पुराने जमाने में अक्सर ऐसा होता था कि परिवार में बच्चों की संख्या अधिक होती थी, जैसे की 5 -6 भाई बहन या फिर 7- 8 भाई बहन आपस में होते थे। और कई बार ऐसा भी होता था कि सबसे बड़े भाई या बहन के विवाह में सबसे छोटा भाई या बहन गोद वाली उम्र का हो क्योंकि शादी अक्सर छोटी उम्र में कर दीजाती थी।
ऐसे ही एक बड़े परिवार में विवाह तय हुआ था अंजलि का। अंजलि का विवाह परिवार के बीच वाले बेटे अजय से तय हुआ था। अजय से बड़ी चार शादीशुदा बहनें, एक बड़ा भाई कन्हैया और एक छोटा भाई विजय था।
साथ ही रिश्ता तय हुआ था कन्हैया की बेटी विनीता का विनोद से । जी हां, बड़े और अजय के बीच में इतना फर्क था उम्र का।
चाचा और भतीजी की शादी एक दिन आगे-पीछे तय हुई थी। पहले विनीता को विदा करने की तैयारी थी। हां यह सच है कि अजय थोड़ी सी बड़ी एज का हो गया था क्योंकि उसे कोई लड़की पसंद ही नहीं आ रही थी। लगभग 30-32 साल का था और उसकी भतीजी विनीता अभी 22 साल की थी।
अंजलि,अजय से शादी करके ससुराल आ गई। उसकी सास जमुना देवी काफी वृद्ध थीं। अपना नहाना धोना और खाना-पीना आराम से कर लेटी थीं लेकिन बाकी घर का कोई काम उनसे होता ना था।
विनीता का विवाह भी राजीखुशी हो गया था। बड़े भाई कन्हैया की पत्नी दमयंती यानी कि अंजलि की जेठानी एक घमंडी और कंजूस औरत थी। उसने आते ही दो दिन बाद अंजलि से सारे काम करवाने शुरू कर दिए। अंजलि ने कभी भी किसी काम के लिए मुंह नहीं बनाया और ना ही कभी मना किया।
शादी के दो-तीन दिन बाद पड़ोस की औरतें अंजलि की मुंह दिखाई के लिए अचानक आईं। उस समय अंजलि तैयार नहीं थी और झाड़ू पोछा कर रही थी। सारी औरतें यह देखकर बिना मुंह दिखाई के वापस चली गई। अंजलि की सास को यह बात बहुत बुरी लगी कि नहीं बहू से झाड़ू पोछा और बर्तन करवाया जा रहा है उन्होंने अपनी बड़ी बहू दमयंती से कहा-“किसी काम वाली बाई को लगा लो।”
दमयंती-“थोड़े दिनों में हम जब विदेश जाएंगे घूमने, तब लगा लेना, अभी मेरा हाथ टाइट है और वैसे भी शादी से पहले विनीता सफाई करती थी तो यह नहीं कर सकती क्या?”
तीन दिन में एक बार हाथ से कपड़े धोए जाते थे। उन्हें छत पर सूखाने के लिए तीन बार गीले कपड़ों से भारी बाल्टियां लेकर अंजलि को सीढ़ी चढ़ना पड़ता था। एक बार उसने अपने देवर विजय से कहा-“भैया, आप प्लीज बाल्टी ऊपर रख आएंगे क्या?”
विजय-“नहीं, इतनी तेज धूप में मैं ऊपर नहीं जाऊंगा, खुद ही रख लो।”
अंजलि को बहुत बुरा लगा क्योंकि उसने कभी अपने देवर विजय को किसी काम के लिए कभी मना नहीं किया था। बेवक्त खाना और चाय पीना उसकी आदत थी और वह अंजलि को जानबूझकर परेशान करता था। मैले गंदे कपड़े भी धोने के लिए बहुत निकालता था।
सूखे कपड़ों को छत से उतर कर लाना उन्हें लपेटना और प्रेस करना सब कुछ अंजलि की जिम्मेदारी थी। उसे सबके कपड़े प्रेस करते-करते दो घंटे लग जाते थे। वह नोटिस कर रही थी कि इतना सब कुछ करने पर भी किसी न किसी बात में इन लोगों के मुंह बने रहते हैं और कमियां निकालते रहते हैं।
एक दिन सब्जी वाले की आवाज आने पर वह उसे रोकने के लिए तुरंत आंगन में गई। इतने में उसका जेठ कन्हैया आ गया और अंदर जाकर बड़बड़ करने लगा कि बड़ों का तो लिहाज ही नहीं है बिना चुन्नी के आंगन में खड़ी है।
एक दिन रोज की तरह अंजलि ने पूरे घर की डस्टिंग की, थोड़ी देर बाद अचानक आंधी आने के कारण हर जगह मिट्टी मिट्टी छा गई, तभी उसका देवर विजय आ गया और टेबल पर हाथ मार कर कहने लगा”आज डस्टिंग नहीं की क्या, क्या करती हो सारा दिन?”
अंजलि की आंखों में आंसू थे, पर वह कुछ कह नहीं पाई। उसे आप घर में ऐसा लगने लगने लगा था कि जैसे वह एक नौकरानी है। उसका पति अजय सुबह से रात तक इतना व्यस्त रहता था कि अंजलि की बात सुनने के लिए उसके पास समय नहीं था और वह अपने घर के लोगों को कभी गलत नहीं मानता था। अगर कभी अंजलि की शिकायत सुन भी लेता था तो, एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देता था।
थोड़ा समय और बीता। अब विजय का विवाह सोनिया से हुआ। पहले तो एक हफ्ता दोनों घूमने चले गए और आने के बाद मेरी तबीयत ठीक नहीं है, कह कर सोनिया आराम फरमाती थी। एक दिन सासू मां ने कहा-“सोनिया तुम, अपनी जेठानी अंजलि का घर के कामों में हाथ बटांना शुरू कर दो। वह अकेली क्या-क्या करेगी?”
सोनिया-“माताजी, खाना बनाना तो मुझे आता नहीं है और मैं कोई मेड नहीं जो मैं बर्तन और झाड़ू पोछा करूं। कपड़े प्रेस बाहर दे दिया करो और बाकी कामों के लिए मेड लगा लो। मुझसे तो नहीं होगा।”
शाम को सासू मां ने विजय को यह बात बताई। विजय-“मां सोनिया ने क्या गलत कहा, सही तो है। एक मेड लगा लो।”
एक बार सोनिया और विजय पार्टी करने के लिए रात को घर से निकले। सोनिया ने बड़े गले वाला वन पीस गाउन पहना था। तब उसे कन्हैया जेठजी ने कुछ नहीं कहा।
अंजलि को अब समझ में आ चुका था कि अपना समय आने पर सब धृतराष्ट्र बन जाते हैं और उन्हें कोई कमी दिखाई नहीं देती। मैं इन सब के लिए बहुत कुछ कर चुकी हूं। मैंने इन्हें अपने अपने व्यवहार से जीतने की बहुत कोशिश की लेकिन जीत न सकी क्योंकि यह लोग इस लायक है ही नहीं। उनके व्यवहार के कारण मेरे मन में हमेशा के लिए जो कड़वाहट भर गई है वह शायद कभी खत्म नहीं होगी। इसीलिए हम लोगों का अलग-अलग रहना ठीक है। कभी-कभी मिलेंगे और फिर अपने-अपने घर। समय आने पर अजय को भी यह सब महसूस हो रहा था।उसने स्वयं ही अलग रहने का निश्चय कर लिया था ताकि दिलों की कड़वाहट और ना बढ़े ।
स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली