आँखों में आँसू और दिल में ढाढ़स लिए जब माँ ने उंगली आसमान की तरफ कर के टिमटिमाते तारों को दिखाया था और कहा था
“वो तुम्हारे पापा हैं”
मैंने मान लिया था। पापा तारों में हैं और माँ मेरे पास! ज़िन्दगी उतनी मुश्किल से नहीं कट रही थी। माँ ने तब इतना प्यार दिया कि कभी फिर उन तारों में पापा को नहीं ढूंढा।मैं अपनी माँ की दुनिया में खुश था मगर माँ ने अपनी दुनिया में किसी और को भी जगह दे दी।उन्होंने दूसरी शादी कर ली और मैं फिर से आसमान की तरफ आँखे कर टिमटिमाते तारों से सवाल पूछता कि आखिर क्यों माँ ने ऐसा किया?जब जवाब पता ना हो तो, वो सवाल बड़ा लगता है। मगर फिर भी मैंने ये सवाल कभी माँ से नहीं पूछा और ना ही उस अजनबी पिता से जिसने हमेशा अपनापन दिखाना चाहा।कहने को बहन हुई थी घर में।मुझे चहकना चाहिए था पर मैं टूटता चला गया। जब भी माँ की गोद में उसे देखता तो नफरत बढ़ती जाती थी।माँ और मेरे बीच संवाद खत्म होता गया। जब मैं घर छोड़ कर जा रहा था तो माँ बहुत रो रही थी,मगर मुझे उनके आँसुओ पर भरोसा नहीं था।
“हम चले जा रहे हैं नकुल..तू मत जा”
मैं उस घर में रहना ही नहीं चाहता था जहाँ घुटन भरी बचपन की यादें थी।
आज उसी दोमुहाने पर मेरी ज़िंदगी खड़ी है जहाँ माँ के लिए मेरे दिल में नफरत का बीज पनपा था। अपनी तीन साल की नन्ही रिया को छोड़ दो साल पहले पत्नी निशा जा चुकी है। बेइंतहा प्यार करता था मैं उससे और इन दो सालों में उसकी हर यादों से। मगर दिल के किसी कोने में ये बात रह रह कर उठ रही है कि इन यादों के सहारे मैं अपनी पूरी ज़िंदगी नहीं गुजार सकता।
मैं रिया को गोद में लिए आसमान में आज फिर टिमटिमाते तारों को देख रहा था। आज डबडबाई आँखों में माँ के लिए कोई सवाल नहीं है बल्कि उन्हें कभी ना समझने का प्रायश्चित है।मेरी उंगली मोबाइल पर चलते हुए आज पहली बार माँ के नम्बर पर आकर रुक गई,
वक़्त ने मुझे..मेरा जवाब दे दिया है..!
विनय कुमार मिश्रा