top 10 moral stories in hindi : इस कहानी संग्रह के अंदर मुहावरा प्रतियोगिता #जलीकटी सुनाना के 10 सर्वाधिक पढ़ी जानी वाली कहानिया संग्रहीत है
बड़ी आई कलेक्टर कहीं की..! – लतिका श्रीवास्तव
कहां चली महारानी …कॉलेज!!!ये बर्तन का ढेर क्या अल्लादीन का जिन्न साफ करेगा चल पहले ये सब साफ कर फिर जाना ….बड़ी आई पढ़ाई करने वाली …जैसे कलेक्टर ही बन जायेगी ….अरे मुई लड़की कित्ता भी पढ़ ले लिख ले घर केकाम तो करने ही पड़ेंगे समझी …!
मां की जली कटी को अनसुना सी करती गुड्डन बोल उठी और अगर कलेक्टर बन गई तो…!!तब तो ये सब काम नहीं करना पड़ेगा ना…! फिक्क से हंसती गुड्डन की बात ने तो मानो मां के तन बदन में आग ही लगा दी थी वहीं पड़ा डंडा दिखा कर चीख पड़ी चल चल बड़ी आई कलेक्टर कहीं की!!मुंह देखा है अपना आईने में!!आज तक इस खानदान में किसी आदमी को अधल्ली की नौकरी भी नहीं मिली तू लड़की होकर आई बड़ी कलेक्टर का ख्वाब देखने वाली!!घर में नही दाने अम्मा चली भुनाने..!
फुर्ती से बर्तन धोकर गुड्डन किताबें संभालती कॉलेज पहुंची तो प्रिंसिपल उसका इंतजार ही कर रहे थे.. गुड्डन तुम्हें इस बार सर्वाधिक अंक प्राप्त करने के कारण कॉलेज की तरफ से सिविल सेवा प्रतियोगिता की मुफ्त कोचिंग प्रदान की जाएगी …!अंधा क्या चाहे दो आंखें गुड्डन की तो सबसे बड़ी समस्या हल हो गई थी।
समय की रफ्तार से भी तेज हो गई थी गुड्डन की सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी और पढ़ाई की रफ्तार ….और साथ ही मां के जहर बुझे तानों की रफ्तार…..!!
सुबह के अखबार में गुड्डन की बड़ी सी फोटो छपी थी..” कस्बे की लड़की अब बनेगी कलेक्टर ..प्रथम बार सिविल सेवा परीक्षा में कस्बे ने सफलता प्राप्त की…”!
पैर छूती गुड्डन से आंख नहीं मिला पा रही थी मां ..डबडबाई आंख और अवरुद्ध कंठ था मुझे माफ कर दे बेटी बचपन से तुझे जली कटी सुनाती आई काम करवाती रही पढ़ाई से दूर करती रही सोचती थी लड़की के नसीब में यही चूल्हा चौका ही लिखा होता है तूने तो अपना ही नहीं पूरे खानदान का नसीब बदल दिया !!
