जब मां ने बेटे के साथ जाने से किया इंकार – डॉ कंचन शुक्ला : Moral Stories in Hindi

सुबह सात बजे दरवाज़े की घंटी लगातार बजे जा रही थी. घंटी की आवाज सुनकर मोना ने गुस्से में बड़बड़ाते हुए अपने पति मनोज से कहा ” मनोज जाकर देखो काम वाली रेखा आई होगी तुम्हारी मां से इतना भी नहीं होता कि दरवाज़ा ही खोल दें वह पूजा कर रहीं होंगी एक रविवार ही मिलता है आराम से सोने के लिए कितनी बार उनसे कहा है कि जब रेखा आ जाया करे तो पूजा पर बैठो लेकिन नहीं वह तो अपने समय पर ही पूजा करेंगी अब जाओ भी जाकर दरवाजा खोलो यहां खड़े खड़े मेरा मुंह क्या देख रहे हो”

मनोज ने गुस्से में मोना को देखा वह कुछ जबाव देना चाहता था लेकिन सुबह सुबह वह लड़ने के मूड़ में नहीं था इसलिए उठकर दरवाजा खोलने चला गया। दरवाज़े पर रेखा खड़ी हुई थी उसके चेहरे पर गुस्सा साफ़ दिखाई दे रहा था फिर भी उसने अपने गुस्से पर काबू करते हुए  कहा ” साहब मां जी घर पर नहीं हैं क्या आज इतनी देर से घंटी बजा रहीं हूं मां जी तो एक बाद घंटी बजाने पर दरवाजा खोल देती हैं आज क्या हुआ उनकी तबीयत तो ठीक है “??

” तुम्हें मां की फ़िक्र करने की जरूरत नहीं है जाकर अपना काम करो ” मनोज ने झल्लाकर कहा
रेखा ने मुंह बनाकर मनोज को देखा और रसोई की तरफ बढ़ गई मनोज फिर जाकर बिस्तर पर लेट गया मोना अभी भी सो रही थी बच्चे भी रविवार होने के कारण निश्चिंत होकर गहरी नींद में थे।
लगभग एक घंटे बाद रेखा ने जोर से चिल्लाकर कहा

” मेम साहब मैं जा रही हूं दरवाज़ा बंद कर लीजिए नहीं तो कोई घर में घुस आएगा” इतना कहकर रेखा चली गई उसे दूसरे घरों में भी काम करने जाना था रेखा की बात सुनकर मनोज और मोना दोनों ही हड़बड़ाकर उठ गए दोनों ही गुस्से में झल्लाकर एक साथ बोले,”  क्या मां घर में नहीं हैं कहां चलीं गईं”?

दोनों कमरे से बाहर आए रेखा की बात सुनकर बच्चे भी अपने कमरे से बाहर निकल आए सबने पूरा घर देख लिया मां कहीं नहीं थीं।

” मुझे लगता है कि आपकी मां मंदिर चलीं गईं हैं घर का काम न करना पड़े इसका सबसे अच्छा बहाना यही है मंदिर चली गई थी” मोना ने गुस्से में बड़बड़ाते हुए कहा
” लेकिन मोना मां आज तक कभी सुबह मंदिर नहीं गई हैं अगर उन्हें जाना होता है तो वह शाम को जाती हैं आज सुबह सुबह मंदिर कैसे चलीं गईं”? मनोज ने परेशानी भरे लहज़े में कहा
” मैं सब जानती हूं आज वह सुबह सुबह मंदिर क्यों गई हैं उन्हें पता है आज मेरी किट्टी है मैंने उनसे कहा था कि,आज मैं जल्दी ही घर से निकल जाऊंगी पहले पार्लर जाऊंगी वहीं से किट्टी के लिए चली जाऊंगी मुझे लौटने में देर हो जाएगी उन्हें लगा होगा उन्हें घर का काम अकेले ही करना पड़ेगा इसलिए मंदिर चलीं गईं आने दो उस बुढ़िया को दिमाग ठिकाने न लगाया तो मेरा नाम मोना नहीं ” मोना ने गुस्से में दांत पीसते हुए कहा

” जब मां आएगी तब उनका दिमाग ठिकाने लगाना अभी तुम पहले चाय बनाकर लाओ हर दिन उठते ही मां सबसे पहले चाय का प्याला देती थीं ” मनोज ने गम्भीर लहज़े में कहा
” मैं चाय नहीं बनाऊंगी तुम खुद बना लो ” मोना ने पलटकर जवाब दिया।

