जीवन में उतार चढ़ाव – अमिता कुचया : Moral Stories in Hindi

 हर घर में मार्च अप्रैल के बाद गेहूं आते है, तो शीला ने सोचा चलो समय रहते गेहूं मंगा ले। नहीं तो समय कैसे निकल जाता है, पता ही नहीं चलता है।इस बार पड़ोसी  नीना की बेटी की शादी है, उनके यहां के फंगशन में बिजी हो जाऊंगी,और फिर मायके भी जाना है, तो क्यों न नीलेश‌ के पापा से गेहूं लाने की कह दूं। 

शीला का कहना ही था कि गेहूं खत्म हो गये हैं। तो सुरेश ने एक हफ्ते में ही ढाई क्विंटल गेहूं मंगवा दिया। मंडी में एक दोस्त के पहचान वाला किसान गेहूं लाया था। उसका दोस्त वही कृषि मंडी में आढ़त का काम करता था। उन्होंने सुरेश को बताया ।इस तरह दोस्त की सुरेश से बात हुई। तो सुरेश ने कहा हम लोग शरबती गेहूं ही लेते हैं। लेकिन किसान के आग्रह पर सुजाता गेहूं भी ले लिया। सुरेश को गेहूं के रेट में भी अंतर लगा। तो उसने सोचा गेहूं लेकर देखता हूं, कि स्वाद में क्या फर्क रहता है। 

और वह मंडी से गेहूं ले आता है। 

शीला के घर में गेहूं पांच बोरी में आए थे। तीन बोरी के गेहूं शरबती थे, और दो बोरियों के गेहूं सुजाता थे। वो सोच रही थी कि गेहूं की टंकी खाली करुंगी तो भर लूंगी।

दो दिन बाद… 

अब उसने पहले के गेहूं उसने एक अलग तेल के खाली डिब्बे में भर लिए, जो कि आखिरी के थोड़े से बचे थे।फिर उसने गेहूं की टंकियों को खाली करके पोंछकर धूप में सुखाया, फिर नीचे बोरी बिछाकर भरने लगी। अब दोनों टंकी में दो बोरी गेहूं आ गए, थोड़ा बहुत जगह थी तो उसने आखिरी बोरी के गेहूं ऊपर से डाल दिए, इतने में उसका पति सुरेश घर आता है। उसे बहुत तेज बोलने की आदत थी। सुरेश ने देखा कि शीला तो दोनों प्रकार के गेहूं अलग -अलग भर रही है। उसने पूछा शीला तुमने गेहूं अलग- अलग भरे है या नहीं…. 

तब उसने कहा -सुनो जी अपने यहाँ दो टंकी गेहूं की है। इसलिए दोनों में भर दिया है।लेकिन किसमें शरबती और किसमें सुजाता है। ये याद नहीं है, पहले एक टंकी में शरबती गेहूं दो बोरी डाले है, दूसरे में सुजाता गेहूं डाले है। एक बोरी बच गयी थी, थोड़ा- थोड़ा ऊपर से दोनों में डाल दिया। किसमें कौन से है,शायद अब ऊपर से मिक्स हो गये हैं। तो वह चिल्लाने लगा कि शीला तुम्हें ढेला भर की अक्ल नहीं है।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

गुडबाय मॉम – रवीन्द्र कान्त त्यागी : Moral Stories in Hindi

तब शीला ने कहा -आप इस तरह चिल्ला क्यों रहे हैं! गेहूं किसी और को बेचना थोड़े ही है। आपने बताया था, लेकिन ये नहीं सोचा आखिरी वाली बोरी के न मिलाऊँ, अब तो मिल चुका है कुछ नहीं हो सकता है।तब सुरेश बड़बड़ाते हुए कहने लगा- तुम तो एक नंबर की बेवकूफ हो। जिसे गेहूं की क्वालिटी समझ तक न आई। 

तब वह कहने लगी खाना तो घर में ही है। इतनी बात क्यों बढ़ा रहे हो। 

तब वह ताली बजाकर बोलने लगा, वाह क्या बात है…एक तो गलती ऊपर से सीना जोरी….पता नहीं किस घड़ी में मैंने तुम से शादी की। तुम तो पढ़ी लिखी होकर भी अनपढ़ गंवार जैसी ही हो। तुम्हें गेहूं भरते समय अंतर ही नहीं समझ आया। अजी मैं समझ तो गयी थी। पर दोनों टंकी में जगह थी तो ऊपर तक भर दी। इसमें ऐसा क्या हो गया? 

