जेवर – प्रतिमा श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

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शादी की भीड़ और अफरातफरी में सुमन जी ने नई नवेली बहू को बड़े प्यार से समझाते हुए उसके गहने ये कहते हुए अपने पास रख लिए कि,” मैं संभाल कर रख देती हूं वरना कहीं कुछ इधर-उधर ना हो जाए रागिनी बेटा।

अभी तुम इतना कुछ कहां संभालोगी? जरुरत पड़ने पर मुझसे ले लेना।” रागिनी को भी आदत नहीं थी इतना गहना पहनने की और ठीक ही तो है मां जी के पास अच्छी तरह रहेगा उनको तजुर्बा है जीवन का।इतने सालों से घर गृहस्थी वही तो संभाल रहीं थीं। रागिनी ने बिना कुछ सोचे-समझे कुछ

रोजमर्रा के काम आने वाले गहने अपने पास रखे और सुमन जी को बाकी सब पकड़ा कर निश्चिंत हो गई। मां जी ने भी कहा कि,” कल ही बैंक के लाॅकर में रखवा देती हूं।” जी!” मां आपको जो सही लगे कर लीजिएगा ” रागिनी अच्छे संस्कार वाली पढ़ी- लिखी समझदार लड़की थी। हमेशा घर में मां को पूरे परिवार को साथ लेकर चलते देखा था उसने। इस उम्र में बच्चों को कहां समझ होती है दुनियादारी की।

शादी के कुछ वक्त के बाद पति  के साथ जमशेदपुर जहां नौकरी करता था राजेश चली गई। दिन अपनी रफ़्तार से गुजर रहा था। कुछ वर्षों के बाद ननद की शादी पड़ी तब रागिनी ने कहा कि,” मां मेरे जेवर भी बैंक से ले आएगा शादी में पहनूंगी।” ठीक है बेटा,” समय मिलते ही ले आऊंगी” सुमन जी ने बहू को समझा दिया।

शादी के दौरान जब सुमन ने अपने जेवर मांगे तो बोल पड़ी अरे!” क्या बताऊं अकेले की जान बैंक जा ही नहीं पाई बेटा…ये मेरे कुछ जेवर है पहन लो… वैसे आजकल कौन सोना पहनता है फालतू में गुम जाए तो क्या करोगी। मैं तुम्हारे लिए कई आर्टिफिशियल सेट लाई थी,उनको पहनोगी तो तुम पर खूब जचेंगा।” रागिनी को पहले तो अजीब लगा कि मां जी ने जब अपने जेवर निकली तो मेरे भी ला सकतीं थीं।

” लाॅकर मां जी और पापा जी के ही नाम था। रागिनी को लगा की अच्छा नहीं लगता कि इस समय कितना काम – काज फैला है शादी का और मैं सबको परेशान करूं। आखिर सुरक्षित रखा ही होगा वरना मां जी मुझसे थोड़े ही कुछ छिपाती। उसने मां जी के लाए सेट पहन लिया शादी में।

अच्छी तरह सब निपट जाने के बाद वो जमशेदपुर चली गईं।बात आई गई है गई  , बीच में आती तो मां जी से मांगने की हिम्मत ही नहीं पड़ती। राजेश से जिक्र किया तो वो भी भड़क गया तुम्हारे गहने मां बेच देंगी क्या? फालतू बात दिमाग में नहीं लाया करो। कितने चाहिए चलो मैं बनवा देता हूं और कौन पहनता है इतने भारी – भारी गहने।

रागिनी को लगा राजेश सही तो कह रहा है मेरे मन में ऐसे विचार तो आने भी नहीं चाहिए पर उसका दिल कहीं ना कहीं दिमाग का साथ नहीं दे रहा था।

अगली बार आई तो सुमन जी ने एक जंजीर और छोटा सा लाकेट और कान की बालियां देते हुए बोली ” आज के जमाने की लड़कियों को हल्के जेवर ही पसंद आते हैं।तुम पर जंचेगा खूब।” भोली – भाली रागिनी लाखों के गहने मां को दे कर हजार के गहने से खुश हो गई कि मां जी कितना प्यार करती है उससे।

बेटा – बेटी हो गए थे अब उनमें ही उलझ गई थी और समय के साथ मां जी भी बूढ़ी हो चली थीं। रागिनी ने जमशेदपुर में बैंक में लाॅकर ले लिया था।अब उसने सोचा कि अब मां – पापा जी की भी उम्र हो गई है अब अपनी जिम्मेदारी उन पर क्यूं लादना।इस बार अपने सारे जेवर ले आऊंगी। मेरे भी बच्चों के लिए मुझे संभाल कर रखना है कुछ तो।

अगले महीने जाने वाले थे की खबर आई की मां जी की तबीयत बहुत खराब है।भागी – भागी गई , बच्चों की परीक्षा थी और राजेश को छुट्टी नहीं मिली थी। मां जी के बचने की उम्मीद कम थी। रागिनी ने खूब सेवा की थोड़ी ठीक होने लगी थी सुमन जी। रागिनी ने मां जी कहा कि,” मां इस बार मैं अपने सारे जेवर ले जाऊंगी अपने साथ…

अब गुड़िया भी बड़ी हो रही है मुझे भी उसके लिए कुछ तो रखना है।” मां जी ने कोई जबाब नहीं दिया तब उसने ससुर जी से बात करने की सोची। पापा जी! ” हम लोग चलते हैं लाॅकर से मेरे गहने निकाल लाते हैं क्योंकि आप की भी उम्र हो गई है आप लोग कहां तक जिम्मेदारी उठाएंगे।”

