Moral stories in hindi : कई बार कहावतें इतिहास के पन्नों से निकलकर व्यक्ति के जीवन को प्रदर्शित करती हैं, ऐसी ही एक घटना को प्रदर्शित करती मेरी ये कहानी कालबेलिया नृत्य की चिर परिचित नृत्यांगना गुलाबो देवी के जीवन को चरितार्थ करती है, जो राजस्थान के कबीले के लोगों सपेरा जनजाति से सम्बंध रखतीं हैं।
जगरानी ओ जगरानी सुण तो, देख तो, जल्दी से दुलारी दाई को बुला कर लेकर आ, भरतू की घरवाली ईश्वरी को दर्द उठ आए हैं, लगता है कि जचकी का समय आ गया है, और फिकर की बात तो जै है कि भरतू भी भी घार पर ना है।
जा जल्दी दौड़ कर जाना, दुलारी दाई को जल्दी से लेकर आ जा, दर्द बहुत तेजी से बढ़ रहें है, लागै है ज्यादा समय न लागेगा। भगवान करे कि छोरा ही हो ,जो भरतू के काम में तो हाथ बांट सकेगा ,उसकी बीन के साथ साथ उसके पुश्तैनी सपेरे के काम को भी आगे लेकर जा सकेगा।
जो छोरी हुई तो भरतू के, तो छोरी का कि करेगा, इतना कह कब भरतू की चाची घर के अंदर भरतू की घरवाली ईश्वरी को देखने चली गई,जो प्रसव पीड़ा से तड़प रही थी।
उन्होंने ईश्वरी से कहा बस अब थोड़ा ही समय लागेगा बींदणी, तू बस लंबी लंबी सांस लेकर दर्द बढाती जा, देख जल्द खुशखबरी मिल जावेगी।
थोड़ी ही देर में दुलारी काकी आकर सब कुछ संभाल लेती है, जगरानी से कहती है ओ जगरानी, जा एक भिगोना तेज गर्म पानी लेकर तो आ।
उधर ईश्वरी दर्द के बीच से ही दुलारी काकी से बोली,काकी जै छोरी हुई तो वो भी तो अपणा खून होवे हैं, जै भी (भरतू) यही बात बोलकर गये है कि जो भी संतान हो, वो भगवान का वरदान होवे हैं। आप बस राजी खुशी जापा करा दीजौ, ये दीपावली वाले दिन सुबह ही आ जावेंगे और आण कर सब कुछ संभाल लेवेंगें।
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जगरानी जो ईश्वरी की रिश्ते की बहन लागे है कहती है, तू जा समय पर बस भगवान को मणा की जचकी जल्दी और स्वस्थ हो जावे यह बख्त इन बातों का ना है।
थोड़ी देर बाद ईश्वरी एक सुंदर छोरी को जन्म देकर बेहोश हो जाती है। सब घर बिरादरी की औरतें फैसला लेती हैं कि छोरी को मिट्टी में दफना देते हैं, भरतू छोरी का कि करेगा,बेकार में अपने बापू का खर्चा ही बढ़ाएगी, जै छोरा होता तो और बात थी।
“ये उपेक्षा ही तो थी बेटी की उस नवजात बच्ची को जन्म लेते के साथ ही दफनाने की बात हो रही थी।”
बस फिर क्या था वे सब मिलकर छोरी को जिंदा ही मिट्टी में दफना देती हैं ।थोड़ी देर बाद जब ईश्वरी को होश आता है तो वो अपनी संतान के बारे में अपनी बहन जगरानी से पूछती है।
सारी बात सुनकर उसका कलेजा मुंह को आ जाता है। दोनों बहनें जा कर छोरी को मिट्टी से निकाल लेती है ,भगवान का करिश्मा देखो नन्ही जान मौत को हराकर वापस आ जाती है। इसी को कहते हैं
“जाको राखे साइयां, मार सके ना कोई,
बाल न बांका कर सके, जो जग बैरी होय।”
शायद किसी खास मकसद से भगवान ने या छोरी को जन्म दिया था ।धनतेरस वाले दिन जन्म लेने के कारण ही इसका नाम धन्वंतरी रखा गया।
जब भरतू काम से वापस आया तो गुलाब के से रंग वाली छोरी को देखकर फूला न समाया,वो प्यार से इसे गुलाब ही कहने लगा।
आस पड़ोस वाले भी भरतू के देखा देखी इसे गुलाबी कहने लगे।
सरकारी दस्तावेजों में इनका नाम गुलाबो दर्ज हो गया।
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गुलाबो अपने बापू के साथ जाकर उसकी बीन की धुन पर नाचती, अपने बापू के काम में मदद करती। गांव वाले भरतू से कहते कि कैसा बाप है रे तू ,जो अपनी छोरी को गांव-गांव नचवाता है ।इस पर भरतू कहता कि मेरी छोरी के सिर पर मां सरस्वती का वरदान है ,देखना एक दिन इसका यही नृत्य हम सबकी पहचान बनेगा।
गुलाबो ने पहली बार पुष्कर मेले में अपना प्रोग्राम दिया। फिर सत्रह वर्ष की उम्र में ही गुलाबो देवी ने अपना पहला स्टेज प्रोग्राम वॉशिंगटन में दिया। जिससे कालबेलिया नृत्य को देश-विदेश में पहचान मिली। गुलाबो देवी ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तो गुलाबो को अपनी बहन बना लिया। 2016 में उन्हें पदम श्री से सम्मानित किया गया। जिससे प्रेरित होकर उनके समाज में लड़कियों को उनके अधिकार देने की शुरुआत हुई।
कभी जिस समाज ने गुलाबों के रास्ते पर कांटे बिछाए ,आज उसी समाज के के लिए गुलाबो मान सम्मान और अभिमान की जीती जागती तस्वीर है।
ऋतु गुप्ता
खुर्जा बुलंदशहर
उत्तर प्रदेश
चित्र साभार गूगल से