तब वह बोला -“अरे दोनों के स्वाद में अंतर देखना था, क्योंकि रेट में काफी अंतर है शीला…… 

तब वह कहने लगी देखो जी अब गेहूं तो टंकी में ऊपर की तरफ शरबती गेहूं है। कहो तो निकाल लूं क्या? 

तब वह बड़बड़ाते हुए कहने लगा,तुम अपनी गलती बस न मानो। तुम्हारा क्या ऑ कह रह जाओ, या कह दो हो गया सो हो गया ये कह दो और बात खत्म तुम्हारे लिए…..

इतना सुनते ही कहने लगी- कोई नुकसान तो नहीं हो गया ना…। जो एक ही बात को बार- बार दोहरा रहे हो। अब तक शीला पति के बरताव से समझ चुकी थी। आज सुरेश ज्यादा ही गुस्सा है। वह चुप हो गई। वह पति के लिए खाना गरम करने लगी। तब रमेश ने कहा-” अपने मां बाप को ही खाना खिलाना। अब बहुत हुआ… “

उसके बाद शीला ने सोचा भैंस के आगे बीन बजाने से क्या फायदा खैर…. गलती तो मेरी ही है, उसने किचन समेटा और सोने की तैयारी करने लगी। 

जैसे तैसे रात बीत गयी। 

अगले दिन फिर दोबारा सुरेश के पास जैसे ही शीला चाय लेकर पहुंची, तब वह कहने लगा – चाय पानी छोडो़। अभी तुम्हारे मां बाप को फोन लगाता हूं। उन्ही को चाय पिलाना,समझी कि नहीं…..फिर तुम्हारी सब बात बताता हूं। इतने में बच्चे भी जाग गये। तब नीलू नीलेश कहने लगे, मम्मी पापा को क्या हुआ? इतने गुस्से में क्यों है? 

इस कहानी को भी पढ़ें: 

आखिर कब तक? – शालिनी गुप्ता

पर अपने स्वाभिमान को किनारे पर रखकर बोली कुछ नहीं हुआ बच्चों तुम लोग ध्यान मत दो। वह दोनों बच्चों को इन बातों से दूर रखती है। तभी सुरेश बच्चों से मम्मी की गलती बताते हुए कहता है देखो नीलेश बेटा मेरे ख्याल से तुम्हें भी इतनी अक्ल होगी। कि अलग- अलग गेहूं की क्वालिटी में अंतर समझ पाओ। तब नीलेश बेटा ने बात संभालनी चाही, और वह कहने लगा, पापा ..पापा..ये क्या बोल रहे हैं !आप क्या मम्मी को नहीं जानते, उन्हें इतना ज्ञान है। पर गेहूं एक बोरी ज्यादा था तो ऊपर से डाल दिया और उन्होंने मुझे बोला था। पर मैनें ही कहा- क्या हुआ मम्मी खाना तो घर में ही है। इतना क्या सोच रही हो ,अलग रखोगी तो हवा लगेगी उसमें कीड़े होने लगेगें। 

एक और टंकी होती तो उसमें न मिलाती…. अच्छा बेटा मम्मी की हां में हां कैसे मिलाना वो भी तुमने सीख लिया। 

तब तक शीला भी अंदर से भर चुकी थी। उसने भी आव देखा न ताव…वो भी कहने लगी। बेटा पापा बात को खींच ही रहे हैं तो मैं भी सब को बताती हूं बुआ, फूफा जी, ताऊ ,ताई ,बडे़ पापा सबको बताती हूँ। मेरे मन में भी बहुत कुछ है पर मैं ये न चाहती थी कि घर की बात रिश्तेदारों तक फैले। मुझे सब पता है कि हर घर में थोड़ी बहुत खटपट तो होती रहती है। पर अब पानी सर के ऊपर जा रहा है तो मैं भी क्या कर सकती हूं। मन की कसक मेरे मन में भी है,पर मैं एक कान से सुनती हूं ,दूसरे कान से निकाल देती हूं।यदि तेरे पापा इस बात को इतना तूल दे रहे है तो ठीक है, बुलाने दो सबको….तब सुरेश कहता है कोई आये या ना आए पर तेरे मां बाप आकर रहेंगे।

