झिझक – डॉक्टर संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

ऋतु की पक्की सहेली वर्षा का जन्मदिन आनेवाला था,बड़े स्तर पर मनाने वाली थी वो अपना बर्थडे,कार्ड

छप चुके थे,निमंत्रण जा चुके थे,वर्षा ने विशेष अनुरोध किया था ऋतु से कि वो एक दिन पहले ही उसके घर

आ जाए,उसके साथ तैयारी करने में उसे बहुत मजा आएगा।

ऋतु खुशी खुशी सब तैयारी कर रही थी लेकिन जिस दिन बर्थडे थी,उस दिन वर्षा के मम्मी पापा,भैया दीदी जो

उसे उपहार दे रहे थे,उनके बारे में जानकर उसे पसीने छूट गए।

वर्षा के पापा बड़े व्यवसाई थे,वो उसे हीरे की अंगूठी,मम्मी महंगी ड्रेस,भाई बहिन एप्पल का मोबाइल और

गोल्ड चेन दे रहे थे।

ऋतु का मुंह सूख गया।इन सब गिफ्ट्स में उसकी अपनी सहेली को दी जाने वाली एक किताब जो बड़े चाव

से उसने वर्षा के लिए खरीदी थी..अब्दुल कलाम की “द विंग्स ऑफ फायर” क्या मोल रखती है?उसका दिल

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हुआ कि वो यहां से भाग जाए…कोई बहाना बना दे तबियत खराब होने का…ये तो इसके घरवाले हैं लेकिन

दूसरे फ्रेंड्स और नाते रिश्तेदार उसे ऐसे हो गिफ्ट्स देंगे तो ऐसे में उसे कितनी शर्म आएगी!

अभी तक उत्साह से काम करने वाली ऋतु एकदम सुस्त हो गई थी और ये बात वर्षा नोटिस कर चुकी थी।

ऋतु!तू ठीक से नाश्ता क्यों नहीं कर रही है?वर्षा ने पूछा।

भूख नहीं है मुझे…वो बुझी आवाज में बोली।

क्यों?भूख क्यों नहीं है,कल रात तक भी हम देर तक जागे थे तब तो तुझे भूख लग आई थी और अब तुझे भूख

नहीं?

हां सच में!ऋतु नजरें झुका के बोली।

उस समय सब सामने थे तो वर्षा कुछ न बोली लेकिन अपने कमरे में ले जाकर वो कहने लगी…तेरी आँखें कुछ

और कहानी कह रही हैं,मुझे सच सच बता…किसीने कुछ कहा तुझे यहां?

 

नहीं तो…ऋतु घबराती हुई बोली।

वर्षा को डर था कि उसकी मौसी,मामी की बेटी आ चुकी थीं,कहीं उन्होंने अहंकार में आकर ऋतु को कोई

ताना मार दिया हो,वो जानती थी कि उसकी दोस्त ऋतु गरीब है पर बहुत स्वाभिमानी भी है।

वर्षा को लगा कि शायद उसे अपनी ड्रेस की लेकर कोई कॉम्प्लेक्स न पैदा हो रहा हो मन में,इसलिए उसने

अपनी ड्रेस जैसी दूसरी ड्रेस ऋतु के लिए पहले से ही बनवा रखी थी।उसने वो ड्रेस ऋतु को दी…आज शाम को

तू ये पहनना।

नहीं..नहीं…मैं इसे कैसे ले सकती हूं?अब तो ऋतु की आँखें बरस ही गई।

तुझे क्या हुआ है मेरी दोस्त?वर्षा परेशान होते बोली।तभी उसने माहौल हल्का करने के उद्देश्य से ऋतु से

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कहा…अच्छा!ये तो बता तू मेरे लिए गिफ्ट क्या लाई है आज?

ऋतु का मुंह सफेद पड़ गया,उसके गले से आवाज ही न निकली…ये तो मुझे इतनी महंगी ड्रेस पहनने को देगी

और मैं उसे इतनी साधारण किताब दूंगी?

क्या हुआ?बता न?क्या लाई है?वर्षा उसका बैग टटोलने लगी।

ऋतु उससे छुपाना चाहती थी पर वर्षा ने वो किताब देख ही ली।

ओह माय गॉड! कब से मैं इसकी तलाश में थी,सुना है बहुत इंस्पायरिंग और लाइफ चेंजिंग है ये…इतनी बहुमूल्य

किताब के लिए दिल से शुक्रिया ऋतु!माय डार्लिंग!वर्षा बोली।

तू मेरा दिल रखने को कह रही है न ये सब? डबडबाई आंखों से ऋतु बोली।

पगली! तू नहीं जानती कि मेरे लिए ये कितनी कीमती है और तुझे नहीं पता क्या उपहार की कीमत नहीं देखी

जाती बल्कि देने वाले का दिल देखा जाता है।अब समझ आया कि तू सुबह से क्यों झिझक रही थी हर बात में

और तेरी तबियत खराब होने का भी यही कारण था?

ऋतु चुपचाप अपनी सहेली को देख रही थी और उसके दिल में उसके लिए और गहरी जगह बन चुकी थी,ये

पैसे से नहीं,विचारों से भी अमीर है।ऋतु ने सोचा और मुस्करा के वर्षा को गले लगा लिया।

दोस्तों!आपको कहानी कैसी लगी,अवश्य बताएं।

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

#उपहार की कीमत नहीं दिल देखा जाता है

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