जीने की राह – अर्चना सिंह :  Moral Stories in Hindi

चार दिन से रूबी काम पर नहीं आयी थी । गमले में पानी डालकर शिप्रा ऑफिस के लिए ही निकलने वाली थी कि दरवाजे पर घण्टी बजी । खोलकर देखा तो रूबी ही थी, हरदम खिलखिलाने वाला चेहरा, बकबक मशीन आज जैसे थकी सी लग रही थी । “अंदर आ जा ! बोलते हुए शिप्रा ने जगह दी और रूबी  अंदर घुस गई । उसके चेहरे के उलझे हुए भाव देखकर शिप्रा ने आखिर पूछ ही

लिया…”कितनी छुट्टी हो गयी तुम्हारी ? इस महीने में कुल सात छुट्टी हो गयी है । वो बाजू वाले जो दिनकर अंकल हैं, उन्होंने भी मुझसे पूछा..रूबी क्यों नहीं आ रही ? मैंने बोल दिया नहीं मालूम । और सामने वाले घर में जो पाल जी हैं उनके घर से भी कॉल आया था, तुम तो खाना बनाती हो न वहाँ ? जल्दी – जल्दी काम निपटाओ फिर आधे घण्टे में मुझे भी अर्जेंट ऑफिस जाना है ।

रूबी ने हांफते हुए ज़ोर से साँस लेते हुए कहा…”अरे…अरे रुक जाओ शिप्रा भाभी ! सारे सवाल सिर्फ पूछोगी मुझसे या जवाब भी सुनोगी ? तुमसे अगर दिनकर अंकल की बात होती है तो बोल देना मैंने उनके घर काम छोड़ दिया है । “ऐसे बोलने का क्या मतलब ..काम छोड़ दिया है ? उन अंकल के यहाँ

तुम्हें नहीं छोड़ना चाहिए काम, क्योंकि आंटी भी पूरे टाइम बीमार रहती हैं और उनके बच्चे भी यहाँ नहीं रहते । और पाल जी के यहाँ ? सबको तुम अपना नम्बर क्यों नहीं दे के जाती, मेरा नम्बर दे देती हो, मैं परेशान हो जाती हूँ ।

अब रूबी ने बर्तन धोते हुए माफी के लहजे में कहा…”तुम अगर बोल सकती हो तो बोल देना शिप्रा भाभी, नहीं तो मैं तो घर जाकर बात क्लियर कर ही लूँगी । रूबी कुछ और बोलती तब तक शिप्रा का फोन बजने लगा । शिप्रा सोफे पर आराम से बैठ गयी, पर तब तक फोन कट चुका था । कॉल लॉग देखा तो शिप्रा के बॉस का फोन था । “जी सर ! शिप्रा ने झिझकती हुई आवाज़ में कहा तो उसके सर

केतन मेहता ने रोबीली आवाज़ में कहा…”तुम्हें पैसा, प्रमोशन, अच्छा घर सब चाहिए लेकिन हर दिन तुमसे कहता हूँ, स्टाफ के आने से एक घण्टे पहले आया करो तो तुम्हें हर दिन देर होता है । सोच लो..तुम्हें नेम , फेम चाहिए या नहीं ? अगर चाहिए तो तुम्हें भी मुझे पर्याप्त समय देना होगा । “बस ! पहुँच ही रही हूँ आधे घण्टे के अंदर ।कहकर शिप्रा ने फोन रख दिया ।

मन से ऊब कर शिप्रा ने चाय बनाई , एक कप रूबी को थमाया और दूसरा खुद लेकर बैठ गयी ।रूबी को चाय पीकर जल्दी – जल्दी हाथ चलाने की हिदायत दे डाली ।जैसे ही रूबी चाय का घूँट लेने लगी शिप्रा ने फोन देते हुए कहा…”दिनकर अंकल का फोन है । रूबी के चेहरे के भाव पूर्ण रूप से बदल चुके थे । उसने तमतमाते हुए फोन लिया और दिनकर अंकल ने पूछा…”कब से काम पर आओगी रूबी ? इस बार सोच रहा हूँ तुम्हारे पैसे बढ़ा दूँ, बोलो कितने बढ़ाने हैं ?

