आंखों की कोर पोंछतीं… सुलेखा जी अचानक जोर से सुबक उठीं… फोन रखकर वहीं जमीन पर धप्प से बैठ… हथेलियों से मुंह ढंक कर आंसू बहाने लगीं…
अभिषेक ड्यूटी को निकल ही रहा था… मां को ऐसे देख हड़बड़ाहट में मां के पास आ गया…” क्या हुआ मां… क्या हो गया… ऐसे क्यों रो रही हो…?”
मां कुछ ना बोली… थोड़ी देर बाद उठकर कमरे में चली गई… बैग निकाल अपने कपड़े डालने लगी… अभिषेक की पत्नी मिताली भी पीछे से आ गई… “क्या हुआ मां… कहां जा रही हैं… बैग क्यों निकाला… कुछ तो बताइए…?”
मां ने रुंधे कंठ से ही कहा…” बेटा तुम लोगों के मतलब की बात नहीं… जाओ तुम लोग अपना काम करो…!”
अब अभिषेक से रहा ना गया… पास जाकर मां का हाथ पकड़ बोला…” जल्दी बताओ ना मां… क्या हो गया… ऐसा क्या है… जो मेरे मतलब का नहीं सिर्फ तुम्हारा है…?”
सुलेखा जी बैठ गईं बोलीं…” मेरा चैतन्य मुझे छोड़ कर चला गया…!”
” मामा जी…… पर ऐसे कैसे… क्या हुआ…?”
” तुम्हें क्या अभी… तुमने तो अपनी मन की कड़वाहट में उसे भुला ही दिया था ना… तुम्हारे मोह में मैं भी उससे रूठी ही रही… मेरा प्यारा भाई… आज मुझसे ही रूठ गया… सदा के लिए… अब तो इस दुनिया से जाकर ही उससे माफी मिलेगी…!”
सुलेखा जी का अपने भाई से बड़ा ही मधुर संबंध रहा था… बचपन से ही अभिषेक चैतन्य की गोद में खेला था… अपनी नौकरी से पहले चैतन्य अपनी बहन के घर ही रहता था… बहुत सालों तक भाई-बहन साथ में रहे… बाद में जाकर जब चैतन्य का ब्याह हुआ तब दोनों अलग हुए… इतना प्रेम और अधिकार था उसका अपने मामा पर…
समय हमेशा एक सा नहीं रहता… दो साल पहले तक सब सही था… मामा जी के बेटे आदित्य ने बढ़िया कंपनी में नौकरी ज्वाइन की… मिताली के पिता की नजर अपनी छोटी बेटी के लिए वहां जाकर ठहर गई… अभिषेक से बात करने पर वह तुरंत मान गया…
उसकी नजर में यह रिश्ता बिल्कुल परफेक्ट था… दूसरी बात वह मामा जी पर अपना इतना अधिकार समझता था कि इंकार की कोई गुंजाइश ही नहीं देखी उसने… बिना कुछ फोन पर अधिक बात किए… वह अपने ससुर जी के साथ मामा जी के यहां बात पक्की करने पहुंच गया… मामा जी तो मना नहीं कर पाए… पर आदित्य को कोई और ही पसंद थी… वह उसके साथ काम करती थी…
अभिषेक के लिए यह बात अहम का सवाल बन गई… मामा जी ने उसे समझाने का बहुत प्रयास किया… पर अभी के लिए यह बात इतनी आसान नहीं थी…
वह दिन था और आज का दिन… अभिषेक पलट कर मामा जी के यहां नहीं गया…आदित्य का ब्याह हुआ तो मामा जी ने कितना बुलाया… फिर खुद घर आकर समझाने की कोशिश की… पर सुलेखा जी को उनके साथ भेज कर अभिषेक और मिताली नहीं गए… कोई ना कोई बहाना बनाकर हर बार मामा जी का बुलावा टालते रहे… अपने बच्चों की पार्टी में भी मामा जी को बुलावा नहीं भेजा…
सुलेखा जी अपने भाई और बेटे के बीच फंसी… बेटे का साथ देती रहीं… ऊपर से तो चैतन्य के यहां जातीं… पर मन की कड़वाहट लिए… कुछ ही समय में वापस आ जातीं…
आज अचानक चैतन्य नहीं रहा सुनकर… उनके मन की सारी कड़वाहट आंसुओं में बह रही थी…कुछ नहीं हुआ उसे… बस छोटा सा दिल का दौरा पड़ा और वह चल बसा… कब से प्यार भरे दो बोल अपने भाई से नहीं कर पाई थीं…कब से उसे प्यार से गले नहीं लगाया था…अपने झूठे अहम और अभिमान का मान रखना… उनके दुख और पछतावे का कारण बन गया था…
इस बार वह अकेली नहीं गईं… उनके साथ अभिषेक, मिताली, उनके दोनों बच्चे… सभी मामा जी के आखिरी दर्शन करने पहुंचे…
अभिषेक मामा जी के पैरों पर गिरकर… फफक कर रो पड़ा…” मुझे माफ कर दीजिए मामा जी… प्लीज मामा जी… एक बार वापस आ जाओ… मुझे एक बार आपसे बात करनी है… पहले जैसे एक बार हंस कर खुले दिल से मिलना है… दिल खोल कर बोलना है… हंसना है आपके साथ… जाने कौन सी कड़वाहट मन में पाले रहा मैं… और आप मुझसे बिना कुछ कहे चल दिए……
ऐसा बहुत बार होता है… हम सबके साथ होता है… हम छोटी-छोटी बातों की गठरी… इस तरह अपने दिलो दिमाग पर लाद कर बैठ जाते हैं कि उस गठरी की गांठ खोले नहीं खुलती… जब खुलती है तो कई बार बहुत देर हो चुकी होती है… इसलिए अपने प्यारों के लिए कभी भी इतनी दूरी… इतनी कड़वाहट मन में ना भर लें कि उसके लिए पूरी जिंदगी पछताना पड़े…
छोटी सी जिंदगी है… किसी के लिए कड़वाहट लिए… साथ छूट जाने पर पछताने से बेहतर है…समय के साथ आगे बढ़ाना… बीती बातों के लिए… अपने प्यारों को माफ कर देना… प्यार अधिक महत्वपूर्ण है झूठा आत्माभिमान नहीं…
आपको क्या लगता है…
स्वलिखित
रश्मि झा मिश्रा
#कड़वाहट