मां तेरी जली कटी का ही असर था जो मेरे लिए प्रेरणा बन गया मुझे चुनौती देता रहा मेरी प्यारी मां तेरी जली कटी मेरे लिए आशीर्वाद बन गई ..एक बार फिर से कह ना बड़ी आई कलेक्टर कहीं की!!!हंसती हुई गुड्डन की बात सुन
मेरी कलेक्टर बिटिया रानी कह मां ने दोनों हाथों से अपनी बेटी को कलेजे से लगा लिया था।
लतिका श्रीवास्तव
“मां का आँचल” – कविता भड़ाना
“हे भगवान! दो महीने के लिए मुझे सहनशक्ति देना,
रात – दिन की रोका टोकी और जली कटी सुनने की हिम्मत देना”… पति हिमांशु के साथ गांव से आई अपनी रौबीली सास और ससुर को देखकर निशा ने ईश्वर से प्रार्थना की और चेहरे पर जूठी मुस्कान के साथ आवभगत करने लगी…. सरला जी यूपी के एक गांव की सरपंच है और बहुत ही दबंग प्रवृति की महिला भी, इकलौते बेटे को पढ़ाई के लिए दिल्ली शहर में भेजा और उसकी ही पसंद की लड़की से शादी भी करा दी…
सरला जी अपने पति शंकर जी के साथ अपनी दुनिया में व्यस्त रहती और साल में एक बार ही दोनों पति पत्नी,
दो महीने के लिए अपने बेटे के साथ रहने आते, वैसे हिमांशु भी गांव जाता रहता था, लेकिन दो साल से शादी के बाद कम ही जा पा रहा था, पर सरला जी को कोई शिकायत नहीं थी, वो अपने पति के साथ बेटे के यहां रहने आ जाती…
लेकिन उनकी रोक टोक और बिन मांगे दी गई सलाहों से शहर के परिवेश में पली बढ़ी बहू निशा को बहुत कौफ्त होती खैर बेचारी “कुछ दिनों की ही तो बात है” सोचकर झेल लेती…. आज हिमांशु के कुछ दोस्त खाने पर आने वाले है तो निशा शाम से ही अपनी कामवाली की सहायता से खाना बनाने में लगी हुई है और इधर आदत से मजबूर सरला जी शुरू हो गई…
“हम तो आज भी अकेले दस लोगों का खाना बना ले और ये आजकल की बहुएं चार लोगों का भी ना बना पा रही”…. निशा को गुस्सा तो बहुत आया पर सास को देखकर हिम्मत पस्त हो गई…. घर में मां पिताजी की मौजूदगी की वजह से हिमांशु अपने दोस्तों के साथ बाहर से ही मदिरापान करके आया था और आते ही निशा को खाना लगाने के लिए कहा… सरला जी अपने पति के साथ पहले ही खा पीकर कमरे में आराम कर रही थी और हिमांशु भी अपने दोस्तों के साथ ड्राइंग रूम में गप्पे मारने लगा…
निशा खाना गर्म कर रही थी की तभी हिमांशु का एक दोस्त रसोई में पानी लेने आया और अपनी नशीली और गंदी निगाहों से निशा को घूरते हुए बोला, कहो तो हम कुछ मदद कर दे आपकी भाभी जान, इन नाजुक हाथों को भी कुछ आराम मिल जायेगा और कहकर निशा का हाथ सहलाने लगा… निशा ने विरोध के लिए मुंह खोला ही था की “तड़ाक” की आवाज आई, देखा सरला जी उस आशिक का भूत उतारने में लगी हुई है साथ ही उसे पकड़कर घसीटते हुए हिमांशु और उसके अन्य दोस्तों के पास ला पटका और गुस्से से दहाड़ती हुई बोली…
मेरी बहू के साथ बदतमीजी करने की तेरी हिम्मत कैसे हुई वो भी मेरे ही घर में, और तू बेशर्म, तूने पीना भी शुरू कर दिया और पीकर ऐसे दोस्तों को घर कैसे लेकर आया जिन्हे
किसी महिला से कैसे पेश आना चाहिए इतना भी नही पता, सरला जी का रौद्र रूप देखकर सारे दोस्त चुपचाप खिसक लिए…हिमांशु को तो जैसे सांप ही सूंघ गया, कुछ दिनों की दोस्ती पर भरोसा करके इस तरह के लोगों को घर में लाना कितना घातक हो सकता है, ये तो सोचा ही ना था…
अपनी मां से माफी मांगते हुए हिमांशु ने फिर कभी शराब नहीं पीने का वादा किया और निशा को भी सॉरी बोला…
निशा भी दौड़कर अपनी सास के गले लग गई और आज उसे उनमें जली कटी सुनाने वाली महिला की नहीं बल्कि फिक्र करने वाली मां की मूरत नजर आ रही है, जिसके आंचल में वो सुरक्षित है..
