जीते जी बंटवारा नहीं करूँगा – मीनाक्षी सिंह: Moral stories in hindi

भईया चलिये बैठकर बात कर ली जायें पापा से…. अब ये रोज रोज पापा का धमकी देना हर बात पर कि जायदाद से बेदखल कर दूँगा….. मानसिक रुप से बहुत परेशान कर रहा है मुझे…… उनकी इतनी कड़वी बातें और उनका हर काम में टांग अड़ाना क्यूँ  झेल रहे है हम सिर्फ ऐसलिये ही ना कि बाबा की जमीन,,जायदाद और पापा की भी हमें मिल जायें ….. 

रोहन अपने बड़े भाई संतोष के कमरें में गुस्से में आकर मन की भड़ास निकाल रहा था …… 

छोटे ,,,,,पापा जबान के ज़रूर कड़वे है पर दिल से बहुत भावुक है …. तू फिकर मत कर … वो ऐसा कुछ नहीं करेंगे…. आखिर हम उनके बच्चे है … अपनी जायदाद हमें नहीं देंगे तो किसे देंगे……. 

संतोष रोहन को समझाते हुए बोला…. 

भईया….. बड़ी गलती कर रहे है आप …. अगर ऐसा न हुआ तो हमारे हाथ में कटोरा आ जायेगा…… पापा सरकारी नौकरी में रहे….. उन्हे बाबा का भी सब कुछ मिला…… इस ज़माने में इतनी मेहनत के बावजूद हम सरकारी नौकरी नहीं ले पायें…… हम पर तो कुछ भी  नहीं भईया… बाबा का बस मकान बचा है वो टूटा, फूटा गांव का ज़िसका मोल मिट्टी के भाव है …… मुझे तो टेंशन के मारे नींद ही नहीं आ रही….. उमा भी प्रेग्नेन्ट है ….

कैसे खर्चा चलाऊँगा घर का ….. मुझे और आपको बाहर किराये पर रहते हुए दस साल होने को आये … कभी पापा ने अपने मन से पूछा कि किसी चीज की दिक्कत तो नहीं बच्चों……खुद आराम से मस्त रहते है …. पेंशन मिल रही है अच्छी खासी उन्हे …. यहां हम कैसे अपना खर्चा चला रहे है, हम ही जानते है …. हम नहीं बोलते तो इसका मतलब ये नहीं कि हम पर बहुत पैसे है ….. 

रोहन बोला…. 

छोटे टेंशन मत ले… अबकि गर्मियों की छुट्टी में बात करते है पापा से बैठकर…..

संतोष बोला…..

हां ये ठीक रहेगा भईया …. 

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अगले महीने 10 दिन की गर्मी की छुट्टी लेकर दोनों भाई परिवार सहित गांव आ गये….. 

बाबा अम्मा अपने बच्चों, पोता पोती को देख फूले नहीं समाये …… 

दो चार दिन ख़ुशी ख़ुशी गुजरे….. हर दिन रोहन संतोष से पापा से बात करने को कहता …. 

आज मौका पाकर बैठक में पलंग पर बैठे पिता नारायण जी से संतोष बोला…… 

पापा…. वो आपसे कुछ बात करनी थी …… 

हां बोल लला….. क्या बोले है …. मैं सुन रहा….. 

टीवी की ओर देख नारायण जी बोले…… 

नारायण जी टीवी की वजह से संतोष की बात पर ध्यान नहीं दे रहे थे ….. 

संतोष ने झल्लाकर टीवी बंद कर दिया…. 

पापा… मैं आपसे कुछ कह रहा हूँ,, आपको क्या सुनायी नहीं पड़ रहा…… 

सुन तो रहा हूँ बोल…. 

वैसे तुम दोनों पहली बार जीवन में दस दिन बिताने आयेँ हो हमाये संग….. ज़रूर बंटवारे की वजह से आयेँ हो….?? 

बोलो लला?? 

नारायण जी ने गोली की तरह प्रश्न किया …… 

दोनों भाई एक  दूसरे का चेहरा देख स्तब्ध थे…… 

फिर संतोष नारायण जी की तरफ देख बोला….. 

