विमल जी पूरी जिंदगी शहर में नौकरी करते रहें वो एक सरकारी बैंक में मैनेजर थे, रिटायरमेंट के बाद उनका सपना था कि वह अपनी पत्नी के साथ अपने पुश्तैनी गांव में जाकर अपनी रिटायरमेंट के बाद वाली जीवन बिताएंगे
उन्होंने ऐसा ही किया रिटायर होने के बाद वह अपनी पत्नी को लेकर अपने पुश्तैनी गांव रामपुर चले गए लेकिन ईश्वर की मर्जी के आगे किसी की नहीं चलती है अभी विमल जी को गांव गए 6 महीने ही बीते थे कि पत्नी को कैंसर हो हो गया और चंद दिनों में ही स्वर्ग सिधार गई अब उनके लिए गांव में रहना मुश्किल सा हो गया क्योंकि उन्होंने अपनी जिंदगी में एक कप चाय तो बनाया नहीं फिर खाना कैसे बनाते वे अपने बेटे बहू के पास वापस नोइडा लौट गए विमल जी सुबह सुबह टहलने के लिए सोसायटी के एक पार्क में चले जाते थे वहां पर कई सारे बुजुर्ग बैठकर भजन कीर्तन किया करते थे। उन्हीं बुजुर्ग में से एक रामलाल थे जिनसे विमल जी की गहरी दोस्ती हो गई।
घर में बेटा बहू और पोते पोतियो के साथ उनका मन लगने लगा था, विमल जी के पोते पोती भी विमल जी से बहुत प्यार करते थे।
विमल जी को पार्क जाते हुए 3 से 4 दिन हो गए थे लेकिन अब रामलाल जी पार्क में दिखाई नहीं देते थे विमल जी का मन परेशान हो गया कि आखिर रामलाल जी आजकल पार्क क्यों नहीं आते हैं। किसी तरह से विमल जी ने रामलाल जी के घर का पता पूछ कर उनके फ्लैट पर पहुंचे और दरवाजा खटखटाया। तो अंदर से आवाज आई दरवाजा खुला हुआ है अंदर आ जाओ।
जब विमल जी दरवाजे के अंदर पहुंचे तो देखते हैं कि रामलाल जी बेड पर पड़े हुए हैं और काफी कमजोर दिख रहे हैं। घर भी सुना सुना लग रहा है जैसे घर में कोई इनके अलावा रहता ही ना हो। विमल जी ने रामलाल जी से पूछा कि रामलाल भाई माजरा क्या है तुम कई दिनों से पार्क भी नहीं आ रहे थे और अपना हुलिया कैसा बना रखा है बिल्कुल कमजोर और बीमारू दिख रहे हो। रामलाल जी बोले, “हां सही कह रहे हो विमल भाई मैं तीन-चार दिनों से बीमार हूं। घर में खाना बनाने वाला भी कोई नहीं है एक-दो दिन तो बाहर से खरीद कर खा लिया था लेकिन उसके बाद तबीयत खराब हो गई आपका फोन नंबर भी नहीं था नहीं तो मैं आपको जरूर फोन करता।
विमल जी ने रामलाल जी से पूछा आप तो कह रहे थे कि आपके बेटे और बहू भी आपके साथ रहते हैं फिर वो लोग कहां गए। रामलाल जी ने बताया कि उनके बेटे और बहू दोनों विदेश घूमने गए हैं वह 15 दिन के बाद ही आएंगे पैसे तो दे कर गए हैं लेकिन खरीद कर लाने वाला कोई नहीं है।
विमल जी ने अपने दोस्त रामलाल जी से कहा आज तो मैं खाना और दवाई खरीद कर ला देता हूं लेकिन कल से मैं आपको खाना अपने घर से अपने बहू की हाथों से बनवा कर लाया करूंगा। आप बिल्कुल भी टेंशन मत लीजिए बहुत जल्द ठीक हो जाएंगे।
अगले दिन जब विमल जी की बहू नाश्ता बना रही थी तो विमल जी ने कहा बहू आज चार रोटी ज्यादा बना देना क्योंकि मेरा दोस्त बीमार है और उसके बेटे और बहू भी बाहर गए हुए हैं उसके घर में खाना बनाने वाला कोई नहीं है जब तक उसके बेटे बहू नहीं आ जाएंगे मैं चाहता हूं कि उसको खाना मैं पहुंचा दूं।
इतना सुनते ही बहू अपने ससुर पर भड़क उठी पापाजी आप ये कैसी बात कर रहे हैं 1 दिन खाना पहुंचाना होता तो बात अलग थी 15 दिन खाना बनाना यह मेरे बस की बात नहीं है और आपको पता भी है आजकल महंगाई कितनी है एक आदमी कमाने वाला है और इतने लोग खाने वाले हैं। बहु ने अपने ससुर से कहा पापा जी आप अपने दोस्त से जाकर बोल दीजिए कि घर में खाना बनाने वाला कोई नहीं है तो टिफिन सर्विस लगवा ले।