” मम्मी हमें भूख लगी है नाश्ता बना दो आज कुछ अच्छा सा बनाना दादी बहुत अच्छा पनीर का पराठा बनाती हैं आप नाश्ते में पनीर का पराठा बना दो ” दोनों बच्चों ने एक साथ कहा
” मैं नहाने जा रही हूं थोड़ी देर बैठो अभी दादी आती होगी आकर वही नाश्ता बनाएंगी मुझसे नाश्ता वास्ता नहीं बनाया जाएगा अगर इतनी ही भूख लगी है तो अपने पापा से कहकर बाहर से मंगवा लो मेरे लिए भी मंगवा देना इतना कहकर मोना नहाने चली गई।

मनोज और बच्चों ने थोड़ी देर दादी का इंतज़ार किया जब उनको भूख बर्दाश्त नहीं हुई तो उन्होंने नाश्ते का आर्डर दे दिया थोड़ी देर बाद बाहर से नाश्ता आ गया तब तक मोना भी नहाकर आ गई थी सब डाइनिंग टेबल पर बैठकर नाश्ता करने लगे तभी मनोज के बेटे ने कहा,

” पापा दादी अभी तक नहीं आई इतनी देर तो उन्हें कभी नहीं लगती दादी कहां रह गई कहीं रास्ते में उनका एक्सीडेंट तो नहीं हो गया “?” अगर तुम्हारी मां का एक्सीडेंट हुआ होगा तो मैं उनकी सेवा नहीं करूंगी उन्हें क्या जरूरत थी मंदिर जाने की ” मोना ने गुस्से में कहा
” मोना तुम चुप रहोगी राहुल ने एक सम्भावना व्यक्त की है ” मनोज ने झल्लाकर कहा

एक घंटा और बीत गया अभी तक मनोज की मां सावित्री जी मंदिर से नहीं आई थीं सब परेशान हो गए तभी मनोज की लड़की गुड़िया घबराई हुई आईं उसने अपने पापा से कहा ” पापा यह देखो दादी के कमरे से एक लेटर मिला है दादी घर छोड़कर चली गई हैं उनका सामान भी कमरे में नहीं है “
” क्या!!? मनोज ने घबराकर कहा और गुड़िया के हाथ से लेटर लेकर पढ़ने लगा उसमें लिखा था,

मनोज,बेटा  गांव से मैं यहां तुम्हारे पास इस घर को और तुम लोगों को अपना समझकर आई थी पर तुम लोगों ने मुझे घर की नौकरानी बना दिया मुझे घर का काम करने में कोई परेशानी नहीं थी लेकिन इसका मतलब यह नहीं की मैं तुम लोगों की गुलाम हूं तुम्हारी पत्नी ने मुझे अपने बच्चों की. आया और खाना बनाने वाली समझ लिया पूरा दिन मैं घर में रहकर घर की देखभाल करती रही उसके बाद भी तुम दोनों पति पत्नी बात बात पर मुंह गंवार कहकर अपमानित करते रहे, फिर भी मैं चुप रही की शायद मुझमें ही कमी है

पर कल जब तुम्हारी पत्नी ने अपनी  मां, बहन और सहेली के सामने मुझे अनपढ़ गंवार बुढ़िया कहा तो मेरी अंतरात्मा मुझे धिक्कारने लगी और मैंने फ़ैसला कर लिया कि अब मुझे तुम्हारे साथ नहीं रहना है जितना काम मैं तुम्हारे घर में करतीं हूं, उतना किसी और घर में करूंगी तो मुझे पैसा और सम्मान दोनों मिलेगा मैं तुम्हारे महल को छोड़कर जा रहीं हूं मुझे ढूंढने की कोशिश न करना, तुमने धोखे से गांव की जमीन बेचकर पैसा अपनी पत्नी के नाम जमा कर दिया ईश्वर इसका न्याय करेगा कल को तुम्हारे बेटे की भी शादी होगी।

जब तुम्हारी बहू तुम दोनों के साथ वैसा ही करेंगी जैसा तुमने हमारे साथ किया है तब तुम्हें पता चलेगा अभी मैं इतनी बूढ़ी नहीं हुई हूं की अपना ध्यान न रख सकूं तुम लोग सदा खुश रहो यही कहूंगी लेकिन ईश्वर की लाठी में आवाज़ नहीं होती जब पड़ती है तो बहुत जोर की पड़ती है।” मां-बाप को दुःख देने वाली संतानों को भगवान सजा जरूर देता है ये बात तुम याद रखना”

तुम्हारी मां

 

मां का ख़त पढ़कर मनोज स्तब्ध रह गया उसे समझ ही नहीं आ रहा था की अब वह क्या करे उसकी आत्मा उसे धिक्कार रही थी यह उसने क्या कर दिया वह अपनी पत्नी के साथ मिलकर अपनी मां का अपमान करता रहा अपनी पत्नी के प्यार में इतना अंधा हो गया की अपनी मां के आंसूओं को नहीं देख सका।
मोना भी अपनी सास का लेटर सुनकर घबरा गई अब क्या होगा घर का सारा काम उसे करना होगा उसकी किट्टी पार्टी शापिंग का क्या होगा अगर वह दिन भर घर के कामों में लगी रहेगी तो अपने लिए कब समय निकालेंगी उसने अपने मनोभावों को दबाते हुए गुस्से में मुंह बनाकर कहा,

” देखा तुमने अपनी मां की करतूत समाज में हमारी इज़्ज़त उछालने के लिए उन्होंने क्या किया इस बुढ़िया को इतनी भी अक्ल नहीं है की घर की इज्ज़त नहीं उछालनी चाहिए “
” अच्छा मेरी मां को घर की इज्ज़त की परवाह नहीं है तो तुम्हारी बुढ़िया मां को अपने घर की इज्ज़त की कितनी परवाह है दामाद के पैसे पर अपने शौक पूरा करती है और दामाद की मां का अपमान करती है आज के बाद अगर तुमने मेरी मां के लिए अपशब्द का प्रयोग किया तो तुम्हें इस घर से बाहर निकाल दूंगा और हां आज के बाद मैं एक पैसा तुम्हारी अय्याशी के लिए नहीं दूंगा अगर तुम्हें और तुम्हारी मां को अय्याशियां करनी है तो खुद पैसा कमाओ आज के बाद अगर इस घर में तुम्हारी मां बहन आईं तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा ” मनोज ने गुस्से में दहाड़ते हुए कहा.

मनोज का ग़ुस्सा देखकर मोना की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई वह समझ गई उसके गुनाहों का घड़ा अब भर गया है अगर उसे इस घर में रहना है तो उसे अपनी सास को ढूंढकर उनसे माफ़ी मांगनी होगी वरना उसका वैवाहिक जीवन बर्बाद हो जाएगा

तभी मोना का फोन बज उठा फ़ोन उसकी मां का था मनोज ने मोना से फ़ोन लिया और आन करके स्पीकर पर डाल दिया उधर से मोना की मां की आवाज आई,
” मोना तुम जल्दी पार्लर आ जाओ मैं और तुम्हारी बहन वहां पहुंच रहें हैं आज मैं भी अपना पूरा ट्रिटमेंट करवाऊंगी पेमेंट तुम कर देना” अपनी सास की बात सुनकर मनोज ने व्यंग्यात्मक लहजे में ज़बाब दिया,
” सासू मां मैं पैसा अपने परिवार के लिए कमाता हूं आपकी अय्याशियों के लिए नहीं आज के बाद यहां फोन करने की जरूरत नहीं है

अगर आपकी बेटी ने आप लोगों से कोई सम्बन्ध रखा तो मैं उसे हमेशा के लिए वहीं भेज दूंगा यह कोरी धमकी नहीं है मैं ऐसा ही करूंगा ईश्वर से प्रार्थना कीजिए की मेरी मां मिल जाए वरना मैं आप और आपकी बेटी का क्या हाल करूंगा आप सोच भी नहीं सकतीं” इतना कहकर मनोज ने फ़ोन काट दिया मनोज की बात सुनकर मोना और उसकी मां दोनों के पैरों तले की जमीन खिसक गई।
मनोज की समझ में नहीं आ रहा था की वह अपनी मां को कहां ढूंढे तभी उसका फोन बजा फ़ोन उसके दोस्त की पत्नी का था “हेलो भाभी!! उधर से आवाज़ आई भाई साहब क्या आप अपनी मां से नौकरी करवा रहें हैं”??

