शांति का ससुराल में आज पांचवा दिन था, रस्मों रिवाजों और पूजा पाठ में यह 5 दिन कैसे बीत गए पता ही नहीं चला। शादी में आए हुए सारे मेहमान अब तक जा चुके थे अब सिर्फ इस घर के सदस्य ही बच गए थे।शांति के ससुराल में शांति को लेकर कुल 4 सदस्य थे, शांति के हस्बैंड अविनाश और उसकी छोटी ननद प्रिया और उसके ससुर दीनदयाल जी।
उसकी सास लीला जी का देहांत 15 साल पहले ही हो चुका था। आज से घर का पूरा जिम्मेदारी शांति पर ही था यह तो इसे समझ आ रहा था। रात में सारे सदस्यों को खाना खिलाकर शांति अपने कमरे में आकर TV देख रही थी। कुछ देर बाद उसका पति अविनाश कमरे में आया और TV ऑफ कर दिया। शांति बोली टीवी क्यों ऑफ कर दिया मेरा फेवरेट सीरियल आ रहा है देख लेने दो उसके बाद बंद कर देना।
अविनाश बोला शांति आज मैं तुमसे कुछ जरूरी बात करना चाहता हूं शादी के पहले दिन से ही मैं यह बात कहना चाह रहा था लेकिन मैंने सोचा कि सारे मेहमान चले जाएंगे तब मैं कहूंगा। शांति बोली हां हां बताओ क्या कहना है।
अविनाश ने शांति का हाथ अपने हाथ में लेकर बोला।
शांति जैसे कि तुमको पता ही है हमारी मां बचपन में ही हमें छोड़कर चली गई है और एक औरत के बिना घर कितना सुना लगता है यह हम बखूबी जान गए हैं। मुझे और मेरी छोटी बहन प्रिया को कष्ट ना हो इस वजह से बाबूजी ने दोबारा शादी नहीं की और हमें बहुत ही प्यार से पाला-पोसा और एक मां और बाप दोनों का प्यार दिया। अविनाश के शब्दों में उसके दर्द साफ साफ झलक रहा था। उसने शांति का माथा चूमते हुए बोला शांति मैं चाहता हूं कि तुम अपने प्यार से इस मकान को घर बना दो।
यह सब बातें सुनकर शांति ने अपने पति अविनाश को गले लगाया और बोला अविनाश आज से तुम निश्चिंत हो जाओ। इस घर पर जितना हक तुम्हारा है उतना अब मेरा भी है क्योंकि कहा जाता है शादी के बाद एक लड़की का घर उसका ससुराल ही हो जाता है। और मैं चाहती हूं कि अपना घर इस तरह से प्यार से रखूँ कि मेरा घर, घर नहीं बल्कि स्वर्ग से भी सुंदर हो जाए। शांति की यह बात सुनकर अविनाश के मन से एक बहुत बड़ा डर दूर हो गया था उसे लग रहा था कि कहीं इस छोटी सी बगिया में शांति के आने से हलचल न मच जाए लेकिन ऐसा कुछ नहीं था उसे यकीन हो रहा था उसने अपने जीवन साथी का चुनाव बिल्कुल सही किया है।
सुबह होते ही शांति ने नाश्ता करने के लिए सबको बुलाया आज नाश्ते में शांति ने उत्पम बनाया था, उसके ससुर दीनदयाल जी को उतपम बहुत पसंद था। नाश्ता करने के बाद उन्होंने शांति को अपने पास बुलाया बहू आ जाओ बैठो तुमने तो आज मेरा दिल ही खुश कर दिया। पहले यह बताओ कि तुम्हें कैसे पता चला कि मुझे उत्पम बहुत पसंद है। शांति ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया बाबूजी जब मुझे इस घर में ही रहना है तो सबकी पसंद और नापसंद की जानकारी तो करनी पड़ेगी ना तभी तो मैं सबका ख्याल अच्छा से रख पाऊंगी।
उसके जवाब से बाबूजी बहुत खुश हुए। दीनदयाल जी ने अपनी बेटी के हाथ में एक लिफाफा पकड़ाते हुए बोला शिमला की दो टिकटें हैं तुम और अविनाश जाओ घूम कर आओ। अरे नहीं बाबू जी आपको छोड़कर अभी हम कहीं नहीं जाएंगे घूमने लिए तो पूरा जीवन पड़ा है।
