झूठे दिखावे से जिंदगी नहीं चलती।- अर्चना खंडेलवाल : Moral stories in hindi

“अब अपनी आंखें खोलो, सौरभ ने निमिषा की आंखों से हथेली को धीरे-धीरे हटाते हुए कहा, और हाथ में दो फ्लाइट के टिकट पकड़ा दिये।”

निमिषा हैरान थी, “हम कहीं जा रहे हैं क्या?

सौरभ खुशी से बताने लगा, ” मुझे कंपनी की तरफ से इनसेंटिव मिला है तो मैंने गोवा जाने के टिकट बनवा लिए।”

“लेकिन सौरभ इतनी भी क्या जल्दी थी, अभी पिछले महीने ही हम घुमकर आये है, अब हर बार इतना पैसा घुमने -फिरने पर तो उड़ाना सही नहीं है, ये पैसा हम कहीं निवेश भी कर सकते थे, ताकि भविष्य में हमारे काम आता।” निमिषा ने थोड़ी तेज आवाज में कहा।

सौरभ ये सुनकर भड़क गया, तुम्हारी तो बातें ही अलग है, मेरे सभी दोस्त पिछले हफ्ते ही गोवा घुमकर आये है, सबने फेसबुक और स्टेट्स पर फोटो डाली है, सब मुझे जला रहे हैं तो मैंने सोचा मै भी तुम्हें वहां घुमाने लेकर जाऊंगा और फ़ोटो डालूंगा, इसमें क्या गलत कर दिया?”

“ओहहह!! तुम्हें इन सबसे फर्क पड़ता है, लेकिन मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है, कोई कहां घुमने गया है, और कितनी फोटो डाल रहा है, मुझे मेरा घर-परिवार और बच्चे देखने है, उनका भविष्य देखना है, तुमने मुझसे पूछना भी जरूरी नहीं समझा।” ंनिमिषा का भी पारा चढ़ गया।

“सौरभ, तुम बहुत फिजुलखर्ची करते हो, जिंदगी सदैव एक सी नहीं रहती है, ये नहीं कि जितना कमाओ उतना ही उडा दो, थोडा भविष्य के लिए भी रखना चाहिए, इस तरह के झूठे दिखावें से जिंदगी नहीं चलती है, जीने के लिए आय और व्यय में संतुलन होना बहुत जरूरी है।”

“निमिषा, तुम अपना ये ज्ञान बंद करो, अच्छी कंपनी में नौकरी करता हूं तो क्या इतना भी खर्च नहीं कर सकता हूं ? 

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“तुमसे बहस करना ही बेकार है, और तुम धीरे बोलो, मम्मी जी और बच्चे जाग जायेंगे, निमिषा ये कहकर सो गई, और अगले दिन उसने जिद करके गोवा के टिकट कैंसिल करवा दिये।

निमिषा और सौरभ की शादी को दस साल होने को आये है, सौरभ की अच्छी नौकरी है और घर में केवल उसकी मां है, सौरभ इकलौता बेटा है, इसलिए थोड़ा सा जिद्दी भी है, और अपना मनचाहा काम करता है, उसे किसी तरह की भी टोका-टोकी पसंद नहीं थी, हेमा जी अपने बेटे की आदतों  से वाकिफ थी, इसलिए वो ज्यादा कुछ नहीं बोलती थी, वो अपने पोते और पोती को संभालने में ही अपना पूरा दिन व्यतीत करती थी, लेकिन वो मौन रूप में अपनी बहू का ही साथ देती थी, सौरभ निमिषा को कहीं भी घुमाने ले जाता था तो बच्चों का ध्यान हेमा जी ही रखती थी।

हेमा जी को सिलाई का बहुत शौक था, उन्होंने सिलाई कर-करके ही सौरभ को अकेले बड़ा किया था, वो पढ़ाई में होशियार तो था ही, कॉलेज पूरा करते ही, बहुत अच्छी कंपनी में नौकरी करने लग, और उसने हेमा जी की सिलाई मशीन भी अंदर रखवा दी।

हेमा जी के साथ ही निमिषा भी सौरभ की फिजुल खर्ची से बहुत परेशान थी। दिन ऐसे ही चल रहे थे, एक दिन दोपहर को घर की घंटी बजी, तो देखा बाहर नई चमचमाती कार खडी है।

“देखो मम्मी, मै नई कार लेकर आ गया हूं, वो कार पुरानी हो गई थी, और ये कार थोड़ी बड़ी भी है, सौरभ हेमा जी को कार की चाबी सौंपते हुए बोला।

तभी अंदर से निमिषा आई, लेकिन आपकी कार को सिर्फ दो साल ही हुए थे, इतनी जल्दी नई कार ले ली, हमें इसकी जरूरत नहीं थी।”