” नहीं भाभीजी आप ऐसा क्यों कह रही हैं”? मनोज ने जल्दी से पूछा
” भाई साहब आज आफिस में मीटिंग है इसलिए मैं  वर्मा आंटी के क्रैच में बच्चों को छोड़ने गई तो वहां मैंने चाची जी को देखा जब मैंने वर्मा आंटी से पूछा चाची जी यहां क्या कर रही हैं? तो उन्होंने बताया कि,अब यह यहीं काम करेंगी यह सुनकर मैं हैरान रह गई आप इतना अच्छा कमाते हैं तो आपकी मां को नौकरी करने की क्या जरूरत पड़ गई क्या मोना चाची जी के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती कैसा जमाना आ गया है जिसके माता-पिता है, वह लोग उनको अपने साथ रखना नहीं चाहते और जिनके पास नहीं हैं वह मातापिता के साथ के लिए तरसते हैं मैं तो सोचती हूं अगर मेरी सास होती तो मुझे बच्चों को क्रैच में नहीं छोड़ना पड़ता मैं फोन रखतीं हूं मुझे चाची जी को वहां देखकर बुरा लगा इसलिए मैंने कह दिया वरना आपका घरेलू मामला है आप जाने” इतना कहकर उन्होंने फ़ोन काट दिया।
अपने दोस्त की पत्नी की बात सुनकर मनोज के चेहरे पर मुस्कान फ़ैल गई क्योंकि उसे अपनी मां का पता चल चुका था मनोज ने बच्चों से कहा ” बच्चों मेरे साथ चलो दादी का पता चल गया है”
” पापा दादी कहां हैं”? दोनों बच्चों ने ख़ुश होकर एक साथ पूछा
” वर्मा आंटी के क्रैच में” मनोज ने गम्भीर लहज़े में जबाव दिया
मनोज बच्चों को लेकर जाने लगा तभी मोना ने कहा,
” मनोज मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी मुझे भी मां जी से माफ़ी मांगनी है” मनोज ने कोई जवाब नहीं दिया वह बच्चों के साथ घर से बाहर निकल गया मोना भी उसके पीछे पीछे चल पड़ी कालोनी की शुरुआत में ही वर्मा आंटी का घर था थोड़ी देर में मनोज वहां पहुंच गया मनोज को अपने सामने देखकर भी सावित्री जी ने अनदेखा कर दिया मनोज ने आगे बढ़कर विनती करते हुए कहा,

” मां मुझे माफ़ कर दीजिए और घर वापस चलिए”” नहीं मनोज अब मैं उस घर में वापस नहीं जाऊंगी जहां दिन रात मुझे अपमानित किया जाता है मेरे स्वाभिमान को ठेस पहुंचाई जाती है उस घर में मैं हरगिज़ नहीं जाऊंगी तुमने मुझे समझ क्या रखा है तुम और तुम्हारी पत्नी मेरा अपमान करते रहोगे तुम्हारी पत्नी मुझे अपशब्द कहेंगी तुम्हारी सास मुझे गंवार कहेंगी उसके बाद तुम आकर मुझसे माफ़ी मांग लोगे और मैं तुम्हें माफ़ कर दूंगी तुमने कैसे सोच लिया मेरा भी स्वाभिमान है मैं कम पढ़ी लिखी हूं लेकिन मैं तुम्हारी पढ़ी लिखी पत्नी की तरह किसी का अपमान नहीं करती अब तुम यहां से जाओ मैं तुम्हारे साथ नहीं चलूंगी यहीं वर्मा भाभीजी के साथ क्रैच में काम करूंगी और स्वाभिमान से सर उठाकर रहूंगी अब मुझे तुम्हारे उस महल में रहकर अपमानित होने का शौक नहीं है ” सावित्री जी ने कठोर शब्दों में कहा
” मां जी मुझे माफ़ कर दीजिए अब मैं आपका अपमान नहीं करूंगी घर चलिए ” मोना ने विनती करते हुए कहा
” नहीं बहू अब यह नाटक करने की जरूरत नहीं है अब मैं तुम्हारे घर में नौकरानी का काम नहीं करूंगी घर के काम के लिए कोई दूसरी नौकरानी रख लो मैंने बेगार करना छोड़ दिया है ” सावित्री जी ने व्यंग्यात्मक मुस्कुराहट के साथ कहा
अपनी सास के कठोर शब्दों को सुनकर मोना कांप गई वह बहुत डरी हुई थी वह जानती थी अगर उसकी सास घर नहीं आईं तो उसके पति उसको माफ़ नहीं करेंगे उसने गिड़गिड़ाते हुए अपनी सास के पैर पकड़ लिए लेकिन उन्होंने साफ़ शब्दों में कह दिया ” बहू इस समय मैं तुम्हें माफ़ नहीं कर सकती आगे भविष्य में क्या होगा पता नहीं तुम लोग जाओ मैं तुम्हारे साथ नहीं चलूंगी अपने अपमान का घाव मैं इतनी जल्दी नहीं भुला सकती” इतना कहकर सावित्री जी वहां से हट गई मनोज और मोना का सर शर्म से झुक गया था बाहर निकलकर मनोज ने मोना से सिर्फ इतना कहा,” जब तक मेरी मां तुम्हें माफ़ नहीं करेगी मैं भी तुम्हें माफ़ नहीं करूंगा अब मां की माफ़ी पाने के लिए तुम क्या करती हो यह तुम जानो”

