जीवनदायिनी बहना  – डॉ उर्मिला शर्मा

हमेशा की तरह अनु ने बच्चों को स्कूल और पति के दुकान पर जाने के बाद अनुराग भैया को फोन लगा उनका हालचाल पूछा। फिर भाभी को फोन लगाई। भैया सम्बन्धी खबर और हिदायतें भाभी को दिया। भैया को लंच तो दिया न, लो सोडियम नमक डालना तो न भूलीं आदि। रोज ही वो इन सारी बातों को दुहराती। भाभी भी बोल उठतीं-” क्या बबुनी! आप भी न एक ही बात रोज पूछती हैं। मुझे पता आपको भैया की बहुत फिक्र है। आपके भैया मेरे भी कुछ लगते हैं।” और भाभी हँस पड़तीं। 

अनुराग लगभग तीन बजे के करीब अपनी किताब की दुकान पर जब कोई ग्राहक नही था तब लंच करने बैठा। आज कुछ ज्यादा ही देर हो गयी थी। 

“अंकल निबंध की किताब है क्या?” आवाज़ सुनकर सिर उठाकर देखा। टिंकू था पड़ोस के सिन्हा जी का लड़का जो छठी कक्षा में पढ़ता था। आगे टिंकू ने कहा -” टीचर ने रक्षाबंधन पर लेख लिखने को कहा है। अगले हप्ते रक्षा बंधन भी तो है न।”

फिर अनुराग ने हायर सेकेंडरी स्टैंडर्ड की एक निबन्ध की पुस्तक निकाल कर दे दिया। अनुराग लंच करता रहा पर विचारों को मन में घुमड़ने से रोक न सका। वह सोच रहा था कि उसे रक्षाबन्धन पर कोई लेख लिखने कहे तो वह केवल ‘अनु’ शब्द लिख दे। अनु उसकी छोटी बहन जिसके चंचल स्वभाव को देख वह सोचता था कि वह कब बड़ी होगी। उसकी शादी के बाद मां जब कोई अच्छी चीज उसके लिए रख देतीं या भिजवाती तब वह मन ही मन चिढ़ता था। आज उसे अपनी इस बात पर शर्मिंदगी महसूस होती है। लेकिन उसे क्या पता था कि वही नन्ही अनु वक़्त आने पर कितना बड़ा काम कर डालेगी। और उसका कद कितना बड़ा हो जाएगा। आज जो वह जीवित है वह अनु की बदौलत। लगभग सात वर्ष पूर्व जब वह पैर में सूजन और बार-बार यूरिन की शिकायत के कारण बी. एच्. यू बनारस जाकर दिखलाया तो डॉ ने किडनी की समस्या बताई। उसके बाद वह वेल्लोर भी दिखा आया।


वहाँ भी डॉ ने वही बात कही। सुनकर घर में सभी पर मुर्दनी छा गई। हर तीन माह पर वह वेलोर जाकर चेकअप कराता रहा। स्वास्थ्य में कुछ खास सुधार नहीं आ रहा था। अब चेहरे पर भी सूजन आने लगा था। पूरा घर चिंतित हो उठा। मां- पिताजी, पत्नी, दोनों बच्चे कैसे चलेगा ये घर उसके बगैर। बीमारी में कितने पैसे लग गए थे। उस बार डॉ ने कह  दिया था कि उसके लिये किडनी प्रत्यारोपण ही एकमात्र उपाय बचता है। किडनी और ऑपरेशन के खर्च सुनकर अनुराग के पांव तले जमीन खिसक गई। उसने तो सोच ही लिया था कि ये सब असम्भव है। उसे ईश्वर से शिकायत थी कि जो सक्षम नही है उसे खर्चीली बीमारी क्यों देते है। एक अनु ही है जिससे कोई उम्मीद की जा सकती है।

बाकी भैया और दीदी से तो कोई अपेक्षा नहीं। अनु बेचारी भी कितना करेगी। वह भी तो पति की वजह से कितना तनाव में रहती है। वह उसके लिए कितना जप- तप , हवन, ज्योतिष, पंडित, पंडित, ओझा-भक्तिन- कहां- कहां नहीं घूमती फिरी है उसके लिए। जो उसने आजतक कभी नहीं किया था। ऑपरेशन के समय उसने अपनी सालों की संजोये कंगन की इच्छा के लिए जमा किये दो लाख रुपये भी दे दिये थे। जब अनु ने ऑपरेशन की बात सुनी तो कितना रोई थी। उसने अनुराग से कहा था-” भैया मैं आपको कुछ नहीं होने दूंगी। बस इतना जान लीजिए।” 

अनुराग अपलक उसे देखता रहा और मन में सोचता रहा कि मेरी पगली बहन तू भी इतने पैसों का इंतजाम कहां से कर पायेगी। उसके आंखों से बेबसी के आँसू लुढ़क पड़े जिसे अनु ने देख लिया। तड़पकर वह भैया के गले लग रो पड़ी। तब पत्नी पूनम ने आकर चुप कराया। 

भाई से मिलकर वापस जाते समय अनु मायके में सबको यह कहकर गयी कि आपलोग फिक्र न करें मैं कुछ न कुछ सोचती हूँ। कहकर मुड़ते हुए उसने आंखों से गिरते आंसू पोछ डाले, जो अनुराग से छुप न सका। और मुस्कुराते हुए हाथ हिलाकर विदा ली। फिर मुड़कर देखा बालकनी में भैया का वह निराश चेहरा हृदय को तड़पा गया। छठे दिन अनु ने फ़ोन पर बताया कि वह अपना एक किडनी देगी। बाबूजी ने तथा अनुराग ने भी कहा कि वह भावुकता में पागलपन न करे। उसके छोटे बच्चे हैं पति भी आपत्ति करेंगें। लेकिन अनु ने कहा दिया कि यह उसका अंतिम निर्णय है । उसने सोच समझ लिया है । पति को भी मना लिया है। यह काम उसने कैसे किया, अपने सनकी पति को कैसे मनाया । अनुराग समझ न पाया। 

नवरात्रि शुरू होने वाला था। पहले ही दिन उसके ऑपरेशन के डेट था। निर्धारित तिथि पर सब वेलोर पहुँचें। ऑपरेशन सम्बन्धी जितने भी जांच और औपचारिकतायें थी,  वह पूरी हुईं। ऑपरेशन सफल रहा। लगभग एक महीने बाद दीपावली के एक दिन पहले वो लोग वापस लौटे। उस बार उसके घर दीवाली की अलग रौनक थी। अगले दिन अनु ने भाई- बहन के प्रेम पर आधारित पर्व ‘गोधन- पूजा’ की। ‘रेंगनी’ के कांटे से अपनों को शापित किया। फिर शापमुक्त भी किया। भाभी ने उस दिन विशेष रूप से बनने वाला ‘पीठा’ बनाया। दोनो भाई बहन ने साथ मिल खाया था। 


राखी के एक दिन पहले ही अनु आयी। सुबह नहा धोकर भैया को पीढ़ा पर बिठा तिलक लगाकर राखी बांधी। तभी अनुराग ने पॉकेट से एक राखी निकाला और जबतक अनु कुछ समझ पाती, उसके कलाई पर बांध दिया। फिर अनुराग ने उसके माथे पर चूमते हुए कहा- ” वास्तव में मुझे तुझे राखी बांधनी चाहिये। मेरी छोटी ! तुझे मैं क्या दूं। तूने तो रक्षा सूत्र भी बांधी और मेरी रक्षा भी की। मेरे लिए छोड़ा कहां कुछ। ईश्वर करे हर भाई को तेरे जैसी बहन मिले।” तभी भाभी हंसते हुए आयीं और कहा-“बस- बस आप भाई- बहन का भरत- मिलाप हो गया हो तो चलें नाश्ता कर लें।” 

दोनों नास्ते के लिए पहुँचे, तो देखा भाभी ने आंगन में चटाई बिछा रखी थी। बच्चे बेसब्री से अपनी प्यारी बुआ और मामा का इंतजार कर रहे थें। 

#रक्षा

डॉ उर्मिला शर्मा

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