स्वरचित मौलिक रचना
कविता भड़ाना
सासु माँ कब जाएँगी.. – रश्मि प्रकाश
“ बेटा सुन आज आते वक्त मेरा एक काम कर देगा?” दमयंती जी ने सोमेश से पूछा
“ हाँ माँ बोलो ना क्या काम है?” सोमेश ने कहा
उधर रसोई में काम करती रचिता मन ही मन बुदबुदा रही थी.. जब से आई है जरा पल भर का सुकून नहीं है… कभी चाय कभी पानी तो कभी दवा बस अपने आगे पीछे लट्टू की तरह घुमाए रखती हैं… कल मेरा जन्मदिन है वो भी इनकी सेवा में बीत जाना.. कितना मन था सुबह मंदिर जाकर पूजा करूँगी फिर शाम को सोमेश के साथ किसी मॉल में शॉपिंग और डिनर कर घर आते …पर ये है ना महारानी जी इनके रहते हम बाहर कैसे जा सकते ….बाहर का खाना तो इन्हें हज़म नहीं होगा …पहले पकाओ फिर कही जाओ.. कितना अच्छा था ये उधर अपने घर में ही रहती थी…।
उधर दमयंती जी से बात कर सोमेश ऑफिस चला गया पूरे दिन रचिता मन ही मन सास को जली कटी सुनाती रही …ना अच्छे से बात की ना दो घड़ी उनके पास बैठी…. सोमेश ही माँ को ज़िद्द कर साथ ले आया था जब इस बार घर गए थे अब तो सास यही रहेंगी… सारी आज़ादी ख़त्म … सोच सोच कर रचिता को कोफ़्त हो रही थी ।
रात सोमेश जब घर आया तो पहले माँ से मिलने गया फिर चाय नाश्ता किया ।।
रात को खाने के बाद जब सब सोने जा रहे थे दमयंती जी ने रचिता को कमरे में बुलाया
“ बहू कल तुम्हारा जन्मदिन है ना… ये लो सलवार सूट… सोमेश से कहा था तुम्हारी पसंद का ही लाए… कल सुबह तुम उठ कर मंदिर चली जाना… नाश्ते खाने की चिंता ना करना वो मैं देख लूँगी… कल सोमेश की तो छुट्टी है नहीं पर जब वो ऑफिस से आ जाए तुम उसके साथ बाहर घूम आना।” दमयंती जी एक पैकेट रचिता को देती हुई बोली
“ पर माँ आपको कैसे पता मैं मंदिर जाती हूँ नए कपड़े पहन कर?” आश्चर्य से रचिता ने पूछा
“ बहू तुम हर बार मंदिर से निकल कर ही तो फ़ोन कर आशीर्वाद लेती हो तो कैसे याद नहीं रहेगा..।”दमयंती जी ने कहा
रचिता पैकेट लेकर सास को प्रणाम कर जाने लगी तो दमयंती जी बोली,“ बहू तुम जैसे पहले रहती थी वैसे ही रहो..मेरी वजह से परेशान मत हुआ करो.. बस जब से यहाँ आई हूँ तो लगता है घर में कोई तो है… तो बस तुम्हें अपने आसपास रखने को तुमसे कुछ ना कुछ करवाती रहती हूँ…..वहाँ घर पर तो अकेले ही रह रही थी ना।”
“ जी माँ ।” रचिता बस इतना ही कह पाई…
बाहर सोमेश ये सब खड़े होकर सुन रहा था जैसे ही रचिता अपने कमरे में पहुँची सोमेश ने कहा,“ जब से माँ आई है तुम कभी भी उससे ना तो ठीक से बात करती हो ना तुम्हें उसके पास बैठना पसंद है और जब तब जो माँ के लिए जली कटी मुझे सुनाती रहती हो बता नहीं सकता कितनी पीड़ा होती हैं….पर जब माँ ने मुझे कहा कल बहू का जन्मदिन है उसके लिए एक सूट ला देना और मुझे पैसे भी दिए मना करने लगा तो बोली तू अपनी तरफ़ से जो देना दे ….ये मेरी तरफ़ से ला देना…अब बताओ माँ के मन में तुम्हारे लिए क्या है… और तुम्हारे मन में माँ के लिए क्या?”
