‘ जायदाद पर हक ‘ – कमलेश आहूजा : Moral Stories in Hindi

“सीमा,ये बाऊजी के मकान के पेपर्स हैं रख लो।”स्नेहा ने सभी रिश्तेदारों के सामने अपनी नन्द को ससुर के मकान पेपर्स दिए तो वो तुरंत उठकर आई और भाभी के हाथ से पेपर्स ऐसे झपट लिए मानों कबसे इनका ही इंतजार कर रही थी।झूठे मुँह को भी नहीं बोला,कि मुझे मकान के पेपर्स नहीं आपका साथ चाहिए।

स्नेहा की नन्द सीमा बहुत ही लालची किस्म की औरत थी।उसकी हर समय यही नियत रहती थी,कि वो ज्यादा से ज्यादा पैसा अपने भाई से ऐंठ ले।

स्नेहा के पति ने ही बचपन से अपने घर की सारी जिम्मेदारियाँ निभाई थी।

सीमा को वैसे ही उसके पति बहुत कुछ देते रहते थे फिर भी उसके माँगने की आदत नहीं जाती थी।कभी ससुराल वालों के बहाने से तो कभी किसी बहाने से उसकी फरमाइशें जारी रहती थीं।एक तो बहन छोटी थी और अब स्नेहा के पति के पास भी भगवान की दया से पैसे को कोई कमी नहीं थी सो वो बहन की हर छोटी मोटी डिमांड पूरी करते थे।नतीजा ये हुआ है,कि सीमा तो सर पे ही चढ़ गई।

सीमा के पति का अचानक देहान्त हो गया।कहने को उसका भरा पूरा परिवार था,फिर भी हर काम के लिए वो भाई को ही कहती थी।अगर कोई उसकी बात नहीं मानता तो वो रो रोकर यही कहती-“मैं विधवा हूँ…मैं बेसहारा हूँ..यानी भावनात्मक रूप से सबको टॉर्चर करती थी।

वैसे तो स्नेहा भी उसके दुख से दुखी थी और उसकी हर संभव मदद करने में पति का साथ देती थी पर हर बात के लिए वो उसके पति पर निर्भर करने लगी तो उसे कहीं ना कहीं अखरने लगा।आखिर उसके बच्चे भी बड़े हो गए थे।दोनों बेटे अच्छे कॉलेज से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे।ससुर भी उसके साथ रहते थे।

उनकी भी दवा दारू चलती रहती थी।सबसे बड़ी बात तो ये थी,कि सीमा के पति उसके लिए इतना पैसा तो छोड़ ही गए थे,कि उसे दूसरों के सामने हाथ ना फैलाना पड़े।पति के जाने से पहले वो अपने मकान में शिफ्ट हो गई थी यानी ससुराल वालों की भी कोई जिम्मेदारी नहीं थी।बस अपना खाना,

अपना पकाना।सीमा तो बी ए करने के बाद पढ़ना भी नहीं चाहती थी ये तो स्नेहा के पति ने ही उसे जबरदस्ती एम ए और बी एड करवाया।उसी पढ़ाई के आधार पर अब तो उसे सरकारी नौकरी भी मिल गई थी।इसके लिए भी स्नेहा के पति ने ही भाग दौड़ की थी।फिर भी सीमा का मुँह हर समय खुला ही रहता था।

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वैसे किसी इंसान की कमी को कोई पूरा नहीं कर सकता पर पैसा पास में हो तो जीवन थोड़ा सरल हो जाता है।लेकिन सीमा तो बस अपने विधवा होने की दुहाई देकर जब तब स्नेहा के पति से पैसे माँगती रहती थी और अपने पैसे जमा करती थी।

एक बार कुछ ऐसी स्थिति बनी,कि स्नेहा के दोनों बच्चों की परीक्षाएं थी और पति का ऑपरेशन होना था तो स्नेहा ने पहली बार सीमा को बोला कि वो कुछ दिनों के लिए ससुर जी को अपने पास रखले जब पति का ऑपरेशन हो जाएगा और बच्चों की परीक्षाएं समाप्त हो जाएंगी तो वो बाऊजी जी को वापिस अपने घर ले आएगी।

वैसे तो भाभी की परेशानी देखकर उसे स्वयं ही ऐसी बात कहनी चाहिए थी पर ऐसा कहना तो दूर…उल्टा स्नेहा के मदद माँगने पर उसने अपनी ही मजबूरियाँ गिनवा दीं -“मैं बाऊजी को कैसे रख सकती हूँ.?मेरे भी बच्चे हैं और मुझे नौकरी पे भी जाना पड़ता है।फिर मेरे ससुराल वाले क्या कहेंगे..पिता को अपने घर पे रखा है?”

सीमा का जवाब सुनकर स्नेहा के पति भी दुखी हो गए थे।

स्नेहा ने अकेले ही पति का ऑपरेशन करवाया और घर व बच्चों को संभाला।वैसे स्नेहा के बेटे समझदार थे।हर काम में स्नेहा की मदद करते थे।पर इस बार फाइनल परीक्षाएं होने की वजह से वो स्नेहा की ज्यादा मदद नहीं कर पाए।

सीमा भाई को देखने एक बार भी नहीं आई बस फोन से ही हालचाल पूछ लिया।

स्नेहा खुश थी,कि सब ठीक हो गया।पर कहते हैं ना..तेरे मन कुछ और है,दाता के मन कुछ और..