” मनोज मुझे अपनी ग़लती का अहसास है मैं हार नहीं मानूंगी तुम देखना बहुत जल्दी मां हमारे साथ हमारे घर में होगी ” मोना के स्वर में निराशा नहीं आशा का समावेश था।
वर्मा आंटी के घर से निकलकर मनोज ने गुस्से में अपनी पत्नी मोना को देखा और तेज़ आवाज़ में बोला, मोना तुम मेरी बात कान खोलकर अच्छी तरह सुन लो जब तक मां तुम्हें माफ़ नहीं कर देती तब तक मैं भी तुम्हें माफ़ नहीं करूंगा  पापा दादी का अपमान तो आप भी करते थे जब मम्मी दादी को बुढ़िया, गंवार कहती थीं तो आप भी मम्मी का साथ देते थे मेरी टीचर कहती हैं की ग़लत का साथ देने वाला भी ग़लत होता है आपको भी दादी से माफ़ी मांगनी चाहिए  मनोज के बेटे ने धीरे से कहा

अपने बेटे की बात सुनकर मनोज का सर शर्म से झुक गया फिर उसने उदास स्वर में जबाव दिया, तुम ठीक कह रहे हो बेटे गलती तो मेरी है जब बेटा होकर मैं उनका अपमान करता रहा तो तुम्हारी मम्मी ने भी वैसा ही किया अगर मैंने तुम्हारी मम्मी को बढ़ावा न दिया होता तो आज मेरी मां मुझे छोड़कर कहीं नहीं जाती  इतना कहकर मनोज तेज़ क़दमों से चलता हुआ अपने घर की ओर बढ़ गया उसने घर का दरवाज़ा खोला और सीधे अपने कमरे में गया और अलमारी से अपना और मोना का सामना निकालने लगा तब तक मोना और बच्चे भी वहां आ गए मोना की हिम्मत नहीं हो रही थी की वह मनोज से कुछ पूछें की वह ऐसा क्यों कर रहा है मोना ने अपनी बेटी को इशारा किया की वह मनोज से पूछे की वह अलमारी से सामान क्यों निकाल रहा है।

  पापा आप कहीं जा रहे हैं क्या ? मनोज की बेटी ने पूछा  नहीं बेटा हम कहीं नहीं जा रहें हैं  मनोज ने सामान निकालते हुए जबाव दिया।  फिर आप अलमारी से अपना सामान क्यों निकाल रहें हैं ? मनोज के बेटे ने पूछा  बेटा आज से यह कमरा दादी का है यहां दादी रहेगी और हम दादी के कमरे में रहेंगे इस कमरे में अटैच बाथरूम है जबकि जिसमें दादी रहती थी उस कमरे में बाथरूम नहीं है तुम्हारी दादी को रात में कमरे से बाहर निकलकर बाथरूम जाना पड़ता था मैंने कभी भी उनकी परेशानियों को नहीं समझा उसे नजरंदाज किया दादी की आंखों में मोतियाबिंद भी हो गया है उन्होंने मुझसे आपरेशन करवाने के लिए कहा

लेकिन मैंने तुम्हारी मम्मी की बातों में आकर उनका आपरेशन नहीं करवाया जबकि तुम्हारी मम्मी तुम्हारी नानी और मौसी पर मेरी कमाई के पैसे लुटाती रहीं और मेरी मां का आपरेशन करवाना उनको फिजूलखर्ची लगता था। गलती तुम्हारी मां की नहीं मेरी है मैंने ही अपनी मां की जरूरतों को नज़रंदाज़ कर रहा था और अपने ससुराल वालों पर खुले हाथों से खर्च करता रहा लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। आज के बाद तुम्हारी मम्मी और नानी की अय्याशियों के लिए मैं पैसा नहीं दूंगा

अब घर में फिजूलखर्ची नहीं होगी  मनोज ने गम्भीर लहज़े में जबाव दिया।  पापा दादी तो यहां नहीं हैं फिर वह इस कमरे में कैसे रहेंगी ? बेटा ने पूछा  जब दादी आएंगी तब वह इसी कमरे में रहेगी इसलिए मैं पहले से ही उनका कमरा उनके रहने लायक बना रहा हूं  मनोज ने बेटे को समझाते हुए कहा  मनोज बेटा अगर तुमने पहले ही अपनी मां का इतना ध्यान रखा होता तो उन्हें इस बुढ़ापे में घर छोड़कर जाने की जरूरत नहीं होती  तभी वह पड़ोस में रहने वाली पाठक आंटी ने आते हुए कहा