विमल जी ने अपने बहू से कुछ भी नहीं कहा क्योंकि उनके पास रिटायरमेंट के जो पैसे थे उस पैसे से बेटे बहू के लिए फ्लैट खरीद दिया था और जो पेंशन आता था वह भी बेटा अपने पास ही रख लेता था लेकिन इस बात से विमल जी को कोई शिकायत नहीं थी क्योंकि हर कोई पैसा अपने बेटे बहू के लिए ही कमाता है। लेकिन बहू द्वारा इनकार करना उनको बहुत बुरा लगा। उन्होंने कुछ नहीं कहा। उन्होंने एक तरकीब निकाली। बहु जब उनको नाश्ता करने के लिए रोटी देती थी तो उसमें से दो रोटी खाते और तीन रोटी अपने दोस्त के लिए चुपके से बचा कर लेकर चले जाते थे।
एक दिन विमल जी की बहू उनके बेटे से कह रही थी कि मैं आजकल रोजाना नोटिस कर रही हूं कि पापा जी जब भी नाश्ता या खाना खाते हैं उसके तुरंत बाद घर से निकल जाते हैं पता नहीं कहां जाते हैं और काफी देर बाद वापस आते हैं। पूछने पर कह देते हैं ऐसे ही बाहर घूमने गया था।
अगले दिन विमल जी जब रात का खाना खाने के बाद रोटी लेकर चुपके से घर से निकले तो उनका बेटा और बहू भी चुपके से पीछे-पीछे आ रहे थे। वह जानना चाहते थे कि आखिर पिताजी कहां जाते हैं। उन्होंने देखा कि पिताजी बगल वाली सोसायटी के गेट के अंदर घुसे बेटे और बहू भी पीछे-पीछे घुस गए वह एक फ्लैट के गेट के पास पहुंचे और बेल बजाया। तभी एक बुजुर्ग ने दरवाजा खोला और विमल जी अंदर चले गए।
बेटा और बहू दरवाजे के दरार से अंदर देखने लगे कि पिताजी अंदर क्या कर रहे हैं। उन्होंने देखा कि विमल जी अपने दोस्त को अपने हाथों से खाना खिला रहे हैं। अब बेटा दरवाजे के अंदर आ चुका था। बेटा ने अपने पापा विमल जी से कहा, “पापा जी जब अंकल को आप को खाना खिलाना है था तो आप चुपके चुपके क्यों आते हैं आप रागिनी को बोल देते अंकल के लिए चार रोटी ज्यादा बना देती।”
विमल जी ने अपने बेटे से कहा, “बेटा मैंने बहू से कहा था कि मेरा दोस्त बीमार है इसके बेटे और बहू बाहर घूमने गए हैं बस 15 दिन की बात है खाना बना दो तो वह बोली कि इतनी महंगाई में 4 लोगों का गुजारा ही मुश्किल से होता है।” विमल जी का बेटा महेश ने अपनी पत्नी से पूछा, “रागिनी पापा क्या सच कह रहे हैं तुमने क्यों मना किया अंकल को अगर 10 दिन खाना बना देती तो हम गरीब नहीं हो जाते।” बेटा ने उसी समय अपने पापा से माफी मांगी और अंकल से भी। उसने कहा आज से अंकल हमारे घर पर रहेंगे जब तक इनका बेटा और बहू आ नहीं जाते।
एक महीना से भी ज्यादा हो गया था रामलाल जी का बेटा और बहू वापस नहीं आए। बाद में पता चला कि वह दोनों फ्लैट बेच कर चले गए हैं और प्रॉपर्टी डीलर को बोल कर गए थे कि वह 1 महीने के बाद ही इस घर को खाली कराना।
अब रामलाल जी के पास रहने के लिए कोई ठिकाना नहीं था अब वह जाएं तो कहां जाएं आखिर दूसरों के घर कितने दिन तक रहेंगे। राम लाल जी ने अपने दोस्त विमल जी के बेटा महेश को बुलाया और बोला बेटा, “क्या तुम मेरा एक काम करोगे? यह रहा मेरे फिक्स डिपाजिट का कागज मैंने अपने बुरे वक्त के लिए यह 20 लाख रुपए जमा करके रखे हुए थे सोसायटी के बगल में जो कॉलोनी है वहां पर मेरे लिए एक छोटा सा घर खरीद दो और मैं उसे वृद्ध आश्रम बना लूंगा और मेरे जैसे बूढ़े लोगों को जिसे बेटे बहुओं ने पुरानी सामान समझ कर छोड़ दिया है उसको मैं शरण दूंगा। क्या मेरे लिए इतना काम कर दोगे।” तभी विमल जी बोले रामलाल तुम्हारे इस नेक काम में मैं भी तुम्हारे साथ हूं और मैं भी ₹5 लाख की मदद करूंगा, “क्यों महेश सही कहा ना।” महेश बोला हां पिता जी आपने अगर कहा तो सही कहा होगा आपके पेंशन के पैसे हैं आप चाहे जहां मर्जी खर्च करें।
फिर क्या था अगले दिन ही कॉलोनी में एक छोटा सा घर खरीद लिया गया अब रामलाल जी और विमल जी वही शिफ्ट हो गए और अपने जैसे कुछ और लोगों को वहां रहने के लिए बुला लिया फिर क्या था उन लोगों का जीवन मस्ती से कटने लगा अब उन्हें अपने बेटा बहू की जरूरत नहीं थी वह सारे बुजुर्ग एक दूसरे के सहारा बन गए थे वह थे भले बेगाने लेकिन उनमें रिश्ता अपनों से भी बढ़कर था।
लेखक:मुकेश कुमार