मैं हूं मीरा गर्ग यह कहानी है मेरी और मेरी कामवाली बाई सावित्री की जिसमें प्यार भी है और अपनापन भी आइए आपको मैं अपनी और सावित्री की कहानी सुनाती हूं। मेरी कामवाली बाई सावित्री सुबह सुबह जब दरवाजे का बेल बजाती थी तो हम समझ जाते थे कि 7 बज गया। क्योंकि वह टाइम की बिल्कुल पक्की थी 7 बजे से ना एक मिनट पहले ना एक मिनट बाद 7:00 बजते ही उसका बेल बज जाता था.
घर में घुसते ही ऐसा लगता था हमारे घर में एफएम रेडियो शुरू हो गया. 1 मिनट भी चुप नहीं रह सकती थी वो जिस जिस घर में काम करने जाती थी उस घर की एक से एक चटपटी खबरें सुनाती रहती थी। बीबीजी कल मैं उस घर में गई थी तो ऐसा हुआ परसों उस घर में गई थी तो ऐसा हुआ।
सावित्री जब तक घर की सफाई और बर्तन साफ करती तब तक मैं इधर अपने बच्चों को नहा-धोकर स्कूल के लिए तैयार कर देती थी और फिर नाश्ता बनाकर सावित्री के साथ बच्चों को स्कूल बस तक छोड़ने के लिए भेज देती थी। यह काम 8 बजे तक निपट जाता था फिर उसके बाद पति देव को नाश्ता कराओ और ऑफिस भेजो।
लेकिन आज कुछ उल्टा हुआ हम भी घड़ी का टाइम नहीं देखते थे क्योकीं सावित्री आती थी तो हम समझ जाते थे कि 7:00 बज रहे होंगे। लेकिन आज सावित्री लेट से आई जब हम ने दरवाजा खोला तो देखा अभी 7:15 बज चुके हैं।
जल्दी जल्दी से मैंने बच्चों को नहाया धुलाया और स्कूल के लिए तैयार करने लगी। मैंने सावित्री से पूछा क्या हो गया सावित्री आज लेट। सावित्री ने धीरे से जवाब दिया नहीं मैडम बस ऐसे ही आज नींद नहीं खुला। लेकिन यह क्या है आज सावित्री कुछ बोल भी नहीं रही थी बस अपना काम जल्दी-जल्दी से निपटा रही थी मुझे समझ आ गया जरूर कुछ हुआ है सावित्री के साथ। सावित्री बेहद ही फूर्तीली और हंसमुख थी किंतु उस दिन उसका चेहरा बहुत उदास था उसकी ख़ामोशी ने मेरे मन में हलचल मचा दी।
सावित्री जब शाम को घर में आई तो मैंने उसके उदासी का कारण पूछा तब वह कहने लगी। आपको क्या बताएं मैडम बहुत ही बुरी तरह से फंस चुकी हूं। मेरे 2 महीने का घर का किराया बाकी है और मकान मालिक ने आज बोला अगर आज किराया नहीं चुकाया तो तुम्हारे घर में ताला बंद कर दूंगा और रहना रोड पर जा कर।
मैंने बोला ऐसा क्यों पैसे तो तुम इतना कमाती हो कि किराया भर दो और तुम्हारा पति भी तो कुछ पैसे कमाता होगा।
मेरे इतना कहते हुए ही सावित्री रोने लग गई उसके आंसू उसके लाचारी को साफ दिखा रहे थे मैं भी थोड़ी सी सीरियस हो गई कि तुम्हारा पति आखिर करता क्या है। सावित्री ने जवाब दिया उसका नाम मत लीजिए मैडम जी उसकी नाम से ही मुझे नफरत होती है। खुद तो कुछ कमाता नहीं है जो भी कमा कर ले जाती हूं सारे पैसे दारू पीने में खत्म कर देता है।
जैसे तैसे करके घर चलाती हूं और बच्चे पलती हूँ। सावित्री फफक कर रोने लगी। मैंने सावित्री को भरोसा दिलाया कि तुम घबराओ मत सब ठीक हो जाएगा मैं तुम्हारे लिए कुछ ना कुछ जरूर करूंगी तुम जाओ अभी।
रात को मैं और मेरे पति जब सोने लग गए तो मैंने सावित्री के बारे में बात की और सावित्री की कहानी सुनाई। मैंने बोला राकेश हमारे छत के ऊपर जो एक छोटा सा कमरा है जिसे हम स्टोर रूम बना रखे हैं क्या हम सावित्री को रहने के लिए नहीं दे सकते हैं।
