सत्रह वर्षीया रिया ने पुलक कर स्मिता के गले में बाहें डालकर कहा,”- पता है दीदी… आप मेरे साथ मेरे कमरे में रहोगी। माँ ने आपके रहने का प्रबंध मेरे ही कमरे में करवाया है। कितना मजा आएगा ना। हम दोनों देर रात तक खूब सारी बातें करेंगे!”
उसकी मासूमियत पर मुस्कुरा पड़ी स्मिता और उसका गाल प्यार से थपथपा दिया। स्मिता रिया के ताऊ जी की दो बेटियों और एक बेटे में सबसे बड़ी थी। लगभग बारह साल बड़ी थी वह रिया से।ताऊ जी के बच्चे छोटे ही थे जब एक प्राण घातक रोग से ताई जी का देहांत हो गया। फिर ताऊ जी ने अकेले ही सभी बच्चों का पालन पोषण किया।
परंतु विवाह योग्य आयु होने पर भी स्मिता ने विवाह नहीं किया क्योंकि वह ताऊ जी को वृद्धावस्था में अकेले नहीं छोड़ना चाहती थी और उनसे छोटे दोनो भाई बहनों का समय के साथ विवाह हो गया। स्मिता एक विद्यालय में अध्यापिका थी और ताऊ जी के साथ ही रहती थी और उनकी देखभाल करती थी।
अब आजकल ताऊ जी का स्वास्थ्य इतना अच्छा नहीं रहता था। इधर काफी दिनों से उनको स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याएं उत्पन्न हो गई थी। और जहां वह रहते थे वह छोटा शहर होने के कारण वहां अच्छे चिकित्सकों और अस्पतालों का अभाव था। इसीलिए स्मिता ताऊजी को लेकर यहां आई थी ताकि कुछ दिन यहां रहकर वह उनका भली भांति इलाज करा सके।
रिया अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी, उसे हमेशा लगता था कि काश उसका भी कोई भाई-बहन होता। ऐसे में उसे स्मिता का आना बहुत अच्छा लगा।
दूसरे दिन जब वह विद्यालय से आई तो उसने देखा कि माँ रसोई में है और साथ ही स्मिता भी। स्वादिष्ट पकवानों की बहुत प्यारी सी खुशबू आ रही थी। वह बस्ता पटक कर दौड़कर देखने पहुंच गई। दाल के पकौड़े, हलवा और मिठाइयां… देखते ही उसके मुंह में पानी आ गया। उसने पकौड़ो की तरफ हाथ बढ़ाते हुए पूछा, “- क्या बात है माँ? यह सब क्यों बना रही हो? कोई आने वाला है क्या?” उसकी माँ ने मुस्कुरा कर कहा, “-हां इसी शहर में रहने वाले तुम्हारे ताऊजी के मित्र और उनके सुपुत्र ताऊजी से मिलने आ रहे हैं आज।”
तभी पकौड़ो की तरफ बढ़ते हुए उसके हाथ पर स्मिता ने प्यार से चपत लगा कर हंसते हुए कहा,
“- अरे राजकुमारी जी… पहले हाथ तो धो लो।”
“-अरे हां.. मैं तो भूल ही गई”
कहते हुए रिया वहीं सिंक में हाथ धोने लगी। उसकी अधीरता पर मां और स्मिता दोनों हंस पड़े। माँ ने लाड़ भरी झिड़की देते हुए कहा,
“-और मेहमानों के सामने ऐसे ही चटर-पटर मत करने लगना…”
“-हां हां”…कहती हुई रिया ने झटपट हाथ में कुछ पकौड़े उठाए और फूंक मार मार कर मुंह में डालती हुई बाहर चली गई। कैशोर्य की अल्हड़ता में इतनी परिपक्वता कहां से आए।
नियत समय पर ताऊ जी के दोस्त और उनके सुपुत्र ताऊ जी से मिलने घर आ गए। रिया के माता-पिता ने बहुत ही गर्मजोशी से उनका स्वागत किया। फिर सब बैठ कर बातें करने लगे। रिया की माँ और स्मिता रसोई में चले गए। रिया अपने कमरे में ही थी और टैब में मूवी देखने में व्यस्त थी।….. रिया की मां ने थोड़ा चिढ़कर कहा, “- इतनी बड़ी हो गई है यह लड़की पर इतना भी नहीं होता कि घर में मेहमान आए हैं तो थोड़ा निकल कर बाहर आए और काम में थोड़ा हाथ बँटाए।”…. स्मिता ने हंसते हुए कहा, “-अरे चाची जी! अभी उसकी उम्र की क्या है…अभी छोटी है… धीरे-धीरे सब समझ जाएगी.. मैं उसे बुला लाती हूं!”
स्मिता के बुलाने पर रिया निकाल कर बाहर तो आई पर मन ही मन भुनभुना रही थी,
‘- अरे मुझे क्या मतलब है ताऊजी के दोस्त और उनके लाडले से!!!…. अच्छी भली मूवी देख रही थी… पूरा मूड खराब हो गया…’
रसोई में पहुंची तो मां ने कहा, “- थोड़ी तो मेहमानों को चाय नाश्ता पहुंचाने में सहायता करो…. बेचारी स्मिता कब से लगी हुई है अकेली।”
मन ही मन कुढ़ते हुए उसने चाय नाश्ते की ट्रे थाम ली और लेकर ड्राइंग रूम में पहुंची। उसने ताऊ जी के मित्र को नमस्ते किया और जब उनके पुत्र की ओर देखा तो जैसे उसकी आंखें वहीं उलझ कर रह गईं। ऊंचा लंबा कद, गेहुआ रंग, हल्के घुंघराले से बाल और बोलती सी भूरी आंखें… देखती ही रह गई वह तो। उसे अपनी और ऐसे देखती पाकर वह मुस्कुरा दिया तो रिया ने झेंप कर झटपट अपनी दृष्टि झुका ली। उसके कपोल लाल हो गए, जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो।
ताऊ जी के मित्र के बेटे ने मुस्कुरा कहा,”- हाय! मैं पीयूष! इंजीनियर हूं और यही एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करता हूं।”
लाल पड़ी हुई रिया ने जैसे तैसे कहा, “-मैं रिया!”
और फिर धड़कते हृदय से उल्टे पैर वो वापस अपने कमरे में आ गई। आप तो गई मगर उसका मन तो वहीं छूट गया। वह चुपचाप जैसे सुध बुध खोकर बैठी रही तभी पिताजी की उसे पुकारने की आवाज आई, तो अपने धौंकनी हुए स्पंदनों को संभालती लगभग दौड़ती हुई वह ड्राइंग रूम में जा पहुंची। पिताजी ने कहा,”- रिया बेटा, तुम्हारी एक दोस्त की मम्मी इंटीरियर डिजाइनर है ना… तुम जरा इन्हें उनका नंबर दे दो इन्हें अपने नए घर में इंटीरियर करवाना है।”
पीयूष ने कहा, “- मैं आपको अपना नंबर दे देता हूं! आप मुझे व्हाट्सएप कर दीजिएगा!” पीयूष ने अपना नंबर दिया और उसके बाद उन लोगों ने जाने की अनुमति मांगी। रिया के पिताजी ने लगे हाथों उन लोगों को होली में घर आने का निमंत्रण दे दिया क्योंकि होली चार ही दिन बाद थी।
रात को खाना खाने के बाद रिया ने अपनी सहेली की मम्मी का नंबर पीयूष को व्हाट्सएप कर दिया। तुरंत ही पीयूष का “थैंक्स” आ गया। शायद वह भी ऑनलाइन ही था।
धड़कते हृदय से फिर उसने टाइप किया,”- आप सोए नहीं अभी तक?”
तुरंत ही पीयूष का रिप्लाई आया, “-कुछ ख्याल सोने नहीं दे रहे” और स्माइल वाली इमोजी !
