जासूसी दिमाग़ – कल्पना मिश्रा : Moral Stories in Hindi

दोपहर का समय था। सब काम खत्म करके मैं बिस्तर पर आराम से लेटी हुई टीवी पर “क्राइम एलर्ट” सीरियल देख रही थी। स्टोरी क्लाइमेक्स पर पहुँच ही रही थी कि अचानक डोरबेल बज उठी।

“अब इतनी देर कौन आया है?” झुंझलाते हुए जल्दबाज़ी में आदत के विपरीत बगैर देखे,बगैर जाने पूछे मैंने फटाक से दरवाज़ा खोल दिया। अचानक अपने सामने करीब साढ़े पाँच फीट से ज़्यादा ही लंबी,चौड़ी अनजान महिला को खड़ी देखकर मैं घबरा गई।

“मैम, मिस्टर राकेश शर्मा यहीं रहते हैं?” उसने पूछा तो घबराहट के मारे मेरे मुँह से आवाज़ ही नही निकली.. साथ ही क्राइम अलर्ट का दृश्य याद आ गया जिसमें अनजान आदमी ने ऐसे ही दरवाज़ा खुलवाया और पिस्तौल लगाकर सब कुछ लूट लिया था।

“मैम!! क्या सोच रही हैं?” उसने फिर से पुकारा तो जैसे मुझे होश आया। हकलाते हुए मैं बोली “हाँ,यही है, पर आप कौन?”

“मैं होशियारपुर से मनजीत कौर! राकेश जी ने आपको बताया ही होगा..आई मीन फोन किया होगा?” कहते हुए उसने अंदर की ओर देखा।

“नही,मुझे तो नही बताया और न ही कोई फोन आया” मैं दरवाज़े पर ही अड़ी खड़ी रही ताकि वह अंदर न घुस सके। उधर मेरे दिमाग की छठी इंद्रीय भी सजग हो गई “अंदर की ओर देख रही है,कहीं कुछ गड़बड़ तो नही?” मैं उससे बचने के उपाय सोचने लगी।

“तो प्लीज़ आप उन्हें फोन कर लीजिये।मेरा फोन पता नही कहाँ गया? लगता है ट्रेन में ही छूट गया, वर्ना मैं ही…”  चिंतित सी वह बोली तो मुझे दया सी आ गई। सारे ऐतिहात भूलकर मैं अपना फोन लाने के लिए पलटी ही थी कि सोनी पर देखा हुआ सीरियल याद आते ही मैं फिर से वहीं ठिठक गई ..”उफ्फ! ये क्या बेवकूफ़ी करने जा रही हूँ मैं? उस सीरियल में भी तो एक सेल्सगर्ल ने ऐसे ही किसी बहाने से गृहस्वामिनी को अंदर भेज दिया था और पीछे से घुसकर उसे बंधक बना लिया फिर अपने साथियों को बुलाकर सब कुछ लूट ले गई।

“माफी चाहती हूँ! मुझे ध्यान ही नही था कि मेरा फोन भी ख़राब है वरना,,,” तुरंत ही मैंने बहाना बनाया।

“ओह्ह्!!!” उसके चेहरे पर उलझन के भाव आ गये।

“अच्छा भाभी जी,एक गिलास पानी मिलेगा?” तभी उसने पानी की माँग की तो मैं फिर से सोच में पड़ गई “हो ना हो पक्का ये किसी गैंग की ही है। तीन दिन पहले एक सीरियल में ऐसा ही कुछ तो दिखाया था कि कैसे एक अनजान औरत के पानी माँगने पर घर की मालकिन अंदर चली गयी और पीछे से बाहर छिपी हुई उस औरत के गैंग की साथी घर के अंदर घुसकर अलमारी के पीछे छिप गई।