“अंकल पैसे बढ़ाने की बात तो छोड़ दो, तुम्हारे घर काम ही नहीं करना मुझे, ढूँढ लो कोई । एक स्वर में बोले जा रही थी रूबी…”वैसे सच कहूँ तो तुम्हारे घर में कोई टिकने वाली नहीं जिसे अपनी इज्जत प्यारी होगी । ।मुझे दूसरे औरतों की तरह मत सोचना जो पैसों के लिए कोई भी रास्ता चुने । गरीब

जरूर हूँ पर इज्जत बेच के मुझे पैसे नहीं चाहिए । और मैं अपने सभी साथियों को तुम्हारे घर काम न करने की सलाह दूँगी । “सुनो तो रूबी ! अपने पैसे लेने तो आ जाओ, बैठकर बात कर लेंगे, तुम्हें क्या समस्या हो रही है ? अभी मैंने तुम्हें शिप्रा के घर आते देखा । यहाँ जितना कम काम और ज्यादा पैसे कहीं नहीं मिलेंगे ।

“अंकल ! मुझे मुँह खोलने पर मजबूर मत करो । तुम्हारी गन्दी नीयत और नज़र मुझे बहुत अच्छी तरह समझ आती है, और नहीं चाहिए तुम्हारे पैसे । दुबारा कभी फोन नहीं करना शिप्रा भाभी के नम्बर पर । शिप्रा ध्यान से उसकी बातें सुन रही थी और खुद को टटोल रही थी, न जाने वह एकपल को कहाँ खो गयी । रूबी ने जल्दी से काम निपटाया और शिप्रा से बोली…..

“ठीक है भाभी, मैं चलती हूँ । जैसे ही रूबी बाहर निकली पाल जी से मुलाकात हुई । देखते ही मुस्कुराकर बोले…”त्तीसरी मंजिल का काम करने के बाद मेरा खाना बनाना । तुम्हारे बच्चों की तबियत कैसी है ? कितने पैसों की जरूरत है बताओ । बहुत लंबी छुट्टी हुई तुम्हारी ।

“साहब ! अब दूसरी को रख लो, मैं दूसरा घर देख रही हूँ । बच्चे मेरे ठीक हो गए, इतने दिन सेवा देखभाल के लिए ही तो छुट्टी की थी । “काम छोड़ने का क्या कारण है , ये तो बताओ ? आस – पास के लोगों पर नज़र डालते हुए झिझककर पाल जी ने पूछा तो तैश भरे स्वर में रूबी बोली…”आप अपने आप से पूछ लो, क्यों काम छोड़ रही हूँ ? एक तो आप शराब पीकर आते हो, गालियाँ बकते हो और

क्या भरोसा ऐसे लोगों का आपा खोकर क्या कर दे ।दूसरे पर उंगली नहीं उठाना साहब, खुद सतर्क रहना चाहती हूं । वारदात बोलकर नहीं होते । ज्यादा पीने की वजह से ही मैंने अपने पति को छोड़ा, तभी मुझे पैसे कम पड़ रहे थे  ।आपलोग पर जिम्मेदारी कम दिखी और पैसे की मदद माँगी तो मुझे समझ आया । दुनिया में कुछ भी फ्री नहीं है । हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती है । अब और ज्यादा आप मेरा मुँह मत खुलवाओ ।

काफी देर की वार्तालाप सुनने के बाद शिप्रा का सिर दर्द से फटने लगा । दरवाजा बंद करके वो बालकनी में बैठ गयी और अंदर ही अंदर बुदबुदाने लगी …”ये बाई मुझे जीने की राह दिखा गयी, पति की अनुपस्थिति में मैं प्रमोशन के लिए कहाँ से कहाँ छलांग लगाने की सोच रही थी । पर अब समझ आया कि इज्जत के साथ कमाया गया पैसा एक अलग सुख और शान देता है। कल ही जाकर जॉब

रिजाइन करूंगी, पहले सर को खबर कर दूँ । जाने कैसे रास्ता भटक गयी थी मैं । उसने तुरंत अपने बॉस को मैसेज भेजा…”सॉरी सर ! नहीं आ सकूँगी आज । अब पाँच मिनट बाद शिप्रा के सर केतन मेहता का बार – बार फोन आने लगा । पहले तो दो – तीन बार उसने अनदेखा कर दिया । फिर

आखिरकार फोन उठाकर बोल दिया…”सर ! मुझे प्रमोशन फेम नहीं चाहिए, मैं नहीं आ सकती । केतन ने बोलना ही शुरू किया तब तक शिप्रा ने फोन काटकर स्विचऑफ कर दिया । और अब वह खुलकर बोल के चैन की साँस ले रही थी, बड़ा सुकून महसूस कर रही थी ।

मौलिक, स्वरचित

अर्चना सिंह

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