जैसी करनी वैसी भरनी – नेकराम : Moral Stories in Hindi

दुल्हन बनकर जब मैं पहली बार अपने ससुराल आई थी तब अपनी पढ़ाई लिखाई और अपनी सुंदरता पर मुझे बड़ा घमंड था ससुराल में काम करने पर मुझे शर्म महसूस होती थी सारा दिन टीवी से चिपकी रहती थी सासू मां ही घर का सारा काम करती थी —

पति तो मेरा मेरी उंगलियों में नाचता था सास ससुर की मैंने कभी कदर नहीं कि उनके घर पर रहकर मेरी दादागिरी चलती रही पति का सारा पैसा मैं अपनी मुट्ठी में रखती थी मेरी पहले एक बेटी हुई फिर दो बेटे हुए उनकी देखभाल भी सास ससुर से करवाती थी

,,जब तक मैं उनसे घर के दो चार काम ना करवा लेती उन्हें खाने के लिए रोटी का एक टुकड़ा भी नहीं देती थी यह सिलसिला कई सालों तक यूं ही चला रहा और एक दिन सास ससुर इस दुनिया से चल बसे —

अब तक मेरे तीनों बच्चे जवान हो चुके थे बेटी बड़ी थी इसलिए बेटी की शादी शहर में एक पढ़े-लिखे लड़के के साथ कर दी फिर मैंने अपने लड़कों के लिए लड़कियां ढूंढ़नी शुरू की ,, शहर की दो लड़कियां मिल गई पढ़ी-लिखी थी और सुंदर थी —

साल भर के भीतर दोनों लड़कियां बहू बनकर मेरे घर आ चुकी थी मेरे बेटे पहले मुझे सैलरी देते थे शादी के बाद अपनी अपनी पत्नियों के हाथों में सैलरी देने लगे दोनों बहुएं ऑनलाइन से खाना मंगवाती और  बिस्तर पर बैठी बैठी दिन भर खाती रहती

और सारा दिन मोबाइल में लगी रहती मैं सारा दिन भूखी ही घर में अपना समय बिताती बहुओं के कपड़े धोती जब कभी मैं गुस्से में उन्हें धमकाती तो वह दोनों बहुऐ दहेज मांगने के आरोप में मुझे जेल भेजने की धमकी देती …

मेरे दोनों बेटे मेरी एक बात नहीं सुनते ड्यूटी से आने के बाद अपनी अपनी बीवियों के लिए कभी चिली पटेटो कभी मोमोज ,,कभी समोसे कभी आइसक्रीम लेकर आते और मुझे चिढ़ा चिढ़ाकर खाते बेटे भी बहू के साथ मिलकर रहते और मेरे कमरे में कभी झांकते भी नहीं ना मेरा हाल-चाल पूछने मेरे कमरे में आते हैं ..

1 दिन मैंने बहुओ से कहा मेरे बेटों की सारी सैलरी तो तुम रख लेती हो घर में कुछ भी पकाती नहीं हो मैं और तेरे ससुर जी सारे दिन भूखे पड़े रहते हैं शाम को बस गिनती की दो रोटी मिलती है उन दो रोटी से हमारा पेट नहीं भरता इसलिए मैं घर छोड़कर जा रही हूं  वृद्धाआश्रम के लिए

तब दोनों बहुओं ने मुझे एक मोटी रस्सी से एक कुर्सी में बांध दिया और एक पागल डॉक्टर को बुला लिया वह पागल खाने का डॉक्टर था बहुओं ने कहा हमारी सास पागल हो गई है वृद्धाआश्रम जाने का भूत सवार है अगर हमारी सास आश्रम चली गई तो हमारा खाना कौन पकाएगा हमारे कपड़े कौन धोएगा और हमारे बच्चों की देखभाल कौन करेगा

तब डॉक्टर ने मुझे करंट के बड़े-बड़े झटके लगाए मेरा तो पूरा दिमाग ही हिल गया चक्कर आ गए शाम को दोनों बेटे आए और बोले ,, क्या हमारी मां पागल हो गई है,,  यह तो बड़ी खुशी की बात है इस बुढ़िया को अब जंजीर से बांधकर रखना पड़ेगा

        ,, अब मैं घर के किसी कोने में जंजीर से बंधी रहती हूं मुझे पागल घोषित कर दिया गया है डॉक्टर रोज आता है और बिजली के झटके देकर चला जाता है आज मैं पछता रही हूं जब मैं अपने सास ससुर को दुखी करती थी तब मुझे इस बात का ज्ञान ही नहीं था कि मेरी औलादें यह सब गलतियां मुझसे ही सीख रहे हैं,,

              ,, आज उसी का फल भुगत रही हूं

नेकराम सिक्योरिटी गार्ड

मुखर्जी नगर दिल्ली से स्वरचित रचना

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