जागरूक – वंदना चौहान

माँ आपने घर के कागजात तैयार करवा लिए क्या ?कब करवा रही हो?

रजिस्ट्री डेट तय कर दो ।

मैं उसी दिन सीधे रजिस्ट्रार ऑफिस पहुँच जाऊँगी और हाँ अपने लॉकर की चाबी भी ले आना ।

मैं देखती हूँ इस भाभी को तुझे पलट कर जवाब देती है जब दोनों सड़क पर आ जायेंगे तब पता चलेगा।

ठीक है बेटा ,पर

पर-वर कुछ नहीं, तुझे  पता नहीं माँ घर की असली लक्ष्मी बेटियाँ ही होती हैं। मैं तो पढ़ी-लिखी हूँ ।अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हूँ । मैं इस गलती के लिए उन्हें कभी माफ नहीं करूँगी और उन दोनों के लिए कुछ भी नहीं छोडूँगी और सुनो वह गाँव का खेत है ना , उसके लिए भी मैं ग्राहक ढूँढ रही हूँ , आपको भी कोई ग्राहक मिले तो बात कर लेना हम उसे बेच देंगे । उसके बाद मैं आपको अपने घर ले आऊँगी हम दोनों आपकी बहुत सेवा करेंगे आप चैन से यहाँ रहना।

पर ,बेटी गाँव का खेत तो पुरखों की जमीन है ,खानदान की इज्जत है आधी जिंदगी  गुजारी है मैंने वहाँ , पुरखों की आत्मा बद्दुआ देगी ।


अरे  आप भी न माँ   इस 21वी सदी में भी फालतू की बात करती हैं ।  बेच दो  सबको ।

उन दोनों के लिए जायदाद का एक टुकड़ा भी नहीं बचना चाहिए ।

तो तैयारी करो सब ।  मैं वापसी में आपका भी टिकट करवा लूँगी और आपको अपने साथ ले आऊँगी । आखिर एक बेटी ही माँ के  काम आती है । चल अब फोन रखती हूँ दरवाजे पर कोई है ।

इतना कहकर मालिनी ने फोन काट दिया। दरवाजे पर कामवाली रूबी को देख भड़ककर- ” आज इतनी लेट क्यों? मैं तो कब से इंतजार  कर -कर के थक गई । तुझे पता है कितनी परेशानी होती है चल अब अंदर आ जा।

 रूबी ने सहमते हुए कहा-  मैडम आज मैं बाजार गई थी भाभी की बहन की शादी है । भाई ऑटो चलाता था  उसका एक्सीडेंट हो गया है पैसे न होने के कारण भाभी अपनी बहन की शादी में नहीं जा पा रही थी । मुझे पता चला तो अपने बचत के पैसों से उसे सामान कपड़े वगैरह दिलवा कर आई हूँ आखिर उसकी सगी छोटी बहन की शादी है नहीं जाती तो बड़ा मलाल होता उसे । 

और वहाँ इतने रिश्तेदारों में वह कही तो हमारे ही घर की बहू जाएगी ना आज भाई बीमार है हम उसका संग नहीं देंगे तो कौन देगा ।

इतना कह कर्तव्यों का पाठ पढ़ा रूबी रसोई घर में अपना काम समेटने चल दी । मालिनी के चेहरे की रंगत देखने लायक थी।

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