जरूरत और फिजूलखर्ची मे फर्क – संगीता अग्रवाल : Moral stories in hindi

” ये क्या बहू इतनी सारी खरीदारी करके आई हो तुम पर क्यो ?” सास उमा जी ने बहू स्नेहा के हाथ मे बैग देख कहा।

” मम्मी जी बस थोड़े से कपड़े ही तो है !” सोफे पर बैठती हुई स्नेहा बोली।

” पर बेटा अभी तुम्हारी शादी को छह महीने ही तो हुए फिर हर त्योहार पर तुम कपड़े लेती ही हो तो अब क्या जरूरत पड़ गई तुम्हे कपड़े लेने की ?” उमा जी बोली।

” मम्मी जी शादी वाले कपड़े आउटडेटेड से हो गये अभी तो नया कलेक्शन आया है । मेरी सहेली ने बताया था तो मै खुद को रोक नही पाई और देखो कितना सुंदर कलेक्शन है !” स्नेहा उत्साह से सभी ड्रेस दिखाती हुई बोली।

” बेटा ड्रेस तो बहुत अच्छी है पर …!” उमा जी अपना वाक्य पूरा करती उससे पहले ही स्नेहा अपने बैग समेट कमरे मे आ गई।

” सुनो राहुल मुझे पांच हजार रूपए देना !” एक हफ्ते बाद स्नेहा अपने पति से बोली।

” स्नेहा अभी पिछले हफ्ते तो दस हजार दिये थे फिर से इतने पैसे क्यो ?” राहुल चौंक कर बोला। 

” मुझे अपने कमरे के परदे बदलने है और एक दो ओर सामान भी लाने है !” स्नेहा बोली।

” पर इन पर्दों मे क्या खराबी है अभी शादी के समय ही तो लगे थे ये !” राहुल बोला।

” मैने अपनी दोस्त के यहां देखे है परदे वैसे परदे चाहिए मुझे ये आउटडेटेड लगते है उन पर्दों से हमारा कमरा खिल कर आएगा !” स्नेहा उत्साहित हो बोली।

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” देखो स्नेहा मैं नौकरी पेशा बंदा हूँ कोई बड़ा बिज़नेस मेन नही जो इतना पैसा हर महीने तुम्हे दे सकूँ मेरे उपर घर की भी जिम्मेदारियां है समझो इस बात को तुम हर हफ्ते पैसा पैसा करोगी तो चल ली ये गृहस्थी!” राहुल ने उसे समझाया। 

” जब तुम पत्नी के खर्च नही उठा सकते तो शादी क्यो की !” स्नेहा मुंह फुला कर बोली।

” तुम्हे भी तो पता था मेरी कितनी सैलरी है तो तुमने क्यो हां की । क्या बस पैसे के लिए ही शादी होती है पत्नी हो मेरी तुम नही समझोगी तो कौन समझेगा !” राहुल बोला पर स्नेहा मुंह फेर कर सो गई। राहुल को गुस्सा भी आया पर उसने चुप रहना ही ठीक समझा।

” क्या बात है बेटा सब ठीक तो है !” अगले दिन राहुल और स्नेहा के उखड़े मूड को देख उमा जी बेटे से बोली । राहुल ने रात का किस्सा बता दिया । उमा जी सोचने लगी अभी तो शादी को महज छह महीने हुए ऐसे मनमुटाव रहेगा तो कैसे गृहस्थी चलेगी दोनो की।

” चलो बेटा चाय नाश्ता कर लो जल्दी से !” राहुल के जाने के बाद वो स्नेहा के कमरे मे आई और बोली

” मम्मीजी आप क्यो लाई मैं ले लेती !” स्नेहा बिस्तर से उठती हुई बोली । उसकी आँखे बता रही थी वो रो रही थी।

” बेटा तुम्हारी तबियत सही नही तो मैने सोचा मैं ही ले आऊं ।” उमा जी प्यार से बोली।

