जब मैंने कोई गलती नहीं की है तो क्यों बर्दाश्त करूंँ – मुकुन्द लाल : hindi stories with moral

hindi stories with moral : अश्वजीत और तिलक एक ही विभाग के दफ्तर में काम करते थे। दोनों के परिवारों के सदस्यों का एक-दूसरे के घरों में आना-जाना लगा ही रहता था। 

   तिलक की पत्नी शुभाश्री अश्वजीत की पत्नी स्तुति से अधिक खूबसूरत थी। दोनों की शादी हुए भी अधिक समय नहीं हुए थे। अश्वजीत शुभाश्री को भाभी कहकर संबोधित करता था उम्र में तिलक से छोटा होने के कारण। तिलक संकोची स्वभाव का गंभीर व्यक्ति था। उसके ऐसे आचरण के कारण शुभाश्री इस बाबत उसे उलाहना भी देती थी। 

   नववर्ष के अवसर पर स्टाफ का किसी प्राकृतिक व रमणीक स्थान पर पिकनिक मनाने का निर्णय लिया गया। स्टाफ के सभी लोगों ने इस निर्णय का दिल खोलकर स्वागत किया। 

   निर्धारित दिन, स्थान और समय पर एक बड़ी गाड़ी में सवार होकर सभी वहाँ आवश्यक सामग्रियों के साथ पहुंच गए। 

  स्टाफ-पिकनिक में दोनों मित्र भी सपत्नीक शामिल हुए उमंग-उत्साह के साथ। 

  सभी स्त्रियों और पुरुषों ने मिल-जुलकर खाना बनाया। सभी को कोई न कोई जिम्मेवारी दी गई थी।         इसी नियम के तहत शुभाश्री पुलाव बना रही थी। बगल में ही अश्वजीत भी किसी काम में व्यस्त था। 

   कुछ समय के बाद पुलाव की सुगंध चारों ओर फैलने लगी। अचानक तिलक ने अपनी पत्नी से पीने के लिए पानी की मांग की। पुलाव लगभग तैयार हो गया था। उस स्थिति को भांपते हुए अश्वजीत ने कहा कि भाभी पुलाव जल जाएगा कुछ मिनटों के बाद पानी दीजिएगा। यह बात तिलक को नागंवार गुजरी उसने भड़कते हुए कहा कि दो-चार मिनटों में प्रलय नहीं आ जाएगा। 

   तब अश्वजीत ने कहा, “जाइए भाभीजी भाई साहब को पानी दे दीजिए, मैं पुलाव की निगरानी कर रहा हूँ।” 

   शुभाश्री पानी का ग्लास लिये पहुंँची तो उसको क्रोधभरी नजरों से देखता हुआ उसके हाथ से पानी का ग्लास ले लिया। 

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   डेढ़-दो घंटे बीतते-बीतते खानों और विभिन्न प्रकार के व्यंजनों की सुगंध से प्राकृतिक वातावरण महकने लगा। 

  उसके बाद सभी को खिलाने की तैयारी शुरू हो गई।      तिलक, अश्वजीत, शुभाश्री और कुछ अन्य लोगों ने अपने सहकर्मियों के बीच भोजन का वितरण शुरू कर दिया। 

   अश्वजीत के हाथ में मोबाइल था जिसके कारण भोजन वितरण में दिक्कत हो रही थी, उसने मोबाइल को भाभी को रखने के लिए दे दिया। उसने उसको अपने बैग में रख दिया। 

    सभी लोगों के भोजन कर लेने के पश्चात अश्वजीत, तिलक, शुभाश्री और अन्य बचे-खुचे लोगों ने भी भोजन कर लिया। 

   उसके बाद स्टाफ के लोगों के साथ अश्वजीत, तिलक सपत्नीक हरी-भरी वादियों, गगनचुंबी पहाड़ों और झरनों के खूबसूरत मनोहारी दृश्यों को देखने के लिए निकल पड़े। 

   ऐसे मनमोहक दृश्यों को देखकर अश्वजीत खुशी से फूले नहीं समा रहा था, उसका गुणगान भी कर रहा था। अपनी खुशी और प्रशंसा को संवाद के माध्यम से भाभी के साथ साझा भी कर रहा था जो उसके साथ चल रही थी इस क्रम में स्तुति रास्ते में पीछे रह गई थी। 