ऑपरेशन के पंद्रह दिनों बाद स्नेहा के पति को दिल का दौरा आया और उनकी मृत्यु हो गई।स्नेहा पे तो जैसे मुसीबतों का पहाड़ टूट गया।पति उसे अधर में छोड़कर चले गए।

इधर सीमा का अपना अलग ही राग चल रहा था।सबके सामने दहाड़े मार-मारकर रो रही थी-“मेरा भाई चला गया..अब मेरी बेटियों की शादी कौन करेगा..?” उसे ऐसे समय में भी अपनी ही पड़ी थी भाभी के दुख से कोई लेना देना नहीं था।

स्नेहा के ससुर की हालत भी कुछ ठीक नहीं थी।एक तो वो पहले से ही बिस्तर पे थे दूसरा जवान बेटे की मौत ने तो उन्हें तोड़कर रख दिया।सीमा को लगा,इससे पहले की बाऊजी को कुछ हो जाए वो उनका पुराना मकान अपने नाम करवा ले।क्योंकि स्नेहा के पति ने तो अपना मकान बना लिया था।पुराना मकान ऐसे ही खाली पड़ा था।

स्नेहा के पति ने सोचा था,कि उसे बेचकर जो पैसा मिलेगा वो सीमा के बच्चों की शादी में खर्च कर देंगे।ऐसे उसे मकान के हिस्से का पैसा अभी से दे देंगे तो वो बच्चों की शादी में अलग से पैसा माँगेगी।स्नेहा के पति अपनी बहन की नीयत को अच्छे से समझते थे।
सब रिश्तेदार चले गए तो सीमा अपने पिता के कमरे में गई और बोली-“बाऊजी,आपने अपने उस पुराने मकान के बारे में क्या सोचा है..?”

“बेटा उस पर तो तेरी भाभी और उसके बच्चों का हक है।तेरे भाई भाभी ने मेरी बहुत सेवा की है।वैसे भी तेरे भाई ने तुझे इतना कुछ दिया है,तेरी पढ़ाई तेरी शादी सबका खर्चा उस बेचारे ने ही तो किया था।अपने सारे काम भी उसने ही किए।मैंने तो उस बेचारे को बाप होकर भी कभी कुछ नहीं दिया।

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मेरे पास जायदाद के नाम पर बस एक वो ही पुराना मकान है।मैं बेटे को उसके जीते जी नहीं दे सका पर उसके बाद अब ये मकान अपनी बहु के नाम कर दूँगा।

“ऐसे कैसे आप सारा मकान भाभी के नाम कर दोगे।पिता की जायदाद में बेटी का भी हिस्सा होता है।आपको मुझे मेरे हिस्सा देना होगा।” सीमा गुस्से से बोली 

तभी स्नेहा भी वहाँ आ गई।उसने दोनों की बातें सुन ली थीं।पर वो चुप रही।भाभी को देख सीमा चुपचाप वहाँ से खिसक ली।

चौथे की रस्म के बाद सीमा अपने घर चली गई।उसके जाने के बाद स्नेहा एक दिन बैंक गई और लॉकर से पुराने मकान के पेपर्स ले आई।

“बाऊजी आपसे एक बात कहनी थी।” स्नेह ससुर जी से बोली।

“हाँ बेटा,बोलो क्या कहना है..?”

“ये आपके पुराने मकान के पेपर्स हैं,आप मकान सीमा के नाम कर दें।”

“बहु पागल हो गई हो क्या?सीमा का इस मकान पर कोई हक नहीं है।इस पर केवल तुम्हारा हक है।”बाऊजी खाँसते हुए बोली।

“मैं आपकी भावनाएं समझती हूँ।पर सीमा भी तो आपकी बेटी है।आपके आशीर्वाद से आपके बेटे ने मकान बना लिया था।आपके दोनों पोते भी अपने पिता की तरह लायक हैं वो भी आपके आशीर्वाद से पढ़ लिखकर सब कुछ बना लेगें।सीमा की तो दो बेटियाँ हैं, उनकी शादी में कितना खर्चा होगा?रहने के लिए एक मकान है ना अपने पास एक और क्या करना है?”स्नेहा बहुत देर तक प्यार से ससुर जी को समझाती रही और अंततः उसने उन्हें राजी कर ही लिया।

कुछ जरूरी फॉर्मेलिटिस पूरी करने के बाद उसने ससुर जी से मकान सीमा के नाम ट्रांसफर करवा लिया।

स्नेहा ने मन में ये निश्चय कर लिया कि वो अपनी लालची नन्द को मकान के पेपर्स रिश्तेदारों के सामने ही सौंपेगी।क्योंकि उसका क्या भरोसा.?कल को सबसे ये कहती फिरे की भाभी ने मेरी पिता की जायदाद में मुझे कोई हिस्सा नहीं दिया सब कुछ अपने नाम करवा लिया।

आज पति की तेरहवीं के दिन सभी रिश्तेदारों के सामने सीमा को मकान के पेपर्स सौंपकर स्नेहा अपने को बहुत हल्का महसूस कर रही थी।बस रह-रहकर उसके मन में यही सवाल उठ रहा था..कि बेटियाँ माता पिता की जायदाद पर अपना हक जताती हैं.. तो फिर उनकी सेवा करने से क्यों इनकार करती हैं..?

दोस्तों आपको मेरी कहानी कैसी लगी?कमेंट के माध्यम से अवश्य बताएं।

#हक

कमलेश आहूजा

27/505

Hdfc बैंक के सामने

वसंत विहार

थाने (महाराष्ट्र)

2 thoughts on “‘ जायदाद पर हक ‘ – कमलेश आहूजा : Moral Stories in Hindi”

  1. 😊👌👌कहानी बहोत achchi लगी. और आपकी बात भी एकदम सही लगी. भाई के जाने के बाद agr सीमा थोडी सुधर जाती to और accha होता. 🙏

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