कुछ क्षणों तक तो रिया को कोई उत्तर ही नहीं सूझा, फिर उसने शुभ रात्रि लिखा और ऑफलाइन हो गई। क्योंकि अब स्मिता कमरे में आने ही वाली थी। उसने पीयूष का डीपी जूम करके देखा… वही कशिश भरी मुस्कुराती भूरी आंखें…” तभी स्मिता कमरे में आ गई उसने झटपट अपना मोबाइल बंद कर चार्जिंग में लगा दिया, और कुछ देर स्मिता से बातें करने के बाद सो गई।
सुबह उठी तो मोबाइल में पीयूष का संदेश पड़ा हुआ था, लाल गुलाब के साथ “गुड मॉर्निंग” …. वह खुशी से झूम उठी। स्माइली के साथ उसने भी गुड मॉर्निंग भेज दिया। इन व्हाट्सएप संदेशों ने जैसे हृदय के तार जोड़ दिए थे।
होली के दिन सुबह से ही घर में चहल-पहल शुरू हो गई। ढेर सारे पकवान बने थे और होली खेलने का प्रबंध घर के बाहर अपने ही अहाते में था। आने जाने वालों का ताँता लगा हुआ था और चारों ओर रंग गुलालों की बौछार थी। तभी पियूष अपने पिता के साथ आता दिखा। रिया का मन मयूर झूम उठा। सब लोग होली खेलने में व्यस्त थे। अचानक सबकी आंख बचाकर पीयूष ने पिया का हाथ पकड़ा और उसके माथे पर लाल गुलाब से कुमकुम जैसा टीका लगा दिया और उसकी मांग चूम ली।
सब लोग होली खेल कर तो चले गए मगर रिया पर ऐसा रंग चढ़ा कि वह जैसे सारे जग से पराई हो गई। उसके व्यवहार का यह बदलाव स्मिता से छुपा नहीं रह सका उसने एक दो बार पूछा भी रिया से,”- क्या री रिया, आजकल तुझे क्या होता जा रहा है। बड़ी खोई खोई से रहने लगी है…?”
रिया ने बात को आई गई कर दी, “- अरे दीदी, आपको बस यूं ही लग रहा है..ऐसा कुछ नहीं है।”
लेकिन स्मिता को आभास हो गया था कि कुछ ना कुछ तो गड़बड़ है और उसने सोच लिया कि वह बात की तह तक तो जाकर ही रहेगी। एक रात जब रिया सो गई तो उसने उसका मोबाइल उठाया। मोबाइल लॉक था जो रिया के फिंगरप्रिंट से ही खुलता। उसने बहुत सावधानीपूर्वक रिया की उंगली का स्पर्श कराया तो मोबाइल झट से खुल गया।
रिया का मोबाइल देखकर तो स्मिता की आंखें फटी की फटी रह गईं। पीयूष से इतने लंबी-लंबी चैटिंग…. प्रणय के रंग से सराबोर बातें… स्मिता के तो होश ही उड़ गए। कहाँ इतनी प्यारी कमसिन रिया और कहाँ पीयूष… दोनों की आयु का अंतर कम से कम चौदह से सोलह वर्ष तो होगा ही। पीयूष का अंतिम संदेश पढ़कर तो उसका दिमाग ही घूम गया….. पीयूष ने रिया से आग्रह किया कि वह उसके साथ अगले हफ्ते उसके फार्म हाउस पर चले। वह उसे अपना फार्म हाउस दिखाना चाहता है। वहां बैठकर दोनों खूब सारी प्यार भरी बातें करेंगे और एक दूसरे में खो जाएंगे।
और उसके नीचे रिया का दिलवाला इमोजी ! उफ्फ्फ!!! यह कैसा खेल खेल रहा था पीयूष!!!
मन तो किया कि रिया को जगा कर अभी और इसी समय उससे सारी बातें करें लेकिन रात बहुत हो चुकी थी तो उसने सुबह ही बातें करना श्रेयस्कर समझा।
सुबह उसने बातों को घुमा फिरा कर रिया से पीयूष के बारे में पूछने का प्रयास किया क्योंकि वह यह नहीं जताना चाहती थी कि उसने उसका मोबाइल देखा है अन्यथा विपरीत प्रभाव पड़ सकता था।
थोड़ी मशक्कत करनी पड़ी लेकिन विश्वास में लेकर बात करने पर रिया ने बता ही दिया कि वह और पीयूष एक दूसरे से प्रेम करते हैं।
इस पर स्मिता ने उसे समझाते हुए कहा,”- देख रिया, अभी तू बहुत छोटी है। यह प्रेम नहीं सिर्फ तेरा आकर्षण है पीयूष के प्रति… और पता है पीयूष तुझे कितना बड़ा है। वह तुझे यूं ही बहला रहा है उसे कोई प्रेम व्रेम नहीं है तुझसे! अभी तू इन बातों पर ध्यान देना छोड़कर अपनी पढ़ाई पर अपना ध्यान केंद्रित कर और अपना भविष्य संवार…. ऐसी बातों के लिए….
