झाँसे में आना – डाॅक्टर संजु झा : Moral Stories in Hindi

रमणजी बहुत ही सीधे-सादे इंसान हैं।कुछ दिन पूर्व ही वे जीवन बीमा निगम से अवकाशप्राप्त हुए हैं।उनके बच्चे अच्छी जगह सेटल हैं,

इस कारण पिता के पैसों पर उनकी गिद्ध नजर नहीं है।एक दिन रमण जी अपने दोस्त से मिलने जाते हैं।वहाँ उनकी भेंट एक एजेंट से होती है।उस एजेंट ने उनके दोस्त का पैसा किसी वित्तीय संस्था में जमा करवा दिया था,परन्तु रमण जी  दोस्त से अपने पैसों  को बैंक में ही फिक्स्ड करने की बात करते हैं।

उनकी बात सुनकर वहाँ उपस्थित एजेंट  उन्हें सुझाव देते हुए कहता है -“अंकल जी!आजकल बैंकों में फिक्स्ड डिपॉजिट पर पैसे कहाँ मिलते हैं!उसपर से आयकर का भी झमेला रहता है।आपको मैं दूसरा उपाय बताता हूँ,जहाँ आपको अपने दोस्त की तरह दुगुना सूद मिलेगा और तीन महीने पर आप अपने सूद के पैसे भी ले सकते हैं।”

उस एजेंट की बातों का समर्थन करते हुए उनके दोस्त ने  सहमति में सिर हिलाया।

रमण जी भी उसपर व्यक्ति के झाँसे में आ गए। उन्होंने उस एजेंट द्वारा बताई हुई किसी वित्तीय संस्था में पैसे जमा कर दिएँ।कुछ दिनों तक  तो उन्हें तीन महीने पर सूद की रकम मिलती रही।उसके बाद उनके पैसे आने बन्द हो गए। जब रमण जी ने जाकर पता किया

तो वहाँ न तो उस संस्था का बोर्ड था,न ही जबाव  देनेवाला कोई आदमी।अपनी मेहनत की कमाई लुटने पर रमणजी वहीं पर  सिर पर हाथ रखकर धम्म से  जमीन  पर बैठ गए। बाद में पता चला कि अधिक सूद के लोभ में बहुत सारे लोगों ने उस वित्तीय संस्था में अपने पैसे जमा किए थे।अब लोग अपनी सारी जमा-पूँजी लुटाकर पुलिस थाना का चक्कर लगा रहें हैं।

सच ही कहा गया है कि अत्यधिक लोभ के कारण किसी अनजान व्यक्ति के झाँसे में नहीं आना चाहिए। 

समाप्त। 

लेखिका-डाॅक्टर संजु झा (स्वरचित)

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