“कौन से गहने बहू? वहां तो कुछ भी नहीं। लाॅकर का खर्चा फालतू में देना पड़ता था वो तो कब का बंद कर दिया।” पापा जी की बातें सुनकर रागिनी के आंखों के सामने अंधेरा छा गया।उसे याद आने लगा कि उसकी मां ने अपने गहने  उसकी शादी में  दिया था। पापा की इतनी बड़ी कमाई नहीं थी फिर भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी बेटी की शादी में।गहना तो स्त्री धन होता है

उस पर सिर्फ मेरा हक है। आखिर मां जी ने क्या किया मेरे गहनों को? तभी शादी के बाद कोई ना कोई बहाना करके टाल जाती थी। मैं भी कितनी बेवकूफ की उनके झांसे में आती रही। उसने अपने आप को संभाला कि पहले मां जी से बात करती हूं हो सकता है कि उन्होंने अपने पास रखे हों।मन में गलत ख्याल नहीं लाना चाहिए।

मां जी!” मेरे जेवर कहां है सच – सच बताइए? पापा जी तो कह रहे हैं कि लाॅकर तो बंद हो गया है।” सुमन जी ने जो कहा रागिनी के होश उड़ गए… बहू तुम्हारी ननद की शादी में सारे गहने बदल कर उसको दे दिया

राजेश तो जानता है सब कुछ,उसी से पूछ कर दिया था और तुम सब की भी तो जिम्मेदारी है अपनी ननद के प्रति।” मां जी!” राजेश कौन होते हैं मेरे स्त्री धन का निर्णय लेने वाले।वो मेरे गहने थे मेरे मां बाप ने दिए थे आप सबने मुझसे पूछने के बारे में सोचा भी नहीं। अगर मुझसे मांगते तो शायद मैं खुशी – खुशी दे भी देती लेकिन इतने वर्षों से मुझे धोखे में रखा आप सभी ने।

रागिनी ने तुरंत राजेश को फोन लगाया और बोली कि,” तुम सब ने मिलकर मेरे साथ इतना बड़ा छल कपट किया है। तुमने मेरी इजाजत के बिना मेरे जेवर बेचे कैसे?” राजेश को समझ में आ गया था कि पानी सर से ऊपर चला गया है वो क्या कहता कि मां ने उसे भी बाद में बताया था।वो खुद बहुत नाराज़ हुआ था पर रागिनी से कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था। मां की इस गंदी हरकत ने उसे भी शर्मशार किया था।

रागिनी ” मैं तुमसे माफी मांगता हूं,सच कहूं तो मां ने मुझे भी नहीं बताया था। उन्होंने कुछ समय पहले ही बताया मुझे। मेरे अंदर हिम्मत नहीं थी की मैं तुमसे कुछ कह पाऊं। मुझे नहीं पता था कि मेरे घरवाले ऐसा गंदा काम करेंगे।बस मेरी ग़लती इतनी है की जब मुझे पता चला तुमको बताना चाहिए था मुझे।

मैं शर्मिन्दा हूं और मैंने भी तुम्हारी तरह उन पर भरोसा कर लिया था।” रागिनी को राजेश की बातों पर यकीन था क्योंकि बहुत ही सज्जन इंसान था राजेश।वो कभी भी अपने घरवालों के साथ मिलकर ऐसा कुछ नहीं करता। रागिनी ने अपना सामान लिया और घर से निकलने लगी और उसने मां जी से कहा ” मैं आपको जिंदगी भर माफ नहीं करूंगी

और इस चौखट पर ना तो दोबारा कदम रखूंगी।एक औरत होते हुए आपने मेरी भावनाओं की कद्र नहीं की। मैंने हमेशा आपको मां का दर्जा दिया और आप पर भरोसा करती रही।आप झूठ पर झूठ बोलती गईं और मैं उस को सच मानती रही। मेरी मां की निशानी था वो गहना।वो सिर्फ साज श्रृंगार ही नहीं था मां जी मेरी सम्पत्ति थी जिस पर सिर्फ लड़की का हक होता है

” और वो घर से निकल गई। उसकी आंखों से अनवरत आंसू बह रहे थे।सोच रही थी कि वो कितनी बेवकूफ है जो मां जी की चाल को समझ ना पाई या उसके संस्कार थे जो उसने कभी अविश्वास ही नहीं जताया। दोबारा रागिनी ने उस घर में कभी भी कदम नहीं रखा और राजेश की भी हिम्मत नहीं थी की वो कुछ कह पाता।

कहते हैं की मां – बाप के बुरे कर्म बच्चों को भी भुगतना पड़ता है। राजेश ने धीरे – धीरे गहने तो बनवा दिए थे रागिनी के लिए पर पश्चात्ताप उसकी आंखों में भी दिखाई देता था। उसने रागिनी से कहा जो हुआ वो बहुत गलत था। मैं वो सब पहले जैसा नहीं कर सकता बस तुम अपने मन से बोझ निकाल दो। समय के साथ सब सामान्य होने लगा था पर गलत तो गलत ही होता है उसे किसी भी तरफ देखा जाए तो भी।

                               प्रतिमा श्रीवास्तव

                                नोएडा यूपी

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