राणा कीरत सिंह एक छोटी सी रियासत के राजा थे,,वह बहुत धार्मिक प्रवृत्ति के इन्सान थे,,
उनके राज्य में यज्ञ,पूजा,हवन होते ही रहते,,उन्होंने ब ड़े-बड़े मंदिर बनवाये,उन मंदिरों के पुजारियों की गुजर बसर के लिये उन्हें कृषि योग्य भूमि भी दी गई,, वह प्रजावत्सल और न्यायप्रिय राजा थे,,
उस समय देश में बहुत सारे छोटे-बड़े राज्य थे,,जिनमें अक्सर युद्घ होते रहते थे,,ये युद्घ कभी साम्राज्यविस्तार के लिए होते थे,तो कभी अपनी रक्षा के लिए,,कभी-कभी किसी को सबक सिखाने या बदला लेने के लिए भी होते थे,,,
राजा की लोकप्रियता से उनके कुछ मन्त्री उनसे जलते थे,,
इस संसार में किसी भी व्यक्ति के कुछ शुभचिंतक होते हैं तो कुछ आस्तीन के सांप भी होते हैं,,,ऐसा ही एक व्यक्ति उनका बहुत निकट सम्बंधी था समरसिंह ,,
वह बहुत अपनत्व का दिखावा करता था पर अंदर ही अंदर उनकी जड़े खोदने में जुटा हुआ था,,राजा को उस पर बहुत विश्वास था,,,
एक बार राजा ने पड़ोसी राजा से युद्ध के लिए प्रस्थान करने से पहले रानी से कहा,,अगर हम युद्ध में वीरगति को प्राप्त होते हैं तो हमारा दूत काला झन्डा ले कर आयेगा और अगर विजयी होंगे तो वह केसरिया ध्वज ले कर आयेगा,,,फिर राजा रानी ने कुलदेवी की पूजा की,,एक साथ हल्दी के थापे लगाये,,और रानी ने तिलक लगाकर राजा को विदाई दी,,
साथ ही क्षत्राणी ने मन ही मन संकल्प लिया कि जियेंगे तो साथ और मरेंगे तो साथ ,,इस विचार से ही उस के चेहरे पर मुस्कान आ गयी,,
युद्ध कई दिन तक चला और राजा ने अपने पराक्रम और सेना के सहयोग से विजय हासिल की,,अब उसको ऐसा लग रहा था कि कब वह हवा के घोड़े पर सवार हो कर जल्दी से जल्दी अपनी रानी को यह समाचार बताये,,,
परंतु राजा के पहुंचने से पहले ही समर सिंह ने सेना की एक छोटी टुकड़ी को काला झण्डा लेकर भेज दिया,,
जब रानी ने किले के बुर्ज से उस टुकड़ी और झंडे को देखा,तो उसने सैनिकों को किले के फाटक बंद करने का आदेश दिया,,,स्नानकुंड में अग्नि प्रज्जवलित करवाई और ईश्वर का नाम लेकर अग्निस्नान कर लिया,,,
अपनी अस्मिता की रक्षा के लिये,,क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि कोई परपुरुष उसे स्पर्श भी करे,,,
इधर राजा बहुत व्यग्र था रानी को यह शुभ समाचार देने के लिए,,लेकिन महल में चुप्पी थी,,रानी स्वागत के लिए हमेशा की तरह दौड़ी नहीं आई,,उसका मन आशंकित हो उठा,,पूछने पर कोई जवाब नहीं दे रहा था,,
राजा जब रनिवास में पहुँचा तो धू-धू कर जलती आग को देख कर सब समझ गया और शोक संतप्त हो कर धम्म से गिर पड़ा,,,उस की जीत की खुशी का दिन ही,,,उसके जीवन की सबसे बड़ी हार का साक्षी बन गया था ,,,
राजा ने छानबीन कराई तो पता चला कि उनके सबसे बड़े विश्वासपात्र ने ही धोखा किया था,,,
राजा ने उसे मृत्युदंड की सजा सुनाई,,,
लेकिन जो स्थान जीवन में रिक्त हो गया था उसकी कमी की भरपाई तो कोई नहीं कर सकता था।
कमलेश राणा