“ मुझे माफ कर दो सोमेश मैं माँ को समझ ही नहीं पा रही थी वो जब से यहाँ आई मुझे लग रहा था मेरा काम बढ़ गया है पर ये नहीं सोच पाई वो अपने अकेलेपन की वजह से मुझे अपने आसपास रखती थी… कल माँ को भी मॉल लेकर चलेंगे…ठीक है ना?” रचिता ने शर्मिंदा होते हुए कहा
“ चलो जल्दी ही समझ आ गया नहीं तो मैं सोच रहा था मेरी माँ का क्या होगा?” सोमेश रचिता को देखते हुए बोला
“ कुछ नहीं होगा अब माँ अपनी बहू के साथ अच्छे से रहेंगी तुम देख लेना।” रचिता कह कर सो गई
कल की सुबह उसे माँ समान सास से आशीर्वाद भी तो लेना था… इधर सोमेश अब माँ को लेकर थोड़ा बेफ़िक्र हो गया था ।
रश्मि प्रकाश
स्वरचित
मुझे माँ मिल गई – पुष्पा जोशी
महारानी बैठी मत रहना, अपने पापा को अच्छा भोजन बनाकर खिलाना और सारे काम बर्तन,कपड़े,झाड़ू पौछा अच्छे से करना, मैं नौकरानी हूँ, जो रोज तुम्हारे लिए भोजन बनाती हूँ, आराम से खाकर मोटिया रही हो। माँ तो भगवान को प्यारी हो गई, और इस बला को छोड़ गई मेरी छाती पर मूंग दलने के लिए,पता नहीं कब पीछा छूटेगा।एक तो रंग पक्का और शक्ल सूरत भी ऐसी नहीं कि कोई पसंद कर ले,न लक्षण ही अच्छे हैं।
पैदा होते ही माँ को खा गई। और… है ईश्वर इस कलमुँही, अपशकुनी से कब मुक्ति मिलेगी। विमला जी के तरकश से तीर चलते जा रहै थे, वह हमेशा रिया को जली -कटी सुनाती थी। तभी तरूण ने आकर कहा, माँ रिक्षा आ गया है।वह रिया को घूरती हुई, तरूण और श्वेता को लेकर अपने मायके चली गई।
रिया की ऑंखों से ऑंसू की बरसात हो रही थी और वह खिड़की से अपनी सौतेली माँ और भाई -बहिन को जाते हुए देख रही थी। उसका ध्यान टूटा जब उसके पापा ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा बेटा मैं तेरे दर्द को जानता हूँ।मैं यह भी जानता हूँ कि विमला तुझे हर पल जली कटी सुनाती है, बेटा उसे समझा-समझा कर थक गया हूँ।
मैं जितना समझाता हूँ,वह दुगने वेग से तुझपर गुस्सा उतारती है। कई बार सोचा तुझे होस्टल में भर्ती करवा दूं, मगर तुझे अपने से दूर करने के विचार से कांप जाता हूँ।बेटा जाने अन्जाने में, मैं तेरा दोषी बन गया हूँ। बेटा तू उसकी बात को दिल पर मत ले, तरूण और श्वेता तो तुझे बहुत प्यार करते हैं।
तू उसकी बातें सुनकर रोती है तो उसे बहुत मजा आता है। बेटा तू उसकी बात पर ध्यान ही मत दे, मैं हमेशा तेरे साथ हूँ। जब वह देखेगी की उसकी बात का तुझपर कोई कसर नहीं हो रहा तो वह खुद बोलकर पछताएगी। बेटा सब बातों को छोड़कर अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे, तेरी माँ तुझे डॉक्टर बनाना चाहती थी, तू अपने लक्ष्य पर ध्यान दे।
मैं उसके सामने, तुझसे ज्यादा इसलिए नहीं बोलता, क्योंकि मैं जानता हूँ, मैं तो बोलकर ऑफिस चला जाऊँगा और वह सारा बदला तुझपर निकालेगी। पापा की बातों से रिया को सहारा मिला उसने अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगा दिया, चार दिन बाद विमला जी आ गई और उनका जलीकटी सुनाने का क्रम चालू हो गया मगर अब रिया न रोई न कुछ कहा, बस अपनी पढ़ाई करती रही। उसकी ओर से कोई प्रतिक्रिया न देखकर धीरे-धीरे विमला जी का बड़बड़ाना कम हो गया था।
रिया की मेहनत रंग लाई और वह डॉक्टर बन गई थी। उसके लिए एक से बढ़कर एक रिश्ते आ रहै थे, अब विमला जी उनकी कही वे जली कटी बातें याद कर वे स्वयं शर्मिंदा थी। और एक दिन वह भी आया जब उन्होंने रिया से माफी मांगी।