रिया ने बीच में ही उसकी बात काटते हुए एक-एक शब्द पर जोड़ देते हुए कहा, “- नहीं दीदी ऐसा नहीं है वह मुझसे बहुत प्रेम करते हैं। और वह चाहे मुझे कितने भी बड़े हों, प्रेम में आयु का बंधन नहीं होता। और उन्होंने कहा है कि वह शीघ्र ही मुझे विवाह भी कर लेंगे!”
स्मिता ने फिर उसे समझाने का प्रयास किया, “- पागल मत बन रिया! इन सब बातों में कुछ नहीं रखा है! झूठ बोलता है वह… वह तुझसे कभी विवाह नहीं करेगा! केवल तेरी मासूमियत का लाभ उठा रहा है..”
अचानक रिया का स्वर तेज और तीखा हो गया, “-क्यों क्या हुआ दीदी… वह मुझसे विवाह करने वाला है तो आपको बुरा लग रहा है.. ईर्ष्या हो रही है आपको…?”
स्तब्ध रह गई स्मिता! फिर संभालते हुए उसने कहा, “-अरे रिया मुझे बुरा क्यों लगेगा भला… तू मेरी छोटी बहन है.. मैं तो तेरे भले के लिए ही कह रही हूं ना..”
प्रिया ने विषाक्त स्वर में कहा,”- बुरा आपको इसलिए लग रहा है दीदी क्योंकि आपका अपना तो विवाह हो नहीं पाया और जब मुझे इतना अच्छा और सुदर्शन जीवन साथी मिलने वाला है तो आपके कलेजे पर सांप लोट रहा है। और रही मेरे भले की बात तो मैं अब बच्ची नहीं रही हूं… अपना भला बुरा सोच सकती हूं…. अब मुझे आपसे बहस करने का समय नहीं है… मुझे स्कूल के लिए देर हो रही है..”
शब्दों का करारा तमाचा रिया स्मिता के मुंह पर मार कर चली गई। कमरे में जाकर काफी देर तक रोती रही स्मिता… फिर उसने स्वयं को संयत करते हुए सोचा कि रिया एक छोटी बच्ची ही तो है। उसे इतनी समझ कहां! उसके अबोध हृदय में जो भी बात आई, उसने खुलकर कह दिया। लेकिन वह अपनी छोटी सी बहन के साथ कभी भी बुरा नहीं होने देगी। अब रिया से बात करने से कुछ नहीं होगा… उसके आंखों पर अभी पीयूष के सम्मोहन की पट्टी बंधी है। अब कोई दूसरा रास्ता ढूंढना पड़ेगा।
रिया विद्यालय से आई तो सोफे पर स्मिता को बैठे देखकर उसकी त्यौरियाँ चढ़ गईं। आग्नेय दृष्टि से उसकी ओर देखते हुए वह कमरे में चली गई। स्मिता ने सब कुछ देखा और समझा लेकिन फिर वह भी रिया के पीछे-पीछे उसके कमरे में चली गई। फिर उसने प्यार से रिया से कहा,
“- मेरी छोटी बहना अभी भी नाराज है… अच्छा चलो शायद मुझसे गलती हो गई… हो सकता है तुम सही हो.. पीयूष ऐसा नहीं हो.. अब आगे से मैं तुम्हें इस बारे में कुछ भी नहीं कहूंगी। जिसमें तुम्हारी खुशी उसी में मेरी खुशी.. अब तो हंस दे मेरी प्यारी बहना..”
