झुलौना बाबा – रश्मि झा मिश्रा .   : Moral Stories in Hindi

सब इंस्पेक्टर से रिटायर्ड हुए थे… रुद्र के झुलौना बाबा… इतना मस्त आकर्षक व्यक्तित्व… गठा हुआ शरीर… अभी भी लगता की चालीस पैंतालीस साल के ही हैं… पर उम्र का क्या… अब रिटायर हुए 7 साल हो चुके थे… रूद्र जब भी अपनी नानी के घर आता… दूर से ही बाबा को देखकर खुशी से दौड़कर उनकी बाहों में झूल जाता…

 श्वेता के चाचा जी थे झुलौना चाचा… बचपन में जब श्वेता छोटी थी तभी उसके पिताजी का देहांत हो गया था… तब से चाचा जी ने कभी उसे पिता की कमी महसूस नहीं होने दी… जब भी छुट्टियों में घर आते… पूरा समय अपने दोनों बच्चों और श्वेता के साथ ही बिताते थे… “झुलौना” नाम श्वेता के ही कारण पड़ गया था उनका…

दरअसल उन्हें बच्चों को झूला झुलाने में बड़ा मजा आता था… अलग-अलग तरीकों से… कभी उल्टा लटका कर… कभी सीधा उछाल कर… कभी दोनों हाथों पैरों को बांधकर… चाचा जी बच्चों को झूला झुलाते थे… बच्चों को इस उलट-पुलट करतब में मजा भी बहुत आता था…

खासकर श्वेता को…” और झुलाओ ना चाचा जी… और झुलाओ ना चाचा जी…” यह झुलाओ ना झुलाओ ना से कब झुलौना चाचा जी बन गए… समय के साथ पता ही नहीं चला…

 अब तो श्वेता के साथ-साथ उसके बेटे रुद्र के भी झुलौना बाबा बन गए थे चाचा जी…श्वेता से सचमुच बहुत प्यार करते थे… बचपन में तो कई बार जब श्वेता को हवा में उछालते तो दादी चीख उठती…” बस करो… मुझे यह खेल बिल्कुल पसंद नहीं…!” पर सबकी खिलखिलाहट में यह बात दब कर रह जाती… 

बड़े शान से चाचा जी ने पिता की सारी जिम्मेदारियां निभा कर… श्वेता का अच्छे घर में ब्याह किया था… अब ब्याह के बाद… श्वेता का नन्हा बेटा रूद्र… श्वेता की तरह ही अपने झुलौना बाबा का लाडला बन गया था…

 रूद्र अक्सर नानी के घर आता…और जब भी आता… दूर से ही झुलौना बाबा… उसे बाहों में उठाकर आसमान की सैर करा देते… दोनों का मन आनंद से भर जाता…

 पर अब उम्र के साथ झुलौना बाबा का सामर्थ्य भी कम होते जा रहा था… देखने में यूं तो अभी भी जवान ही लगते थे… पर उम्र का असर शरीर के अवयवों पर अपनी छाप छोड़ने लगा था…

 इस बार श्वेता मायके आई तो रुद्र 5 साल का हो गया था… भाग कर बाबा के पास आया तो बाबा ने झुक कर उसे लाड़ किया… मगर गोद नहीं लिया… देखकर श्वेता को बहुत आश्चर्य हुआ…” क्या चाचा जी… आप इतनी जल्दी बूढ़े हो गए… अभी तो आपको 5 साल और रुद्र को झुलाना है…!”

 चाचा जी बात टाल गए… सचमुच अब वे भीतर ही भीतर कई बीमारियों के शिकंजे में फंस गए थे… दूसरे दिन फिर श्वेता पीछे ही पड़ गई… रूद्र रो रहा था… किसी बात की जिद कर रहा था… श्वेता ने उसे बाबा के पास भेजते हुए कहा…” जाओ बेटा… देखो बाबा कितना अच्छा झूला झुलाते हैं… बाबा से बोलो झूला झुलाने…!”

” अरे नहीं बेटा… अब मुझसे कहां होगा…!”

