जलन में अंधा – गीता वाधवानी  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : सुमित्रा-“अरे पुष्पा कैसी है और यह मोहल्ले में किस बात की मिठाई बांटी जा रही है, अरे भई हमें भी तो कुछ बताओ।” 

पुष्पा-“अरे सुमित्रा, मैं तेरे घर ही आ रही थी। यह लो तुम भी मुंह मीठा करो। मेरी बेटी प्रिया की हैदराबाद में एक बहुत अच्छी कंपनी में जॉब लग गई है।” 

सुमित्रा-“अरे वाह! बहुत-बहुत बधाई हो। सच में प्रिया है भी तो बहुत होशियार और पढ़ाई में उसने मेहनत भी बहुत की है।” 

पुष्पा-“हां तुम ठीक कह रही हो सुमित्रा, पढ़ाई के चक्कर में उसे ना दिन रात का होश रहता था और ना ही खाने पीने का। मेरी बच्ची की मेहनत सफल हुई।” 

सुमित्रा-“अच्छा यह तो बताओ कि उसे कब जाना है और रहेगी कहां?” 

पुष्पा-“15 दिन बाद जाना है और कंपनी की तरफ से 10 दिन किसी होटल में स्टे मिलेगा। तब तक कोई किराए का फ्लैट ढूंढ लेंगे। सुमित्रा, यह लो मिठाई भाई साहब को भी देना और पीयूष को भी। वैसे पीयूष के इंटरव्यू का क्या हुआ?” 

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सुमित्रा-“अभी तो कुछ नहीं हुआ, देखो आगे क्या होता है। पुष्पा, तुमसे क्या छुपा है, पीयूष प्रिया की तरह होशियार नहीं। पढ़ाई में तो सामान्य ही था। मुझे तो पीयूष की बहुत चिंता रहती है न जाने भविष्य में क्या करेगा।” 

पुष्पा-“सुमित्रा, तू इतनी चिंता मत किया कर। सब बच्चों का अपना अपना दिमाग होता है। सब अच्छा ही होगा।” 

ऐसा कहकर पुष्पा चली जाती है और सुमित्रा अपने घर के अंदर जाकर पीयूष को समझाती है कि अपने करियर पर ध्यान दो, समय बर्बाद मत करो। 

पीयूष, प्रिया की हर कक्षा में सफलता बचपन से देख रहा था और प्रिया की सफलता की वजह से उसे घर में बहुत ताने सुनने पड़ते थे, इसीलिए वह अब मन ही मन प्रिया से जलने लगा था। प्रिया की जॉब की बात सुनकर उसकी जलन और भी बढ़ गई थी, पर फिर भी उसने प्रिया के घर जाकर उसे बधाई दी और उससे पूछा कि उसे हैदराबाद कब जाना है? 

सारी बातें करने के बाद पीयूष जब जाने लगा, तब प्रिया की नजर उसकी गर्दन पर बने टैटू पर गई। प्रिया ने कहा-“अरे पीयूष, बड़ा ही यूनिक टैटू बनवाया है तुमने, सो प्रिटी।” 

पीयूष-“थैंक यू प्रिया।” 

प्रिया को हैदराबाद छोड़ने के लिए उसके पापा उसे ट्रेन से ले जाते हैं। ट्रेन से उतर कर दोनों समान लेकर प्लेटफार्म पर खड़े होते हैं, फिर टैक्सी लेने के लिए बाहर की तरफ चल पड़ते हैं। प्रिया कुछ आगे निकल आती है और फिर अपने पापा को अपने साथ ना देख कर पीछे की तरफ मुड़ती है, तभी सामने से कोई मास्क लगा कर अपना चेहरा ढक कर आता है और बोतल से प्रिया पर कोई तरल पदार्थ फेंकता है, फेंकते समय उसे यह अनुमान नहीं था कि प्रिया अचानक ही पीछे की तरफ मुड़ जाएगी।

प्रिया के मुड़ने के कारण वह सारा पदार्थ प्रिया के बैग पर गिर जाता है और बैग जलकर खराब हो जाता है। इतने में प्रिया के पापा भी वहां पहुंच जाते हैं। प्रिया यह सब देखकर बहुत घबरा जाती है। जिस इंसान ने वह तरल पदार्थ फेंका था वह अपना निशाना चूकता देखकर डर जाता है और हड़बड़ी में भागने के कारण किसी से टकरा जाता है। 

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प्रिया और उसके पापा सोचते हैं कि हम तो यहां पहली बार आए हैं तब यहां ऐसा कौन सा हमारा दुश्मन है। वे लोग इस हमले की रिपोर्ट करने की सोचते हैं। बाहर निकलते ही उन्हें पीयूष मिल जाता है। दोनों उसे देखकर हैरान रह जाते हैं। उनके पूछने पर पीयूष बताता है कि-“कल मेरा किसी कंपनी में इंटरव्यू था, मैं कल से यहां आया हुआ हूं। आज तो मैं यहां ट्रेन में चढ़ने के लिए आया था क्योंकि मुझे वापस जाना है, पर यहां आप मिल गए।” 

प्रिया के बैग की बुरी हालत देखकर वह प्रिया से पूछता है कि यह क्या हुआ? 

प्रिया उसे पूरी बात बताती है। पीयूष कहता है कि “हमें रिपोर्ट करनी चाहिए। चलो मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूं, दो से भले तीन।” 

प्रिया-“पर तुम्हारी ट्रेन?” 

पीयूष-“कोई बात नहीं प्रिया, मैं कल चला जाऊंगा, मैनेज कर लूंगा।” 

तीनों जाकर रिपोर्ट लिखवाते हैं और प्रिया लेडी इंस्पेक्टर को कान में कुछ कहती है। इंस्पेक्टर पीयूष के पास आकर पूछती है”क्यों भई! यह सब तुमने क्यों किया?” 

पीयूष बहुत घबरा जाता है और कहता है “मैंने कुछ नहीं किया, मैं क्यों करूंगा, प्रिया तो मेरी दोस्त है, मैं क्यों इस पर ज्वलनशील पदार्थ डालूंगा?” 

इंस्पेक्टर-“मैंने तो किसी चीज का नाम लिया ही नहीं। अब यह नाटक बंद कर और सच बता।” 

पीयूष-“प्रिया तुम तो मुझे जानती हो, तुम कुछ कहो ना।” 

प्रिया-“हां सच में, मैं तुम्हें जानती हूं क्योंकि जब तुम मुझ पर हमला करके भाग रहे थे और किसी से टकराकर गिर गए थे तब मैं तुम्हारा टैटू देख कर तुम्हें पहचान लिया था। अब  सच्चाई बता दो पीयूष।” 

अब पीयूष टूट गया और रोने लगा। उसने कहा-“प्रिया बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थी। वह हमेशा फर्स्ट आती थी और मैं रो-धोकर पास होता था। घर में मुझे इसकी वजह से ताने सुनने पढ़ते थे।”वह लड़की होकर भी तुझसे आगे निकल गई, और तू निकम्मा हमारी छाती पर मूंग दल रहा है, शर्म कर, डूब मर।”ताने सुन सुनकर मैं बहुत परेशान हो चुका था, तब मैं प्रिया को नुकसान पहुंचाने की बात सोची ताकि यह अपनी जॉब पर पहुंच ही ना सके। मैं जलन में अंधा हो गया था। प्रिया, अंकल जी मुझे माफ कर दो।” 

पुलिस ने उसे गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया और प्रिया अपनी जॉब पर पहुंच गई। 

स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली

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