फिर सबके सो जाने के बाद आधी रात में उसने अपने साथियों के लिए दरवाज़ा खोल दिया और पूरे परिवार की हत्या कर ज़ेवर, नगदी लूटकर चंपत हो गई। याद आते ही मैं सिर से पाँव तक काँप उठी। दिल रेलगाड़ी की तरह धड़क रहा था ..”कैसे करूँ? सामने के फ्लैट वाली सविता भाभी भी मायके गई हुई हैं वरना उन्हें आवाज़ लगा देती! अब क्या बहाना बनाऊँ कि ये वापस चली जाये।

अगर सच में राकेश को पता होता तो वो मुझे फोन ज़रूर करते…क्योंकि वो जानते हैं कि अनजान लोगों के लिए मैं कभी भी दरवाज़ा नही खोलती, घर के अंदर बैठाना तो दूर की बात है” मेरे दिलोदिमाग़ में कशमकश ज़ारी था।अंतत: मैंने सोच लिया कि अब चाहे जो भी हो;देखा जायेगा।मेहमान नवाज़ी जाये भाड़ में। पता नहीं कौन है ये? कितना भी दाँवपेंच कर ले, इसे तो अब अंदर हर्गिज़ नही घुसने दूंगी। वैसे भी क्राइम सीरियल देखकर इतनी तो सीख मिलती ही है कि सबको हमेशा सजग रहना चाहिए, अपनी सुरक्षा अपने ही हाथ में होती है।

यही सोचकर मैं दरवाजा बंद करने ही जा रही थी कि अचानक मेरा बेटा अनुज आता दिखाई दिया तो मेरी जान में जान आई कि चलो अब “एक से भले दो” ये औरत कुछ नही कर पायेगी। पर मैं जब तक कुछ कहती-सुनती कि वह धड़धड़ाते हुए अंदर चला गया और दो ही मिनट में बाहर आया तो उसके हाथ में लैपटॉप और मेरा मोबाइल था “मम्मा, ऐसे ही देर हो गई थी ऊपर से मैं लैपटॉप ले जाना भूल गया था और ये आपका मोबाइल बिस्तर पर पड़ा था। पापा की चार-पाँच मिस्डकॉल पड़ी हैं ,बात कर लीजियेगा” मोबाइल देते हुए वह तीर की भाँति निकल गया।

“ये अनुज भी ना,,,,, मेरा मोबाइल क्यों उठा लाया” मन ही मन मैं बेहद खिसिया गई। क्या सोच रही होगी ये ,मैंने तो इससे मोबाइल खराब होने का बहाना बनाया था, ख़ैर..”अब राकेश से कन्फर्म कर लूँ” सोचकर मैं फोन मिलाने जा ही रही थी कि मोबाइल बज उठा। तुरंत ही मैंने कॉल रिसीव किया तो राकेश झल्ला पड़े “इतनी देर से कहाँ थी तुम?पता है कितनी बार फोन किया मैंने? हद है,,,”

“मैं तो,,,, वो कोई,,,,मैं हड़बड़ा गई, फिर संयत होते हुए पूछा “बताओ क्या बात है?” क्योंकि उस महिला के सामने मैं सारी बातें तो नही बता सकती थी।

” बड़े दादा का फोन आया था पर मैं मीटिंग में था तो तुम्हें तुरंत नही बता पाया। असल में उनके दोस्त की लड़की आ रही है.. बल्कि अब तो पहुँच ही रही होगी। दादा ने विशेष रूप से आग्रह किया है कि अकेली लड़की है इसीलिये होटल में ना रुककर हमारे यहाँ ही रुकेगी।और हाँ,होशियारपुर की है,नाम मनजीत कौर! सब समझ लो,याद कर लो.. वरना जासूसी सीरियल देख-देखकर तुम इतनी शक्की हो गई हो कि उसे बाहर से ही भगा दोगी”  राकेश ज़ोर से हँस दिये।

“ओके, वो आ गई हैं ,अब फोन रखती हूँ ” ज़्यादा बात न करके मैंने जल्दी से फोन काट दिया और मन ही मन अपने जासूसी दिमाग़ पर शर्मिंदा होते हुये सॉरी बोलकर, उसके स्वागत में घर का दरवाज़ा खोल दिया।

कल्पना मिश्रा

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