“मम्मी, दुनिया में ये पहली पत्नी होगी जो पति की तरक्की से खुश नहीं हो रही है, और सौरभ हंसने लगा।

“सौरभ, इस बार भी बहू सही कह रही है, अभी तूने दो साल पहले ही कार ली थी, वो भी अच्छी थी, हमें नई कार की जरूरत ही नहीं थी, हेमा जी बोली।

आप दोनों तो कभी मुझसे खुश ही नहीं रहते हो, मै आप दोनों को खुश करने के लिए इतने महंगे-महंगे सामान लाता रहता हूं, सौरभ गुस्से से बोलता है।

“बेटा, खुशी महंगे सामान से नहीं मिलती है, खुशी इस बात में है कि घर-परिवार के सदस्यों में आपस में प्यार और विश्वास हो, बात-बात में झगड़ा नहीं हो, और पति-पत्नी दोनो मिलकर आपसी समझदारी से घर चलायें, पर सौरभ अपनी मां की बातों को भी सुनकर अनसुनी कर देता था, कभी महंगे होटलो से खाना मंगवाता था, कभी यार दोस्तों को पार्टी देता रहता था, दिखावे और शान शौकत पर वो बहुत पैसा बहाया करता था, निमिषा और सौरभ का इसी वजह से बहुत झगड़ा होता था।

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इधर कुछ समय से सौरभ बहुत परेशान रहने लगा था, वो ऑफिस भी नहीं जा रहा था, पहले तो तबीयत का बहाना बनाया, लेकिन जब दस दिन से ऊपर हो गये तो हेमा जी और निमिषा दोनों ही परेशान हो गये कि आखिर बात क्या है,?

बाहर सोफे पर सौरभ बैठकर रिमोट से बस चैनल पर चैनल बदले जा रहा था, उसके चेहरे पर तनाव और चिंता की लकीरें साफ उभरकर सामने आ रही थी।

आजकल आप ऑफिस नहीं जा रहे हो? आपको क्या हो गया है? निमिषा ने चिंतित होकर पूछा।

“नहीं, कोई बात नहीं है, सब ठीक है, बस मैंने ऑफिस से छुट्टियां ले रखी है, ताकि आराम कर सकूं, काम कर-करके बहुत थक गया हूं, सौरभ ने निमिषा से आंखें चुराते हुए कहा।

आप झूठ बोल रहे हैं, जरूर कोई बात है, निमिषा की धड़कनें तेज हो गई।

“हां, बोल रहा हूं, एक बात बताऊं? मेरी नौकरी चली गई है, कंपनी को घाटा लग गया है, ऊंचे पदों पर बैठे मोटी पगार पाने वाले को हटा दिया है, घर बैठकर आराम कर रहा हूं, और कुछ पूछना है?

ये कार बडा सा टीवी, घर का फर्नीचर, ये महंगें मोबाइल, लैपटॉप सब ईएमआई पर ले तो लिए पर अब इनका पैसा कहां से भरूंगा ? बस बैठे-बैठे यही सोचता रहता हूं, कोई दूसरी नौकरी भी तो नहीं मिल रही है।’

ये सुनकर निमिषा और हेमा जी के पैरो से जमीन सरक गई। अब घर कैसे चलेगा? घर के खर्चे कैसे चलेंगे? बच्चों की पढ़ाई और खर्चों का क्या होगा?

निमिषा की आंखें भर आई, “सौरभ तभी तो मै कहती थी, फालतू खर्च मत करो, पैसा कहीं निवेश करो, भविष्य में काम आयेगा, अब मै कैसे घर चलाऊंगी? क्या करूंगी? और वो रोने लगी।

जिंदगी सुख कम और दुख ज्यादा ही देती है, धीरे-धीरे करके सौरभ का घर बिक गया, कार का लोन भी चुका नहीं पाये, घर का बड़ा कीमती बिक गया, सौरभ परिवार समेत छोटे से घर में किरायेदार बनकर रहने लगा, बच्चों का एडमिशन दुसरी छोटी स्कूल में करवा दिया।

सौरभ नौकरी ना मिलने की वजह से अवसाद में आ गया, और लकवाग्रस्त हो गया, अब वो बिस्तर पर था और निमिषा एक स्कूल में नौकरी करने लगी, हेमा जी ने अपनी सिलाई मशीन फिर से निकाल ली, और वो भी घर खर्च में मदद करने लगी।

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जिंदगी में सुख तो थोडी देर के लिए आता है और चला जता है, लेकिन जिंदगी से दुख जाने का नाम ही नहीं लेता है। जब सुख के दिन हो तभी आने वाले भविष्य की तैयारियां भी कर लेनी चाहिए।

अर्चना खंडेलवाल

मौलिक अप्रकाशित रचना

वाक्य प्रतियोगिता – #जिन्दगी सुख कम दुख ज्यादा देती है।

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