“सिर्फ जन्म देने से कोई माँ नहीं बन जाता। माँ बनने के लिए दिल में मातृत्व का एहसास होना जरूरी है…. जो तुम्हारे अंदर बिल्कुल नहीं है।” समीर गुस्से से चिल्ला रहा था।
“क्या कमी कर दी मैंने अपने मातृत्व में… क्या नहीं मिल रहा रूही को… समय से खाना, दूध… पढ़ाने के लिए टीचर भी समय पर आती है….” गरिमा भी गुस्से से चिल्लाकर बोली।
“क्या खाना, दूध देने से माँ का फर्ज पूरा हो गया। कभी तुमने उसे गोद में लेकर देखा है, एक बार भी बेटा कहकर अपने सीने से लगाया है…”
“मुझसे इतने दिखावे की उम्मीद मत करो, समीर… मेरे भी कुछ सपने हैं, इच्छायें हैं… मैंने पहले ही कहा था कि मुझे बच्चा नहीं चाहिए, लेकिन तुमने कहा कि तुम केवल बच्चा पैदा कर दो; बाकी तुम्हारी भाभी बच्चे को सँभाल लेंगी। फिर अब क्या मुसीबत है… क्या अब उनसे मेरा बच्चा नहीं सँभाला जा रहा…”
“चुप करो गरिमा… भाभी ने क्या तुम्हारा बच्चा सँभालने का ठेका उठा लिया है। भैया का ट्रांसफर हो गया है, भाभी को भी भैया के साथ जाना है तो अब रूही को कौन सँभालेगा। रूही का मन भाभी के साथ इतना जुड़ गया है कि अब रूही उन्हें ही अपनी माँ समझने लगी है, वो उनसे अलग नहीं होना चाहती, तुम्हें तो ये भी नहीं पता वो उन्हीं के साथ जाने की जिद कर रही है। तुमने तो आज तक रूही को अपने पास सुलाया भी नहीं…”
“तो क्या हुआ, चली जायेगी उनके साथ… वैसे भी यहाँ कौन सँभालेगा… मुझे आया रखनी पड़ेगी। कभी हम उनसे मिलने वहाँ चले जायेंगे तो कभी वो यहाँ आ जायेंगी। उनके साथ जाने से भी रूही हमारी बेटी ही रहेगी ना…”
गरिमा की बात सुनकर समीर गुस्से में आगे बोलने को हुआ, लेकिन गरिमा कमरे से बाहर चली गई।
समीर समझ गया था, कि गरिमा को अपनी बेटी से बिल्कुल लगाव नहीं है, अगर वो यहाँ रही तो उसकी जिंदगी खराब हो जायेगी, इसलिए उसने रूही को भैया-भाभी के साथ भेजने का मन बना लिया, लेकिन इसके साथ ही उसने एक फैसला और ले लिया।
शाम को जब सब खाने के लिए बैठे थे। तीन साल की रूही अपनी बड़ी मम्मी की गोद में बैठकर खाना खा रही थी। बड़ी मम्मी भी उसे एक माँ से बढ़कर दुलार कर रही थी, और बहुत प्यार से खिला रही थी। लेकिन गरिमा को कोई फिक्र नहीं थी। और ना ही उसने एक बार भी कोशिश की कि रूही को वो अपनी गोद में ले ले।
तभी समीर बोला, “भाभी, ये कागजात सँभालिये…”
“ये क्या है भैया…”
“इन कागजातों के अनुसार अब आप रूही की माँ है। रूही पर अब आपका कानूनी अधिकार है…”
“सच में भैया….” कहते हुए मीना की आँख में आँसू आ गये। उसने गरिमा की तरफ देखा तो उसका चेहरा सफेद पड़ा था।
“ये क्या कह रहे हो समीर…. रूही मेरी बेटी है, ऐसे कैसे तुम उसका कानूनी हक भाभी को दे सकते हो…”
“क्यों नहीं दे सकता… रूही मेरी भी बेटी है। मैं उसकी जिंदगी बर्बाद होते नहीं देख सकता। इसलिए मैंने ये फैसला लिया। तुम तो रूही को पाल नहीं सकती, ना ही तुम रूही को गोद में लेकर उसकी तकलीफ समझना चाहती हो।
तुमने केवल उसे जन्म दिया है, लेकिन इन तीन सालों में आज तक तुम्हें यह नहीं पता कि रूही को किस चीज की जरूरत है, उसे क्या तकलीफ है। कब उसे स्कूल जाना है, कब उसे भूख लगी है और कब उसे माँ की गोद में सोना है, तुम्हारे पास आने से ही वो ड़रती है।
भाभी ने रूही को जन्म नहीं दिया, लेकिन रूही की माँ वही हैं। माँ होने का एहसास ही नहीं है तुम्हारे अंदर…. भाभी रूही को जन्म देकर माँ नहीं बन सकी लेकिन उसे अपनी गोद में लेकर उसकी माँ बन गई। उसे कब भूख लग रही है, कब नींद आ रही है। भाभी ही जानती हैं, भाभी के होने से माँ के होने का एहसास होता है। भाभी की गोद में जाकर उसका ड़र खत्म हो जाता है। जो एहसास उसे तुम्हारे साथ होना चाहिए था, वो अपनी बड़ी मम्मी के पास मिलता है।
तुम्हें उसके इस घर से जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन उसको अपने से दूर करने के नाम से ही भाभी की तबियत खराब हो गई है। देखो इनका चेहरा, मैंने इन्हें रूही का कानूनी हक दे दिया तो कैसे इनका चेहरा खिल गया। दोनों कितनी खुश हैं। इन्हें देखकर नहीं लगता कि इन्होंने रूही को नौ महीने अपने पेट में नहीं रखा। मेहरबानी करके अब इन दोनों के बीच मत आओ। एक माँ को उसकी बेटी दे दो।”
गरिमा ने देखा, जेठानी के चेहरे की चमक अलग ही थी। जैसे उन्हें रूही नहीं; पूरी दुनिया मिल गई हो। सही में उसने रूही को जन्म तो दिया था, लेकिन माँ नहीं बन सकी। और जेठानी उसकी बेटी की यशोदा माँ थी। जन्म ना देकर भी उसे पाल-पोसकर उसकी यशोदा माँ बन गई थी।
आज समीर ने रूही को मीना की गोद में देकर उसको माँ होने का एहसास करा दिया था। एक सम्पूर्ण माँ…
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धन्यवाद
चेतना अग्रवाल