मिश्रा जी व दीक्षित जी पड़ोसी थे। जहां दीक्षित जी सरकारी विभाग में कार्यरत थे। वही मिश्रा जी पंडिताई करके अपना जीवन यापन कर रहे थे दोनों के परिवारों में बहुत घनिष्ठता थी । दीक्षित जी की बेटी मानसी मिश्रा जी के पास बैठ कर वेद ज्ञान मंत्र उच्चारण आदि का पाठ करती जो उसी पल भर में कंठस्थ हो जाते थे। मिश्रा जी ने दीक्षित जी से बेटी मानसी को संस्कृत में परास्नातक कराने की सलाह दी।
जिसके लिए दीक्षित जी मान गए। पर होनी को कुछ और ही मंजूर था एक सड़क दुर्घटना में दीक्षित जी अपनी पत्नी वह पुत्र सहित चल बसे। तब मिश्रा जी ने अनाथ मानसी को अपनी बहू बना लिया। और उसके ससुर व संरक्षक दोनों बन गए।
इसी बीच मानसी ने संस्कृत से परास्नातक किया और उसे रिसर्च के लिए विदेश से ऑफर मिला। मिश्रा जी खुशी-खुशी विदेश भेजने को तैयार हो गए पर मिश्राइन और उनका बेटा भेजने को तैयार नहीं था। बेटे को चिंता थी कि उनकी पत्नी विदेश जाकर विदेशी रंग में न रंग जाए । वहां जाकर वह भ मान सम्मान सब मिट्टी में मिला देगी। इसी बात से नाराज उसने बेटे ने मानसी से तलाक मांगा। लेकिन मिश्रा जी को मानसी पर पूरा विश्वास था ।उन्होंने मानसी को बिना तलाक दिए विदेश भेज दिया।
मानसी को गए 1 साल पूरा हो गया था । अचानक एक दिन कुछ मीडिया वाले मिश्रा जी के घर उनका इंटरव्यू लेने पहुंचे और मानसी का फोटो दिखा कर पूछा यह आपकी बहू है ना मिश्रा जी ने फोटो देखकर कहां हां क्यों क्या हो गया ?
तब पत्रकार ने अंग्रेजी अखबार निकाल कर दिखाया। उसमें बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था भारतीय मानसी विश्वनाथ मिश्रा ने यूनिवर्सिटी टॉप किया और पुरोहिता बन अमरिकी हिंदुओं का विवाह संपन्न कराया। यह खबर पढ़ते ही मिश्रा जी की आंखों से आंसू बहने लगे उन्होंने तुरंत मानसी को फोन मिलाया और कहा बेटा मुझे तुझ पर गर्व है तुमने अपने देश व घर मान सम्मान व मर्यादा का ध्यान रखते हुए अपने पिता की जगह मेरा नाम जोड़कर साथ मेरा भी नाम ऊंचा किया है। कुछ ही देर में मानसी अपने पति के साथ भारतीय लिवास में फूल मालाओं से लदी मिश्रा जी से आशीर्वाद लें रहीं थीं। श्रद्धा खरे (ललितपुर)