“बंटी कहीं नजर नहीं आ रहा है!. कहीं गया है क्या?”
अपने दफ्तर से अभी-अभी लौटे नीरज ने अपनी पत्नी सुनीता से जानना चाहा।
“आज मैंने उसे डांटा है!. इसलिए अपने कमरे में मुंह फुलाए बिस्तर पर पड़ा है।”
“लेकिन तुमने उसे डांटा क्यों?. यह तो बताओ?”
“बंटी आजकल बहुत झूठ बोलने लगा है!. इसलिए आज मैंने उसकी पिटाई की है।”
“अरे!.यह क्या कह रही हो?”
सुनीता की बात सुनकर नीरज हैरान हुआ लेकिन सुनीता बड़बड़ाती हुई नीरज के लिए पानी लाने रसोई की ओर चल पड़ी..
“अब आप प्यार जताने उसके कमरे में मत चले जाना! हम लोगों के प्यार दुलार से वह बिगड़ गया है।”
“देखो सुनीता!. बच्चों को डांटने तक तो ठीक है लेकिन तुम्हें उसकी पिटाई नहीं करनी चाहिए थी।”
नीरज ने सुनीता को समझाना चाहा।
“मुझे भी कौन सा अच्छा लगा आज उसकी पिटाई करके!”..
सुनीता का गला भर आया वह रुआंसी हो गई।
लेकिन यह तो बताओ कि,. उसने ऐसा क्या कर दिया था कि तुम्हें इतना गुस्सा आ गया?”
“आज स्कूल में एनुअल डे प्रोग्राम के लिए सभी बच्चों से ढाई सौ रुपए जमा करने थे।”
“अरे हांँ!.बंटी ने मुझे बताया था लेकिन मैं तो भूल ही गया था,..तुमने दे दिया था ना?”
नीरज को अचानक याद आया।
“मेरे पास छुट्टे नहीं थे इसलिए मैंने उसे पांच सौ का नोट दे दिया था।”
“फिर क्या हुआ?”
“उसने बाकी के ढाई सौ रुपए मुझे वापस नहीं किए और झूठ बोलने लगा।”
“क्या बहाना बनाया उसने?”
“कहने लगा कि शर्मा जी का लड़का मोहित जो उसका क्लासमेट है,.रुपए उसे दे दिए।”
“क्यों दिए रुपए?.यह तो पूछना चाहिए था ना!”
“पूछा मैंने!.तो कहने लगा कि वह एनुअल डे की फीस नहीं लाया था तो मैंने दे दिए,. अब आप ही बताओ क्या शर्मा जी के पास रूपयों की कमी है जो उनका लड़का हमारे बंटी से उधार मांगेगा?”
“अरे भई तो फोन करके मिसेज शर्मा से पूछ लेना चाहिए था!.बच्चे पर हाथ नहीं उठाना चाहिए था।”
“देखो जी!. एक दिन की बात होती तो पूछ लेती लेकिन इसका तो हर रोज का यही तमाशा है।”
“मतलब?”
“कभी मेरे पर्स से सौ-पचास गायब हो जाते हैं तो पूछने पर कहता है कि पापा ने लिए होंगे!. तो कभी फ्रिज में से मिठाई और दूध पर से पूरी मलाई गायब हो जाती है पूछने पर कहता है कि दादी ने खा लिया होगा!. अब आप ही बताइए क्या मैं रोज-रोज सब से पूछताछ करती फिरूं?”
सुनीता का गुस्सा फूटा और बहू की तेज आवाज सुनकर सुनीता की सास भी वहां आ पहुंची लेकिन नीरज ने बात संभालते हुए सुनीता को अब बताना जरूरी समझा..
“हांँ!. यह सच है कि दफ्तर जाते वक्त कई बार मैं तुम्हारे पर्स से सौ-पचास निकाल लेता हूंँ!.आजकल छुट्टे की बहुत किल्लत हो गई है ना!. इसलिए।”
नीरज की सफाई सुनकर सुनीता हैरान हुई लेकिन वहीं बगल में आ खड़ी हुई सुनीता की सास ने भी अपनी बात रखना जरूरी समझा..
“बहू!.मुझे भोजन के बाद मीठा और दूध में मलाई बहुत पसंद है इसलिए कई बार मैं खुद दूध में ऊपर से मलाई डाल लेती हूंँ!”
अपनी सास की बात सुनकर सुनीता चुप हो गई लेकिन उसकी सास ने अपनी बात पूरी की..
“अब मेरी जिंदगी में क्या रखा है बहू!. थोड़ा अपने मन का खा-पी लेती हूंँ ताकि यह काया थोड़े और दिनों तक चल सके।”
पति और सास की सफाई सुनकर सुनीता हैरान थी कुछ बोल नहीं सकी लेकिन तभी अचानक दरवाजे की घंटी बज उठी..
“देखो तो कौन आया है?”
नीरज ने सुनीता की ओर देखा।
सुनीता ने आगे बढ़कर दरवाजा खोल दिया और अपने सामने पड़ोस में रहने वाले मैसेज शर्मा को पाकर वो हैरान हुई।
व्यवहारिकता निभाते हुए दरवाजा छोड़ सुनीता एक किनारे खड़ी हो गई..
“आइए ना!. भीतर आइए!”
“नहीं!. नहीं सुनीता जी!. अभी मैं थोड़ी जल्दी में हूंँ!.असल में मैं रुपए लौटाने आई थी।”
“कैसे रुपए?”
“बंटी ने आपको बताया ही होगा कि,. मेरा मोहित आज एनुअल डे प्रोग्राम के लिए फीस ले जाना भूल गया था और आज फीस जमा करने की अंतिम तारीख भी थी इसलिए आपके बंटी ने उसकी मदद कर दी थी।”
यह कहते हुए मैसेज शर्मा ने अपने पर्स से निकालकर सुनीता के हाथ पर एक दो सौ का और एक पचास का नोट रख दिया..
“बंटी को मेरी तरफ से प्यार दीजिएगा!. अभी चलती हूंँ लेकिन फिर कभी मैं जरूर आऊंगी।”
यह कह मिसेज शर्मा मुस्कुराती हुई तेज कदमों से अपने घर की ओर निकल गई लेकिन हाथ में अपने ढाई सौ रुपए थामें घर के दरवाजे पर खड़ी सुनीता वहीं दरवाजे पर ही कुछ देर के लिए मानो जड़ हो गई थी।
लेकिन आत्मग्लानि से भरी मन ही मन यह सोच सुनीता के पांव स्वत: ही बंटी के कमरे की ओर बढ़ चले कि हर बार बच्चों से ही गलती नहीं होती कई बार हम बड़े भी बच्चों के मनोभाव को समझने में भारी गलती कर बैठते हैं।
पुष्पा कुमारी “पुष्प”
पुणे (महाराष्ट्र)