अरे भाई रुक्मणि कहां हो ?? मैं कब से चाय और पकोडों का इंतजार कर रहा हुं मगर तुम अब तक चाय और पकोडें लेकर आई नहीं , देखो तो बाहर बारीश आकर थम भी चुकी हैं मगर तुम अब तक रसोई से बाहर नहीं आई , प्रकाश जी बालकनी में बैठे बैठे बोले !!
रुक्मणि जी जो कि पकोडे तल चुकी थी , उन्हें प्लेट में डालते हुए बोली आप भी हद करते हैं , मैं अब पहले की तरह जवान तो रही नहीं कि आपने हुक्म दिया और तुरंत आपका हुक्म पुरा कर दुं , अब उम्र के साथ काम करने की क्षमता भी तो ढल चुकी हैं मेरी , अब हर काम में समय लगता हैं मुझे , खैर एक तरफ चाय बन रही हैं बस दोनों साथ में लेकर आ रही हुं !! थोड़ी देर में रुक्मणि जी चाय और पकोडे लाकर बालकनी की मेज पर रख देती हैं !!
प्रकाश जी पकोड़े खाते हुए बोले रुक्मणि भले तुम्हारी उम्र हो चली हैं मगर तुम्हारे हाथों का स्वाद अभी भी वैसा ही बरकरार हैं जैसा इतने साल पहले था !!
रुक्मणि जी शर्माकर बोली इतने सालों से खाना बना रही हुं जी , हाथ का स्वाद कैसे बदलेगा ?? हां अब आपकी कोई भी इच्छा तुरंत पुरी नहीं कर पाती हुं यह अलग बात हैं !!
प्रकाश जी बोले खैर छोडो इन सब बातों को और पकोड़ों का मजा लो , बारिश भले थम चुकी हैं मगर यह मिटटी की सौंधी सौंधी खुशबु और गीली जमीन अभी भी महक रही हैं !!
रुक्मणि जी ने जैसे एक पकोडे को उठाया और खाया , उनके दांतों का दर्द फिर से शुरू हो गया और वह कराहने लगी , हाथ में लिए हुए पकोड़े तुरंत नीचे रखे और गाल पर हाथ रख फिर से कराहने लगी और बोली अब पहले जैसी बात कहां ,यह दांत का दर्द कहां पकोडे खाने देगा !!
प्रकाश जी बोले रुक्मणि तुम्हारे दांतों का दर्द तो इतना बढ गया हैं कि तुमसे तो पकोडे भी नहीं खाए जा रहे हैं ,आज शाम ही दांत के डॉक्टर के पास चलकर तुम्हारे दांत दिखा आते हैं !!
आपको भी तो कानों से कम सुनाई देता है जी , आपकी भी तो कान की मशीन बनवानी हैं मगर आपने भी तो अब तक मशीन नहीं बनवाई , आज रोशन की ऑफिस की छुटटी हैं , उससे बात करती हुं रुक्मणिजी बोली !!
नहीं , रुक्मणि बार बार बेटे के सामने गिडगिडाने से अच्छा हैं , हम दोनों खुद ही डॉक्टर के पास चले जाए , वैसे भी मैं तुम्हारा और अपना खर्चा अपने बैंक में पड़े पैसे से ही तो पुरा करता हुं , रोशन से तो बस साथ में चलने कहा था वह तो इतना भी नहीं कर पाया हमारे लिए !!
रुक्मणि जी बोली , हो सकता हैं उस दिन रोशन को कोई काम आ गया हो इसलिए उसने मना कर दिया हो , आज फिर से पूछकर देखती हुं !!
प्रकाश जी ने रुक्मणी जी से मना किया था बेटे से पूछने के लिए फिर भी रुक्मणि जी नहीं मानी , जैसे ही शाम को रोशन ऑफिस से घर आया , रुक्मणि जी बोली बेटा मेरे दांत का दर्द काफी बढ़ गया हैं और तुम्हारे पापा के कान की नई मशीन बनवानी हैं , तुम हमारे साथ डॉक्टर के पास कब चलोगे ??
रोशन चिढ़ते हुए बोला मां इतने छोटे से काम के लिए आप लोग बार बार मुझे क्यों परेशान कर रहे हैं ?? आप दोनों खुद भी तो जा सकते हैं , डॉक्टर के पास जाने के लिए भी मेरा साथ चलना जरूरी हैं क्या ??
रुक्मणि जी बोली बेटा , तुम होगे तो हमें संतुष्टि रहेगी , वैसे भी कान की नई मशीन अलग अलग तरह की होती हैं और उसके दाम भी ज्यादा होते हैं , हम बुढो को कहां पता कि कैसी मशीन लेनी हैं और मेरे नए दांत लगवाने हैं उसमें भी तुम डॉक्टर से अच्छे तरीके से बात कर सकते हो !!
रोशन फिर से बोला मां आप दोनों को जो सही लगे ले लेना , वैसे भी मुझे आज सौम्या के साथ उसके मायके जाना हैं , हम दोनों का खाना वहीं हैं आज इसलिए आप दोनों अकेले ही डॉक्टर के पास चले जाईए !!
जब बेटा बहु ने अपने ही माता पिता को मरने के लिए छोड़ दिया !! (भाग 2)
स्वाती जैन