रिया के पापा दूर खड़े मुस्करा रहै थे। रिया ने विमला जी से कहा आप मॉफी न मांगो माँ, बस मेरे सिर पर प्यार से हाथ रख दो, माँ को तो देखा भी नहीं, बहुत तरसी हूँ माँ के प्यार के लिए। लग रहा है मुझे आज माँ मिल गई।विमला जी का हाथ रिया के सिर पर था और ऑंखों से ऑंसुओं की धार बह रही थी।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
परवाह – संगीता अग्रवाल
” ये क्या बाबूजी आप फिर मीठा खा रहे है आपको कितनी बार मना किया है । पर आपको समझ ही नही आता क्यो इतना परेशान करते हो आप अपनी सेहत की परवाह क्यो नही करते !” नताशा अपने ससुर रमाकांत को दोस्तों साथ मिठाई खाते देख गुस्सा होते हुए बोली।
” माफ़ करना बेटा अब ऐसा नही होगा अब कभी मिठाई नही खाऊंगा पक्का अरे खाऊंगा क्या मिठाई की तरफ देखूंगा भी नही !” रमाकांत जी मिठाई को वापिस रखते हुए कान पकड़ कर बोले।
जवाब मे नताशा मुस्कुराते हुए वहाँ से चली गई तो रमाकांत जी भी मुस्कुरा दिये।
” यार तेरी बहू तुझे जली कटी बाते सुना गई और तू मुस्कुरा रहा है हिम्मत तो देखो उसकी ससुर को कैसे डांट रही थी। पता नही आजकल के बच्चो को क्या हो गया है सास ससुर की तो कोई कीमत नही इनके लिए !” रमाकांत जी का एक दोस्त उनसे बोला।
” अरे वो जली कटी नही सुना रही थी वो तो मेरे प्रति अपनी परवाह जता रही थी क्योकि उसे पता है मेरी शूगर बढ़ गई तो परेशानी मुझे होगी । और तुझे पता है ये मेरी बहू नही माँ है माँ जो मुझे बच्चो की तरह डांटती भी है और मेरा पूरा ख्याल भी रखती है !” रमाकांत जी हँसते हुए बोले।
” भला कोई बहू भी माँ की तरह ख्याल रख सकती है !!” एक दोस्त ने हैरानी से कहा।
” हाँ क्यो नही बहू नताशा जैसी हो तो रख सकती है । देख दोस्त दुनिया मे सभी लोग एक से नही होते कुछ बहुएं गलत हो तो जरूरी नही सभी गलत होंगी वैसे भी सभी सास ससुर भी तो अच्छे नही होते ना !” रमाकांत जी बोले।
सभी दोस्तों ने हां मे सिर हिला दिया उधर ससुर की दवाई लाती नताशा ससुर की बात सुन रुक गई और अपनी भीगी पलकें पोंछने लगी।
संगीता अग्रवाल
गरीब हैं तो क्या.. – विभा गुप्ता
” दूँगी एक थप्पड़ खींचकर.., चोर कहीं के।कुछ देखा नहीं कि लार टपकाने लगते हो तुम लोग।” मालती चंपा के बेटे के हाथ से रोटी छीनते हुए बोली तो चंपा की आँखों में आँसू आ गये।अपने बेटे को छाती से चिपकाते हुए बोली,” माफ़ कर दीजिये दीदी जी , बच्चा है,मैं समझा दूँगी इसे…।”
चंपा साल भर से मालती के यहाँ झाड़ू-बरतन का काम कर रही थी।मालती उसे हमेशा ही किसी न किसी बात पर टोक ही देती थी।चंपा पूरी मेहनत से उनका काम करती,फिर भी इतनी बातें सुनना…,उसे बहुत दुख होता था।उसका पति मजदूरी करता था।उसकी आमदनी से घर बड़ी मुश्किल से चलता था,इसीलिए तो उसे काम करना पड़ रहा था।उसका आठ साल का बेटा रजत स्कूल जाता था।गर्मी की छुट्टियाँ शुरु हो गई थी तो घर पर उसे अकेला कैसे छोड़ देती,इसीलिए काम पर उसे साथ ले आती थी।किचन में रोटियाँ रखीं थी,रजत का मन ज़रा ललच गया,उसने आधी रोटी तोड़ ली और मालती ने उसके बेटे को क्या कुछ नहीं कह दिया।
कुछ दिनों के बाद मालती का तेरह साल का भतीजा आशीष अपनी बुआ के घर छुट्टियाँ बिताने आया।वह घर में बहुत शैतानी करता,सामान इधर-उधर पटक देता लेकिन मालती उसे कभी कुछ नहीं कहती।
एक दिन मालती को मार्केट जाना था।उसने पर्स निकालने के लिये अलमारी खोली तो उसमें घड़ी नहीं दिखी।आशीष से पूछा तो वह साफ़ नकार गया।चंपा किचन में थी और रजत बाहर खेल रहा था।फिर तो मालती ने आव देखा न ताव, रजत का हाथ पकड़कर खींचती हुई उसे अंदर ले आई और डपटते हुए पूछी,” बता.., मेरी घड़ी कहाँ है?
