Moral stories in hindi : जिन चिमनलालजी के ओहदे और रूतबे की धाक पूरी कॉलोनी में थी, तथा जिस धन और ऐश्वर्य के नशे में चूर होकर वे इन्सान को इन्सान नहीं समझते थे, वे ही आज किसी से नजर नहीं मिला पा रहै थे। बिल्कुल अकेले रह गए थे। चिमनलालजी फुड ऑफीसर थे। खूब पैसा कमाया बंगला, गाड़ी, नौकर, चाकर सबकुछ था उनके पास और साथ में थी घमण्ड की भावना, अपने आप को सर्वोपरि समझना। आस पड़ौस के किसी व्यक्ति से कोई सरोकार नहीं ।
वे ,उनकी पत्नी और उनके बच्चे और पार्टी पिकनिक मनाने के लिए बेईमानी से कमाया उनका पैसा, बस यही दुनियाँ थी उनकी, और इसी खोल में सिमटे हुए थे वे। इन्सानियत नाम की कोई चीज नहीं थी उनके पास। जबान पर लगाम नहीं थी, किसी को कुछ भी कह देते। अपनी इज्जत सभी को प्यारी होती है, आसपास के सभी लोगों ने उनसे बोलना बंद कर दिया।
चिमनलालजी खाद्य वस्तु में मिलावट के आरोप में पकड़े गए और उनकी नौकरी भी चली गई। सारी इज्जत मिट्टी में मिल गई। दोनों बेटे अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद विदेश में जाकर बस गए। पत्नी का देहांत हो गया। जब तक पद पर थे, नौकर चाकर थे। अब सिर्फ एक नौकर था, रामू जो उनके घर के कार्य करता। होटल से टिफिन आ जाता और …।
जिस घर में रौनक हुआ करती थी आज सन्नाटा पसरा था। कोई नहीं था जिससे वे अपने मन की बातें करते। उनके पड़ोस में एक बुजुर्ग व्यक्ति दीनदयाल जी रहते थे, हमेशा प्रसन्न चित्त। पूरी कॉलोनी के लोग उनके पास आकर उनका समाचार पूछते। चिमनलालजी घर की बालकनी में बैठे देखते रहते, उन्हें लगता कोई उनसे भी आकर बात करे।फिर सोचते कोई मेरे घर क्यों आएगा?
मैंने किसी के साथ ऐसा व्यवहार रखा ही नहीं, किसी के सुख- दुःख में शामिल नहीं हुआ, न किसी से ढंग से बात की वे सब लोगों के प्रति किए अपने व्यवहार को याद कर हमेशा शर्मिंदा रहते। घर के बाहर घूमने निकलते तो शर्मिन्दगी के कारण उनकी नजरें झुकी रहती।
जीवन ऐसे ही चल रहा था। एक दिन शाम के समय वे बगीचे में घूमकर घर वापस आ रहै थे। सड़क पर रोशनी नहीं थी, धुंधली रोशनी में उन्होंने देखा कि एक वृद्ध व्यक्ति का पैर किसी चीज से टकराया और वो गिर गए। उनके कंधे पर एक थैले में किराने का सामान भरा था ,वह बिखर गया।
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चिमनलालजी ने उन्हें सहारा देकर उठाया, उनका सामान थैले में भरकर उस थैले को उठाया और उन्हें सहारा देकर उनके घर छोड़ने गए। वे वृद्ध व्यक्ति उनकी कॉलोनी के पीछे बसी गरीबों की बस्ती में रहते थे।
उनके घर के लोग चिन्ता कर रहै थे कि बाबा अभी तक घर क्यों नहीं आए। बाबा ने घर जाकर सबको बताया कि आज मैं सड़क पर गिर गया था। ये सज्जन पुरुष मुझे सहारा देकर घर लाए हैं।
सबने उन्हें धन्यवाद दिया।चिमनलालजी के मन को बहुत अच्छा लगा। एक बार नजर उठाकर उन्होंने सब लोगों की ओर देखा और कहा आप बाबा का ध्यान रखना, और वे घर आ गए।
आज उनका मन शांत था, उन्हें नींद भी अच्छी तरह आई। वे सोच रहै थे कि किसी की मदद करने पर कितना सुकून मिलता है यह मुझे आज अनुभव हो रहा है। उन्होंने मन में निर्णय कर लिया था कि अब वे जरूरत मंद लोगों की मदद करेंगे। इस विचार से उनकी जीवन धारा में बदलाव आ गया था।
एक दिन अनायास उनके कदम गरीब बस्ती की ओर बढ़ गए, वहाँ उन्होने देखा कि छोटे बच्चे अपने माता पिता के साथ उनके कामों में मदद कर रहे हैं। उन्होंने देखा वहाँ कोई बच्चा स्कूल जाते हुए नहीं दिख रहा था। उन्होंने लोगों से पूछा तो वे बोले उनके पास इतना पैसा नहीं है कि वे बच्चों को स्कूल में पढ़ा सके। ये हमारे साथ काम करते हैं और हमारा गुजर बसर होता है। चिमनलालजी को वे बाबा नजर आए जिन्हें उस रात उन्होंने घर पर छोड़ा था।
उन बाबा ने हाथ जोड़कर उन्हें नमस्कार किया । वे बाबा के घर गए। बाबा के दो पौते थे जो स्कूल जाने जैसे थे। चिमनलालजी ने उन्हें पढ़ाई का महत्व समझाया और कहा कि वे बच्चों को स्कूल पढ़ने भेजे सरकारी स्कूल में फीस बहुत कम लगती है, बच्चों को भोजन भी दिया जाता है। अगर बच्चे पढ़ेगे लिखेंगे तो अच्छी नौकरी लगेगी। अगर उन्हें पढ़ने में कोई परेशानी हो तो तुम उन्हें मेरे घर भेज देना मैं उन्हें पढा़ऊॅंगा। तुम आसपास के और बच्चों को भी इस बात के लिए कहना।
मुझसे जितनी हो सकेगी तुम सबकी मदद करूँगा। बाबा ने अपने पोतों को स्कूल में भर्ती कराया। उनके देखादेखी और लोगों ने भी बच्चों को स्कूल में भर्ती कराया। चिमनलालजी ने स्कूल में जाकर फंड से कुछ बच्चों को किताबे दिलवाई। कुछ की किताबें स्वयं ने लाकर दी कुल तेरह बच्चे स्कूल जाने के लिए तैयार हुए।
चिमनलालजी ने अपने पैसो से उनकी यूनिफार्म सिलवा दी। बच्चे स्कूल जाने लगे चिमनलालजी के घर पर आकर पढ़ाई करते थे, उनके चेहरे पर चमक आ गई थी।गरीब बस्ती के लोगों के मन में जाग्रति आ गई थी। अब वे अपने बच्चों को स्कूल में पढ़ने के लिए भेजने लगे थे। चिमनलालजी उनकी हर सम्भव मदद करते और इस कार्य में उन्हें असीम शांति की प्राप्ति होती थी।
उनके मन में जो शर्मिन्दगी का भाव था वह कम होने लगा था। अब उनकी नजरें झुकी हुई नहीं रहती थी। वे नजर उठाकर देखते मगर उसमें घमण्ड का भाव नहीं रहता। उनके व्यवहार में परिवर्तन आ गया था। वे अपने आसपास रहने वाले लोगों के सुख -दुःख में उनके साथ रहते। अपनी सकारात्मक सोच से उन्होंने अपने जीवन को खुशहाल बना लिया था।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित