भोलाराम, बंसत कुमार और घनश्याम दास तीनो ही दिल्ली के सदर बाजार में एक ही लाइन में अपनी अपनी दुकान संभाल रहे थे। तीनो पड़ोसी होने के नाते एक दूसरे की इज्जत किया करते थे। भोला राम और बसंत कुमार अच्छे परिवारों से थे तो वहीं घनश्याम दास की गिनती भी खाते पीते परिवार में ही होती थी।
दिन में चाय पानी साथ साथ कई बार कर ही लेते थे। धीरे धीरे वो अच्छे दोस्त बनते जा रहे थे। घनश्याम दास दिमाग का भी धनी था। एक दिन उसने अपने दोनो दोस्तों को एक साथ मिल कर बिजनेस करने का प्लान बताया तो दोनो को काफी पसंद आया।
तीनो ने बहुत उत्साह और जोश के साथ अपना नया बिजनेस खड़ा किया। तीनो की मेहनत से बिजनेस दो तीन साल में ही खूब चल निकला और तीनो को खूब फायदा भी हुआ।
तीनो के परिवारों में मेल जोड़ खूब बढ़ गया। सब त्योहार एक साथ मनाते । खुशियाँ जैसे उनके घर का रास्ता पूछ कर आने लगी थी। जब पैसा खूब आने लगा तो घनश्याम दास को लगा कि प्रॉफिट तीन हिस्सों में बेवजह ही बंट रहा है। मेरे प्लान और दिमाग की वजह से ही ये कमाई हो रही है। अगर हम तीन न हो कर दो होते तो फायदा ज्यादा होता।
बस कहते हैं न जब दिमाग में “मैं” हावी हो जाता है तो विचार और भाव बदलते देर नही लगती। भोला राम बहुत ही सीधा और सरल था। मेहनत पूरी करता पर अपने दोस्तों पर उसे पूरा विश्वास था। घनश्याम दास की नीयत बदल गयी है ये उसके दोस्त नही जानते थे।
एक दिन मौका पा कर घनश्याम दास ने भोला राम को अपने ज्यादा मुनाफे के रास्ते को साफ करने के लिए उसका गला घोंट कर मार दिया। प्रत्यक्ष प्रमाण तो कुछ नही था पर घनश्याम दास का दुर्भाग्य ही था कि बसंत कुमार ने उसे भोला राम को मारते हुए देख लिया था।
उसने भोलाराम की पत्नी सुनीता को सब बता दिया। उसने घनश्याम दास के खिलाफ गवाही देने का वादा भी किया। घनश्याम दास भी कम नही था। उसे पता चल गया कि बसंत ने उसे खून करते हुए देख लिया है।
उसने बसंत को ढेर सारे पैसो का लालच दिया। अपनी कोठी भी उसके नाम करने की बात बोली तो बसंत राम ने अपना फैसला बदल दिया। घनश्याम दास पक्का व्यापारी था वो बसंत की कमजोरी जानता था। उसे भी पैसो की भूख थी और उसकी कोठी बसंत को बहुत पसंद है वो ये बात जानता था।
फिर क्या था वो गवाही से मुकर गया और घनश्याम दास साफ बच गया। केस नीचे की अदालत में बेशक खत्म हो गया था पर ऊपर की अदालत में तो अब शुरू हुआ था। भोलाराम की उनकी ही जैसी सीधी पत्नी ने भरे कोर्ट में बसंत कुमार और घनश्याम दास को ईश्वर से डरने को कहा और वो भी फलेंगे फूलेंगे नही ये दुखी दिल की बद्दुआ ही तो थी। कि सेठ घनश्याम दास का 6 महीने में काम काज ठंडा पड़ गया। वो पागल हो गया था। एक दिन इसी पागल पन में वो एक कार के नीचे आ गया और मर गया। उसके बाद उसके बच्चे जो सिर्फ मौज करना जानते थे। बाकी सब बचा खुचा बेच कर उसे खा पी कर सड़क पर आ गए। ये सिर्फ दो सालों मे हो गया।
बसंत कुमार को भी पागलपन के दौरे पड़ने लगे। वो पानी से भी डरने लगा। उसने अपने आप को मारने की अनगिनत बार कोशिश की और एक दिन रात को रेल की पटरियों पर जा कर लेट गया। ट्रेन ने उसके कितने टुकड़े कर दिए पता ही नही चला।
दो साल में दो परिवार उनके परिवार के मुखिया के लालच वजह से तबाह हो गए। उधर दूसरी तरफ भोलाराम की विधवा और उसके बच्चों को इंसानियत की खातिर भी उसके पार्टनरों ने सहारा नही दिया। वो विधवा औरत अकेले ही अपने बच्चों को पालती रही। सालो साल बीत गए और भोलाराम के तीनो बच्चे अच्छी परवरिश और अच्छे संस्कारों की वजह से आज भी सर ऊँचा करके इज्जत से जी रहे हैं।
ये कहानी किसी की आँखो देखी सच्ची घटना है। जब मुझे ये सुनायी गयी तो ईश्वर पर मेरी आस्था और दृढ़ हो गयी है। दसवीं में अंग्रेजी का एक पाठ था, “GOD SEES THE TRUTH BUT WAITS”! “भगवान के घर देर है पर अंधेर नही”।।
किसी के साथ कुछ अच्छा नही कर सकते तो बुरा भी मत करो। बस यही कहना है और यही समझा भी है।