उस दिन रोटी चुराई थी और आज घड़ी.., बता..?” मालती की डाँट से रजत डर गया और रोने लगा।चंपा किचन से बाहर आई और कुछ कहती,उससे पहले ही मालती का पति बोला,” मालती..,क्यों उस मासूम पर बरस रही हो, ये देखो.. तुम्हारी घड़ी आशीष ने अपने पाॅकेट में छिपाई हुई थी।”
कहते हुए उन्होंने मालती को घड़ी दिखाई तो चंपा गुस्से-से फट पड़ी, ” वाह दीदी जी, उस दिन मेरे बेटे ने आधी रोटी क्या खा ली तो आपने हमें इतनी जली-कटी सुना डाली और आज आपके भतीजे ने घड़ी चुराई तो कुछ नहीं।हम गरीब हैं तो क्या…,आप हमें कुछ भी कह देंगी,हम पर झूठा इल्ज़ाम भी लगा देंगी।पर अब नहीं..।संभालिये अपना घर…,कल आकर अपना हिसाब कर लूँगी।” कहते हुए उसने हाथ में लिया किचन का डस्टर ज़मीन पर पटका और रजत का हाथ पकड़कर तेजी-से बाहर निकल गई।मालती हतप्रद होकर उसे जाते हुए देखती रह गई।
विभा गुप्ता
रण चंडी – डा.मधु आंधीवाल
सरकारी क्वार्टरस बराबर बराबर बने होते हैं । एक ईंट की दीवार होती है। एक दूसरे की आवाजें कभी कभी कानों में टकरा ही जाती हैं । खास कर रात के सन्नाटें में । विभा के बराबर वाले क्वार्टर में रहते हैं मि. शर्मा और उनकी पत्नी रजनी अपने बेटे रचित बहू सविता और तीन बेटियाँ आशी ,कनिका और रानू के साथ । बेटे की शादी को 6 साल हुये थे और सविता तीन कन्याओं की मां बन गयी ।
हम सब महिलाएं जब भी उसे देखती बहुत दया आती थी । उसे हर समय प्रताड़ित किया जाता जैसे तीन कन्याओं को जन्म उसने जानबूझ कर दिया हो । लगातार प्रसव के कारण वह बहुत कमजोर हो गयी थी । मायके में भी कोई नहीं था क्योंकि केवल बूढ़ी मां थी वह भी सविता की शादी के कुछ दिन बाद परलोक वासी हो गयी । 15 दिन से रात को लगातार मि. शर्मा के घर में चीख पुकार होती पर कुछ पता नहीं चल पाता । आज शायद रचित और सास रजनी ने सविता को पीटा था वह जोर जोर से चीख कर कह रही थी कि लड़की हो या लड़का मै कोई टैस्ट नहीं कराऊंगी और यदि लड़की हुई तो उसका एबोर्शन नहीं कराऊंगी यदि तुमने अधिक परेशान किया तो पुलिस को बुला लूंगी । रजनी बहुत जोर से चीख कर बोली बहुत जु़बा लड़ाती है । ढीठ होगयी है । मै अपने बेटे की दूसरी शादी कर लूंगी मुझे बेटा चाहिये । आज तो जैसे सविता बिलकुल रण चंडी बन गयी थी बोली देखती हूं कौन मुझे और मेरी बेटियों को यहाँ से निकालता है भाग कर नहीं आई सात फेरे लिये हैं और तुम सब हो जो मेरे साथ मेरी बेटियों और आजन्में बच्चे का शोषण कर रहे हो देखती हूँ कैसे दूसरी शादी होती है।
स्वरचित
डा.मधु आंधीवाल
रिपोर्ट कार्ड – मोनिका रघुवंशी
ये देख लो, तुम्हारे लाडले का रिपोर्ट कार्ड… इतने कम नम्बरों से पास हुआ है। इससे तो अच्छा है कंही चुल्लू भर पानी मे डूब मर।कितना खर्च करता हूँ इसकी पढ़ाई लिखाई पर लेकिन ये नालायक का नालायक ही रहेगा। वो वर्मा की बेटी इसी के स्कूल में पढ़ती है टॉप कर गयी।
जाने भी दो जी पास तो गया न आप भी जब देखो उसके पीछे ही पड़े रहते हैं। सुनैना ने बात संभालते हुए रौनक को अंदर जाने के लिए इशारा कियस। परन्तु पिता के मुंह से अपने लिए जली कटी बातें सुनकर रौनक गुस्से में घर से निकल गया। बारहवीं की परीक्षा में महज तृतीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ था रौनक, उसका मन पढ़ाई लिखाई में कम और गायकी में ज्यादा लगता था।आये दिन मोबाइल पर अपने गानों की रील और वीडियो बनाकर अपलोड करता रहता। पिता चाहते थे कि जो सपना वो अपनी जिंदगी में पूरा नही कर पाए अब बेटे को पूरा करता हुआ देखें।
अधिकांश भारतीय घरों में यही देखने मिलता है माता पिता जो खुद हासिल नही कर पाते अपने बच्चों से उसकी उम्मीद लगा बैठते हैं।
जब देर शाम हो गयी और रौनक घर नही आया, तो सुनैना की बैचेनी बढ़ने लगी, पति को बताया तो उसे ज्यादा सिर पर मत चढ़ाओ किसी दोस्त के घर बैठकर गाने गा बजा रहा होगा।
अब तो रात के 10 बज गए थे सुनैना के साथ साथ पहली बार उमाकांत को भी डर लगने लगा। उसके सारे दोस्तों के घर पता कर लिया था पर रौनक कंही भी नही था। सारी रात यूं ही गुजर गई थी सुनैना मुश्किल से अपनी रुलाई रोके बैठी थी कि मोबाइल की रिंगटोन सुनकर कलेजा मुंह को आ गया।
किसी अस्पताल से फोन था कि आप यंहा आ जाइए, बाकी बातें बाद में बताते हैं।
सुनैना और उमाकांत को काटो तो खून नही, जैसे तैसे गिरते पड़ते अस्पताल पहुंचे। वंहा रौनक के साथ एक पुलिस कर्मचारी और शहर के बड़े संगीतकार प्रकाश जी जी भी थे। रौनक ने बताया कि वह गुस्से में अपनी जान देने नदी की ओर ही गया था वंहा इन महोदय जी की गाड़ी टकराकर नदी में गिर गयी थी जिससे गाड़ी में बैठी 10 वर्षीय बेटी उछलकर डूबने लगी।उसे बचाने के लिए रौनक नदी में कूद गया। जब तक रौनक पानी से बाहर आया फेफड़ों में पानी समा जाने की वजह से अचेत हो गया।
रौनक को सही सलामत देखकर उमाकांत सुबह की सारी बातें भूल गए, बेटे को गले लगाते हुए रोये जा रहे थे। कहते हैं अंत भला तो सब भला अब रौनक की गायकी को एक मजबूत दिशा जो मिल गयी थी।
मोनिका रघुवंशी
पूर्वाग्रह – प्राची लेखिका
मधु जी जी बड़े चाव से अपनी नववधू तान्या का स्वागत करती हैंं।
तान्या पढ़ी लिखी सुशील लड़की है, लेकिन पूर्वाग्रह के चलते उसके मन में सास की छवि एक बुरी महिला के रूप में ही उभरती हैं।
मधु जी तान्या से बहुत प्रेम भरा बर्ताव करती हैं लेकिन तान्या उनसे सही से बात ही नहीं करती। सारा दिन उसकी मम्मी फोन पर उसे हिदायतें देती रहती। कभी-कभी तो तान्या अपनी सास को #जली कटी भी सुना देती।