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हां पापा… यही समझ लीजिये …. हम लोग अब बच्चे तो रहे नहीं …. हमारा भी परिवार है …. भगवान ना करे आपको कुछ हो गया तो हम दोनों झगड़ा ही करते रह ज़ायेंगे….. एक बेटा होता आपका तो कोई बात नहीं… दो है तो आपको बांट देना चाहिए….. 

पास में खड़ी बड़ी बहू रेवती बोली…. 

हां पापा जी… वो जेवर भी बांट दीजिये …. कितने ब्याह में शहर में पहन ही नहीं पाते हम…. बड़ा खराब लगता है जब कोई टोक देता है तो अपना सा मुंह लेकर रह ज़ाते है ….. 

तो का तुझे शहर वाले खाने को देते है जो उनकी बात का बुरा माने है …… बोले है सब टोके है …. 

नारायण जी बोले….. 

बेटों का समर्थन करते हुए माँ विमला जी बोली…. 

जी कर दीजिये ना बंटवारा …… वैसे भी ऊमर हो चली मेरी और आपकी….. कब बुलावा आ जायें जाने का,,पता नहीं…. वैसे भी हमारे बच्चे समझदार है … दो पैसों को चार में ही बदलेंगे …. खर्चीले ना है …… 

तू चुप कर …. जीते जी तो मैं किसी को कुछ देने से रहा … मजाल है कभी हम पांच  भाइयों की हिम्मत हुई हो पिताजी के आगे चूँ करने की भी …. उनकी आवाज पर पैंट गीली हो जाती थी हम सबकी …. उन्होने बंटवारा ना किया तो क्या हम भाईयों में कोई झगड़ा हुआ….. का रोटी ना मिली तुम सबको खाने को…. 

नारायण जी बोले…… 

पापा आपके ज़माने और आज के ज़माने में फर्क है …. महंगाई देख रहे है आप….. आसमान छू रही है …. आप सरकारी नौकरी में रहे और हम प्राईवेट में है , फर्क नहीं है …… हर चीज मोल की है हमारी…. आप तो गांव से भर भर अनाज ले ज़ाते थे… जो भी  गांव से घर आता कुछ ना कुछ तो ले ही आता….. हम सरकारी स्कूल में पढ़े और हमारे बच्चे महंगी फीस के स्कूल में….. 

रोहन रोष में बोला… 

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तो डाल दे बच्चों को सरकारी स्कूल में… क्या सरकारी स्कूल में पढ़ाई ना होवे है ….. मेरी सरकारी नौकरी मेरी काबिलियत से लगी… तुम भी लगा लेते… पढ़ाई में तो कोई कमी ना छोड़ी तेरे बाप ने…… एक बात कान खोलकर सुन लो… जीते जी कुछ नहीं दे रहा… आजकल जमाना बहुत खराब है …… 

नारायण जी मूँछों पर तांव देते हुए बोले….. 

तो ठीक है पापा आप भी हमारी बात कान खोलकर सुन लीजिये …. आप जैसे लोगों ने ही ज़माने को खराब किया है …… अगर नहीं करना बंटवारा आपको तो मरने के बाद भी मत देकर जाईये कुछ…. इतनी तो ऊमर हो गयी है हमारी…… अब बुढ़ापे में क्या जायदाद का अचार डालेंगे जब सब घर खंडहर में तब्दील हो ज़ायेंगे…… आप अब हमें अपनी बिमारी अजारी में फ़ोन ना करना…. ना हम करेंगे….. रहिये अकेले आराम से…… छोटे अगली बार से त्योहारों पर भी आने की ज़रूरत नहीं…. कल ही चलते है …. एक एक दिन की रोजी रोटी कैसे कमाते है , हम ही जानते है …… 

जाओ…. तुम सब…. सब स्वार्थी हो… जायदाद दो तो हालचाल लेंगे, देखभाल करेंगे…. और ना दी तो कौन माँ, कौन बाप….. 

चले जाओ… ना ज़रूरत किसी की….. 

नारायण जी हांफते हुए बोले….. 

ठीक है हम कल ही चले ज़ायेंगे …. 

सभी लोग अपने अपने कमरे में चले गये…. 