  आंटी जी मैं मानता हूं मुझसे बहुत बड़ा गुनाह हुआ है मैंने अपनी मां की इज्ज़त नहीं की उन्हें हमेशा नजरअंदाज करता रहा लेकिन अब मुझे मेरी ग़लती का अहसास हो गया है मैं अपने पापों का प्रयाश्चित करूंगा मां को मनाकर घर लेकर आऊंगा  मनोज ने दुखी मन से कहा  बेटा क्या सावित्री बहन वापस आएंगी मोना ने उनको बहुत परेशान किया है एक बार तो सावित्री जी से खाना बनाने में खाने में नमक थोड़ा ज्यादा हो गया था तो तुम्हारी पत्नी ने सावित्री बहन को धक्का दे दिया था वह जमीन पर गिरने वाली थीं तभी मेरी बहू ने उन्हें संभाल लिया था वह किसी काम से तुम्हारी पत्नी से मिलने आई थी उस समय तुम्हारी सास और साली भी यहीं थीं उन्होंने भी तुम्हारी पत्नी को कुछ नहीं कहा उल्टे सावित्री बहन को अपमानित करने लगी

जब मेरी बहू ने मोना को समझाने की कोशिश की वह अपनी सास का अपमान न करे तो मोना ने मेरी बहू को अपने घर से निकल जाने के लिए कहा उस के बाद से हम लोग तुम्हारे घर नहीं आते थे आज सावित्री बहन के बारे में सुना तो तुमसे मिलने चली आई वर्मा आंटी ने मोना की बेहूदगी का एक और खुलासा किया। वर्मा आंटी की बात सुनकर मनोज स्तब्ध रह गया जबकि मोना ने चिल्लाकर वर्मा आंटी से कहा,  आप मेरे पति को भड़काने की कोशिश न कीजिए मैंने ऐसा कुछ नहीं किया था यह मेरे घर का मामला है आप यहां से जाइए

“ज्यादा चिल्लाने की जरूरत नहीं है पाठक आंटी यहां से नहीं जाएगी तुम मेरे घर से निकल जाओ झूठ आंटी जी नहीं तुम बोल रही हो अगर मैंने अपने पड़ोसियों की बात ही सुन ली होती तो तुम्हारी और तुम्हारी मम्मी की असलियत बहुत पहले मेरे सामने आ गई होती तो आज मेरी मां मुझे छोड़कर नहीं जाती”  मनोज ने मोना को घूरते हुए गुस्से में कहा मोना अच्छी तरह समझ गई थी की उसकी असलियत मनोज के सामने आ गई है अब चुप रहने में ही उसकी भलाई है वरना अगर मनोज ने गुस्से में आकर उसे घर से निकाल दिया

तो वह कहां जाएंगी उनकी भाभी मायके में उसे रहने नहीं देगी वह कोई नौकरी भी नहीं करती तो कहां जाएंगी। मोना ने जल्दी से रोने का नाटक करते हुए कहा, मनोज मुझे माफ़ कर दो मैं अपनी मां के बहकावे में आ गई थी मुझसे बहुत बड़ा पाप हुआ है मैं मां जी से माफ़ी मांगकर उन्हें घर लेकर आऊंगी मैं आपसे वादा करतीं हूं मनोज ने मोना की बातों का कोई जबाव नहीं दिया उसने पाठक आंटी से कहा आंटी आप से मुझे कुछ बात करनी है क्या आप बाहर चलेंगी? 

हां हां चलो मैं तुम्हारे साथ चलतीं हूं पाठक आंटी ने कहा मनोज पाठक आंटी के साथ उनके घर चला गया इधर मोना का दिल बहुत घबरा रहा था की मनोज पाठक आंटी से क्या बात करने वाला है वह इतना तो समझ गई थी की बात उससे ही सम्बन्धित होगी। थोड़ी देर बाद मनोज वापस आया उसने मोना से चाय बनाने के लिए कहा मोना चाय बनाकर ले आई तभी रेखा वहां आ गई रेखा को देखकर मोना ने उससे कहा,  “रेखा तुमने अच्छा किया जो आज जल्दी आ गई अब तुम बर्तन साफ करके खाना बनाने में मेरी मदद कर दो”

“भाभीजी मैं यहां काम करने नहीं आईं हूं आप को यह बताने आई हूं की अब मैं आपके घर में काम नहीं करूंगी मैं तो बहुत पहले आपका काम छोड़ देती पर मां जी की वजह से यहां काम कर रही थी अब जब यहां मां जी नहीं हैं तो मैं आपके घर काम नहीं करूंगी आप मेरा हिसाब कर दीजिए”  रेखा ने मुंह बनाकर कहा रेखा की बात सुनकर मोना के हाथ पैर ठंडे पड़ गए उसने घबराकर जल्दी से कहा, “रेखा तुम ऐसा क्यों कह रही हो मैं तो समय पर तुम्हें तुम्हारी तनख्वाह दे देती हूं छुट्टी के पैसे भी नहीं काटती?” “आप मुझे हराम का पैसा नहीं देती

