झूठी कहीं की –  मधु वशिष्ठ

 रीना ने अपनी लाई हुई मनपसंद साड़ी जब अपनी ननद गरिमा को दे दी तो सासू मां ने हैरान होकर पूछा यही साड़ी तो तुम   रजत के विवाह में पहनने वाली थी। नहीं मम्मी, मैंने दो महंगी साड़ियां ली थी ना उनमें से एक मैंने  दीदी के ही लिए ली थी। रिसेप्शन के लिए मेरे पास एक और अच्छी साड़ी रखी है।

भावना जी मन ही मन संतुष्टि और प्रसन्नता का भाव लिए हुए  बुदबुदाईं, झूठी कहीं की। रीना भी मन ही मन मुस्कुराई और धीरे से बोली, आप भी तो झूठी। गरिमा ने बाहर जाते हुए दोनों की तरफ देख कर अपने पति की बाइक पर बैठते हुए हाथ हिलाया और बोली इतवार को शादी में मैं यही साड़ी पहन कर आऊंगी।

भावना जी और रीना दोनों अंदर आ गए। पाठकगण आपकी जानकारी के लिए बता दूं, भावना जी के परिवार में उनकी बेटी गरिमा और बेटा रोहित है। दोनों का विवाह हो चुका और रोहित मेरठ में किसी फैक्ट्री में नौकरी कर रहा था। गरिमा की शादी दिल्ली में ही भावना जी के घर से थोड़ी दूर पर ही हुई थी। साथ वाले घर में चाचा जी के बेटे की शादी के लिए रोहित और रीना घर पर आए हुए थे। भावना जी ने दिल्ली वाले घर का ऊपर का हिस्सा किराए पर दे रखा था और वर्मा जी भी एक सरकारी क्लर्क के पद से रिटायर हुए थे तो उनकी भी पेंशन आती थी जिससे उनका गुजारा सही से चल रहा था

भावना जी ने रजत की बहू को देने के लिए अपने सुनार से कानों के कुंडल बनवाए थे। भावना जी और रीना दोनों शादी के लिए खरीदारी में लगे हुए थे। रीना ने अपने जोड़े हुए पैसों से शादी और रिसेप्शन में पहनने के लिए बहुत सुंदर और महंगी 2 साड़ियां खरीदीं थी।

रीना ने जब विवाह में पहनने के लिए अपने गहने निकाले तो उसने पाया कि उसके सेट के साथ के कान के झुमके टूट गए थे। उसने भावना जी को बताया कि उसने तो सारे पैसे साड़ियों में ही खर्च कर दिए और अब सैट के साथ के इन झुमको को ठीक कराने का कोई फायदा भी नहीं है क्योंकि इसमें लगे मोती बार-बार गिर जाते हैं, फिर कभी जब उसके पास पैसे होंगे तो वह सेट के साथ के कान के झुमके दोबारा से बनवा लेगी। उसने भावना जी से कहा कि हम मार्केट जा कर कोई आर्टिफिशियल झुमकी ही ले आएंगे।




भावना जी ने उसको सलाह दी कि मैं सुनार से जाकर इस बार तो टांका लगवा आती हूं  थोड़ी देर के लिए तो ध्यान रख कर इस सेट को ही अबकी बार भी  पहन लेना। ब्याह शादी में असली होते हुए भी क्यों नकली गहनों को पहने। ऐसा कहते हुए भावना जी ने उसके कान के टूटे हुए झुमके ले लिए। दूसरे दिन  सुनार से नए झुमके लाकर उन्होंने  रीना को दिए और कहा तुम अपना पूरा सैट पहन लेना। सुनार ने झुमकी बदल कर आठ हजार रुपए उधार पर दिए हैं। धीरे धीरे तुम यह पैसे चुका देना। मुझे तो सुनार उधार भी दे देता है।

रीना बहुत खुश हुई वह जानती थी कि सुनार ने उधार नहीं दिए अभी तो उसकी सासू मां ने ही अपनी जमा पूंजी लगाकर उसके कान के झुमके बदलावाएं हैं। अब जब गरिमा घर आई तो उसने अपने गहने और साड़ियां दिखाईं। गरिमा को रीना की साड़ियां बहुत पसंद आईं पर क्योंकि वह बहुत महंगी थी इसलिए गरिमा खरीद नहीं सकती थी। उसने भावना जी को बताया कि अभी अपने फ्लैट के लोन और पिंकी के स्कूल के एडमिशन में बहुत पैसे खर्च हो चुके हैं अन्यथा वह ऐसी साड़ी जरूर खरीद लेती।

रीना ने भावना जी की ओर देखा, अक्सर ऐसा ही होता था गरिमा को जो भी चीज पसंद होती थी भावना जी उसे अपनी चीज भी दे देती थी या उसे स्वयं ही दिलवा भी देती थी। अब के गरिमा के कहने पर कि अब के तो मैं पुरानी साड़ी ही पहन लूंगी  फिर किसी मौके पर मैं भारी साड़ी खरीद लूंगी। भावना जी का चेहरा मुरझा गया था। रीना समझ गई की भावना जी ने सारे पैसे तो उसकी झुमकी में खर्च कर दिए वह अब अपनी बेटी गरिमा को साड़ी नहीं दिलवा सकती।

बातें करने के बाद शाम को जब गरिमा के पति ( रीना के ननदोई) जब गरिमा को लेने आए तो रीना ने एक साड़ी गरिमा को देते हुए कहा, मैं यह साड़ी तुम्हारे ही लिए लाई थी। हालांकि गरिमा को लेने में बहुत संकोच हो रहा था लेकिन सासू मां (भावना जी) के चेहरे पर खुशी स्पष्ट थी।

गरिमा को विदा करने के बाद भावना जी मन से बहुत खुश होते हुए धीरे से बुदबुदाईं  ” झूठी कहीं की”, और रीना भी मुस्कुराते हुए मन ही मन बोली  आप भी तो!

 

पाठकगण उन दोनों के चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे और  उन दोनों की खुशी छिपाए नहीं छिप रही थी। काश सब का ऐसा ही परिवार हो।

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       मधु वशिष्ठ

 

 

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