मेरे पति बोले यह तो बहुत अच्छी बात है आखिर वह कमरा बेकार ही पड़ा हुआ है अगर सावित्री रहेगी तो हमारे घर की भी देखभाल सही तरीके से हो जाएगी और उसको भी एक छत मिल जाएगा। तुमने अच्छा आईडिया सोचा है।
अगले दिन हमने कबाड़ी वाले को बुला कर जो भी उसमें बेकार की चीजें थी सब बेच दिया।
सावित्री जब शाम को घर पर काम करने आई तो मैंने उसे ऊपर वाले कमरे की चाबी पकड़ाते हुए कहा सावित्री यह लो अपने घर की चाबी। सावित्री ने बोला यह क्या है मैडम जी किस घर की चाबी दे रही हैं आप। मैंने उससे कहा कि मैंने तुमसे कहा था ना कि तुम चिंता मत करो कुछ न कुछ इंतजाम हो जाएगा। मैंने तुम्हारे भाई साहब से बात किया ऊपर जो हमारा स्टोर वाला कमरा खाली था उसमें तुम्हारा रहने का बंदोबस्त कर दिया है। अब कल से तुम यहीं पर रहोगी और अपने पति से कह देना कि जब तक वहां का किराया नहीं चूकाएगा उसे इस घर में रहने का कोई हक नहीं है। यहां पर तुम और सिर्फ तुम्हारे बच्चे रहेंगे।
सावित्री मेरे पैरों में गिर गई और बोली भगवान आपको बहुत तरक्की दे मैडम। आप इतना हमारे बारे में सोचती हैं नहीं तो एक दिन का बड़ी मुश्किल से मैंने मकान मालिक से मोहलत मांगी थी आज पता नहीं हम कहां रहते।
सावित्री ने बोला मैडम लेकिन जब तक हम वहां घर का किराया नहीं चुकाएंगे उस घर में से मकान मालिक हमें कोई भी सामान लाने नहीं देगा।
मैंने सावित्री से पूछा कि कितना किराया देना होता है उसने बोली सोलह मैडम 8 सौ रुपये महिना यानी 2 महीने का 16 सौ तुम्हारा बाकी है। यह लो सोलह सौ रुपए और मकान मालिक को किराया देकर कल ही अपना सारा सामान यहां पर शिफ्ट कर लो।
जब कल सामान यहां पर सावित्री शिफ्ट कर रही थी तो उसका पति भी साथ में था हमने उसके पति से बात की और बोला। तुम कोई काम क्यों नहीं करते हो अगर ऐसे करोगे तो कैसे चलेगा तुम्हारे बच्चे धीरे-धीरे बड़े होंगे। क्या तुम नहीं चाहते हो कि पढ़ लिखकर कुछ बड़ा आदमी बने कि तुम अपने जैसे ही उन्हें बनाना चाहते हो।
सावित्री के आदमी ने बोला मैडम मैं काम तो करना चाहता हूं लेकिन कहीं पर ढंग का काम ही नहीं मिलता है काम छूट जाता है इस टेंशन में और शराब पीने लग जाता हूं।
अगर तुम सच में काम करना चाहते हो तो बोलो मैं अपने पति से बात करूंगी। सावित्री का आदमी बोला। हां मालकिन मैं काम करना चाहता हूं। रात को मैंने राकेश से सावित्री के आदमी के काम के बारे में बात किया कि कहीं पर अगर जानते हो तो इसका काम लगवा दो कम से कम कुछ तो कमाएगा। मेरे पति राकेश बोले अरे हां मेरे ऑफिस में ही पीउन की जरूरत है अगर वह करना चाहे तो मैं अपने बॉस से बात करूंगा।
सावित्री के आदमी का राकेश के ऑफिस में पीउनकी नौकरी लग गई उसने धीरे धीरे शराब पीना भी छोड़ दिया और अपने परिवार के साथ एक अच्छी जिंदगी जीने लगा।
सावित्री अब हमारे यहां ही रहने लगी थी इस वजह से उससे मेरा नाता अब एक बाई का नहीं था बल्कि एक दोस्त या यूं कहु तो बहन का हो गया था। वह भी हमारी हर समय हर छोटी-छोटी कामों में मदद कर दिया करती थी। ऐसा लगता था वह मेरी कामवाली बाई नहीं बल्कि मेरी बहन हो।
दोस्तों अगर आपको भी कुछ ऐसा मदद करने का मौका मिले तो आप अपनी जिंदगी में पीछे मत हटना मुझे लगता है कि हर घर में एक छोटा सा स्टोर रूम जरूर होता है अगर वह स्टोररूम हम कबाड़ रखने के बदले किसी की जिंदगी संवारने के काम मे इस्तेमाल करे तो इससे बढ़िया और क्या हो सकता है।