“तूने सरला की बहू को देखा, कैसे कपड़े पहन रखे हैं, ना जाने कैसा जमाना आ गया है, आजकल की बहूओं को जरा भी शर्म नहीं आती है, बड़े-बुजुर्गों से तो जरा भी परदा नहीं करती है, साड़ी तो पहनना ही छोड़ दिया, सलवार कमीज पर दुपट्टा भी लेना जरूरी नहीं समझती है, और वो सरला कुछ नहीं कहती हैं, ऐसी मार्डन बहू किस काम की? जिसमें जरा भी लाज-शर्म नहीं है।”
अपनी सास कलावती देवी की बड़बड़ाहट सुनकर शांति जी रसोई से बाहर आई, “अम्मा अपना जी मत जलाया करो, आजकल यही जमाना है, बहूओं को घर-बाहर के बहुत काम रहते हैं, फिर सरला भाभी की बहू अकेली ही नहीं है, आजकल सब बहूएं ऐसी ही रहती है।”
“मै तो ऐसी पोता बहू नहीं लाऊंगी, मुझे तो संस्कारों वाली ही बहू चाहिए।” अम्मा जी बोली।
“अम्मा जी, अभी तो आपका पोता पढ़ाई कर रहा है, अभी तो उसकी शादी में समय है, तब तक और भी जमाना बदल जायेगा, आप चिंता मत करिये, और ये गाजर का हलवा खाइये ठंडा हो रहा है।”
शांति जी ने हलवे की कटोरी पकड़ाई तो कलावती देवी की आंखों में चमक आ गई।
कुछ सालों बाद उनके पोते की पढ़ाई पूरी हो गई और कॉलेज में ही प्लेसमेंट हो गया, अब कलावती देवी को लगा कि उसकी जल्दी से शादी करवा दूं, लेकिन जो लड़की उन्हें पसंद आ रही थी, वो उनके पोते सौरभ को पसंद नहीं आ रही थी, वो साड़ी पल्लू वाली बहू ढूंढ़ रही थी और सौरभ ने अपने ही कॉलेज में लड़की पसंद कर रखी थी, जो उसकी ही तरह नौकरी करती थी।”
घर में कलावती देवी का ही राज चलता था, वो जो कह दे पत्थर की लकीर होता था, शांति जी को जब बेटे की पसंद का पता चला तो वो चिंता में पड़ गई, इधर सास की इच्छा थी और उधर बेटे की पसंद।
दोनों अपनी -अपनी जिद पर अड़े थे। आखिरकार शांति जी ने एक उपाय निकाला और सौरभ की शादी
उसकी पसंद की लड़की से करवा दी, और उसे कुछ दिन कलावती देवी के हिसाब से रहने को कहा।
शादी के कुछ दिनों बाद मीनल को काम पर जाना था, शुरूआत में तो उसने सास के कहे अनुसार साड़ी पहन ली ताकि कलावती जी को अच्छा लगे, पर वो अब और नाटक नहीं कर सकती थी।
कलावती जी मंदिर गई तो मीनल फटाफट अपने ऑफिस के लिए निकल गई और शाम को वो नीचे घुमने गई तो मीनल घर के अंदर आ गई, पर ऐसा कब तक चलता?
एक दिन सब घर के लोग बैठे थे तो मीनल ने बताया कि “इस महीने उसे पगार कम मिलेगी ‘..
ये सुनते ही कलावती जी चौंक गई, मन में उन्हें भी मीनल की कमाई का लालच था कि बहू संस्कारी भी है और पैसे भी अच्छे कमाती है।
वो अम्मा सुबह उठकर घर के काम करती हूं और साड़ी पहनने के चक्कर में देर हो जाती है, कभी साड़ी पहनकर भागा नहीं जाता है तो बस छूट जाती है, इस चक्कर में ऑफिस देर से पहुंचतीं हूं और कंपनी वाले पैसे काट लेते हैं।
मीनल ने बताया कि बहुत ज्यादा नुक्सान हो जायेगा, हर महीने ऐसे ही चला तो परेशानी हो जायेगी।
ये सुनते ही कलावती देवी बोली, “अरे! बहू इस तरह तो तू बहुत नुक्सान कर देगी, तुझे पगार पूरी ना मिलेगी तो काम करने का क्या फायदा होगा? ऐसा कर कल से तू सलवार कमीज पहन कर जाया कर, ताकि समय पर पहुंच पाये, वो सरला की बहू तो घर पर रहकर सलवार कमीज पहनती हैं, फिर तू तो ऑफिस जाकर कमाकर लाती है।”
“अम्मा, आप ये क्या कह रही है? सौरभ भी आंखें नचाते हुए बोला।”
सौरभ मै ठीक कह रही हूं, सच में जमाना बदल गया है, तो मुझे भी बदलना होगा, कल को मीनल मुझे ओल्ड फैशन दादी सास समझेगी।” और ये कहकर सारे घर के हंसने लगे।
मीनल सलवार कमीज पहनकर जाने लगी, पर उसे अभी भी घर पर साड़ी ही पहननी होती थी। कुछ दिनों बाद उसने शांति जी की मदद से इसका भी उपाय
निकाल ही लिया।
एक सुबह कलावती देवी उठ गई, तो उन्हें चाय समय पर नहीं मिली, उन्होंने चिल्लाना शुरू कर दिया।
मीनल तू चाय लेकर नहीं आई?
अम्मा जी, मै नहाकर साड़ी पहन रही थी कि साड़ी में मेरा पैर अटक गया और मै बाथरूम में गिर गई, पैर में चोट लगी है।” वो झूठ-मूठ कराहते हुए बोली।
ओहहह!! ये क्या हो गया? अब तो मीनल ऑफिस नहीं जा पायेगी, इस महीने की तो पूरी सैलेरी कट जायेगी, सौरभ ने झूठी चिंता जताते हुए कहा।
कलावती देवी फिर चिंता में आ गई, मीनल ने छुट्टी तो ले ली, वो आराम करने लगी पर कलावती देवी हिसाब लगाने लगी, ऐसे तो बहू का बड़ा नुक्सान हो जायेगा।”
अगली सुबह वो मीनल से बोली, “मीनल तू तो सलवार कमीज पहनकर ही घर पर रहा कर, साड़ी में उलझेगी तो तेरा काम समय पर नहीं हो पायेगा।”
मीनल और सौरभ ये सुनकर खुश हुए और शांति जी के मन को दिलासा मिली कि सौरभ को उसकी पसंद की लड़की भी मिल गई और कलावती देवी ने उसे अपना भी लिया।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक अप्रकाशित रचना
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