इतना सुनकर सुनकर शीला कहती -सबके घर में बहस होती है ,पर सरेआम नहीं करते, यदि नीलेश पापा मेरे मां बाप को बताएंगे तो मैं भी चुप नहीं रहूंगी, मैं तो ये सोचकर मां को नहीं बताती थी ,कि भाभी न सुन न ले वो तो पराई घर से आई ,भाभी को मेरे घर की तकरार का पता चलेगा तो मेरे बारे में क्या सोचेंगी, मेरी क्या पापा की भी वो इज्जत नहीं करेगी, जो सम्मान अभी तक मिलता आया है वो भी कहीं खो न दे कहीं…सोच लें पापा…और यदि बुआ लोगों को मैं बताती हूं तो बुआ लोगों को तो पापा को ही सही समझेंगी। पर पापा को तमाशा करना है तो करे, मैं भी तैयार हूं। मैं भी कितनी बातें नजरंदाज कर देती हूं। अगर पडोसियो को पता चलता है तो घर परिवार की बदनामी होती है। 

मैनें भी शादी के बाद से आज तक जो झेला वो भी सब खोल दूंगी। बस सब तमाशा ही देखेंगे और क्या… कोई कुछ नहीं कर पाएगा। 

तब सुरेश जी को समझ आया कि शीला को उकसाना मतलब आग में घी डालना है। उसने मन में सोचा अब यही ये किस्सा खत्म करते हैं। फिर सुरेश ने कहा नीलेश मम्मी को कह दो जो कहा जाए वो ध्यान से सुने। और मुझे गुस्सा न दिलाया करे। 

इतना सुनते ही शीला ने कहा बहुत जल्दी समझ आ गयी कि बात खत्म करना चाहिए। अगर सबको इकट्ठा करना है तो करो। मैं भी इस बार चुप न रहूंगी। 

इतना सुनते ही सुरेश को शीला का पलड़ा भारी लगने लगता है। वह समझ जाता है। अब तो बात आ बैल मुझे मार वाली ही हो गयी। उसने सोचा अगर सब लोग को मैनें बुलाया तो मेरी ही इज्जत की थू थू करके शीला सबके सामने रख देगी। तब वह बोला मेरी मां अब तो शांत हो जा… 

इस कहानी को भी पढ़ें: 

बड़का बिल्ला! – सारिका चौरसिया

वह हाथ जोड़कर बोलने लगा। इस तरह शीला ने भी मन की भड़ास निकाल दी। वह समझ गया। शीला को और नहीं उकसाना चाहिए..

पता चले शादी के बाद से क्या- क्या हुआ, उसका इतिहास न‌ खोल दे। सबके सामने… अपनी बात को दबाते हुए गरज कर बोला -चाय मिलेगी कि न मिलेगी? कि वाकई सबको बुलाना ही पड़ेगा। और दबी हंसी के साथ हंस पडा़

इस तरह शीला के अंदर का गुब्बार निकल गया था। 

तब बेटा बोला पापा मम्मी भी कमजोर न है। अब ज्यादा न उकसाओ। पता चले नाना नानी आ गए तो आप कुछ न बोल पाओ। 

फिर शीला बोली अजी अब आपका गुस्सा ठंडा हो गया हो तो कुछ बोलूं

हां हां ठीक है बोल क्या कहना मेरे मना करने से क्या तू रुक जाएंगी जैसे…. तब वह देखो जी ये जीवन हमारा है ये उतार चढ़ाव तो चलते रहेंगे। तो क्या हर बात सरेआम करे क्या ये ठीक है नहीं ना…. अब हम बात खत्म करते हैं। ये जीवन हमारा तो क्यों किसी को शामिल करे। अपने रिश्ते का तमाशा बनाए। यही हमारे जीवन का सच मुझे तुम्हारे साथ रहना और तुम्हें मेरे साथ, क्यों सही कहा ना… 

तब वह भी बोला- चलो अच्छा ठीक है, बेटा मम्मी बता भी सकती थी। गेहूं रखने के लिए एक टंकी और चाहिए। पर एडजस्ट करने के कारण उसे इतना सुनना पडा़। क्या मैं एक टंकी और न लाता। और शीला ने भी अपनी गलती मानी। शीला के मन की कसक जो थी। वह भी भरभरा कर निकल गयी। 

दोनों की बहस खत्म हुई। सबने बैठकर चाय की चुस्कियां ली। 

इस तरह शीला ने अपने अंदर की मन की कसक को निकाल खुल कर हंसने लगी। और घर का माहौल खुशनुमा हो गया। 

स्वरचित रचना

अमिता कुचया

#ये जीवन का सच है

error: Content is Copyright protected !!