   प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण दृश्यों को देखने के बाद हर्षातिरेक में वह शुभाश्री को ‘भाभी-भाभी’ का संबोधन करके अपनी खुशी जाहिर कर रहा था किन्तु तिलक गुम-शुम होकर चल रहा था। चलने के क्रम में वह कभी पीछे पड़ जाता था तो कभी आगे निकल जाता था, परन्तु अश्वजीत और शुभाश्री हर वक्त लगभग साथ ही चल रहे थे। उनमें प्राकृतिक दृश्यों से संबंधित बातचीत भी चल रही थी। उनके बीच चल रहे वाद-संवाद तिलक के दिल में शूल की तरह चुभ रहे थे। ऐसे माहौल में वह कर भी क्या सकता था। बोलने की आजादी पर पाबंदी लगाना उसे व्यवहारिक कदम नहीं महसूस हो रहा था। और मुश्किल भी था। 

  हरी-भरी वादियों में सभी लोग घास भरे मैदान में ठहरकर विश्राम करने लगे। तिलक भी अपनी पत्नी के बगल में बैठ गया मौन होकर। इसी बीच किसी ने शुभाश्री को कविता सुनाने के लिए अनुरोध किया। शुभाश्री को कविता का शौक था। वह कविता यदा-कदा लिखती भी थी और उचित मौके पर कविताओं का आकर्षक पाठ भी करती थी। किन्तु उसने इनकार कर दिया। पर जब अश्वजीत ने खुशामद स्वर में आग्रह किया तो वह  उसके आग्रह को टाल नही सकी। वह राजी हो गई। 

         कुदरत की कारीगरी का ही कमाल है

         की वादियों में गिरते झरनों की बहार है… 

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उसने प्रकृति की सुन्दरता का अपने कविता के माध्यम से ऐसा गुणगान किया कि लोगों ने खूब तालियां बजाई, उसे खूब वाह-वाही मिली। अश्वजीत ने दिल खोलकर उसकी कविता-पाठ की तारीफ की, लेकिन तिलक अपना चेहरा दूसरी ओर फेरकर झरने से गिरते हुए पानी का अवलोकन कर रहा था। 

   तब तक स्तुति भी जो पीछे पड़ गई थी वह दो लोगों के साथ पहुंँच गई। आते ही उसने अश्वजीत को भला-बुरा कहा किन्तु उसने अपनी पत्नी की बातों को हंँसकर टाल दिया। 

  प्राकृतिक व मोहक दृश्यों का आनन्द उठाने के बाद लौटने की बारी थी। 

   लौटते वक्त गाड़ी चलते-चलते रुक गई। डीजल समाप्त हो गया था। तिलक को लगा कहीं अंधेरा न हो जाए। ऐसा सोचकर उसने एक स्टाफ जो बाइक से आया था उसको साथ लेकर डीजल लाने के लिए निकल गया । 

   जब वह लौटा डीजल लेकर तो उसने देखा कि अश्वजीत उसकी पत्नी के साथ हंँस-हंँसकर किसी मुद्दे पर बातचीत कर रहा है। अपनी पत्नी के साथ अश्वजीत की अंतरंगता देखकर वह जल-भुन गया। 

   शुभाश्री अपने पति की नाराज निगाहों से पहले ही अवगत हो चुकी थी। इस लिए वह तेज गति से चलकर तिलक के पास पहुंँच गई। अपने समीप अपनी पत्नी के आगमन को नजरअंदाज करते हुए वह गाड़ी यथाशीघ्र खुलवाने के प्रयास में लग गया। 

    घर पहुंँचते ही खामोश रहनेवाला तिलक फट पड़ा, 

“तुमने कसम खाई ली है कि मेरी इज्जत, मान-मर्यादा घर के बाहर कदम रखते ही, मिट्टी में मिलाकर ही चैन की सांँस लोगी।” 