दीनदयाल जी बोले बिल्कुल तुम्हारी जैसी ही बातें अविनाश की माँ भी किया करती थी ऐसे ही करते करते हैं हमने शादी के बाद से ही शिमला जाने को सोच रहे थे लेकिन हर बार टाल देती थी लेकिन हम कभी शिमला नहीं जा पाए पर मैं नहीं गया तो क्या हो गया मेरे बेटे और बहु तो जाएंगे। और सुनो ना मत कहना।
तभी उसकी ननद प्रिया बोली भाभी ले लो टिकट जाओ घूम आओ ऐसे ससुर तुम्हें कहीं नहीं मिलने वाले मेरे बाबूजी तो बिल्कुल ही अनोखे हैं।
सब लोगों ने इतना जोर दिया तो शांति शिमला जाने को तैयार हो गए शिमला का 3 दिन का ट्रिप था। शिमला जाकर शांति और अविनाश ने खूब एंजॉय किया और वापसी लौटते हुए अपने ससुर दीनदयाल और अपनी ननद प्रिया के लिए बहुत सारा सामान इन दोनों ने खरीद के कर ले गए। शांति ने अपने ससुर के लिए हिमाचली टोपी और हिमाचली जैकेट खरीद के लाई थी और अपनी ननद प्रिया के लिए भी ढेर सारा मेकअप का सामान लेकर आई हुई थी।
दीनदयाल जी ने अपनी बहू को इस घर के प्रति इतना प्यार को देखते हुए उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया सदा सुहागन रहो मेरी बच्ची अब आज से मेरी एक बेटी नहीं बल्कि दो दो बेटी है। यह शब्द सुनकर शांति बहुत खुश हुई। एक बहू के लिए ससुराल में बेटी बनना उसके लिए सौभाग्य की बात होती है।
एक बहू को बेटी का दर्जा मिलने के लिए बहुत ज्यादा प्यार और त्याग की जरूरत होती है तब जाकर कहीं बहू को बेटी का दर्जा मिलता है।
अविनाश भी शांति का अपने परिवार के प्रति इतना ज्यादा लगाव देखकर बहुत ही मन ही मन खुश हो रहा था और अपने आप पर गर्व हो रहा था कि उसे शांति जैसी जीवनसंगिनी मिली।
शिमला से आने के बाद शांति ने ऐसा महसूस किया कि उसकी ननद उदास है तो उसने उससे उदासी का कारण पूछा पहले तो प्रिया ने टाल दिया कि नहीं भाभी ऐसी कोई बात नहीं है बस ऐसे ही मन ठीक नहीं है तो लग रहा है आपको। शांति ने बोला प्रिया इतना तो मुझे भी चेहरा पढ़ने आता है कि कौन खुश है और कौन उदास बता क्या बात है अब आज से मैं तुम्हारी भाभी ही नहीं बल्कि माँ भी हूँ कोई भी परेशानी हो तुम मुझसे बेहिचक शेयर कर सकती हो जहां तक हो सकेगा मैं तुम्हारी मदद करूंगी।
प्रिया ने अपने भाभी से बताया की भाभी पहले यह मुझे वादा दो कि आप यह बात अभी किसी से नहीं कहोगी शांति ने बोला हां हां किसी से नहीं कहोगी अब तो बता दे मेरी जान। भाभी बात दरअसल यह है कि मैं एक लड़के से प्यार करती हूं वह मेरे साथ ही कॉलेज में पढ़ा करता था उसकी नौकरी पास के ही सरकारी अस्पताल में हो गई है उसके घर वाले उसकी शादी कर देना चाहते हैं। इसी वजह से मैं बहुत परेशान हूं क्योंकि बाबूजी मुझे नहीं लगता है कि वह इस शादी को लेकर तैयार होंगे क्योंकि वह लड़का हमारे कास्ट का नहीं है और बाबूजी इन सब चीजों को बहुत मानते हैं बस इसी बात का टेंशन है कैसे मैं रंजन से शादी करूं।
बस इतनी सी बात और इस बात के लिए मेरी गुड़िया रानी परेशान है। चलो मैं तुम्हें वादा देती हूं कि तुम्हारी शादी में रंजन से करा कर ही मानूंगी। प्रिया बोली भाभी सच मे, तो शांति बोली सच नहीं सचमुच में अब तू देखती जा यह तेरी भाभी क्या करती है।