काम करती हूं तब पैसे देती हैं अब मैं आपके घर काम नहीं करूंगी”  रेखा ने तुनक कर कहा  “तुम्हारे कितने पैसे हुए रेखा ?” मनोज ने गम्भीर लहज़े में पूछा रेखा को ऐसा कहने के लिए मनोज ने ही कहा था उसने पाठक आंटी के साथ जाकर रेखा से कहा था कि,वह उसके घर का काम छोड़ दे अगर वह काम छोड़ देगी तो वह उसे काम न करने के पैसे हर महीने देगा मनोज अपनी पत्नी को उसकी गलती का अहसास करवाना चाहता था रेखा को भी मुफ्त में पैसे मिलने वाले थे वह तैयार हो गई

वैसे भी रेखा सावित्री जी की वजह से उस घर में टिकी थी मोना का व्यवहार उसे पसंद नहीं था आज खुद मनोज उससे काम न करने के लिए कह रहा था तो रेखा उसकी चाल में शामिल होकर उसकी बात मान गई।  “साहब बीस दिन इस महीने में मैंने काम किया है”  रेखा ने बताया ” लो मैं तुम्हें पूरे महीने की तनख्वाह दे रहा तुमने मेरी मां की बहुत सेवा की है”  रमेश ने कहा  “साहब मां जी बहुत अच्छी हैं वह मुझे घर की नौकरानी नहीं अपनी बेटी समझती थीं इसलिए मैं भी उनका काम कर देती थी पर साहब आपने और भाभीजी ने मां जी के साथ अच्छा नहीं किया

ईश्वर इसकी सज़ा आप लोगों को देगा”  इतना कहकर रेखा ने पैसे लिए और वहां से चली गई।  “मनोज अब घर का काम कैसे होगा रेखा भी चली गई”  मोना ने परेशान होकर कहा  “घर का काम अब तुम करोगी मैं तो घर का काम करूंगा नहीं इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है हर औरत अपने घर का काम करती है तुम्हारे मायके में नौकर तो लगे नहीं थे तुम्हें तो काम करने की आदत होगी अब तक तुम यहां मेरी मां की बदौलत और मेरे पैसे से ऐश कर रहीं थीं

अब न यहां मां है और न मैं तुम्हें इतने पैसे दूंगा कि, तुम नौकरानी रख सको आज से घर का हर काम तुम करोगी बच्चे भी तुम्हारी मदद नहीं करेंगे तब तुम्हें अहसास होगा की तुमने मेरी मां के साथ क्या किया है अब जाकर खाना बनाओ मुझे भुख लगी है आज के बाद बाहर से खाना नहीं आएगा ” मनोज ने कठोर शब्दों में कहा और टीवी खोल कर देखने लगा। मोना समझ गई अब उसके बुरे दिन शुरू हो गए उसके पाप का घड़ा भर चुका है वह मन ही मन पछता रही थी अगर उसने अपनी सास के साथ इतना बुरा व्यवहार नहीं किया

होता तो उसे आज यह दिन नहीं देखना पड़ता। समय अपनी गति से आगे बढ़ता रहा देखते ही देखते छः महीने का समय बीत गया अब मोना दिन रात घर के कामों में लगी रही बर्तन, कपड़ा, झाड़ू पोंछा,घर की साफ़ सफाई खाना सभी काम मोना को करना पड़ता अब वह अपनी सहेलियों से भी नहीं मिल पाती थी किट्टी पार्टी, शापिंग सभी बंद हो गया था। मोना इस बीच कई बार अपनी सास के पास भी गई उनसे माफ़ी मांगी और घर चलने के लिए विनती की पर सावित्री जी ने मोना के साथ घर चलने से इंकार कर दिया।

मनोज हर दिन अपनी मां के पास जाकर उनसे माफ़ी मांगता पर सावित्री जी मनोज को माफ़ करने के लिए तैयार नहीं थीं एक दिन मनोज शाम को अपनी मां के पास गया उस समय वह मिसेज वर्मा के साथ बैठी चाय पी रहीं थीं मनोज को देखते ही वह उठकर अंदर जाने लगीं मनोज ने आगे बढ़कर उनका रास्ता रोक लिया, और उनके पैर पकड़कर रोते हुए कहने लगा, ” मां आप को क्या हो गया है आप इतनी कठोर तो नहीं थीं आप मुझे माफ़ कर दीजिए मैं मानता हूं मुझसे बहुत बहुत गुनाह हुआ है पर आप तो मां हैं