मधु जी सारी परिस्थिति भांप रही थी। वह जानती थी कि तान्या दिल से बुरी नहीं है, बस उसका मन थोड़ा चंचल है। दूसरों की बातों के बहकावे में जल्दी आ जाती है। मधुजी अपने घर को बचाने के लिए हर संभव प्रयासरत थी।
उन्होंने प्यार से तान्या को समझाया भी था लेकिन वह सुनने को तैयार ना थी। अगर सास बहू में झगड़ा होता तो चक्की के दोनों पाटों के बीच पिसता उनका बेटा ।
एक दिन मधु जी के बेटे आदित्य ने अपनी मम्मी से पूछा भी था, “मम्मी पिछले कुछ दिनों से देख रहा हूँ, आप कुछ खोई- खोई सी रहती है। क्या बात है मम्मी? क्या तान्या का व्यवहार कुछ सही नहीं है।”
मधु जी बोली,”नहीं बेटा ऐसी कुछ बात नहीं है। ब्याह शादी की थकान है ना। कुछ दिन में उतर जाएगी।”
मधु जी ने तान्या के खराब व्यवहार के विषय में अपने बेटे आदित्य को कुछ भी नहीं बताया। वह नहीं चाहती थी कि बहू बेटे के मधुर वैवाहिक जीवन में कुछ खटास आए। वह स्वयं ही सह रही थी। उन्हें अपने भगवान पर पूरा भरोसा था।
एक दिन तान्या अपनी फ्रेंड्स के साथ पार्टी करने गयी। लौटते वक्त स्कूटी स्लिप होने से उसके पैर में फ्रैक्चर हो जाता है।
तान्या अपनी मम्मी को आने के लिए कहती हैं, लेकिन उसकी मम्मी अपनी फ्रेंड्स के साथ टूर की व्यस्तता का बहाना बनाकर आने के लिए मना कर देती हैं।
वही उसकी सास और उसका पति उसकी रात-दिन सेवा करते हैं।
तान्या को एहसास होता है कि वह कितनी गलत थी। तान्या की आंखों से पश्चाताप के आंसू झर झर गिरने लगते हैं। तान्या अपनी सास से माफी मांगने लगती है। मधु जी उससे बड़े प्यार से अपनी बाहों में भर लेती हैं।
स्वरचित मौलिक
प्राची लेखिका
अहसास !! – अंजना ठाकुर
कमला देवी कमरे से चिल्ला रही थी पर बहु अनसुनी कर अपने काम मै व्यस्त थी कमला देवी बिस्तर से उठने मैं असमर्थ थी और उनका बिस्तर गीला हो गया था जिस वजह से वो कपड़े बदलने के लिए आवाज लगा कर चिल्ला रही थी
काफी देर बाद बहू आई और जली कटी सुनाने लगी की थोड़ी देर गीले मैं रहोगी तो कुछ बिगड़ नही जायेगा
अब मै रसोई का काम करके ही बदल पाऊंगी है भगवान जाने कौन से पाप किए थे जो ऐसी सेवा करनी पड़ रही है जाने कब मुक्ति मिलेगी
उसकी जली कटी बातें सुन कमला देवी की आंखों से आंसू निकल गए आज उन्हे अहसास हुआ की ये बहू के नही उनके बुरे कर्म है जो उन्होंने अपनी सास के साथ किया अब बही उनके साथ हो रहा है अब उन्हें याद आ रहा था की कैसे अपनी सास को बात बात पर जली कटी सुनाती थी बेचारी पूरा घर सम्हालती फिर भी कमला ना उन्हे भरपेट खाने को देती बीमार हो जाने पर दवाई पर भी खर्च नहीं करने देती बल्कि सेवा करने पर अपने पति से खूब लड़ती कहीं न कही उनकी बददुआ लगी होगी उन्होंने बेकार मैं उनको सताया
तभी बहू बोली अब तो क्यों रही हो इतना कर तो रहे है
कमलाजी बोली बस यही दुआ कर रही हूं कभी तेरे साथ ऐसा न हो जो मेरे साथ हो रहा है..!
अंजना ठाकुर