख़रीद कर अपनी शान समझते है।” कहकर रेहड़ीवाला बाहर निकल गया
कुछ समय बाद की बात है मनोहर जी कि तबियत ख़राब हो गई घर में उनकी पत्नी रहती थी जो ज़्यादा चल फिर नहीं पाती थी…एक दिन घर की सब्ज़ियाँ और राशन ख़त्म हो गया वो ऑनलाइन लेना आता नहीं था सोची पास में ही सुपरमार्केट से ले आती हूँ किसी तरह नीचे उतर कर वो जा ही रही थी कि सुमिता जी नीचे मिल गई वो सब्ज़ी फल लेने के लिए रेहड़ीवाले का इंतज़ार कर रही थी…
“ अरे मिसेज़ सिंह कहाँ जा रही है?” सुमिता जी ने पूछा
“ वो कुछ सब्ज़ी फल लेना है।” कह ही रही थी कि तभी रेहड़ीवाला गेट के पास आकर गार्ड से अंदर आने की बात कर रहा था
गार्ड ने सुमिता जी को देखते ही उसे आने दिया
“ अरे इसकी सब्ज़ियाँ फल कितने ताजे दिख रहे… उधर तो ज़्यादा फ्रेश दिखते ही नहीं ।” कहते हुए मिसेज़ सिंह उससे ही सब्ज़ी फल लेकर घर चली गई
“ बहुत जल्दी आ गई?” मनोहर जी ने पूछा
“ हाँ आज सुमिता जी रेहड़ीवाले से सब्ज़ी फल ले रही थी तो मैंने भी ले लिए.. और देखो कितने ताजे है आप भी ना इन्हें गाजर मूली समझते है अरे उधर से सस्ते और अच्छे दे रहा है क्या ही दिक़्क़त है लेने में वो तो यहाँ तक बोल रहा था मैडम आपको चलने में दिक़्क़त हो तो आप मुझे बता दीजिएगा
क्या चाहिए मैं घर पर दे जाऊँगा…. मैंने भी उसकी बात मान ली …बेचारा इधर उधर घूम कर सब्ज़ियाँ बेचता मेहनत करता है और हम उन्हें ही दुत्कार देते।”मिसेज़ सिंह ने मनोहर जी से कहा
“ ठीक है भई जो तुम्हें सही लगे करो… मेरी हालत तो ऐसी है नहीं कि तुम्हारी कोई मदद इन दोनों कर पाऊँगा ।” मनोहर जी ने हथियार डालते हुए कहा
रेहड़ीवाला अब उनके घर तक सब्ज़ियाँ दे जाता कई बार मिसेज़ सिंह काम की व्यस्तता में पैसे नहीं दे पाती तो वो कल दीजिएगा कोई दिक़्क़त नहीं है कह कर चला जाता।
मनोहर जी को भी समझ आ रहा था वो जिन्हें तुच्छ समझ रहे थे वो उनका मददगार ही बन गया था …बच्चे बाहर रहते थे …ऐसे में ज़रूरत पड़ने पर वो राशन दवा भी पहुँचा देता था।
“ मुझे माफ कर देना मैं कितना गलत सोच रखा था ।” एक दिन मनोहर जी ने उस रेहड़ीवाले से कहा
“ साहब माफ़ी क्यों माँग रहे हम छोटे लोग है ऐसी बातों की आदत है।” कहते हुए सब्ज़ी का थैला थमा वो निकल गया
दोस्तों बहुत लोग इस मानसिकता में जकड़े हुए है जो सोचते है कि बड़े बड़े शॉप पर जाकर ख़रीदारी करना शान है और इन छोटे दुकानदारों को तुच्छ…. समझ उनसे लेना पसंद नहीं करते ….पर सच ये है इनके पास जो ताजे फल सब्ज़ियाँ मिलेगी वो उधर नहीं मिल सकते ….ऐसे में इन्हें इनके काम के लिए तुच्छ ना समझकर सराहना करें ।
रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
#मुहावरा
#गाजर मूली समझना