समय पंख लगाकर उड़ जाता है, कल मैं अपने जीवन के ७३ वर्ष पूरे कर लूँगी। जीवन के सफर में कितने उतार चढ़ाव आए। कितने लोगों से मिली कितने रिश्ते बनाए। कितने पुराने रिश्ते छूट गए, नये रिश्ते बनते गए। सुख दुःख के मापदंड भी बदले। एक सुख जीवन में था, तो दूसरे सुख की कमी खल रही थी। जब वो सुख मिला तो मन फिर पहले वाले के लिए मचलने लगा। ईश्वर ने मेरी प्रार्थना हर बार सुनी
,और जीवन खुशियों से भरा रहा। आज जब मैं विचार कर रही हूँ, तो लग रहा है कि सुख बाह्य जगत से नहीं मिलता यह हमारे अन्दर ही समाया होता है, जरूरत है हर परिस्थिति में खुशियों को ढूंढ कर ,उसे अनुभव करने की। जीवन सुख -दुःख का संगम है।
मीरा जी अपने घर के आंगन में आराम कुर्सी पर बैठी हुई विचारों में खोई हुई थी। इस समय वे घर में अकेली थी। बेटा बहू बाजार गए थे। नन्हा पोता राजू बाहर खेल रहा था और पति विमल बाबू मंदिर गए थे, कल वे हर वर्ष की तरह घर में सत्यनारायण भगवान की कथा करवाना चाहते थे, इसलिए पंडित जी से बात करने गए थे। वे जानते थे कि मीरा को सत्यनारायण भगवान की कथा में बहुत आनन्द आता है। अब एक नजर मीरा जी के जीवन के पूरे सफर पर डालते हैं और सुख दुःख ने उनके जीवन पर किस तरह अपने रंग दिखाए उसे देखते है।
एक प्यारी सी मासूम नवजात बच्ची,रेशम की दुशाला में लिपटी प्रातः काल की बेला मे सत्यनारायण मंदिर की सीढियों पर पुजारी जी को दिखी। सूर्य की किरण उसके चेहरे पर पड़ रही थी, और वह जोर-जोर से रो रही थी। पुजारी जी ने आसपास देखा, कोई नजर नहीं आया, शायद उस बच्ची की माँ भी इस उम्मीद में कि सुबह-सुबह किसी की नजर बच्ची पर पड़ जाए और वह बच्ची को अपना ले वहाँ छोड़ गई थी। पुजारी जी को बच्ची पर दया आ गई, उन्होंने उसे गोदी में उठाया, ईश्वर की मूर्ति के आगे सुलाया और प्रार्थना की ,कि प्रभु मुझे सही मार्ग दिखलाओ। मन से आवाज आई “बच्ची का लालन पालन करना तेरे बस में नहीं है,
इस कहानी को भी पढ़ें:
तू ठहरा ब्रह्मचारी और तेरी अवस्था भी ढल रही है। इसे किसी अच्छे अनाथाश्रम में छोड़ दे, और वहाँ जाकर इसका ध्यान रखते रहना।” पुजारी जी ने ईश्वर का आदेश मान ऐसा ही किया, वे अनाथ आश्रम जाते उसका ध्यान रखते और यथासंभव आर्थिक मदद भी करते। बच्ची का नाम उन्होंने मीरा रखा। मीरा के जन्म के साथ ही अनाथ का लेबल उसके सिर पर लगा कि उसके माता पिता नहीं है । यह कितना दु:खद था। अनाथ आश्रम में सारे रिश्ते मिले भाई बहिन, मामा-मौसी, भुआ काका मगर जब वह अनाथ आश्रम के कार्यकर्ता के बच्चों को मम्मी पापा कहते सुनती,
तो तोतली आवाज में पूछती मेरे मम्मी पापा कहॉं है?मीरा पॉंच साल की हो गई थी, वह इतनी प्यारी थी कि जो देखता उससे प्यार करता। एक दिन ईश्वर ने उसकी प्रार्थना सुनी और विराट और स्नेहा दम्पत्ति ने जो किसी बच्चे को गोद लेना चाहते थे, मीरा को पसन्द किया और विधिवत उसे गोद ले लिया। विराट मल्टी नेशनल कम्पनी में नौकरी करता था । बहुत अच्छा पैकेज था, स्नेहा भी कम्पनी में जॉब करती थी, मगर मीरा को गोद लेने के बाद उसने नौकरी छोड़ दी। सम्पन्न परिवार था मीरा को किसी चीज की कमी नहीं थी। जिस रिश्ते के लिए वह तरस रही थी
वह रिश्ता बाहें फैलाए उसका स्वागत कर रहा था। मीरा को मम्मी पापा मिले मगर दूसरे रिश्ते छूट गए। विराट और स्नेहा ने माता पिता की इच्छा के विरूद्ध शादी की थी, इस रिश्ते को दोनो परिवार की स्वीकृति नहीं मिली, इसलिए मीरा को मम्मी- पापा का भरपूर प्यार मिला मगर दादा -दादी, नाना-नानी। मामा, मौसी, भुआ -काका जैसे रिश्तों के सुख से वंचित रहना पड़ा। वह स्कूल पढ़ने जाती उसके संगी साथी जब इन रिश्तों के बारे में बातें करते तो वह गुमसुम हो जाती।मम्मी- पापा की छत्रछाया में वह बड़ी हो रही थी । मीरा ने उनके प्यार को समझा,
