आज फिर ससुर जी की चीख चिल्लाहट की आवाज से सुनिधि की सुबह हुई। दो महीने पहले शादी हुई है सुनिधि और समर की, तब से सप्ताह के हर दिन किसी ना किसी बात पर एक बार तो ससुर जी अपनी पत्नी यानी सुनिधि की सासु माँ पर चीखते चिल्लाते और नीचा दिखाने की कोशिश जरूर करते हैं। पर क्यूँ.. सुनिधि के समझ में नहीं आता। सब कुछ तो ससुर जी के कहने से पहले तैयार रखती हैं सासु माँ। समर भी अपनी माँ का अपमान होते देख कभी कुछ नहीं बोलते।
झकझोर कर अपने पति समर को उठाती है सुनिधि… देखिए फिर से मम्मी पर चीख रहे हैं पापा।
सोने दो यार.. एक दिन की तो छुट्टी होती है…. मम्मी कोई काम ठीक से करती नहीं हैं तो चीखेंगे ही ना और पापा पुरुष हैं तो गुस्सा आएगा ही ना उनको।
ऐसी बात सुन कर सन्नाटे में आ जाती है सुनिधि.. क्या कह रहे हैं समर।
इतने में ही कप गिरने और थप्पड़ की आवाज से वातावरण गुंजायमान हो जाता है। हड़बड़ा कर सुनिधि कमरे का दरवाज़ा खोल बाहर की ओर दौड़ती है।
बिखरी हुई चाय की छींटों और गाल पर एक हाथ रखे सिसकती हुई सासु माँ टूटे हुए प्याले की किरचें चुन रही थी।
ससुर जी भुनभुनाते हुए चाय में चीनी तक सही से नहीं डाल सकती.. बोलते हुए दूसरा थप्पड़ उठाते हैं.. लेकिन उठा हुआ हाथ जहाँ के तहाँ रुक जाता है।सहम कर सासु माँ नजर उठा कर देखती है तो बहू सुनिधि ससुर जी का हाथ पकड़े नजर आती है।
पापा जी आपका बहुत लिहाज करती हूँ मैं.. आज के बाद मेरी माँ पर चिल्लाने, नीचा दिखाने और हाथ उठाने की जुर्रत मत कीजियेगा, उनकी ये बेटी बर्दाश्त नहीं करेगी.. फिर मत कहिएगा की सुनिधि ने लिहाज नहीं किया… सुनिधि कहती है।
इतने में समर सुनिधि का हाथ झटकते हुए कहता है.. हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी पापा का हाथ पकड़ने की।
जो अपनी माँ की इज्जत के लिए खड़ा नहीं हो सका.. वो मेरी क्या इज्जत करेगा..कोई संतान अपनी मां का इतना तिरस्कार कैसे बर्दाश्त कर सकता है। कल को यही सब तुम भी मेरे साथ करोगे समर .. बस इसी सोच ने हाथ पकड़ने पर मजबूर किया और अभी से मैं अपने लिए और अपनी माँ की इज्जत के लिए खुद खड़ी हूँ… पुरुष होने का दंभ है ना तो औरतों पर जोर मत चलाओ.. उनकी इज़्ज़त करना सीखो मि. समर… सुनिधि कहती है।
और माँ आपने कम से कम समर को बताया तो होता कि जो व्यवहार उसके पापा आपके साथ करते हैं.. वो बिल्कुल उचित नहीं है.. आप अपने लिए कभी बोलती तो सही.. सुनिधि सासु माँ से कहती है।
सुनिधि की बात सुन सासु माँ रोते हुए कहती हैं.. बहुत बड़ी गलती हुई है मुझसे..इसे कोई संस्कार नहीं दे सकी मैं।
अब जो हुआ सो हुआ.. लेकिन अब इस घर में इस तरह का कोई व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और आपके दिल के टूटे सारे किरचें को चुन बाहर का रास्ता दिखा कर आज से आपकी ये बेटी आपको जीवन के सारे सुख और अधिकार दिलवाएगी… तिरस्कार के दिन गए अब…सासु माँ की आँखों से बहते आँसुओं को पोछती हुई सुनिधि मुस्कुरा कर कहती है।
#तिरस्कार
आरती झा आद्या (स्वरचित व मौलिक)
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