मां तो दया ममता और करूणा की मूर्ति होती है फिर आप इतनी कठोर कैसे हो गई मैं आपसे विनती करता हूं आप घर चलिए अब उस घर में आपका अपमान नहीं होगा यह मेरा वादा है बच्चे भी आपको बहुत याद करते हैं ” सावित्री जी ने मनोज को उठाया और अपने पास बैठाते हुए बहुत प्यार से कहा, ” मनोज मैंने तुम्हें बहुत पहले ही माफ़ कर दिया है पर मैं अब तुम्हारे साथ घर नहीं चल सकती मुझे यहां बच्चों के बीच अच्छा लगता है वर्मा भाभीजी और बच्चों के साथ मेरा समय अच्छा बीत जाता है

मुझे बच्चों के बीच रहकर खुशी मिलती है तुम्हारे पिताजी का एक सपना था की वह गांव में एक स्कूल खोले उन्हें भी बच्चों का साथ बहुत पसंद था लेकिन असमय उनके चले जाने से उनका वह सपना पूरा नहीं हुआ अब मैं यहां बच्चों के बीच रहतीं हूं तो मुझे लगता है की मैं तुम्हारे पिताजी का सपना पूरा कर रहीं हूं क्रैच भी तो एक स्कूल ही है जहां बच्चों को रखकर उनको सिखाया पढ़ाया जाता है इसलिए मैं तुम्हारे साथ नहीं चल सकती” अपनी मां की बात सुनकर मनोज खामोश हो गया उसे समझ नहीं आ रहा था

की वह क्या जबाव दे तभी वहां मोना आ गई उसने अपनी सास की बातें सुन लीं थीं उसने अपनी सास के पैरों में बैठते हुए कहा, ” मां जी आप अपने घर में बच्चों का क्रैच चलाइए वर्मा आंटी का घर छोटा है यहां बाहर गार्डन भी नहीं है बच्चे कमरे में ही कैद रहते हैं अपना घर बड़ा है बाहर बहुत बड़ा गार्डन है वहां बच्चे बहुत खुश रहेंगे आप और वर्मा आंटी वहीं रहिए हम लोग ऊपर के मंजिल पर रहेंगे यह घर वर्मा आंटी किराए पर उठा दें मैं भी आपकी मदद करूंगी मां जी मुझे माफ़ कर दीजिए

मैंने आपके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया अपनी बेटी समझकर माफ़ कर दीजिए मैं अपनी मां के बहकावे में आ गई थी मुझे उनका स्वार्थ नहीं दिखाई दिया क्योंकि वह मेरी मां थीं कभी कभी अपनी मां भी स्वार्थी होकर अपनी बेटी का घर उजाड़ने का काम करती है जैसा मेरी मां ने किया मुझसे गलती हुई अब मुझे समझ आ गया है औरत जब अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं करती तो वह लोगों के बहकावे में आकर अपने ही घर को नर्क बना देती है जैसा मैंने किया

मैंने अपनी मां और सहेलियों के बहकावे में आकर आपने स्वर्ग जैसे घर को नर्क बना दिया अब मेरी आंखों से स्वार्थ का पर्दा हट गया है आप अपने घर चलिए मैं आपको लेने आईं हूं” तभी सावित्री के पोता पोती भी वहां आ गए और अपनी दादी से लिपटकर बोले  “हां दादी आप अपने घर चलिए हमने आपका कमरा अच्छे से सजाकर रखा है हमें आपसे कहानी भी सुननी है आप घर चलिए मम्मी पापा को माफ़ कर दीजिए

हम दोनों उनकी तरफ़ से आपसे माफ़ी मांगते है” “हां मां जी घर चलिए जिससे मैं भी आपके घर काम करने आ जाऊं बिना काम किए बैठकर कब तक तनख्वाह लूंगी ” उसी समय वहां रेखा ने आते हुए कहा मोना के साथ सभी ने चौंककर रेखा को देखा मोना सब समझ गईं इस बात पर उसे गुस्सा नहीं आया बल्कि वह धीरे से मुस्कुरा दी। ” हां सावित्री बहन अब आप बच्चों को माफ़ कर दो और अपने घर जाओ गलतियां इंसान से ही होती हैं और जो अपनी ग़लती समझ कर सुधर जाए तो उसे माफ़ कर देना चाहिए” मिसेज वर्मा ने भावुक होकर कहा अपने बच्चों और मिसेज वर्मा की बातें सुनकर सावित्री जी भी भावुक हो गईं और उन्होंने अपने पोते पोती को गले से लगा लिया।

डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित अयोध्या उत्तर प्रदेश
VVM

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