अगले दिन सुबह सब लोग नाश्ते पर बैठे हुए थे। नाश्ता करके अविनाश अपने ऑफिस के लिए चला गया प्रिया भी अपने कमरे में चली गई लेकिन शांति वहीं बैठी रही अपने ससुर दीनदयाल जी के पास। शांति धीरे से बोली बाबूजी अब हमे प्रिया की भी शादी कर देनी चाहिए तो बाबूजी बोले हां बेटी सही कह रही हो मैं भी कोई एक अच्छा लड़का देख ही रहा हूं जैसे कोई अच्छा लड़का पसंद आ जाएगा देखकर शादी कर दी जाएगी।
तुम्हारी नजर में भी कोई लड़का हो तो बताना। बाबूजी आप बुरा ना माने तो एक बात कहूं। हां हां बहू कहो बाबूजी प्रिया एक लड़के से प्यार करती है और लड़का भी इसे बहुत पसंद करता है लेकिन परेशानी की बात यह है कि लड़का हमारे कास्ट का नहीं है। बाबू तब तो यह शादी किसी भी हाल में नहीं हो सकती है क्योंकि अगर लड़का तो हमारे कास्ट का होता और थोड़ा सा गरीब भी होता अगर प्रिया को पसंद होता तो मैं उससे उसकी शादी कर लेता।
लेकिन जब वह हमारे कास्ट का ही नहीं है तो हम उससे शादी नहीं कर सकते हैं आखिर समाज में इज्जत भी कुछ चीज़ होती है लोग क्या कहेंगे दीनदयाल जी ने अपनी बेटी की शादी दूसरे कास्ट में कर दिया नहीं बेटी मैं तुम्हारी यह बात नहीं मान सकता। और आगे तुम्हें चेतावनी देता हूं इस बात के लिए कभी भी मुझे फोर्स मत करना.।
शांति परेशान हो गई थी अब उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। वहां से उठकर जैसे ही अपने कमरे में आई प्रिया भी उठ कर शादी के कमरे में आ गई। क्या हुआ भाभी बाबू जी क्या बोले शांति ने प्रिया को हिम्मत दिया तू चिंता मत कर तेरी शादी रंजन से ही होगी मैं आज शाम को तुम्हारे भैया अविनाश से बात करूंगी वह तुम्हारे बाबूजी से बात करेंगे क्या पता अविनाश बात करें तो तुम्हारे बाबूजी मान जाए।
लेकिन भाभी अगर भैया भी नहीं माने तो, अरे पगली मुझे तुम्हारे भैया के बारे में पता है वह खुले विचार के इंसान हैं और वह इस जातिवादी के चक्कर में नहीं पड़ने वाले ठीक है।
शाम को जब अविनाश घर आया तो रात में शांति ने अविनाश से प्रिया की शादी के बारे में बात की और लड़के के बारे में भी बताया अविनाश बोला कि इस में क्या हर्ज है लड़का कमाता है और सबसे बड़ी बात दोनों एक दूसरे से
प्यार करते हैं आप जमाना बहुत आगे चला गया है अब कोई नहीं है कास्ट वास्ट मानता है। मैं सुबह ही बाबू जी से बात करूंगा।
सुबह होते ही नाश्ते के टेबल पर अपने बाबू जी से बोला बाबूजी इस जमाने में जाति धर्म की बातें करना बिल्कुल ही बेमानी है अगर लड़का लड़की एक दूसरे को पसंद करते हैं तो हमें कोई एतराज नहीं होना चाहिए। दीनदयाल जी बोले तुम बड़े भाई होकर अगर ऐसी बात करोगे तो छोटे को बढ़ावा मिलेगा ही ना उसे तो हिम्मत मिलेगी ही।
क्या इस दुनिया में प्यार ही सबकुछ होता है दुनिया समाज और बुजुर्गों की राय बिल्कुल ही मायने नहीं रखती हम एक उच्च खानदान से आते हैं । कल अगर हमारे समाज वाले हमें अपने समाज से अलग कर दें तो हम क्या करेंगे तुम लोग चाहे जो भी सोचो मैं शादी के लिए बिल्कुल ही तैयार नहीं हूं दीनदयाल जी ने अपना फैसला सुना दिया था।
अपने ससुर जी के फैसले से अब शांति बिल्कुल ही परेशान हो गई थी क्योंकि उसने अपनी ननद को वचन दिया था उसके मनपसंद लड़के से उसका विवाह जरूर करवाएगी लेकिन इधर बाबूजी की जीद को कैसे तोड़ेगी यही सोच रही थी।
