जलपाईगुड़ी उतर कर, हम दोनों पति पत्नी गंगटोक के लिए टेक्सी ले रहे थे। टेक्सी वाले पैसे ज्यादा मांग रहे थे, मेरे हिसाब से। एक और जोड़ा वहीं जाने के लिए टेक्सी ढूंढ रहा था। मैंने उस जोड़े में से लड़के से बात की
“हमें भी गंगटोक ही जाना है, क्या पैसे आधा आधा शेयर कर चलना पसंद करेंगे?”
“हां भैया, ये ठीक रहेगा”
“वो तैयार हो गया”
हम टेक्सी लेकर गंगटोक के लिए चल पड़े। पर जल्दी ही एहसास हो गया कि हमने गलती कर दी है। टेक्सी में गाना बजते ही, लड़की ने कानों पर हाथ रखा। लड़के ने उसे बंद करने की गुजारिश की।गाड़ी चल रही थी और वे अजीब सी बात कर रहे थे। खासकर लड़की। रास्ते में कुछ भी दिखता वो लड़के से पूछती
“उ का है.. ई का है.. इहा काहे है.. अईसे काहे है..!”
हम पति पत्नी सिर्फ उनकी बातें सुनते, और उनका मुँह देखते। लड़का बिना कुछ कहे उसके हर बचकाने सवाल का जवाब बिना किसी झुंझलाहट के दे रहा था। पर लंबे सफर में उनकी बेमतलब की बकबक ने हमें जरूर झुंझलाहट से भर दिया था। लड़की ने फिर से चाय बागान को देख एक बेतुका सवाल किया
“उ का है.. खेत है? केतना हरा हरा है!”
“चायपत्ती का बागान है वो”
लड़के ने उसे दो घुट पानी पिलाते हुए कहा। मुझसे रहा नहीं गया
“ये इस तरह से क्यों कर रही हैं?” मेरे इस सवाल में सिर्फ मेरी जिज्ञासा ही थी, पर ना जाने क्यों उसकी आँखों में नमी उतर आई। उसने लड़की का सर अपने कंधे पर टिका दिया
“हमारा ढाई साल का बच्चा था भैया, सात महीने पहले चल बसा..तब से ये ऐसे ही है, डॉक्टर ने कहा है, थोड़ा ध्यान भटकेगा, जगह बदलेगा, खुश रहेंगी..तो ठीक हो जाएंगी”
तभी एक बाजार के बीच से गुजरते हुए, लड़की जिद करने लग गई। उसे शायद नारियल पानी पीना था। लड़का झिझकते हुए
“दो मिनट रोकेंगे क्या भैया? थोड़ा..”
“आप बैठे रहिए, मैं अभी ले आता हूँ”
हम नारियल पानी पीते हुए आगे बढ़ चले। लड़की उसके कंधे पर सर टिकाए, यूं ही बेमतलब सवाल करती जा रही थी, लड़का मुस्कुराता हुआ ऐसे ही जवाब देता जा रहा था। मैंने अपनी पत्नी को देखा, मेरी तरह उसकी आंखें भी भीग आईं थीं। मैंने अपनी भरी हुई आँखे, ऊपर आसमान की तरफ कर, भगवान को इस बात के लिए शुक्रिया कहा,
कि उन्होंने इस मासूम सी लड़की को, इतना प्यारा सा जीवनसाथी दिया..ये जोड़ी भी ऊपर वाले ने बहुत सोच कर बनाई है..!
विनय कुमार मिश्रा