” तुम्हें कुछ समझ में नहीं आता है क्या? कितनी देर से चिल्ला रहा हूं मैं, कहां ध्यान है? कितनी लापरवाह हो गई हो तुम, किसी चीज की कोई जिम्मेदारी तुम्हारी भी है? इतना भी नहीं बोल सकी? किस काम की हो आखिर??
तेजप्रताप जी बहुत तेज तेज चिल्ला रहे थे।
इतने गुस्से में ,माथे पर पसीना छलक आया, जोर जोर से सांस चलने लगी,और हांफते हुए कुर्सी पर धम्म से बैठ गए संयुक्ता भाग कर,रसोई से एक गिलास पानी ले आई…. उसे काम बिगड़ने से ज्यादा अपने पति के स्वास्थ्य की चिंता हो रही थी।
सच ही तो है
कह के गए थे कि ……. और मुझसे तो ऐन वक्त पर कुछ बोला ही नहीं जाता।सब जानते समझते हुए कि सामने वाला ग़लत है,… चुप ही रह जाती हूं.. कभी बड़े के सम्मान के लिए, तो कभी यह सोच कर कि बच्चे हैं, इन्हें क्या बोलूं? कितने कम समय के लिए घर आते हैं। मुझसे कुछ ग़लत हो जाता है तो गुस्सा करते हैं, कभी कभी ( बुरी तरह) चिल्ला कर भी बात करते हैं।
वो मेरे ऊपर गुस्सा करते हैं
” क्या है मम्मी, आपको कुछ भी याद नहीं रहता? एक काम भी अकेले नहीं कर सकती, कैसी पढ़ी लिखी औरत हैं आप…..”
और संयुक्ता बस अबूझ सी उनके चेहरे की ओर देखती रहती है, बेहद दुलार और स्नेह से
दिन भर ( चिल्लाने से) यूं घर गुंजायमान तो रहता है,…. फिर चले जाएंगे अपनी अपनी मंजिल की ओर,… मैं फिर घर में अकेली इंतजार करुंगी, सबकी छुट्टियों, त्यौहार पर घर आने का, उंगलियों पर दिन गिनूंगी… कब आएंगे,कितने दिन रुकेंगे? मैं , सबको क्या क्या बना कर खिलाऊंगी
शायद बच्चों को चने के दाल की मीठी पूड़ी बहुत पसंद आएगी, कहां खा पाते होंगे घर से बाहर रह कर। और रात में नींद से जाग कर ( भूल जाने पर) उठ कर किचन में जाकर चने की दाल भिगोई,सुबह सिल पर पीस कर,पीठी तैयार की,मेवा मिष्ठान डाल कर भर भर कर , परांठे सेंके… बहुत संभाल कर भरना और बेलना पड़ता है.. तब जाकर..बनते हैं
बच्चों को आवाज दी नाश्ते के लिए
मेज पर आते ही बिटिया तुनक कर उठ गई” क्या मम्मी, सुबह सुबह इतना आइली नाश्ता आप तो बस रहने ही दो, मैं अपने लिए ओट्स बना लूंगी… आप भी ना, कुछ समझती नहीं है..’
तेजप्रताप जी की आवाज़ आई,” बेटा मेरे लिए भी ओट्स ही बना लेना… तुम्हारी मां भी ना..”
संयुक्ता अपराधी सी किचन में, डिब्बे में रखे परांठे गिन रही है, मैंने कितने सारे सेंक लिए,कोई भी खाने को तैयार नहीं है, मैं अकेली खाऊंगी तो कितने खा पाऊंगी,और मेरा अकेले खाने का मन होगा क्या? सिर्फ अपने लिए थोड़ी ना ( मर-मर कर) बनाए हैं।
तभी उसे याद आया,बगल वाली विधि उसके हाथ के परांठे कितने चाव से खाती है,तो उसे ही दे देती हूं।
संयुक्ता ने बीच की आंगन की दीवार से स्टूल पर चढ़ कर विधि को बताया तो… विधि ने कहा” अरे आप क्यूं परेशान हुई, आजकल तो बच्चे भी आए हुए हैं आपके ,आप तो उनके लिए ही पकवान बनाने में जुटी हैं तो संयुक्ता ने झट बात बना दिया
अरे सबने जी भर कर खा लिया, तो मैंने सोचा तुम्हें भी दे दूं”, जबकि, स्वयं उसने भी एक कौर तोड़ कर नहीं चखा।
विधि हाथों में परांठों का डिब्बा लेकर निकल ही रही थी कि,तेजप्रताप जी की आवाज़ सुन कर ठिठक कर रुक गई।
” किस काम की हो तुम आखिर? सुबह से सब भूखे हैं पता नहीं क्या कर रही हों.. जीवन के हर क्षेत्र में बस हार ही हासिल हुई है तुम्हें….. क्या आता है आखिर तुम्हें??”
विधि उल्टे पांव, घर में पुनः दाखिल हुई।
” माफ़ कीजियेगा मुझे आपके घर के व्यक्तिगत मामले में बोलने का अधिकार तो नहीं है, मगर आज मैं कुछ कह कर ही जाउंगी, संयुक्ता जी भी पढ़ी लिखी, संस्कारित महिला थी आपसे ब्याहने से पहले, स्कूल, कालेज,हर जगह अपनी सटीक भाषण शैली के लिए ढेरों पुरस्कार जीतने वाली, सोचने वाली बात है कि
आपकी हर ग़लत बात पर चुप रहना कैसे सीख लिया, अपने सास ससुर के जीवित रहने पर भी सबके सम्मान के लिए चुप रही, फिर आपके.. अब बच्चों के सामने भी… जानते भी हैं वो ऐसा क्यों करती हैं, घर की सुख शांति के लिए, बच्चों के चिल्लाने पर वैसा ही जवाब दे सकती हैं, मगर एक मां का हृदय यह सोच कर चुप रह जाता है
कि, मेरे बच्चे कुछ दिनों के लिए ही तो घर आएं हैं,आप सबके बेहद प्यार करती हैं,जो औरत अकेले में आप सब का इंतजार करते हुए सपने संजोती है कि सबके आने पर क्या क्या करेगी( बना कर खिलाऊंगी) वो आप सबके चिल्लाने पर कैसे और किसे जवाब दे? जिन्हें वो इतना प्यार करती है….. और आप पूछ रहे हैं कि
उसने जिंदगी में हासिल क्या किया? उसने अपने परिवार की खुशी,सुख शान्ति के लिए सब सहा, अपने परिवार को जोड़ कर रखना ही उसकी सबसे बड़ी जीत है…. समझ सकें तो समझिएगा उनके अनकहे संवादों को,माफ कीजिएगा आप सबके साथ जैसे निभाया है कोई और होती तो…..
उनके हाथ के बने जिस खाने का आप लोग रोज अपमान करते हैं ना, उसे मैं किसी देवी के प्रसाद की तरह ले जा रही हूं..
विधि तीर की तरह निकल चुकी थी
मगर सबको एक अनुत्तरित प्रश्न का उत्तर सोचने पर विवश कर गई थी।
पूर्णिमा सोनी
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#अशांति, कहानी प्रतियोगिता, शीर्षक – जीत
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