” मम्मी जी तबियत तो सही है बस हलका सिर दर्द है !” स्नेहा नज़र चुराती हुई बोली।

” जब रात भर जागोगी तो सिरदर्द तो होगा ही , ऊपर से रो भी रही थी !” उमा जी उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली।

” नही तो मम्मी जी !” स्नेहा को ऐसा लगा मानो उसकी कोई चोरी पकड़ी गई।

” देखो बेटा भले तुम्हारी सासू माँ हूँ पर माँ तो हूँ ना इतना तो अपने बच्चो को देख समझ सकती हूँ। अब बताओ क्या बात हुई ?” उमा जी बात जानती थी पर बहू के मुंह से सुनना चाहती थी।

” मम्मीजी राहुल को मेरी कोई फ़िक्र नही है उन्हे बस पैसे से प्यार है !” ये बोल स्नेहा ने सारी बात बता दी।

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” बेटा तुम राहुल की जीवन सांगिनी हो उसके सुख दुख की साथी तुम उसे नही समझोगी तो कौन समझेगा उसे। मानती हूँ तुम्हारे अपने ख्वाब है पर क्या बेवजह फिजूलखर्ची सही है । क्या वो तुम्हे पैसे दे देता तभी वो केयरिंग पति होता। वो तुम्हे पैसे देने को मना नही करता पर एक हद तक ही ना क्योकि उसको भी एक हद तक ही मिलते है । फिर ऐसी जिद करके क्या फायदा जो आपसी रिश्तो मे तनाव ले आये !” उमा जी इतना बोल रुक गई।

” पर मम्मी जी मैने तो जरूरत के लिए पैसे मांगे थे !” स्नेहा सिर झुका कर बोली।

” स्नेहा बेटा सबसे पहले तो जरूरत और शौक मे अंतर करना सीखो। क्योकि शौक इंसान को फिजूलखर्च बना देते है और ये आदत ना केवल खुद का मानसिक तनाव देती है बल्कि परिवार मे भी कलेश के बीज बोती है।  एक औरत का फर्ज होता है पति को समझना और उसकी कमाई से ही गुजर करना । बल्कि कुछ बचा कर भी चलना तभी वो सही मायने मे अर्धांगिनी कहलाती है। देखो सास हूँ तुम्हारी तुम्हे मेरी बात बुरी भी लग सकती है पर तुम खुद ठंडे दिमाग़ से सोचना !” ये बोल उमा जी वहाँ से चली गई।

स्नेहा बहुत देर तक उमा जी की बात सोचती रही एक बार तो उसके दिमाग़ मे आई मम्मी जी तो अपने बेटे की ही साइड लेंगी ना । फिर उसने ठंडे दिमाग़ से सोचा तो उसे लगा परदे बदलना इतना भी जरूरी तो नही जिसके लिए घर मे कलेश किया जाये। उसे भी राहुल से ये अबोला तकलीफ दे रहा था।

” सच ही तो कहा मम्मी जी ने मैं राहुल की अर्धांगिनी हूँ उसकी हर चीज पर मेरा हक है यहाँ तक की उसकी परेशानी पर भी पर मैं तो खुद उसे परेशान कर रही हूँ । ” उसने सोचा फिर उसे याद आया कैसे उसकी खुद की मम्मी एक एक पैसा बचा कर रखती थी ओर जब पापा की कोरोना मे नौकरी चली गई थी

तब मम्मी ने कैसे उन्ही पैसो से ना केवल घर चलाया बल्कि बच्चो की पढ़ाई का खर्च भी उठाया। वरना तो पापा की बचत सब खत्म हो जाती जो उन्होंने मेरी शादी को रखी थी। वो अचानक उठी नहा धोकर बाहर आ गई और सास के साथ काम करवाने लगी। उसका चहकता चेहरा देख उमा जी समझ गई उन्होंने सही वक़्त पर बहू को सही सीख दी है।

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

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