झूठी इज्जत – गीता वाधवानी : Moral Stories in Hindi

मीनाक्षी दोपहर  बाद राजमा उबलने के लिए रख ही रही थी कि तभी डोर बेल बजी। वह जल्दी से कुकर गैस पर रखकर दरवाजा खोलने गई। दरवाजे पर उसके जेठ नंदलाल और जेठानी मंदिरा खड़ी थी। 

उसने दोनों को अंदर आने के लिए कहा। अंदर आने पर उसने उनके पांव छुए और बैठने के लिए कहा। मीनाक्षी कुछ नमकीन की प्लेटें और बिस्किट, साथ में पानी भी ले आई। 

जेठानी ने पूछा-“दोपहर के खाने का समय तो बीत चुका है। रात का खाना अभी से बना रही हो क्या?” 

मीनाक्षी-“नहीं जीजी, राजमा उबलने को रखे हैं।” 

नंदलाल-“अरे मंदिरा तुम भी कैसे सवाल कर रही हो, क्या तुमने सुना नहीं कि इनकी दोनों बेटियां आजकल मार्केट में राजमा चावल बेचती हैं। इन लोगों ने खानदान की इज्जत मिट्टी में मिलाकर रख दी है। कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा हमें। कहां हमारी बड़े मार्केट में इतनी बड़ी कपड़े की दुकान और इज्जत और कहां इनका छोटा सा दो कौड़ी का काम।” 

मंदिरा -“मीनाक्षी, बुरा मत मानना, हमारी तो आदत है सच कहने की, सही कह रहे हैं तुम्हारे जेठ जी। अरे भाई लड़कियों से कहो अपनी पढ़ाई लिखाई पर ध्यान दें, कहां चल दी कमाई करने और क्यों?” 

मीनाक्षी-“आप लोग ऐसा क्यों कह रहे हैं, इसमें गलत क्या है, हम लोग मेहनत कर रहे हैं, कोई चोरी या गलत काम तो नहीं कर रहे। कंपनी में छंटनी की वजह से इनकी नौकरी चली गई, वह तो पहले ही डिप्रेशन में हैं इसीलिए आप लोग ऐसी बातें ना करें। बच्चियों के पास 2 घंटे का ही टाइम होता है। काम जम जाएगा और उनकी तबीयत भी जब ठीक हो जाएगी तब यह धीरे-धीरे खुद ही काम संभाल लेंगे। फिलहाल घर चलाने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा।” 

तभी मीनाक्षी की दोनों बेटियां जो की जुड़वा पैदा हुई थी सेम टू सेम एक जैसी शक्ल। कई लोग तो उनकी शक्ल देखने के लिए खुशी-खुशी राजमा चावल खाने आ जाते थे और उन दोनों का स्वभाव भी चंचल और हंसमुख था, वे दोनों कॉलेज से आ जाती है। उनके ताऊजी और ताई जी उन्हें भी बहुत खरी खोटी सुनाते हैं। 

तब सोना से रहा नहीं जाता और वह बड़ी शालीनता से ताऊ जी से कहती है-“

ताऊजी और ताई जी हम लोग अपने कॉलेज के बाद शाम को 2 घंटे के लिए अपना काम करते हैं तो इसमें आपके खानदान की इज्जत खराब हो रही है और जब आपका छोटा बेटा रौनक जुआ खेलते हुए पकड़ा गया और आप उसे पुलिसस्टेशन से छुड़वाकर लाए, तब क्या हुआ था खानदान की इज्जत का, क्या उसमें चार चांद लग गए थे। हम यह सब आपको कहना नहीं चाहते थे, पर आप लोग मजबूर कर रहे हैं।” 

ताऊजी और ताई जीके चेहरे का रंग उड़ चुका था। उन्हें तो लगा था कि यह बात किसी को नहीं पता। 

अब मोना बोली-“आपने आते ही मम्मी को सुनाना शुरू कर दिया, क्या आपने एक बार भी अपने छोटे भाई का हाल-चाल पूछा? और तो और याद है आपको जब पापा की नौकरी चली गई थी तब उन्होंने आपसे कहा था कि थोड़े दिन के लिए आपके घर की छत पर पड़ा हुआ खाली कमरा हमें कुछ समय के लिए रहने के लिए दे दीजिए, कम से कम हमारा घर का किराया तो बचेगा। तब आपने कहा था कि मेरा बेटा उस कमरेमें पढ़ाई करता है उसकी पढ़ाई खराब होगी। अपने मदद करने की बजाय हमें टाल दिया था, शायद आपको लगा होगा कि हम उसे हड़प लेंगे। अब आप हमें शिक्षा देने आए हैं, तब कहां गई थी खानदान की झूठी इज्जत।” 

मीनाक्षी को अपनी बेटियों का इस तरह बात करना अच्छा नहीं लग रहा था। इसीलिए उसने कहा-“बस करो तुम दोनों।” 

ताई जी-“वाह रे वाह! मीनाक्षी, पहले तो अपनी बेटियों को सब कुछ सीख कर बैठी है और अब हमारे सामने अच्छे होने का नाटक कर रही है।” 

सोना-“बस कीजिए ताई जी और प्लीज  आप यहां से चले जाइए। हम खुद देख लेंगे कि हमें क्या करना है क्या नहीं।” 

मोना-“बुरा मत मानना ताई जी, हमारी तो आदत है सच कहने की, ताऊ जी के कहने पर हम लोग अभी यह काम छोड़ते हैं पर।” 

ताऊजी-“यह है हमारी समझदार बिटिया, बोल बेटी बोल ,क्या कह रही थी और छोरी तू हमें ताऊ जी ना बोला कर, बड़े पापा बोल।” 

मोना-“बड़े पापा, मैं कह रही थी कि आप  बस हर महीने पापा के अकाउंट में ₹30000 डलवाते जाइए। हम अभी काम बंद कर देते हैं, आखिर आप हमारे बड़े पापा हैं। आखिर जो मकान आपने पूरा का पूरा ले लिया उस पर पापा का भी तो हक है। पापा की अच्छाई है कि उन्होंने आपसे कभी झगड़ा नहीं किया, क्यों ठीक है ना?” 

ताऊजी और ताई जी

 इतना सुनते ही वहां से मुंह छुपा कर चलते बने। 

मीनाक्षी ने दोनों बेटियों को डांटा और कहा कि” तुमने उनसे रुपए क्यों मांगे, क्या हम भिखारी हैं?” 

मोना-“मम्मी, भिखारी वाली बात नहीं है। ऐसे लोगों को उन्ही की भाषा में जवाब देना जरूरी होता है और फिर उन्होंने पापा का हिस्सा हड़प लिया, यह याद दिलाना बहुत जरूरी था। अब यह अपने काम से काम रखेंगे, हमारे काम में टांग  नहीं अड़ाएंगे।” 

तभी सोना बोली -“बुरा मत मानना, हमारी तो आदत है सच कहने की। दोनों बहने मुस्कुरा रही थी और अपनी मम्मी से कह रही थी कि “मम्मी लोगों को आपके हाथ का खाना बहुत पसंद आ रहा है और कई लोग राजमा चावल के  अलावा चावल के साथ अलग-अलग सब्जियां खाना चाहते हैं। हर रोज नई सब्जी बनाया करो।।” 

मीनाक्षी प्याज काटते काटते सोच रही थी कि बेटियों ने कुछ भी गलत नहीं कहा, सब कुछ सच ही तो था। जेठ जी, जेठानी  जी अपनी झूठी इज्जत बचाने की खातिर गलत व्यवहार कर रहे थे। 

स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली

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