इस घटना के बाद प्रिया भी बिल्कुल ही उदास रहने लगी थी उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी शादी होने की।
जो घर हमेशा खुशियों से भरा रहता था अब बिल्कुल ही शांत हो गया था ऐसा लग रहा था जैसे समंदर में हलचल होना बंद हो गया हो समंदर शांत हो गया है जब समंदर शांत होता है तो कोई तूफान आता है और यही हुआ।
एक दिन अचानक बाबूजी को हार्ट अटैक आया और पास के ही हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया। अच्छी बात यह थी कि उसी हॉस्पिटल में रंजन कंपाउंडर का जॉब करता था। और बाबूजी की देखभाल की जिम्मेवारी उसे ही मिली थी।
जब उसे पता चला प्रिया के बाबूजी दीनदयाल हैं वह उनकी सेवा और रोगियों के मुकाबले ज्यादा करता था हमेशा उनके पास रहता था। उसकी सेवा भाव से दीनदयाल जी बहुत ही खुश हुए। हॉस्पिटल से छुट्टी होने के बाद दीनदयाल जी ने अपने बेटे अविनाश से बोला कंपाउंडर कहाँ है उसको बुला कर लाओ मैं उससे मिलना चाहता हूं।
अविनाश जाकर रंजन को बुलाया।
रंजन से मिलते ही दीनदयाल जी ने बोला बेटे जब टाइम मिले घर आते रहना. अभी तक दीनदयाल जी को रंजन के बारे में कुछ नहीं पता था कि वही लड़का है जीससे उनकी बेटी प्यार करती है। लेकिन अब रंजन का प्रिया के घर आना जाना शुरु हो गया था दीनदयाल जी से राजन की काफी गहरी दोस्ती हो गई थी।
रविवार के दिन दीनदयाल जी ने रंजन को भी सुबह नाश्ते पर बुलाया। उन्होंने बोला बेटा तुम शादी क्यों नहीं कर लेते हो कम से कम तुम्हें खाना बनाने की समस्या को हल हो जाएगा और तुम इतने अच्छे हो तुमसे तो कोई भी अपनी लड़की की शादी करने के लिए हां कर देगा।
रंजन बोला बाबूजी यही तो दिक्कत है मैं जिसे पसंद करता हूं उनके पिताजी मुझे पसंद ही नहीं करते। दीनदयाल जी बोले ठीक है तुम मुझे ले चलना लड़की के पिताजी के पास मैं तुम्हारे लिए बात करूंगा। रंजन नाश्ता के बाद वापस अपने घर चला गया।
शांति ने देखा मौका अच्छा है छक्का मार देती हूं। शांति बोली बाबूजी अगर अपनी प्रिया की शादी रंजन से कर दिया जाए तो कैसा रहेगा। बाबूजी बोले लेकिन वह तो किसी और लड़की को पसंद करता है फिर वह हमारी प्रिया से शादी क्यों करेगा।
शांति बोली बाबूजी अगर वह मान भी जाए तभी तो शादी नहीं हो सकती है क्योंकि वह हमारी जाति से तो है नहीं पता नहीं किस जाति का है। बाबूजी के बोल ही बदल गए थे उन्होंने बोला की बेटी वह जमाना चला गया जब लोग अंतरजातीय विवाह के विरोध में थे अगर लड़का अच्छा हो तो विवाह करने में कोई बुराई नहीं है।
शांति भी तो यही सुनना चाहती थी। शांति बोली बाबू जी अगर आप बुरा ना माने तो मैं आपसे एक बात कहूं हां बेटी बोलो। शांति ने बताया कि रंजन वही लड़का है जिसके बारे में मैंने आपसे कुछ दिन पहले प्रिया के रिश्ते के लिए बात की थी। बाबूजी चौंक से गए अच्छा ! बाबू जी ने बोला फिर देरी किस बात का उसके मां-बाप से बात करो और शादी की डेट फिक्स करो मुझे लड़का पसंद है। कुछ दिनों बाद ही रंजन और प्रिया की सगाई हो गई और शादी भी बहुत धूमधाम से हुआ आज एक बहु ने एक सास का फर्ज निभा दिया था।
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