   “मैंने कौन सी मान-मर्यादा को मिट्टी में मिला दी जरा मैं भी तो सुनूँ।… औरत घर में कोल्हू के बैल की तरह खटती है, अगर पिकनिक में या टूर पर जाती है तो क्या मुंँह पर टेप साटकर रहेगी… आप किसी से बातचीत नहीं करते हैं तो सभी लोग आपकी तरह गूंँगे बने नहीं न रहेंगे। “

  ” इसका मतलब यह तो नहीं है कि किसी पराये मर्द के साथ अपनी मर्यादा की सीमा का उल्लंघन करके उसके साथ घुल-मिल जांए… “

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  ” खबरदार!… आप सीमा उल्लंघन की बातें मत बोलिए, उसे वापस लीजिए।… हमारा भी वजूद है, व्यक्तित्व है… आप जब इतने शंकालु प्रवृति के हैं तो आइंदा कभी भी किसी आयोजन या फंक्शन में न ले जाँए… जहाँ तक अश्वजीत की बात है वह मेरे छोटे भाई के समान है, वह चंचल है, भावुक है, उसमें लेशमात्र भी दुर्भावना नहीं है, वह वाक-पटु और व्यवहार कुशल है, उसका दिल साफ है, निर्मल है… दोष तो आप में है कि आप किसी के डैसिंग प्रसेनालिटी(तेज व्यक्तित्व) की आंँच को सहन नहीं कर सकते हैं, न अपने व्यक्तित्व को निखार सकते हैं..”

   उसी वाद-विवाद के वक्त तिलक उसके घर के पास पहुँचा तो घर के अंदर से पति-पत्नी की आवाजें बाहर आ रही थी। वह दरवाजे पर दस्तक न देकर वहीं खड़ा हो गया। उसने सारी बातें सुन ली। 

   खाना बांटने के समय उसने शुभाश्री को मोबाइल रखने के लिए दिया था, लौटते समय वह भूल गया था लेने के लिए,  वह उसी को लेने के मकसद से पहुंँचा था। 

   दरवाजे पर दस्तक देकर उसने दरवाजा खुलवाया, फिर अंदर दाखिल होते ही उसने कहा, “तिलक भाई!… मैं नहीं जानता था कि आप इतने संकीर्ण विचार वाले सहकर्मी हैं।… स्टाफ भी एक परिवार की तरह ही होता है… आज का आदमी तरह-तरह की चिन्ताओं और तनावों में जीता है… पिकनिक जैसे आयोजनों में लोग सिर्फ खाने के लिए नहीं जाते है बल्कि कुछ ऐसे पलों को जीने के लिए जाते हैं जो चिन्ता मुक्त हो, अवसाद रहित हो। लोग आपस में हंँसते हैं, बतियाते हैं, खेलते हैं, कूदते हैं… ऐसे लम्हें जीवन में बहुत कम मिलते हैं भाई… भाभी के प्रति मेरे दिल में मांँ जैसा सम्मान है… आपने इतनी ओछी बातें कैसे सोच ली।… फिर भी आपको लगता है कि आपकी पत्नी से गलती हुई है तो मैं भाभी से सिफारिश करता हूँ कि वह अपने देवता तुल्य पति से माफी मांग लें, उनकी दो-चार फटकार सह लें, मेरी आपलोगों से प्रार्थना है कि बात आगे न बढ़ाएं। “

  ” जब मैंने कोई गलती नहीं की है तो क्यों बर्दाश्त करूंँगी किसी के द्वारा दिये गये दंड को।… मेरे पतिदेव गलतफहमी के शिकार हो गए हैं, इनके दिमाग में शक का जहर भर गया है… लेकिन उन्हें मालूम होना चाहिए कि अश्वजीत मेरे छोटे भाई की तरह है”तल्ख आवाज में शुभाश्री ने विफरते हुए कहा। 

   माहौल में सन्नाटा छाया गया था जिसको भंग करते हुए उसने तिलक से कहा,” कान खोलकर सुन लीजिए आप भविष्य में कभी भी किसी पिकनिक, टूर जैसे आयोजनों में शामिल होने का प्रस्ताव मेरे सामने मत रखिएगा। “

     स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित 

                   मुकुन्द लाल 

                   हजारीबाग(झारखंड)

 

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