 उधर से चाची भी बोल पड़ीं…” नहीं जरूरत है झूला झुलाने की… अब अपना शरीर तो संभल नहीं रहा… पटक दिया बच्चे को तो एक कलंक नहीं लगाना है…!”

 चाचा जी बिल्कुल ही ना कर गए… पर तीसरे दिन श्वेता फिर जिद करने लगी…” अरे चाचा जी… आपका वाला झूला रूद्र को कौन झुलाएगा… आप जो अभी से बूढ़े हो गए… उठिए ना… एक बार तो उसे दिखाइए ना… मैं कोशिश करती हूं तो मुझसे तो बनता ही नहीं…!”

” नहीं बेटा चाची देखेगी तो अभी बिगड़ जाएगी… और फिर हाथों में उतनी ताकत नहीं लगती…!”

” उठिए ना बाबा… एक बार छोटा वाला झूला झुलाओ ना बाबा… झुलाओ ना बाबा…!” रुद्र बिल्कुल नन्ही श्वेता की तरह जिद कर रहा था…

 बाबा से रहा ना गया… उठ गए…” ठीक है… पर बिस्तर पर ही झुलाऊंगा… चल आजा मेरी पीठ पर आजा…!” छोटी-छोटी दौड़ लगाकर बाबा ने उसे उतार दिया…

” नहीं बाबा… अच्छे से झुलाओ ना… अच्छे से झुलाओ ना…!”

 बाबा हार मान गए… एक बार ऐसे… एक बार ऐसे… इसी तरह झुलाते… एक बार हवा में रूद्र को उछाला… लपकते हुए हाथें कांप गई… आंखों के आगे जैसे अंधेरा छा गया… रूद्र धड़ाम से जमीन पर आ गिरा…

 रुद्र के गिरते ही घर में कोहराम मच गया… रूद्र बिल्कुल चुप हो गया… न हिले न डोले… श्वेता ने लाख हिलाने की कोशिशें की… कोई हरकत न देख कर उसे गोद में लेकर… श्वेता की मां चाची सब अस्पताल की तरफ भागीं…

बाबा को तो किसी ने देखा ही नहीं… उनका क्या हाल हुआ… बेचारे झुलौना बाबा… वहीं जमीन पर धप्प से बैठ गए… चाची जाते-जाते बोलते गई… “लगा दिया कलंक मेरे माथे… क्या कर दिया आपने…!” 

कोई आधे घंटे की मशक्कत के बाद रूद्र वापस बातें करने लगा…चोट अधिक नहीं आई थी… बच्चा बहुत डर गया था इसलिए शांत पड़ गया था… सब बच्चे को लाड़़ते… पुचकारते वापस गोद लिए घर आ गए…

 इतने में किसी का ध्यान चाचा जी की ओर नहीं गया… रूद्र घर आते ही बोला… “झुलौना बाबा कहां हैं… मां बाबा कहां हैं…?” तब सभी का ध्यान उधर गया… बाबा तो साथ थे ही नहीं…

 श्वेता भाग कर कमरे की तरफ गई… जहां बाबा रूद्र को झूला झुला रहे थे… चाचा जी वहीं बैठे थे… श्वेता भाग कर चाचा जी के कंधे से लटकी… तो उनका सर हवा में झूल गया…… झुलौना चाचा जा चुके थे… उन्हें शायद हार्ट अटैक आया था… सब बच्चे के पीछे परेशान हो गए… किसी ने यह नहीं ध्यान दिया कि वर्षों से झूला झुलाने वाले के हाथ… आज कैसे कांप गए…  

हम अक्सर अपने बुजुर्गों से जवानी में किए गए कार्यों को दोहराने को कहते हैं… हम उनसे उम्मीद करते हैं कि वह अब भी वैसे ही हमारी देखभाल और खिदमत करें जैसे पहले करते थे… पर यह उनके साथ नाइंसाफी नहीं तो और क्या है…

 बेचारे झुलौना बाबा अपने सर पर कलंक का बोझ नहीं झेल पाए … पर सही मायने में यह कलंक किसके सर आया…

स्वलिखित 

रश्मि झा मिश्रा 

#कलंक

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