जीना इसी का नाम है – कुमुद मोहन

बड़े दिनों बराबर वाला फ्लैट खाली पड़ा था।

मधु और सुरेश जी अकेले रहते। बच्चे दोनों बाहर थे कभी-कभार ही आ पाते। मधु का मन था कोई ढंग उनकी हमउम्र का आ जाए तो थोड़ी कंपनी मिल जाए।

फिर एक दिन जैसे भगवान ने उसकी सुन ली। सामने खड़ा ट्रक देखा जिसमें से सामान उतर रहा था। बड़ी उत्सुक थी मधु को यह देखने को कि कितने लोग होंगे नऐ नवेले होंगे या रिटायर हम जैसे। बच्चे कितने?

वह हिसाब लगा ही रही थी कि ट्रक के पास एक  कार आकर रूकी। देखा 35-40वर्ष की महिला और 6-7 साल की लडकी उतरे। चलो अच्छा हुआ बगल का वीरान पड़ा फ्लैट देखकर कोफ्त होती थी।

शाम को लिफ्ट में मधु की मुलाकात मां बेटी से हुई।

हाय हलो के बाद परिचय हो गया।

पता चला रिया किसी स्कूल में आर्ट पढ़ाती है बेटी सना भी वहीं पढती है।

थीरे धीरे रिया और मधु एक दूसरे से खुलने लगे।

रिया ने बताया सना के पापा शोभित के साथ उसकी अरेंज मैरिज थी। वह लंदन में टी सी ऐस में काम करता था। शादी के बाद जब रिया लंदन पहुँची तो  थोड़े दिन बाद उसे पता लगा कि शोभित ने वहाँ एक अमरीकन लड़की से शादी कर रखी है। उसके एक बेटी है।

जब रिया शोभित को उस अमरीकन को छोड़ने को कहती तो वह रिया पर हाध उठाता गाली-गलौज करता। रिया ने अपने आप को ठगा महसूस किया और अपने मां-बाप को बता दिया। उन्होंने उसे वापस बुला लिया।



रिया मां बनने वाली थी उसने इंडिया आकर अपने सास-ससुर को बताया पहले तो वे रिया को सपोर्ट कर रहे थे पर जैसे ही लड़की पैदा हुई उनके तेवर बदल गए।  डिलीवरी के बाद रिया को ओवरियन कैंसर  हो गया तब तो शोभित के मां-बाप ने बिल्कुल ही हाथ झाड़ लिये।

रिया ने तलाक ले लिया शोभित के मां-बाप ने उसे और बच्ची को कुछ नहीं दिया।

रिया के मां-बाप ने उसे पूरा सहयोग दिया।उनके पास को जमीन जायदाद नहीं थी रिया की मां ने अपने जो थोड़े-बहुत गहने थे बेच कर रिया का इलाज कराया। कैंसर बहुत नहीं फैला था जिससे रिया काफी हद तक ठीक हो गई उन्होंने रिया को अपने पैरों पर खड़े होने के लिए प्रेरित किया।

रिया नौकरी पर जाती तो वे लोग बच्ची का पूरा ख्याल रखते।

रिया की लगन और उसके मां-बाप के सहारे से वह मुश्किल समय कट गया।

रिया के इलाज के लिए मां ने जेवर बेच दिया इससे उसके भाई भाभी ने उनसे नाराज होकर नाता तोड़ लिया।

रिया को अपने बूढ़े मां-बाप को देखकर बहुत दुख होता कि उसकी वजह से उनकी ज़िन्दगी दांव पर लग गई।

रिया जब सना को देखती तो उसे बेरहम शोभित पर गुस्सा आता दूसरे ही क्षण वह सोचती कि इसमें बेचारी सना का क्या दोष। वह मासूम तो इन सब से अनजान है।



अब रिया की जिन्दगी का एक ही मकसद रह गया था कि किसी तरह सना को अच्छी तरह पढ़ा कर और अपने मां-बाप के बुढ़ापे का सहारा बने।

उसने पार्ट टाइम जाॅब करके बीएड किया और उसे नौकरी मिल गई। सना की फीस में रियायत भी मिल गई। रिया अपने खाली वक्त सना को पार्क ले जाने या उसे एक्टिविटी कराने में लगाती। वह सना को अच्छे संस्कार देने की कोशिश करती।

इतनी सी उम्र में इतने दुख झेलकर रिया के चेहरे पर शिकन नहीं दिखाई देती।

मधु और सुरेश जी कोशिश करते कि सना को होमवर्क में मदद कर के या उसे ऐक्टिविटी में ले जा कर रिया को थोड़ा आराम दे सकें।

थोड़े समय बाद घर में अच्छी तरह सैटल होकर रिया अपने मां-बाप को भी अपने पास ले आई।

रिया के इस जज़्बे से सोसायटी के सभी लोग बहुत प्रभावित थे।

रिया को भी वहाँ आकर मानो पूरा परिवार मिल गया था। और सना। वो तो थोड़े ही समय में हर एक की दुलारी बन गई थी।

दोस्तों

कभी कभी ज़िन्दगी व्यक्ति को बहुत बड़ा सबक सिखा देती है। फिर भगवान भी उसे हिम्मत देता है बड़े से बड़े संकट से उबरने के लिऐ।रोकर या हाथ पर हाथ रखकर बैठने से अच्छा हिम्मत करके दुखों से निजात पाना।

हमारी कहानी की रिया ने आशा का दामन न छोड़कर आगे बढ़ने की ठानी और सफल भी हुई।

जिन्दगी में कभी खुशियों की घूप है तो कभी ग़मों की छांव! परिस्थितियों के अनुसार स्वंय को ढालकर जो जिन्दगी की नाव को पार लगा ले जीना इसी का नाम है!

कहतें हैं न हिम्मते मर्दा तो मददे खुदा

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आपकी

#कभी_धूप_कभी_छाँव 

कुमुद मोहन

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