श्यामली पिछले कुछ माह से अस्वस्थ चल रही थी।पर जीवन अपनी गति से यथावत् चल रहा था। धीरे धीरे स्वास्थ्य निरंतर गिरता जा रहा था।
आखिर हार कर किसी विशेषज्ञ डाक्टर से परामर्श लेने का विचार किया गया।डाक्टर साहब ने पूरी तरह मुआइना करने के पश्चात कई प्रकार की जांच के निर्देश दिए।
फिर तो जांच,टैस्ट,एक्सरे, और न जाने किस किस प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ा और फिर कहीं जाकर इलाज शुरु हुआ।इलाज भी कौन सी आसान प्रक्रिया थी।
खैर, परिवार का निरंतर कठिन प्रयास रंग लाया और वह बीमारी से लड़ कर सही सलामत बाहर निकल गई।
पर अभी असली लड़ाई बाकी थी। दवाइयां , इंजेक्शन और इलाज की अन्य प्रक्रियाओं के दौरान खाना पीना काफी कम हो गया । जिस से शरीर में कमजोरी आ गई, हर समय थकान बनी रहती,
स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ गया,वजन निरंतर कम होने लगा । दुबारा जांच के लिए डॉक्टर के पास जाने पर उन्होंने कुछ मल्टी विटामिन और पोषण के लिए कुछ टॉनिक लिख दिये और साथ ही ताकीद दी “मैडम!
अब आप को किसी भी तरह के परहेज की जरूरत नहीं है। बस अपने खान-पान और खुराक पर पूरा ध्यान दें।जो पसंद हो बिंदास खाएं ।”
एक आम परिवार में किसी सदस्य के बीमार होने पर भी उसकी दवा दारू, खान -पान ,डाक्टर द्वारा दिये गए निर्देशों का पालन करने की सारी जिम्मेदारी गृहिणी पर होती है ।
और सभी गृहिणियां भले ही वह वर्किंग वुमन हो या घरेलू महिला, इस उत्तरदायित्व को बखूबी निभाती भी हैं। पर समस्या जब घर की महिला के साथ आती है,
तो परिवार के अन्य सदस्य इस उत्तरदायित्व को निभाने में असमर्थ रहते हैं।
और हमारी यह महिलाएं —– अपनी पसंद -नापसंद पर तो इन्होंने कभी ध्यान ही नहीं दिया। परिवार के अन्य सदस्यों ने खा लिया , समझो इन्होंने खा लिया ।
इन का पेट तो सब का बचा-खुचा खाकर ही भर जाता है और उसमें ही ये संतुष्ट भी हैं।
श्यामली का भी यही हाल था। पर अब जब शरीर ने जवाब दे दिया तो वह सोच में पड़ गई। वह समझ गई कि यह शरीर मेरा है और इस की देखभाल करना मेरा कर्त्तव्य भी है
और अधिकार भी ।यद्यपि महिलाएं अपने इस अधिकार के महत्व को न ही समझती हैं और न ही कभी इसका उपयोग करती हैं।पर अब वह समझ गई कि परिवार की अच्छी देख भाल के साथ साथ अपने खान-पान,
अपने पोषण का पूरा ध्यान रखना भी जरूरी है क्योंकि जान है ,तो जहान है । स्वयं स्वस्थ रह कर ही परिवार के प्रति अपने दायित्व को निभा पाएगी।
अब वह सही समय पर नाश्ता, दोपहर, रात का खाना खाती , पूरा आराम लेती और जो उसे पसंद होता, खा लेती बाकी छोड़ देती। यद्यपि यह कोई आसान काम नहीं था, पर कहते हैं”
करत करत अभ्यास के ” सब कुछ सम्भव है। अब वह समझ गई थी कि मेरा यह शरीर एक मंदिर है और मैं उस प्रभु की एक अद्भुत रचना ।
जिस तरह हम मनुष्य द्वारा निर्मित मंदिर में बड़ी श्रद्धा और विश्वास से जाते हैं, उसकी गरिमा का पूरा ध्यान रखते हैं , उसी प्रकार ईश्वर द्वारा निर्मित इस कृति का ध्यान रखना भी जरूरी है।
यह बात मात्र श्यामली या महिलाओं पर ही लागू नहीं होती, वरन् आज के वर्क अल्कोहलिक युवा वर्ग का भी यही हाल है ।भाग -दौड़ भरी जिंदगी में व्यस्त,
कभी नाश्ता मिस कर देते हैं और कभी दोपहर का खाना या रात का खाना । घर का खाना न पसंद कर ,खाने के लिए आन लाइन आर्डर करने वाले लोगों का भी यही हाल है।
शायद यही कारण है कि आज का युवा वर्ग बी पी, शुगर,हार्ट प्रोब्लम जैसी समस्याओं से जूझ रहा है।
बिमला महाजन