जी आपका ये फैसला मुझे बिलकुल ठीक ना लगा… इन्ही के लिए तो कमाया तुमने पूरे जीवन रोहन के पापा…. अब उन्ही को देने में आनाकानी …… 

विमला जी नारायण जी से बोली…… 

इतनी आसानी से दे दूँ…… पैसा कैसे कमता है , पता तो चले इन्हे…. तू अपनी जबान ज्यादा मत चला….. 

नारायण जी इतना बोल खाट पर लेट गये…. 

अगले दिन सुबह रोहन और संतोष परिवार सहित  जाने के लिए तैयार थे……. 

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पोते राजू को देख नारायण जी ने उसे गोद में उठा लिया….. 

तेरा बाप भले ही ना आयेँ लला… तू तो आ जाया करना….. तेरी बड़ी सुध आयेगी….. 

नारायण जी बोले….. 

सभी लोग नारायण जी और विमला जी के पैर छू मन में कड़वाहट लिए शहर आ गये…… 

देखा भईया मैं ना कहता था कि पापा नहीं करेंगे बंटवारा …. आपको ही उन पर ज्यादा भरोसा था ….. 

रोहन बोला…. 

सही कहा छोटे…. मुझे नहीं पता था पापा को अपने पैसों का इतना घमंड है …. अपना हाथ जगन्नाथ …. मेहनत कर सब हो जायेगा…. 

संतोष बोला…. 

इधर गांव में दो साल तक बच्चे नहीं आयेँ… ना ही खबर ली…. नारायण जी को अकेलापन खाने को दौड़ता था …. तीज त्योहारों पर मोहल्ले वाले भी मजाक बना लेते कि इनके बच्चे तो बूढ़े माँ बाप की खबर लेने नहीं आते…. लोगों के पूछने पर नारायण जी विमला जी झूठ बोल देते कि फ़ोन आया था बच्चों का….. अब तो एक साल से त्योहारों पर गली में निकलना भी बंद कर दिया था नारायण जी ने…… 

उनकी तबियत दिन पर दिन बिगड़ रही थी … बिमारी से खाट पकड़ ली थी नारायण जी ने…… 

सब देखने आते तो कहते लगता अब नारायण के बच्चे अंतिम संस्कार में भी ना आयेंगे इसके….. ऐसे ही लावारिसों की तरह चला जायेगा ये…. 

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नारायण जी पथरायी आँखों से बस दरवाजे की ओर निहारते रहते कि शायद उनके रोहन और संतोष उनके दुनिया से विदा होने से पहले आ जायें …. 

संतोष और रोहन को गांव के किसी आदमी से नारायण जी के बीमार होने की  खबर मिली… 

दोनों परिवार सहित अगली ट्रेन से घबराते हुए नारायण जी के पास आयेँ …. 

संतोष बोला…. पापा माफ कर दो …. आप तो बहुत बीमार हो गये…. बताया क्यूँ नहीं हमें…… भले ही नाराज थे हम… एक फ़ोन तो करते ना दौड़े चले आते आपके बेटे को कहते….. आखिर हम आपके अपने है …. 

संतोष बोला… 

समझ गया रे लला…. मुसीबत में अपने ही पास होते है … बाकी तो नमक मिरच लगाने का काम करते है …… मुझे  माफ कर दो बच्चों…. 

इतना बोलते हुए नारायण जी की सांस उखड़ने लगी….. 

चलो पापा… आपको एडमिट करवाता हूँ… पहले जैसा दहाड़ता बाप चाहिए हमें….. 

रोहन ने नारायण जी को गोद में उठा गाड़ी में बैठाया….. 

उन्हे एडमिट कराया …… पूरे तन मन धन से बच्चों ने सेवा की…. और उन्हे अपने पास शहर में ही रखा….. 

जी कहती थी ना बच्चे ही काम आयेंगे…. देख लो दिन रात एक  कर दी तुमाये लिए इनने ….

विमला जी बोली… 

सही बोली विमला तू … सबको बुला… फैसला सुनाता हूँ… अब क्या बच्चों के बुढ़ापे में उन्हे अपना जायदाद रूपी आशीर्वाद दूँगा …. 

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विमला जी मुस्कुरा गयी….. 

पाठकों…. बताईयेगा ज़रूर इस कहानी में गलत कौन था बच्चे य़ा नारायण जी…. 

जय श्री राम 

मौलिक अप्रकाशित

मीनाक्षी सिंह की कलम से

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