झिलमिला उठे खुशियों के दीप – श्वेता अग्रवाल  : Moral Stories in Hindi

“भाइयों और बहनों, आज रात बारह बजे से संपूर्ण देश में संपूर्ण लॉक डाउन होने जा रहा है | आज रात बारह बजे से घरों से बाहर निकलने पर पूरी तरह से पाबंदी लगाई जा रही है |”

देश के नाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस संबोधन के साथ ही पूरे देश में लॉक डाउन हो गया | स्कूल, कॉलेज, दुकानें, ऑफिस, सिनेमा हॉल सभी बंद | सभी अपने-अपने घरों में लॉक हो गए थे, सबकी जिंदगी मानो थम सी गई थी |

रोज सुबह आठ बजे तक ऑफिस के लिए निकल जाने वाले मिश्रा जी की सुबह ही अब दस बजे होने लगी थी | दस बजे उठकर चाय की चुस्की के साथ टीवी पर न्यूज़ सुनना उनका फेवरेट लॉक डाउन टाइम पास था | आज सुबह जब उन्होंने न्यूज़ सुनने के लिए टीवी ऑन किया तो उनकी 10 वर्षीय बेटी पूर्वी भी उनके साथ बैठकर न्यूज़ सुनने लगी |

न्यूज़ एंकर द्वारा बार-बार ‘लॉकडाउन’, ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ और ‘आइसोलेशन’ जैसे शब्दों का यूज किया जा रहा था | पूर्वी द्वारा पापा से इन शब्दों का मतलब पूछने पर मिश्रा जी उसे समझाने लगे ” बेटा, ‘लॉक डाउन’ का मतलब है कि हमें अपने घरों से बाहर नहीं निकलना है | एक तरह से हमें हमारे ही घरों में लॉक कर दिया गया है ताकि कोरोना को फैलने से रोका जा सके | यह वायरस छींकने और खांसने से फैल सकता है | ऐसे में ‘लॉकडाउन’ के दौरान ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ यानी लोगों से दूर रहकर ही इससे बचा जा सकता है | समझी ?”

“जी, पापा और ‘आइसोलेशन’ ?”

“पूर्वी बेटा,आइसोलेशन कोरोना पॉजिटिव व्यक्ति के लिए होता है | यदि किसी को कोरोना हो जाए तो उसे सबसे अलग रखा जाता है | वो लोगों से दूरी बनाकर रखता है | जब तक बहुत जरूरी ना हो कोई उस कमरे में नहीं जाता है|’

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इतना सुनते ही पूर्वी तपाक से मासूमियत भरे शब्दों में बोल पड़ी “पापा तो इसका मतलब दादीजी भी कोरोना पॉजिटिव है |”

“नहीं तो ….. .. पर तुम ऐसा क्यों बोल रही हो ?” मिश्रा जी ने चौंकते हुए पूछा |

“तो फिर आप लोगों ने कई सालों से उन्हें घर के बाहर आउटहाउस वाले छोटे से कमरे में आइसोलेट करके क्यों रखा है ? वह हमारे साथ क्यों नहीं रहती ? आप और मम्मी उनके पास जाते क्यों नहीं ?”

यह सुन पूर्वी के माता पिता भौंचक्के रह गए | उनकी नजरें शर्म से झुक गई | तभी उसके पापा ने आगे बढ़कर कहा “बेटा तुमने हमारी आँखे खोल दी है | हमें हमारी गलती का एहसास हो गया है | अब तुम्हारी दादीजी हमारे साथ ही रहेंगी, इसी घर में | चलो उन्हें लेकर आते हैं |

यह सुनते ही पूर्वी दादीजी के पास दौड़ पड़ी और उनका हाथ पकड़कर बोली “दादीजी, घर चलिए आपका आइसोलेशन कंप्लीट हो गया है |” ये सुनते ही दादीजी की ऑंखों में ‘खुशियों का दीप’ झिलमिला उठे। आखिर देर से ही सही उनके बच्चों को अपनी गलती का एहसास जो हो गया था।

धन्यवाद

 

श्वेता अग्रवाल

साप्ताहिक विषय प्रतियोगिता-#खुशियों का दीप

शीर्षक-झिलमिला उठे खुशियों के दीप।

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