जान की कीमत – ऋचा उनियाल बोंठियाल

उस दिन भी हमेशा की ही तरह ,मैं शाम की वॉक पर निकली थी। अभी घर से कुछ ही दूर पहुंची थी कि ,

“चोर–चोर ……पकड़ो–पकड़ो…..” ये शब्द सुन मैं ठिठक गई।

“कहीं ये मेरा वहम तो नहीं?” सोचते हुए मैंने ज़रा ध्यान से सुनने की कोशिश की। नहीं ये मेरा वहम नहीं था, शोर पिछली गली से ही आ रहा था । अब तो आवाज़ें और स्पष्ट हो गईं थीं, मैं अत्यंत भयभीत हो गई। ईश्वर का नाम लेकर मैंने पीछे मुड़ कर देखा ।

मुझसे लगभग 200 मीटर की दूरी पर एक युवक बेतहाशा दौड़ता हुआ उस गली से निकला…उसके पीछे कुछ दस–बारह लोग उसे पकड़ने हेतु उसके पीछे भाग रहे थे। मुझे समझते देर न लगी कि वो युवक चोरी कर के भाग रहा है। मैंने घबराकर इधर उधर देखा, उस समय सड़क पर मेरे आस पास कोई भी नहीं था। युवक और भीड़ मेरी ओर ही बढ़ रहे थे। चूंकि ऐसा नज़ारा मैंने पहला बार देखा था, मैं भय से कांपने लगी।

मन में अजीब–अजीब से खयाल आने लगे।

“कहीं इस लड़के के पास हथियार हुआ तो? और …. और…इसने ख़ुद को बचाने के लिए मुझे दबोच लिया तो?”  कुछ ही पलों में ऐसे अनगिनत बुरे खयाल मेरे दिमाग में कौंध गए । मैंने भी भागने की कोशिश की पर डर के मारे मैं हिल भी नहीं पा रही थी। मेरे पैर इतने भारी हो गए, मानो ज़मीन से चिपक ही गए हों। मैं हड़बड़ा कर वहीं किनारे पर दीवार से चिपक कर खड़ी हो गई।

इससे पहले सभी मुझ तक पहुंचते, वो युवक लड़खड़ा कर गिर पड़ा और भीड़ ने उसे दबोच लिया । ये देख, मेरी सांस में सांस आई। अब कम से कम मुझे तो कोई खतरा नहीं था।

तभी भीड़ में से एक आदमी ने उस युवक को एक ज़ोरदार चांटा मारा..

“ क्यों रे…. बहुत चर्बी चढ़ी है…? …हैं….?… चोरी करेगा…. हैं…?……शर्म नहीं आती?”

ये कहते हुए उसे पीटना भी शुरू कर दिया। बाकी लोग भी देखा देखी में उस पर लात घूसे बरसाने लगे।

हम मनुष्यों की प्रवृत्ति होती है… जहां तमाशा दिखा, वहीं जमावड़ा लागा लेते हैं। तमाशा देखने में ,

हम लोगों को, न जानें क्या आनंद मिलता है?  धीरे–धीरे वहां भीड़ बढ़ने लगी।

अब मनुष्य जाति में तो, मैं भी आती हूं, तो भला मैं ,पूरा तमाशा देखे बिना ,कैसे वापस जा सकती थी? अभी थोड़ी देर पहले ही,डर के मारे ,जो मेरे पैर ,सड़क पर चिपक गए थे अब वो लपक कर भीड़ के बीच प्रवेश कर गए । तमाशा जो देखना था !!



भीड़ में से एक व्यक्ति, उस युवक पर लात घूसे बरसाते बरसाते,जब थक गया तो सांस लेने थोड़ा हट कर किनारे आ गया। मैंने भी मौका देखकर उससे पूछ ही लिया ,

“भैया क्या आपके यहां चोरी हुई है? क्या चुराया है इसने…?”

वो व्यक्ति हांफता हुआ बोला–

” अरे नहीं नहीं बहन जी.. मेरे यहां कोई चोरी नहीं हुई … पता नहीं क्या चुराया है इसने… वो तो सब चोर–चोर चिल्ला रहे थे, तो मैं भी भीड़ के साथ हो लिया। लेकिन इतना मारा है इसे… सात पुश्तें याद रखेंगी इसकी।

उस व्यक्ति से इस उत्तर की अपेक्षा तो मैंने नहीं की थी। जिस तरह से वो उसे पीट रहा था, ऐसा लग रहा था कि इसी के, हीरे जवाहरात चोरी हुए हैं।

मैंने मन ही मन सोचा इस व्यक्ति को ये भी नहीं पता कि इस चोर ने क्या चुराया है या कहां चोरी हुई है? और ऐसे ही उस चोर पर अपना हाथ साफ़ कर लिया?

इस भीड़ में नजाने कितने लोगों ने उसे पीटा होगा, बिना ये जाने कि उसने क्या चुराया है , वो वास्तव में चोर है भी या नहीं? बस सब के सब भीड़ का हिस्सा बनने की होड़ में लगे हैं।

वो युवक चीख रहा था। “माफ कर दो,आ ssss ….. मत मारो…. मुझे जाने दो, एक बार मेरी बात सुन लो। आ ssss ….”

