#बैरी_पिया
कहते हैं जानवर भी पालो तो कुछ दिनों बाद उससे लगाव हो जाता है, फिर इंसान तो इंसान है कितना भी विचारों में विभिन्नता हो पर एक समय के बाद उसी में मजा आने लगता है ।और कब जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर आ जाते हैं पता ही नहीं चलता।
हां आप ठीक समझ रहे हैं हम जीवन साथी की ही बात कर रहे । क्योंकि हर रिश्ते की एक मियाद होती है एक समय के बाद उसकी पकड़ कमजोर पड़ने लगती है पर ये एक ऐसा रिश्ता है कि कितनी भी वैमनस्यता हो पर जिसकी पकड़ कभी ढीली नहीं पड़ती तभी तो दुनिया का सबसे अनोखा रिश्ता कहा गया है।
अब एक हो तो बताऊं ऐसे तमाम किस्से हैं तमाम क्या बल्कि घर घर की कहानी है कि आपस में नही बनती , क्योंकि मतभेद होता है।बस कहीं पता चलता है कहीं छुपा रहता है।
शुरू शुरू में तो वैचारिक मतभेद के कारण बहुत दिक्कत आती है पर धीरे धीरे सब ठीक हो जाता है।
अब अम्मा को ही ले लो,भले ब्याह कर आई तो तेरह वर्ष की थी वो बताती है कि पापा गबरू जवान थे , ऐसे में उम्र और समझ दोनों का फासला था, पर पापा ने सब संभाल लिया और जब अम्मा जवान हुई तो बच्चों और गृहस्थी के भार ने उन्हें कुछ और सोचने का मौका ही न दिया।
उसी तरह मैं भी हालांकि मेरा ब्याह बीस की उम्र में हुआ।
और मेरे साथ तो पति का सहयोग भी नहीं रहा पर अपनी सूझ बूझ से उन्हें और उनकी गृहस्थी को अपना लिया और जब अपना लिया तो फिर क्या गाड़ी पटरी पर चल पड़ी।
धीरे धीरे वक्त बीतता गया बच्चे जवान हुए पढ़ें लिखे नौकरी चाकरी लगी साथ ही अपनी पसंद की शादी भी कर ली।
अब करेंगे ही हवा जो ऐसी चली है , जिसको देखो वही अपने से बिआह करें ले रहा है।
अब रोक टोक भी नहीं सकते क्योंकि वो वहीं करेंगे जहां पसंद किए हैं अब तुम्हारी मर्जी शामिल हो या न हो इस लिए हम देखते हैं कि मां बाप राजी ही हो जाते हैं।बस यही हमने भी किया।एक तरफ से अच्छा ही है । अच्छा बुरा जो भी हो आपन समझे हमसे कोई मतलब नहीं।
वैसे तो बहुरानी से हमारी पटती बहुत है बिटिया की तरह रही है।
पर जब किशन से परेशान होती है तो शिकायत करती है ऐसे में हम कह देते हैं पिया तोहार बैरी होई या हितैषी तुम जानो इस पर वो चुप लगा जाती।
पर अब देखते हैं कुछ दिनों से की कोई बात बहस नहीं होती बड़े प्रेम से दोनों रहते है।
इसी बात पे एक दिन मैने ऐसे ही पूछ लिया ,सब ठीक है ना, तो वो बोली ।
मां – साथ एक दूसरे के रहने लगे तो चाहे कोई भी हो तो लगाव हो ही जाता है फिर वो तो पति है। आदत में शामिल हो गए हैं।जिसे सुनकर अच्छा लगा पिया कितना भी बैरी हो पर होता तो अपना ही है। उसी से सारे रिश्ते जो जीवंत है। यही एक रिश्ता ऐसा है जहां मत भेद होता है , मन भेद नहीं ।
स्वरचित
कंचन आरज़ू