और उसने प्यार से प्रिया का गाल खींचा। प्रिया ने एक हाथ से उसका हाथ पीछे कर दिया और जाकर पलंग पर बैठ गई। स्मिता ने अपने हाथ में छुपाया हुआ चॉकलेट उसके आगे कर दिया, यह देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। अगले ही पल दोनों बहने मिल बैठ कर बातें करने लगीं। और इधर मन ही मन स्मिता सोचने लगी कि क्या युक्ति निकाली जाए, जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।
अगला दिन रविवार था। रिया टीवी पर फिल्म देख रही थी। घर में फल खत्म हो चुके थे और ताऊ जी के लिए फल चाहिए थे। स्मिता ने स्कूटी निकाली और फल लाने चली गई। कुछ ही देर के बाद वह फल लेकर घर आ गई। फल फ्रिज में रखकर उसने रिया से कहा , “-रिया आज रविवार का दिन है.. चल ना…कहीं घूम कर आते हैं।
रिया ने खुश होकर कहा..” अच्छा दीदी… चलो”
रिया झटपट तैयार होकर आ गई। दोनों बहनें स्कूटी से चल पड़ी। रास्ते में एक मंदिर आया तो अचानक स्मिता ने कहा,
“-रिया, कई दिनों से मेरा इस मंदिर में दर्शन करने का मन कर रहा था.. एक बार हो आएं? बस 5 मिनट लगेंगे… फिर हम एम्यूजमेंट पार्क चलेंगे.. ठीक है??”
रिया मान गई। दोनों बहने मंदिर परिसर में प्रवेश कर गई! अचानक रिया जड़वत रह गई। सामने पियूष कुर्ते पजामे में दिखाई दे रहा था। मंदिर में उसने अपने साथ खड़ी महिला को कंधे से पकड़ रखा था। पीयूष की गोद में एक 4-5 वर्ष का बच्चा था। पीयूष का अंगरखा और उस महिला के आंचल का गठबंधन हो रखा था! शायद पूजा संपन्न हो चुकी थी। पीयूष पंडित जी से कह रहा था, “-पंडित जी आज हमारी वैवाहिक वर्षगांठ है। हमें आशीर्वाद दीजिए कि हमारा यह बंधन यूं ही जन्म-जन्मांतर तक बना रहे।”
यह सब देखने के बाद रिया के लिए कहने सुनने के लिए कुछ नहीं बच गया था। पीयूष का कच्चा चिट्ठा उसके सामने आ चुका था। स्मिता ने भी सब कुछ देखा । वह भली भांति समझ पा रही थी कि रिया किस मन:स्थिति से गुजर रही है। उसने तुरंत रिया को बाँहों का सहारा दिया और कहा,
“-चलो रिया, घर चलते हैं।”
अचानक रिया की मुखमुद्रा कठोर हो गई। उसने कहा,
“-एक मिनट दीदी….”
वह आवेश में तेज कदमों से चलते हुए पियूष के पास पहुंची। अचानक से उसे अपने सामने देखकर पीयूष हक्का-बक्का रह गया। रिया ने एक-एक शब्द को चबाते हुए कहा, “- वैवाहिक वर्षगांठ की बहुत सारी बधाइयां और शुभकामनाएं आपको पीयूष जी! हैप्पी एनिवर्सरी!”
कहकर तुरंत पलटी और स्मिता के पास आकर कहा, “-दीदी,मुझे जल्दी घर ले चलो।”
स्मिता ने चैन की सांस ली। उसका काम भगवान ने स्वयं ही सरल कर दिया। वह सुबह जब ताऊजी के लिए फल लेने जा रही थी तभी उसे पीयूष और उसकी पत्नी मंदिर में प्रवेश करते हुए दिखाई दे गए इसीलिए वह जानबूझकर बहला फुसला कर रिया को यहां तक लेकर आई। वह रिया की आंखों से इस मिथ्या प्रेम और भ्रम की पट्टी उतारने में सफल रही और पीयूष का असली घिनौना चेहरा रिया के समक्ष आ गया ।
दोनों बहनें घर पहुंची तो रिया स्मिता की गोद में सिर रखकर रो पड़ी.. ,”-दीदी मुझे क्षमा कर दो! मैंने उस दिन गुस्से में आकर पता नहीं तुमसे क्या-क्या कह दिया!”
स्मिता ने भावुक होकर रूंधे गले से कहा, “‘कोई बात नहीं है रिया, जब जागो तभी सवेरा! सही समय पर तुम्हें वास्तविकता पता चल गई वरना पता नहीं क्या अनर्थ हो जाता..” और उसने उसे गले से लगा लिया।
स्मिता की समझदारी से एक मासूम और अबोध जीवन कामांध भेड़िए के जाल में फंसकर नाश होने से बच गया।
निभा राजीव “निर्वी”
सिंदरी, धनबाद, झारखंड
स्वरचित और मौलिक रचना