रिश्ते को दिल से अपनाया और उन्हें प्यार और सम्मान दिया। मीरा की पढ़ाई पूरी हो गई थी, एक अच्छे घर से उसके लिए रिश्ता आया। संयुक्त परिवार था, लड़का बैंक में नौकरी करता था,परिवार की माली हालत ज्यादा अच्छी नहीं थी, मीरा खुले वातावरण में पली बढ़ी थी, स्नेहा उसकी माँ के साथ उसकी मित्र भी थी। स्नेहा ने मीरा से कहा ‘बेटा विमल का संयुक्त परिवार है, परिवार के बारे सुना है कि परिवार के लोगों में आपसी प्रेम बहुत है। वहाँ की आर्थिक स्थिति सामान्य है। बेटा! विमल बैंक में नौकरी करता है। तू सोच समझकर निर्णय लेना
यह तेरे जीवन का प्रश्न है, हम दोनों तेरे हर फैसलें में तेरे साथ हैं। तू अगर चाहे तो विमल से बात कर ले, करना चाहेगी… अरे वाह! तेरे चेहरे पर तो चमक आ गई। ऐसा करते हैं कल विमल को घर पर भोजन के लिए आमंत्रित करते हैं, तुम और विमल आराम से बात कर लेना और अपना विचार हमें बता देना।’
विमल बहुत खूबसूरत था, और साथ ही धीर गम्भीर व्यक्तित्व का धनी था। उसने स्पष्ट कहा-‘मीरा ऐसा सुख ऐश्वर्य तुम्हें ससुराल में नहीं मिलेगा। तुम नाजो से पली हो, मेरा परिवार मध्यमवर्गीय है, प्यार और सहयोग की कमी वहाँ नहीं होगी, इतना विश्वास दिलाता हूँ, क्या तुम वहाँ……?।’ मीरा ने कहा -‘अगर आपको यह रिश्ता मंजूर है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है, मै खुद परिवार में रहना चाहती हूँ, आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगी।
इस कहानी को भी पढ़ें:
‘ विवाह सआनन्द सम्पन्न हो गया। मीरा ने अपने व्यवहार से सभी का दिल जीत लिया। वह खुश थी समय के साथ दोनों ननन्दो की शादी हो गई। जैठ जी के बेटे विदेश में सैटल हो गए, तो जैठ जिठानी भी वहीं चले गए। विमल की बैंक में ऑफीसर की पोस्ट हो गई थी। सास ससुर दुनियाँ छोड़ कर चले गए। मम्मी पापा भी अपनी सारी दौलत मीरा के नाम करके भगवान को प्यारे हो गए। अब रह गए मीरा विमल, उनका बेटा आरव और बेशुमार दौलत। आरव का अपना बिजनेस था और वह अपने माँ -पापा के साथ ही रहना चाहता था । बहू चारू भी खुश थी। दोनों मीरा के जन्मदिन को मनाने के लिए सामान लेने बाजार गए थे।
मीरा को सोचते- सोचते झपकी लग गई। विमल मंदिर से आ गया था। वह चुपचाप मीरा के सामने कुर्सी पर बैठ गया। राजू खेलकर आ गया था ,उसकी आवाज से मीरा नींद से जागी। राजू कह रहा था -‘दादी कल आप कैक काटोगे ना?’ मीरा जी कुछ कहती उससे पूर्व ही आरव और चारू आ गए और बोले-‘ हॉं कैक तो जरूर काटेंगे, और बेटा तू भी कल सुबह नहा धोकर जल्दी तैयार हो जाना ,सुबह हमारे घर सत्यनारायण भगवान की पूजा और कथा होगी।’ राजू बोला- ‘ओ.के. पर माँ फिर कैक… ।
‘ चारु ने कहा -‘बेटा कैक कंटिग शाम को, सुबह दादी का जन्मदिन दादाजी के अनुसार और शाम को हैप्पी बर्थडे राजू जैसा चाहता है उस तरह ठीक है ना। ‘ राजू ने कहा ठीक है उसने अपनी दोनों बाहों से दादी की गर्दन को घेर लिया और बोला दादी कल आप अच्छी चमकीली साड़ी पहनना।’ मीरा की ऑंखों में खुशी के ऑंसू थे । वह कभी विमल जी को देख रही थी, तो कभी बेटा बहू और राजू को। उसने राजू को सीने से लगा लिया और कहा -‘ठीक है, मेरी साड़ी कल राजू पसंद करेगा।’ ‘ओ. के.दादी.. ‘
मीरा जी के जीवन में सुख-दुःख का मेला चलता रहा और उनका ७३ वा जन्मदिन सबने धूमधाम से मनाया।
प्रेषक
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित
सुख – दुख का संगम