जानकी अम्मा – वीणा सिंह

कार्तिकेय नलिनी और श्रीनाथ का एकलौता बेटा.. माता पिता दोनो एक कंपनी में इंजीनियर थे.. जानकी नलिनी के अपार्टमेंट में नलिनी के अलावा पांच और घरों में काम करती थी.. उम्र होगी मुश्किल से पच्चीस साल.. सांवला रंग कमर तक झूलती चोटी को तीज त्योहार में जुड़ा बनाकर फूलों के गजरे से सजा लेती तो उसका सांवला रंग और निखर जाता.. पति उसी अपार्टमेंट में सिक्युरिटी गार्ड था.. कार्तिकेय तीन साल का था तब से हीं जानकी उसके घर काम कर रही थी..सुबह का टिफिन तीनों का बनाती फिर बेटा मां बाप साथ निकल जाते

बेटा को स्कूल छोड़ते दोनो अपने ऑफिस चले जाते.. कार्तिकेय को स्कूल की बस छोड़ जाती.. माता पिता देर से घर पहुंचते.. बच्चे की जिम्मेदारी जानकी को मिली थी.. कार्तिकेय सुबह में हीं जानकी से बोल देता आज अप्पम बना के रखना अम्मा, कभी उत्पम्म तो कभी कर्ड राइस .. और जानकी उसके पसंद का खाना बना के रखती स्टॉपेज से ला खाना खिला कर टीवी देखने को कह दूसरे घर काम पर चली जाती.. बीच बीच में बच्चे को देख लेती.. कार्तिकेय बड़ा हो रहा था और माता पिता की ब्यस्तता बढ़ रही थी.. पैसा के साथ काम की जिम्मेवारी भी बढ़ रही थी.. बच्चे के हिस्से का समय भी कंपनी को देना पड़ रहा था.. प्रतिस्पर्धा के इस दौर में पीछे नहीं छूटना था.. मजबूरी थी..

जानकी के अंदर इतनी ममता भरी थी पर भगवान ने मां कहने वाला अभी तक नही दिया था.. अपनी निः स्वार्थ ममता कार्तिकेय पर लुटा रही थी.. जब कार्तिकेय अम्मा कह के पुकारता तो जैसे छाती में ममत्व हिलोरे मारने लगता और दौड़ के बच्चे को सीने से लगा लेती.. मासूम बच्चा पूछने लगता तुम क्यों रो रही हो अम्मा..

बैंगलोर जैसे महानगर में किसी बच्चे को इतनी ममता नसीब होना बड़ी बात थी.. धीरे धीरे कार्तिकेय का लगाव जानकी अम्मा से बढ़ने लगा.. उसमे उसे अपनी मां नजर आती.. मां बेचारी थकी हारी आती तो उसमे इतनी ताकत नहीं बचती कि बच्चे के साथ घंटा दो घंटा बिताए.. जानकी अम्मा बच्चे के साथ घर के अंदर हीं छुप्पम छुपाई खेलती कभी लूडो तो कभी कैरम.. कभी पार्क में दोनो जाते झूला झूलते…

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कार्तिकेय बड़ा हो गया था .. मेडिकल की तैयारी कर रहा था.. पर जानकी वैसे हीं उसका ख्याल रख रही थी..

कार्तिकेय पहली बार में हीं मेडिकल में चुन लिया गया.. जिस दिन कार्तिकेय को जाना था उस दिन जानकी रो रो के बेहाल थी.. जैसे उसके गोद का बच्चा उससे दूर जा रहा हो! वही स्थिति कार्तिकेय की भी थी..

समय गुजरता रहा मेडिकल की पढ़ाई खत्म कर कार्तिकेय कैंसर से संबंधित स्पेशल पढ़ाई के लिए अमेरिका के एक मेडिकल कॉलेज में चुन लिया गया..

श्रीनाथ और नलिनी दोनो रिटायर हो गए थे.. बैंगलोर से चार घंटे का रास्ता था उनके गांव था जहां उनका पुश्तैनी घर था पूरा परिवार था और फार्म हाउस था वहां चले गए.. महानगर की मशीनी और भागदौड़ भरी जिंदगी से दूर थोड़ा चैन और शांति से परिवार के साथ जीना चाहते थे..

जानकी से उनका संपर्क छूट सा गया..

कार्तिकेय की पहली पोस्टिंग टाटा कैंसर हॉस्पिटल मुंबई में हुई.. मुंबई में अपने पसंद की लड़की से शादी कर ली.. कोर्ट मैरिज.. माता पिता सम्मिलित हुए.. कोर्ट में शादी हुई..

इतना समय बीतने के बाद भी जानकी को बिलकुल भी नहीं भुला था कार्तिकेय…

जानकी के पति की मृत्यु हृदयगति रुकने से हो गई थी..

जानकी उसी अपार्टमेंट में काम कर रही थी. कुछ दिनों से उसकी तबियत खराब रह रही थी.. डॉक्टर कैंसर का शक बताया उसकी मालकिन से ..जिसके घर में काम कर रही थी वही लेकर डॉक्टर के यहां गई थी .. कार्तिकेय का एक दोस्त रहता था उसी अपार्टमेंट के बगल में उसे जानकी और कार्तिकेय के रिश्ते के बारे में.. उसी ने कार्तिकेय को फोन किया…

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आश्चर्य! तीसरे दिन कार्तिकेय हाजिर अपनी जानकी अम्मा को ले जाने के लिए.. थोड़ी देर पहले सबके मन में ये प्रश्न था इतना महंगा इलाज कौन करवाएगा.. जानकी अम्मा लिपट के कार्तिकेय से फूट फूट के रोने लगी और छः फिट का लंबा चौड़ा जवान कार्तिकेय भी छोटे बच्चे सा खूब रोया..

पहली बार हवाई जहाज में बैठी जानकी अम्मा डर भी रही थी और दुआएं भी दे रही थी कार्तिकेय को…

छः महीने के इलाज और सेवा से जानकी अम्मा कैंसर को मात दे दी थी.. टेस्ट रिपोर्ट नॉर्मल था.. कार्तिकेय की पत्नी भावी भी बहुत मन से सेवा की जानकी की..

ठीक हो जाने के बाद वापस लौटने की बात की जानकी ने तो कार्तिकेय बोला अम्मा छोटा कार्तिकेय या छोटी भावी आने वाली है उसे कौन संभालेगा? तू उसे छोड़ के चली जायेगी.. भावी मां बनने वाली है.. जानकी भाव विभोर हो गई.. अपनी संतान ना होने के लिए जो भगवान से उसकी शिकायतें थी वो आज दूर हो गई थी…. दोनो को अंक में समेटे लग रहा था जैसे जानकी अम्मा को सारे संसार का सुख मिल गया हो….

वीणा सिंह 

#आक्रोश

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