लेकिन भीड़ के कान नहीं होते शायद। उसकी बात अनसुना कर सब उस पर लात घूसे बरसा रहे थे। पीट पीट कर उस युवक को लहूलुहान कर दिया।

मेरा मन खिन्न हो गया और मैं अपने घर लौट आई। घर में सभी को पूरा वृतांत सुनाया। कुछ देर चोरों और चोरी की घटनाओं पर चर्चा हुई, और थोड़ी ही देर में हम सब भूल कर अपने अपने काम में व्यस्त हो गए।

अगली सुबह , रोज़ की दिनचर्या के अनुसार मैं नाश्ता बना रही थी,तभी पति देव जी ने पुकारा “अरे ऋचा आओ तो ज़रा, देखो  अखबार में हमारे मुहल्ले की खबर छपी है।”

” उफ्फ हो…क्या ख़बर छपी है?आप ही बता दीजिए यहां अभी फुर्सत नहीं है । वैसे ही नाश्ता बनाने में लेट हो गया है।”

मैंने खीजते हुए कहा।

“ऋचा जिस घटना का कल तुमने  ज़िक्र किया था ना? अरे वो चोर वाली घटना… वही … उसी के बारे में छपा है। “

ये सुनते ही मैं काम छोड़,दुपट्टे से अपना हाथ पोंछती हुए किचन से लीविंग रूम में आ गई।

पति देव ने पूरा वृत्तांत सुनाया



“अखबार में  लिखा है कि कल शाम वो युवक ,नंदन कैमिस्ट शॉप पर, कुछ दवाईयां लेने गया था। उसने बकायदा दवाओं का पर्चा केमिस्ट को दिखाया । सभी दवाओं का करीब 700 रुपए का बिल बना । जैसे ही केमिस्ट ने सब दवाईयां पैक कर थैला उसके हाथ में थमाया।

उस युवक ने बिना पैसे चुकाए वहां से दौड़ लगा दी। केमिस्ट शॉप में काम करने वाले नीरज ने उस युवक का पीछा किया। लेकिन जब वो लड़का हाथ से फिसलता हुआ दिखा तो उसने, चोर चोर… पकड़ो पकड़ो…, चिल्लाना शुरू कर दिया। कुछ लोग आवाज़ सुन सक्रिय हो गए

और चोर का पीछा कर उसे धर दबोचा। युवक की जमकर पिटाई की गई। जिस वजह से उसकी हालत गंभीर हो गई। पुलिस ने तुरन्त मौके पर पहुंच कर हालात का जायज़ा लिया व घायल युवक को अस्पताल पहुंचाया ,जहां युवक को मृत घोषित कर दिया गया।

आगे की जांच पड़ताल में पता चला  कि आरोपी युवक मात्र 15 साल का था, जिसका नाम महेश था। उसके परिवार में केवल उसकी मां थीं,जो लंबे समय से बीमार चल रहीं थीं। घर की माली हालत इतनी खराब थी की एक वक्त के भोजन के भी लाले थे,

तो मां की दवाओं के लिए पैसों की व्यवस्था होना तो नामुमकिन ही था। महेश के पड़ोसियों से पूछताछ पर पता चला कि महेश बहुत ही शरीफ और होनहार बच्चा था। मां बेटे का एक दूसरे के सिवा दुनियां में और कोई न था। महेश अपने घर की हालत और मां की बीमारी की वजह काफी चिंतित रहता था।

उसने कई जगह हाथ पैर मारे कि कोई उसे कुछ काम देदे किंतु हर जगह विफल रहा। कुछ दिनों से उसकी मां की तबीयत कुछ ज्यादा ही खराब थी। डॉक्टर ने कहा था यदि समय पर दवाई नहीं दी गई तो उन्हें बचाया नहीं जा सकेगा । कल वो युवक अपनी मां के लिए ही दवाई लेकर भाग रहा था और दुख की बात ये भी है कि उसकी मां अपने इकलौते पुत्र की मृत्यु की ख़बर सह न सकी और उन्होंने भी तुरन्त प्राण त्याग दिए।

उफ्फ…. बड़ी मार्मिक खबर है ये तो ऋचा। “

पति एक सांस में सब बोल गए।

ये सुन मैं जड़ हो गई, मेरे मुंह से एक शब्द न निकला। मेरी आंखो के सामने, उस मार खाते हुए युवक का चेहरा घूम गया। कान में वही स्वर गूंजने लगे।

” माफ़ कर दो…., आ sssss… मुझे जाने दो…..एक बार मेरी बात तो सुन लो……आ ssss।”

मैं सोच में पड़ गई…क्या उस युवक की जान की कीमत मात्र 700 रुपए थी ? नहीं

… कदापि नहीं… उसकी जान का असली मूल्य केवल उसकी मां को ज्ञात था। तभी तो अपने बेटे की मृत्यु की खबर सुन, तुरन्त ही उसने भी अपने प्राण त्याग दिए।

काश उस दिन उस निर्दयी भीड़ में से किसी ने भी उस युवक की बात, एक बार सुन ली होती तो शायद वो जिंदा होता । हां वही निर्दयी भीड़…जिसका एक हिस्सा मैं भी थी।

समाप्त।।

ये कहानी पूर्णतः काल्पनिक व  स्वरचित है।

ऋचा उनियाल बोंठियाल

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